Hindi Page 615

ਪੂਰਨ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਪਰਮੇਸੁਰ ਮੇਰੇ ਮਨ ਸਦਾ ਧਿਆਈਐ ॥੧॥
पूरन पारब्रहम परमेसुर मेरे मन सदा धिआईऐ ॥१॥
हे मेरे मन ! सदैव पूर्ण परब्रह्म परमेश्वर का ही ध्यान करना चाहिए॥ १ ॥

ਸਿਮਰਹੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਪਰਾਨੀ ॥
सिमरहु हरि हरि नामु परानी ॥
हे प्राणी ! हरि-नाम का भजन करो।

ਬਿਨਸੈ ਕਾਚੀ ਦੇਹ ਅਗਿਆਨੀ ॥ ਰਹਾਉ ॥
बिनसै काची देह अगिआनी ॥ रहाउ ॥
हे प्राणी ! यह तेरा नाजुक शरीर एक दिन जरूर नाश हो जाएगा ॥ रहाउ॥

ਮ੍ਰਿਗ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਅਰੁ ਸੁਪਨ ਮਨੋਰਥ ਤਾ ਕੀ ਕਛੁ ਨ ਵਡਾਈ ॥
म्रिग त्रिसना अरु सुपन मनोरथ ता की कछु न वडाई ॥
मृगतृष्णा एवं स्वप्न मनोरथ को कोई महानता नहीं दी जा सकती।

ਰਾਮ ਭਜਨ ਬਿਨੁ ਕਾਮਿ ਨ ਆਵਸਿ ਸੰਗਿ ਨ ਕਾਹੂ ਜਾਈ ॥੨॥
राम भजन बिनु कामि न आवसि संगि न काहू जाई ॥२॥
चूंकि राम के भजन के बिना कुछ भी प्राणी के काम नहीं आता, न ही अंत में कुछ उसके साथ जाता है॥ २ ॥

ਹਉ ਹਉ ਕਰਤ ਬਿਹਾਇ ਅਵਰਦਾ ਜੀਅ ਕੋ ਕਾਮੁ ਨ ਕੀਨਾ ॥
हउ हउ करत बिहाइ अवरदा जीअ को कामु न कीना ॥
मनुष्य का समूचा जीवन अहंकार करते हुए ही व्यतीत हो जाता है और वह अपनी आत्मा की भलाई हेतु कुछ भी प्राप्त नहीं करता।

ਧਾਵਤ ਧਾਵਤ ਨਹ ਤ੍ਰਿਪਤਾਸਿਆ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਨਹੀ ਚੀਨਾ ॥੩॥
धावत धावत नह त्रिपतासिआ राम नामु नही चीना ॥३॥
वह जीवन भर धन-दौलत के लिए इधर-उधर दौड़ता हुआ तृप्त नहीं होता और राम के नाम को नहीं जानता ॥ ३॥

ਸਾਦ ਬਿਕਾਰ ਬਿਖੈ ਰਸ ਮਾਤੋ ਅਸੰਖ ਖਤੇ ਕਰਿ ਫੇਰੇ ॥
साद बिकार बिखै रस मातो असंख खते करि फेरे ॥
वह माया में आसक्त होकर विकारों के स्वाद एवं विषय-विकारों के रसों में लीन रहता है और असंख्य दुष्कर्म करता हुआ योनियों में ही भटकता रहता है।

ਨਾਨਕ ਕੀ ਪ੍ਰਭ ਪਾਹਿ ਬਿਨੰਤੀ ਕਾਟਹੁ ਅਵਗੁਣ ਮੇਰੇ ॥੪॥੧੧॥੨੨॥
नानक की प्रभ पाहि बिनंती काटहु अवगुण मेरे ॥४॥११॥२२॥
नानक की तो प्रभु के समक्ष यही प्रार्थना है कि हे प्रभु ! मेरे अवगुण नाश कर दीजिए॥ ४ ॥ ११॥ २२ ॥

ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सोरठि महला ५ ॥
सोरठि महला ५ ॥

ਗੁਣ ਗਾਵਹੁ ਪੂਰਨ ਅਬਿਨਾਸੀ ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਬਿਖੁ ਜਾਰੇ ॥
गुण गावहु पूरन अबिनासी काम क्रोध बिखु जारे ॥
पूर्ण अविनाशी परमात्मा का गुणगान करो जिसके फलस्वरूप कामवासना एवं क्रोध का विष जल जाता है।

ਮਹਾ ਬਿਖਮੁ ਅਗਨਿ ਕੋ ਸਾਗਰੁ ਸਾਧੂ ਸੰਗਿ ਉਧਾਰੇ ॥੧॥
महा बिखमु अगनि को सागरु साधू संगि उधारे ॥१॥
यह सृष्टि महाभयंकर अग्नि का सागर है और साधुओं की संगति करने से ही इससे उद्धार होता है।॥ १॥

