ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਮੋਹਨ ਤੇਰੇ ਊਚੇ ਮੰਦਰ ਮਹਲ ਅਪਾਰਾ ॥
मोहन तेरे ऊचे मंदर महल अपारा ॥
हे मेरे मोहन ! तेरे मन्दिर बहुत ऊँचे हैं और तेरा महल अनन्त है।
ਮੋਹਨ ਤੇਰੇ ਸੋਹਨਿ ਦੁਆਰ ਜੀਉ ਸੰਤ ਧਰਮ ਸਾਲਾ ॥
मोहन तेरे सोहनि दुआर जीउ संत धरम साला ॥
हे मोहन ! तेरे द्वार अति सुन्दर हैं। वे साधु-संतों के लिए पूजा-स्थल हैं।
ਧਰਮ ਸਾਲ ਅਪਾਰ ਦੈਆਰ ਠਾਕੁਰ ਸਦਾ ਕੀਰਤਨੁ ਗਾਵਹੇ ॥
धरम साल अपार दैआर ठाकुर सदा कीरतनु गावहे ॥
तेरे मन्दिर में संत जन सदैव ही अनन्त एवं दयावान प्रभु का भजन गायन करते रहते हैं।
ਜਹ ਸਾਧ ਸੰਤ ਇਕਤ੍ਰ ਹੋਵਹਿ ਤਹਾ ਤੁਝਹਿ ਧਿਆਵਹੇ ॥
जह साध संत इकत्र होवहि तहा तुझहि धिआवहे ॥
जहाँ साधु एवं संतों की सभा होती है, वहाँ वह तेरी ही आराधना करते हैं।
ਕਰਿ ਦਇਆ ਮਇਆ ਦਇਆਲ ਸੁਆਮੀ ਹੋਹੁ ਦੀਨ ਕ੍ਰਿਪਾਰਾ ॥
करि दइआ मइआ दइआल सुआमी होहु दीन क्रिपारा ॥
हे दयालु स्वामी ! दया एवं कृपा करो तथा दीनों पर कृपालु हो जाओ।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਦਰਸ ਪਿਆਸੇ ਮਿਲਿ ਦਰਸਨ ਸੁਖੁ ਸਾਰਾ ॥੧॥
बिनवंति नानक दरस पिआसे मिलि दरसन सुखु सारा ॥१॥
नानक विनती करता है – मैं तेरे दर्शनों हेतु प्यासा हूँ। तेरे दर्शन करके मैं तमाम सुख प्राप्त कर लेता हूँ॥ १॥
ਮੋਹਨ ਤੇਰੇ ਬਚਨ ਅਨੂਪ ਚਾਲ ਨਿਰਾਲੀ ॥
मोहन तेरे बचन अनूप चाल निराली ॥
हे मोहन ! तेरी वाणी बड़ी अनूप है और तेरी चाल (मर्यादा) बड़ी अनोखी है।
ਮੋਹਨ ਤੂੰ ਮਾਨਹਿ ਏਕੁ ਜੀ ਅਵਰ ਸਭ ਰਾਲੀ ॥
मोहन तूं मानहि एकु जी अवर सभ राली ॥
हे मोहन ! तू एक ईश्वर में ही आस्था रखता है, तेरे लिए शेष समस्त धूल के तुल्य है।
ਮਾਨਹਿ ਤ ਏਕੁ ਅਲੇਖੁ ਠਾਕੁਰੁ ਜਿਨਹਿ ਸਭ ਕਲ ਧਾਰੀਆ ॥
मानहि त एकु अलेखु ठाकुरु जिनहि सभ कल धारीआ ॥
हे मोहन ! तुम एक परमात्मा की आराधना करते हो, जो अपनी अपार शक्ति द्वारा सृष्टि को सहारा दे रहा है।
ਤੁਧੁ ਬਚਨਿ ਗੁਰ ਕੈ ਵਸਿ ਕੀਆ ਆਦਿ ਪੁਰਖੁ ਬਨਵਾਰੀਆ ॥
तुधु बचनि गुर कै वसि कीआ आदि पुरखु बनवारीआ ॥
हे मोहन ! गुरु के उपदेश द्वारा तूने आदिपुरुष सृजनहार के हृदय को जीत लिया है।
ਤੂੰ ਆਪਿ ਚਲਿਆ ਆਪਿ ਰਹਿਆ ਆਪਿ ਸਭ ਕਲ ਧਾਰੀਆ ॥
तूं आपि चलिआ आपि रहिआ आपि सभ कल धारीआ ॥
हे मोहन ! तू स्वयं ही (आयु भोगकर) चलते हो, स्वयं ही स्थिर व्यापक हो और स्वयं ही सृष्टि में अपनी सत्ता व्याप्त की हुई है।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਪੈਜ ਰਾਖਹੁ ਸਭ ਸੇਵਕ ਸਰਨਿ ਤੁਮਾਰੀਆ ॥੨॥
बिनवंति नानक पैज राखहु सभ सेवक सरनि तुमारीआ ॥२॥
नानक प्रार्थना करता है – (हे प्रभु !) मेरी मान-प्रतिष्ठा की रक्षा कीजिए! तेरे समस्त सेवक तेरी शरण ढूंढते हैं॥ २॥
