ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥
ਤਿਸੈ ਸਰੇਵਹੁ ਪ੍ਰਾਣੀਹੋ ਜਿਸ ਦੈ ਨਾਉ ਪਲੈ ॥
तिसै सरेवहु प्राणीहो जिस दै नाउ पलै ॥
हे प्राणियों ! उस गुरु की सेवा करो जिसके पास ईश्वर का नाम है।
ਐਥੈ ਰਹਹੁ ਸੁਹੇਲਿਆ ਅਗੈ ਨਾਲਿ ਚਲੈ ॥
ऐथै रहहु सुहेलिआ अगै नालि चलै ॥
इस तरह तुम इहलोक में सुखपूर्वक रहोगे तथा परलोक में भी नाम तुम्हारे साथ जाएगा।
ਘਰੁ ਬੰਧਹੁ ਸਚ ਧਰਮ ਕਾ ਗਡਿ ਥੰਮੁ ਅਹਲੈ ॥
घरु बंधहु सच धरम का गडि थमु अहलै ॥
सत्य धर्म का अटल स्तम्भ स्थापित करके भक्ति का घर बनाओ,
ਓਟ ਲੈਹੁ ਨਾਰਾਇਣੈ ਦੀਨ ਦੁਨੀਆ ਝਲੈ ॥
ओट लैहु नाराइणै दीन दुनीआ झलै ॥
उस नारायण की ओट लो जो दीन एवं दुनिया को सहारा देता है।
ਨਾਨਕ ਪਕੜੇ ਚਰਣ ਹਰਿ ਤਿਸੁ ਦਰਗਹ ਮਲੈ ॥੮॥
नानक पकड़े चरण हरि तिसु दरगह मलै ॥८॥
हे नानक ! जिस प्राणी ने ईश्वर के चरण पकड़े हैं, वह उसके दरबार को हमेशा के लिए प्राप्त कर लेता है॥ ८ ॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੫ ॥
सलोक मः ५ ॥
श्लोक महला ५॥
ਜਾਚਕੁ ਮੰਗੈ ਦਾਨੁ ਦੇਹਿ ਪਿਆਰਿਆ ॥
जाचकु मंगै दानु देहि पिआरिआ ॥
हे मेरे प्रियतम ! मैं भिखारी दान मॉगता हूँ, मुझे भीख दे।
ਦੇਵਣਹਾਰੁ ਦਾਤਾਰੁ ਮੈ ਨਿਤ ਚਿਤਾਰਿਆ ॥
देवणहारु दातारु मै नित चितारिआ ॥
देन देने वाले दाता मैं तुझे हमेशा याद करता हूँ।
ਨਿਖੁਟਿ ਨ ਜਾਈ ਮੂਲਿ ਅਤੁਲ ਭੰਡਾਰਿਆ ॥
निखुटि न जाई मूलि अतुल भंडारिआ ॥
(हे प्रभु !) तेरा खजाना अपरंपार व अतुलनीय है जो कभी समाप्त नहीं होता।
ਨਾਨਕ ਸਬਦੁ ਅਪਾਰੁ ਤਿਨਿ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਸਾਰਿਆ ॥੧॥
नानक सबदु अपारु तिनि सभु किछु सारिआ ॥१॥
हे नानक ! शब्द अपार है, इस शब्द ने मेरा प्रत्येक कार्य संवार दिया है॥ १॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਸਿਖਹੁ ਸਬਦੁ ਪਿਆਰਿਹੋ ਜਨਮ ਮਰਨ ਕੀ ਟੇਕ ॥
सिखहु सबदु पिआरिहो जनम मरन की टेक ॥
हे प्रिय सज्जनों ! शब्द की साधना करो चूंकि यह जीवन एवं मृत्यु दोनों का सहारा है।
ਮੁਖ ਊਜਲ ਸਦਾ ਸੁਖੀ ਨਾਨਕ ਸਿਮਰਤ ਏਕ ॥੨॥
मुख ऊजल सदा सुखी नानक सिमरत एक ॥२॥
हे नानक ! एक ईश्वर को याद करने से मुख उज्ज्वल हो जाते हैं और सदैव सुख उपलब्ध होता है॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥
ਓਥੈ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਵੰਡੀਐ ਸੁਖੀਆ ਹਰਿ ਕਰਣੇ ॥
ओथै अम्रितु वंडीऐ सुखीआ हरि करणे ॥
वहाँ सत्संग में समस्त जीवों को सुखी करने वाला अमृत बाँटा जाता है।
ਜਮ ਕੈ ਪੰਥਿ ਨ ਪਾਈਅਹਿ ਫਿਰਿ ਨਾਹੀ ਮਰਣੇ ॥
जम कै पंथि न पाईअहि फिरि नाही मरणे ॥
वे यम के मार्ग पर नहीं डाले जाते, उन्हें पुनः मृत्यु का भय स्पर्श नहीं करता।
ਜਿਸ ਨੋ ਆਇਆ ਪ੍ਰੇਮ ਰਸੁ ਤਿਸੈ ਹੀ ਜਰਣੇ ॥
जिस नो आइआ प्रेम रसु तिसै ही जरणे ॥