ਪੂਰੈ ਗੁਰਿ ਮੇਟਿਓ ਭਰਮੁ ਅੰਧੇਰਾ ॥
पूरै गुरि मेटिओ भरमु अंधेरा ॥
पूर्ण गुरु ने भ्रम का अन्धकार नष्ट कर दिया है।

ਭਜੁ ਪ੍ਰੇਮ ਭਗਤਿ ਪ੍ਰਭੁ ਨੇਰਾ ॥ ਰਹਾਉ ॥
भजु प्रेम भगति प्रभु नेरा ॥ रहाउ ॥
प्रेमपूर्वक भक्ति करते हुए प्रभु का भजन करो चूंकि वह हमेशा ही निकट रहता है॥ रहाउ॥

ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨ ਰਸੁ ਪੀਆ ਮਨ ਤਨ ਰਹੇ ਅਘਾਈ ॥
हरि हरि नामु निधान रसु पीआ मन तन रहे अघाई ॥
हरि-नाम-भण्डार में से नामामृत का पान करने से मनं एवं तन तृप्त रहते हैं।

ਜਤ ਕਤ ਪੂਰਿ ਰਹਿਓ ਪਰਮੇਸਰੁ ਕਤ ਆਵੈ ਕਤ ਜਾਈ ॥੨॥
जत कत पूरि रहिओ परमेसरु कत आवै कत जाई ॥२॥
परमेश्वर सर्वत्र ही परिपूर्ण हो रहा है। वह न किधर जाता है और न ही कहीं से आता है॥ २॥

ਜਪ ਤਪ ਸੰਜਮ ਗਿਆਨ ਤਤ ਬੇਤਾ ਜਿਸੁ ਮਨਿ ਵਸੈ ਗੋੁਪਾਲਾ ॥
जप तप संजम गिआन तत बेता जिसु मनि वसै गोपाला ॥
जिसके मन में भगवान का निवास है, उसे ही पूजा, तपस्या, संयम का ज्ञान है और वही तत्ववेता है।

ਨਾਮੁ ਰਤਨੁ ਜਿਨਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਇਆ ਤਾ ਕੀ ਪੂਰਨ ਘਾਲਾ ॥੩॥
नामु रतनु जिनि गुरमुखि पाइआ ता की पूरन घाला ॥३॥
जिसे गुरु के सान्निध्य में नाम-रत्न की उपलब्धि हो गई है, उसकी साधना सफल है॥ ३॥

ਕਲਿ ਕਲੇਸ ਮਿਟੇ ਦੁਖ ਸਗਲੇ ਕਾਟੀ ਜਮ ਕੀ ਫਾਸਾ ॥
कलि कलेस मिटे दुख सगले काटी जम की फासा ॥
उसके समस्त कलह-क्लेश एवं दुख-दर्द नाश हो गए हैं और उसकी मृत्यु की फाँसी भी कट गई है।

ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭਿ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੀ ਮਨ ਤਨ ਭਏ ਬਿਗਾਸਾ ॥੪॥੧੨॥੨੩॥
कहु नानक प्रभि किरपा धारी मन तन भए बिगासा ॥४॥१२॥२३॥
हे नानक ! प्रभु ने उस पर अपनी कृपा की है, जिससे उसका मन-तन विकसित हो गया है॥ ४॥ १२ ॥ २३ ॥

ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सोरठि महला ५ ॥
सोरठि महला ५ ॥

ਕਰਣ ਕਰਾਵਣਹਾਰ ਪ੍ਰਭੁ ਦਾਤਾ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਪ੍ਰਭੁ ਸੁਆਮੀ ॥
करण करावणहार प्रभु दाता पारब्रहम प्रभु सुआमी ॥
जगत का स्वामी परब्रह्म-प्रभु सबकुछ करने-करवाने वाला है, वह सबका दाता है।

ਸਗਲੇ ਜੀਅ ਕੀਏ ਦਇਆਲਾ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥੧॥
सगले जीअ कीए दइआला सो प्रभु अंतरजामी ॥१॥
सब जीवों को पैदा करने वाला दयालु प्रभु बड़ा अन्तर्यामी है॥ १ ॥

ਮੇਰਾ ਗੁਰੁ ਹੋਆ ਆਪਿ ਸਹਾਈ ॥
मेरा गुरु होआ आपि सहाई ॥
मेरा गुरु आप ही सहायक हुआ है,

ਸੂਖ ਸਹਜ ਆਨੰਦ ਮੰਗਲ ਰਸ ਅਚਰਜ ਭਈ ਬਡਾਈ ॥ ਰਹਾਉ ॥
सूख सहज आनंद मंगल रस अचरज भई बडाई ॥ रहाउ ॥
जिसके फलस्वरूप मुझे सहज सुख, आनंद, मंगल एवं खुशियों की उपलब्धि हो गई है और मेरी अद्भुत लोकप्रियता हो गई है॥ रहाउ॥