ਮੋਹਨ ਤੁਧੁ ਸਤਸੰਗਤਿ ਧਿਆਵੈ ਦਰਸ ਧਿਆਨਾ ॥
मोहन तुधु सतसंगति धिआवै दरस धिआना ॥
हे मोहन ! साधु-संतों की संगति (सत्संग) तेरा भजन करती है और तेरे दर्शनों का ध्यान करती है।
ਮੋਹਨ ਜਮੁ ਨੇੜਿ ਨ ਆਵੈ ਤੁਧੁ ਜਪਹਿ ਨਿਦਾਨਾ ॥
मोहन जमु नेड़ि न आवै तुधु जपहि निदाना ॥
हे चितचोर मोहन ! जो प्राणी अन्तिम समय आपको स्मरण करते हैं, यमदूत उसके निकट नहीं आता।
ਜਮਕਾਲੁ ਤਿਨ ਕਉ ਲਗੈ ਨਾਹੀ ਜੋ ਇਕ ਮਨਿ ਧਿਆਵਹੇ ॥
जमकालु तिन कउ लगै नाही जो इक मनि धिआवहे ॥
यमकाल (मृत्यु का समय) उसे स्पर्श नहीं कर सकता, जो प्राणी एक हृदय से प्रभु का भजन करता है।
ਮਨਿ ਬਚਨਿ ਕਰਮਿ ਜਿ ਤੁਧੁ ਅਰਾਧਹਿ ਸੇ ਸਭੇ ਫਲ ਪਾਵਹੇ ॥
मनि बचनि करमि जि तुधु अराधहि से सभे फल पावहे ॥
हे मोहन ! जो पुरुष अपने मन, वचन एवं कर्म द्वारा तेरी आराधना करता है, वह समस्त फल प्राप्त कर लेता है।
ਮਲ ਮੂਤ ਮੂੜ ਜਿ ਮੁਗਧ ਹੋਤੇ ਸਿ ਦੇਖਿ ਦਰਸੁ ਸੁਗਿਆਨਾ ॥
मल मूत मूड़ जि मुगध होते सि देखि दरसु सुगिआना ॥
जो प्राणी मल-मूत्र की भाँति गन्दे, मूर्ख एवं बेवकूफ हैं, वह तेरे दर्शन करके श्रेष्ठ ज्ञानी हो जाते हैं।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਰਾਜੁ ਨਿਹਚਲੁ ਪੂਰਨ ਪੁਰਖ ਭਗਵਾਨਾ ॥੩॥
बिनवंति नानक राजु निहचलु पूरन पुरख भगवाना ॥३॥
नानक प्रार्थना करता है – हे मेरे पूर्ण सर्वव्यापक भगवान ! तेरी सत्ता सदैव स्थिर है॥ ३॥
ਮੋਹਨ ਤੂੰ ਸੁਫਲੁ ਫਲਿਆ ਸਣੁ ਪਰਵਾਰੇ ॥
मोहन तूं सुफलु फलिआ सणु परवारे ॥
हे मोहन ! तुम (संसार रूपी) बड़े परिवार से फलित विधि से प्रफुल्लित हुए हो।
ਮੋਹਨ ਪੁਤ੍ਰ ਮੀਤ ਭਾਈ ਕੁਟੰਬ ਸਭਿ ਤਾਰੇ ॥
मोहन पुत्र मीत भाई कुट्मब सभि तारे ॥
हे मोहन ! तुमने पुत्र, मित्र एवं कुटुंब सहित सबका कल्याण कर दिया है।
ਤਾਰਿਆ ਜਹਾਨੁ ਲਹਿਆ ਅਭਿਮਾਨੁ ਜਿਨੀ ਦਰਸਨੁ ਪਾਇਆ ॥
तारिआ जहानु लहिआ अभिमानु जिनी दरसनु पाइआ ॥
हे मोहन ! तुमने समस्त विश्व का कल्याण कर दिया है। जिन्होंने तेरे दर्शन किए तूने उनका अभिमान त्याग दिया है।
ਜਿਨੀ ਤੁਧਨੋ ਧੰਨੁ ਕਹਿਆ ਤਿਨ ਜਮੁ ਨੇੜਿ ਨ ਆਇਆ ॥
जिनी तुधनो धंनु कहिआ तिन जमु नेड़ि न आइआ ॥
हे मोहन ! जो तुझे धन्य कहते हैं अर्थात् गुणस्तुति करते हैं, यमदूत उनके कदापि निकट नहीं आता।
ਬੇਅੰਤ ਗੁਣ ਤੇਰੇ ਕਥੇ ਨ ਜਾਹੀ ਸਤਿਗੁਰ ਪੁਰਖ ਮੁਰਾਰੇ ॥
बेअंत गुण तेरे कथे न जाही सतिगुर पुरख मुरारे ॥
हे मुरारी ! हे सच्चे गुरु ! तेरे गुण अनन्त हैं, जिनका वर्णन नहीं किया जा सकता।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਟੇਕ ਰਾਖੀ ਜਿਤੁ ਲਗਿ ਤਰਿਆ ਸੰਸਾਰੇ ॥੪॥੨॥
बिनवंति नानक टेक राखी जितु लगि तरिआ संसारे ॥४॥२॥