जिस पुरुष को हरि-नाम के प्रेम का स्वाद आता है, वह इस स्वाद को अपने भीतर टिकाता है।
ਬਾਣੀ ਉਚਰਹਿ ਸਾਧ ਜਨ ਅਮਿਉ ਚਲਹਿ ਝਰਣੇ ॥
बाणी उचरहि साध जन अमिउ चलहि झरणे ॥
साधुजन वाणी उच्चरित करते हैं, वहाँ अमृत के मानों झरने चल पड़ते हैं।
ਪੇਖਿ ਦਰਸਨੁ ਨਾਨਕੁ ਜੀਵਿਆ ਮਨ ਅੰਦਰਿ ਧਰਣੇ ॥੯॥
पेखि दरसनु नानकु जीविआ मन अंदरि धरणे ॥९॥
नानक भी उन महापुरुषों के दर्शन करके जी रहा है, जिन्होंने ह्रदय में नाम को धारण किया हुआ है॥ ६ ॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੫ ॥
सलोक मः ५ ॥
श्लोक महला ५ ॥
ਸਤਿਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਸੇਵਿਐ ਦੂਖਾ ਕਾ ਹੋਇ ਨਾਸੁ ॥
सतिगुरि पूरै सेविऐ दूखा का होइ नासु ॥
पूर्ण सतिगुरु की सेवा करने से दुखों का नाश हो जाता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਅਰਾਧਿਐ ਕਾਰਜੁ ਆਵੈ ਰਾਸਿ ॥੧॥
नानक नामि अराधिऐ कारजु आवै रासि ॥१॥
हे नानक ! ईश्वर के नाम की आराधना करने से सभी कार्य सफल हो जाते हैं॥ १॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਜਿਸੁ ਸਿਮਰਤ ਸੰਕਟ ਛੁਟਹਿ ਅਨਦ ਮੰਗਲ ਬਿਸ੍ਰਾਮ ॥
जिसु सिमरत संकट छुटहि अनद मंगल बिस्राम ॥
जिस भगवान का सिमरन करने से संकट दूर हो जाते हैं और मनुष्य आनंद-मंगल में रहता है।
ਨਾਨਕ ਜਪੀਐ ਸਦਾ ਹਰਿ ਨਿਮਖ ਨ ਬਿਸਰਉ ਨਾਮੁ ॥੨॥
नानक जपीऐ सदा हरि निमख न बिसरउ नामु ॥२॥
हे नानक ! उस भगवान के नाम का हमेशा ही जाप करना चाहिए और एक पल भर के लिए उसके नाम को भूलना नहीं चाहिए॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउडी॥
ਤਿਨ ਕੀ ਸੋਭਾ ਕਿਆ ਗਣੀ ਜਿਨੀ ਹਰਿ ਹਰਿ ਲਧਾ ॥
तिन की सोभा किआ गणी जिनी हरि हरि लधा ॥
जिन महापुरुषों को भगवान मिल गया है, उनकी शोभा का बखान नहीं किया जा सकता।
ਸਾਧਾ ਸਰਣੀ ਜੋ ਪਵੈ ਸੋ ਛੁਟੈ ਬਧਾ ॥
साधा सरणी जो पवै सो छुटै बधा ॥
जो व्यक्ति संतों की शरण में आता है, वह माया के बन्धनों से मुक्ति प्राप्त कर लेता है।
ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਅਬਿਨਾਸੀਐ ਜੋਨਿ ਗਰਭਿ ਨ ਦਧਾ ॥
गुण गावै अबिनासीऐ जोनि गरभि न दधा ॥
जो व्यक्ति अनश्वर परमात्मा के गुण गाता है, वह गर्भ-योनियों में नहीं पड़ता।
ਗੁਰੁ ਭੇਟਿਆ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਹਰਿ ਪੜਿ ਬੁਝਿ ਸਮਧਾ ॥
गुरु भेटिआ पारब्रहमु हरि पड़ि बुझि समधा ॥
जो पुरुष गुरु से मिलता है, वह ईश्वर के गुणों बारे पढ़ एवं समझकर समाधि स्थिर हो जाता है।
ਨਾਨਕ ਪਾਇਆ ਸੋ ਧਣੀ ਹਰਿ ਅਗਮ ਅਗਧਾ ॥੧੦॥
नानक पाइआ सो धणी हरि अगम अगधा ॥१०॥
हे नानक ! उसने अगम्य एवं अथाह हरि-प्रभु को प्राप्त कर लिया है॥ १० ॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੫ ॥
सलोक मः ५ ॥
श्लोक महला ५॥
ਕਾਮੁ ਨ ਕਰਹੀ ਆਪਣਾ ਫਿਰਹਿ ਅਵਤਾ ਲੋਇ ॥
कामु न करही आपणा फिरहि अवता लोइ ॥
इन्सान अपने जीवन का यथार्थ कार्य (भगवान का भजन) नहीं करता और दुनिया में स्वेच्छाचारी बनकर घूमता रहता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਇ ਵਿਸਾਰਿਐ ਸੁਖੁ ਕਿਨੇਹਾ ਹੋਇ ॥੧॥
नानक नाइ विसारिऐ सुखु किनेहा होइ ॥१॥
हे नानक ! भगवान के नाम को भुलाने से (उसे) कैसे सुख उपलब्ध हो सकता है?॥ १॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਬਿਖੈ ਕਉੜਤਣਿ ਸਗਲ ਮਾਹਿ ਜਗਤਿ ਰਹੀ ਲਪਟਾਇ ॥
बिखै कउड़तणि सगल माहि जगति रही लपटाइ ॥
विष की कड़वाहट तमाम प्राणियों में है, जो संसार में सबको लिपटी हुई है।
ਨਾਨਕ ਜਨਿ ਵੀਚਾਰਿਆ ਮੀਠਾ ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਉ ॥੨॥
नानक जनि वीचारिआ मीठा हरि का नाउ ॥२॥
हे नानक ! सेवक ने यही विचार किया है केि ईश्वर का नाम ही मीठा है॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਇਹ ਨੀਸਾਣੀ ਸਾਧ ਕੀ ਜਿਸੁ ਭੇਟਤ ਤਰੀਐ ॥
इह नीसाणी साध की जिसु भेटत तरीऐ ॥
संत की निशानी यही है कि उसको मिलने से मनुष्य भवसागर से पार हो जाता है।
ਜਮਕੰਕਰੁ ਨੇੜਿ ਨ ਆਵਈ ਫਿਰਿ ਬਹੁੜਿ ਨ ਮਰੀਐ ॥
जमकंकरु नेड़ि न आवई फिरि बहुड़ि न मरीऐ ॥
यमदूत उसके निकट नहीं आता और बार-बार मरना नहीं पड़ता है।
ਭਵ ਸਾਗਰੁ ਸੰਸਾਰੁ ਬਿਖੁ ਸੋ ਪਾਰਿ ਉਤਰੀਐ ॥
भव सागरु संसारु बिखु सो पारि उतरीऐ ॥
वह उस विषैले एवं भयानक भवसागर से पार हो जाता है।
ਹਰਿ ਗੁਣ ਗੁੰਫਹੁ ਮਨਿ ਮਾਲ ਹਰਿ ਸਭ ਮਲੁ ਪਰਹਰੀਐ ॥
हरि गुण गु्मफहु मनि माल हरि सभ मलु परहरीऐ ॥
हे मानव ! हृदय में ईश्वर के गुणों की माया गूंथों, इससे हृदय की तमाम मैल दूर हो जाती है।
ਨਾਨਕ ਪ੍ਰੀਤਮ ਮਿਲਿ ਰਹੇ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਨਰਹਰੀਐ ॥੧੧॥
नानक प्रीतम मिलि रहे पारब्रहम नरहरीऐ ॥११॥
हे नानक ! (जिन मनुष्यों ने यह माला गूंथी है) वे पारब्रह्म प्रभु में विलीन हुए रहते हैं ॥११॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੫ ॥
सलोक मः ५ ॥
श्लोक महला ५॥
ਨਾਨਕ ਆਏ ਸੇ ਪਰਵਾਣੁ ਹੈ ਜਿਨ ਹਰਿ ਵੁਠਾ ਚਿਤਿ ॥
नानक आए से परवाणु है जिन हरि वुठा चिति ॥
हे नानक ! उन लोगों का इस दुनिया में जन्म लेना सफल है, जिनके मन में भगवान आकर बस गया है।
ਗਾਲ੍ਹ੍ਹੀ ਅਲ ਪਲਾਲੀਆ ਕੰਮਿ ਨ ਆਵਹਿ ਮਿਤ ॥੧॥
गाल्ही अल पलालीआ कमि न आवहि मित ॥१॥
हे मित्र ! व्यर्थ बातें किसी काम नहीं आती ॥ १॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५II
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਪ੍ਰਭੁ ਦ੍ਰਿਸਟੀ ਆਇਆ ਪੂਰਨ ਅਗਮ ਬਿਸਮਾਦ ॥
पारब्रहमु प्रभु द्रिसटी आइआ पूरन अगम बिसमाद ॥
मुझे सर्वव्यापक, अगम्य एवं अदभुत पारब्रह्म-प्रभु नज़र आया है।