नानक वन्दना करता है-(हे प्रभु !) मैंने वह सहारा पकड़ा है, जिससे जुड़कर समूचे जगत् का उद्धार हो जाता है॥ ४॥ २ ॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक॥
ਪਤਿਤ ਅਸੰਖ ਪੁਨੀਤ ਕਰਿ ਪੁਨਹ ਪੁਨਹ ਬਲਿਹਾਰ ॥
पतित असंख पुनीत करि पुनह पुनह बलिहार ॥
हे प्रभु ! असंख्य पापियों को तुम पवित्र पावन करते हो, मैं तुम पर बार-बार कुर्बान जाता हूँ।
ਨਾਨਕ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਜਪਿ ਪਾਵਕੋ ਤਿਨ ਕਿਲਬਿਖ ਦਾਹਨਹਾਰ ॥੧॥
नानक राम नामु जपि पावको तिन किलबिख दाहनहार ॥१॥
हे नानक ! राम नाम के भजन की अग्नि पापों को जला देने वाली है॥ १॥
ਛੰਤ ॥
छंत ॥
छंद॥
ਜਪਿ ਮਨਾ ਤੂੰ ਰਾਮ ਨਰਾਇਣੁ ਗੋਵਿੰਦਾ ਹਰਿ ਮਾਧੋ ॥
जपि मना तूं राम नराइणु गोविंदा हरि माधो ॥
हे मेरे मन ! तू राम, नारायण, गोविन्द, हरि का भजन कर, जो सृष्टि का रक्षक एवं माया का पति है।
ਧਿਆਇ ਮਨਾ ਮੁਰਾਰਿ ਮੁਕੰਦੇ ਕਟੀਐ ਕਾਲ ਦੁਖ ਫਾਧੋ ॥
धिआइ मना मुरारि मुकंदे कटीऐ काल दुख फाधो ॥
हे मेरे मन ! तू मुकुंद मुरारी का चिन्तन कर, जो दुखदायक मृत्यु की फाँसी को काट देता है।
ਦੁਖਹਰਣ ਦੀਨ ਸਰਣ ਸ੍ਰੀਧਰ ਚਰਨ ਕਮਲ ਅਰਾਧੀਐ ॥
दुखहरण दीन सरण स्रीधर चरन कमल अराधीऐ ॥
हे प्राणी ! प्रभु के सुन्दर चरणों की आराधना कर, जो दुखों का नाशक, निर्धनों का सहारा एवं लक्ष्मी का स्वामी श्रीधर है।
ਜਮ ਪੰਥੁ ਬਿਖੜਾ ਅਗਨਿ ਸਾਗਰੁ ਨਿਮਖ ਸਿਮਰਤ ਸਾਧੀਐ ॥
जम पंथु बिखड़ा अगनि सागरु निमख सिमरत साधीऐ ॥
एक क्षण भर के लिए प्रभु को स्मरण करने से मृत्यु के विषम मार्ग एवं अग्नि के सागर से उद्धार हो जाता है।
ਕਲਿਮਲਹ ਦਹਤਾ ਸੁਧੁ ਕਰਤਾ ਦਿਨਸੁ ਰੈਣਿ ਅਰਾਧੋ ॥
कलिमलह दहता सुधु करता दिनसु रैणि अराधो ॥
हे प्राणी ! दिन-रात प्रभु का चिन्तन कर, जो कल्पना को नाश करने वाला एवं विकारों की मैल को पवित्र पावन करने वाला है।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਕਰਹੁ ਕਿਰਪਾ ਗੋਪਾਲ ਗੋਬਿੰਦ ਮਾਧੋ ॥੧॥
बिनवंति नानक करहु किरपा गोपाल गोबिंद माधो ॥१॥
नानक प्रार्थना करता है – हे सृष्टि के पालनहार गोपाल ! हे गोबिन्द ! हे माधव ! मुझ पर कृपा करो।॥ १॥
ਸਿਮਰਿ ਮਨਾ ਦਾਮੋਦਰੁ ਦੁਖਹਰੁ ਭੈ ਭੰਜਨੁ ਹਰਿ ਰਾਇਆ ॥
सिमरि मना दामोदरु दुखहरु भै भंजनु हरि राइआ ॥
हे मेरे मन ! उस परमात्मा दामोदर को स्मरण कर, जो दुख दूर करने वाला और भय का नाश करने वाला है।
ਸ੍ਰੀਰੰਗੋ ਦਇਆਲ ਮਨੋਹਰੁ ਭਗਤਿ ਵਛਲੁ ਬਿਰਦਾਇਆ ॥
स्रीरंगो दइआल मनोहरु भगति वछलु बिरदाइआ ॥
हे बन्धु ! अपने स्वभाव अनुसार दयालु प्रभु लक्ष्मीपति, मन को चुराने वाला मनोहर एवंभक्तवत्सल है।