ਗੁਰ ਕੀ ਸਰਣਿ ਪਏ ਭੈ ਨਾਸੇ ਸਾਚੀ ਦਰਗਹ ਮਾਨੇ ॥
गुर की सरणि पए भै नासे साची दरगह माने ॥
गुरु की शरण में आने से मेरे तमाम भय नाश हो गए हैं और सत्य के दरबार में सत्कृत हो गया हूँ।

ਗੁਣ ਗਾਵਤ ਆਰਾਧਿ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਆਏ ਅਪੁਨੈ ਥਾਨੇ ॥੨॥
गुण गावत आराधि नामु हरि आए अपुनै थाने ॥२॥
हरि-नाम का गुणगान एवं आराधना करते हुए मैं अपने मूल निवास में आ गया हूँ॥ २॥

ਜੈ ਜੈ ਕਾਰੁ ਕਰੈ ਸਭ ਉਸਤਤਿ ਸੰਗਤਿ ਸਾਧ ਪਿਆਰੀ ॥
जै जै कारु करै सभ उसतति संगति साध पिआरी ॥
अब सभी मेरी जय-जयकार एवं स्तुति करते हैं और साधुओं की संगति मुझे बहुत प्यारी लगती है।

ਸਦ ਬਲਿਹਾਰਿ ਜਾਉ ਪ੍ਰਭ ਅਪੁਨੇ ਜਿਨਿ ਪੂਰਨ ਪੈਜ ਸਵਾਰੀ ॥੩॥
सद बलिहारि जाउ प्रभ अपुने जिनि पूरन पैज सवारी ॥३॥
मैं अपने प्रभु पर सर्वदा कुर्बान जाता हूँ, जिसने पूर्णतया मेरी लाज बचा ली है॥ ३॥

ਗੋਸਟਿ ਗਿਆਨੁ ਨਾਮੁ ਸੁਣਿ ਉਧਰੇ ਜਿਨਿ ਜਿਨਿ ਦਰਸਨੁ ਪਾਇਆ ॥
गोसटि गिआनु नामु सुणि उधरे जिनि जिनि दरसनु पाइआ ॥
जिस किसी को भी भगवान के दर्शन प्राप्त हुए हैं, ज्ञान-गोष्टि एवं नाम को श्रवण करके उनका उद्धार हो गया है।

ਭਇਓ ਕ੍ਰਿਪਾਲੁ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭੁ ਅਪੁਨਾ ਅਨਦ ਸੇਤੀ ਘਰਿ ਆਇਆ ॥੪॥੧੩॥੨੪॥
भइओ क्रिपालु नानक प्रभु अपुना अनद सेती घरि आइआ ॥४॥१३॥२४॥
हे नानक ! मेरा प्रभु मुझ पर कृपालु हो गया है, जिससे मैं आनंद से अपने सच्चे घर में आ गया हूँ॥ ४॥ १३॥ २४॥

ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सोरठि महला ५ ॥
सोरठि महला ५ ॥

ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਸਰਣਿ ਸਗਲ ਭੈ ਲਾਥੇ ਦੁਖ ਬਿਨਸੇ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥
प्रभ की सरणि सगल भै लाथे दुख बिनसे सुखु पाइआ ॥
प्रभु की शरण में आने से सारे भय निवृत्त हो गए हैं, दुःख-संकटों का अंत हुआ है और सुख की उपलब्धि हो गई है।

ਦਇਆਲੁ ਹੋਆ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਸੁਆਮੀ ਪੂਰਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਧਿਆਇਆ ॥੧॥
दइआलु होआ पारब्रहमु सुआमी पूरा सतिगुरु धिआइआ ॥१॥
पूर्ण सतगुरु का ध्यान करने से परब्रह्म स्वामी दयालु हो गया है॥ १॥

ਪ੍ਰਭ ਜੀਉ ਤੂ ਮੇਰੋ ਸਾਹਿਬੁ ਦਾਤਾ ॥
प्रभ जीउ तू मेरो साहिबु दाता ॥
हे प्रभु जी ! तू ही मेरा मालिक एवं दाता है।

ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪ੍ਰਭ ਦੀਨ ਦਇਆਲਾ ਗੁਣ ਗਾਵਉ ਰੰਗਿ ਰਾਤਾ ॥ ਰਹਾਉ ॥
करि किरपा प्रभ दीन दइआला गुण गावउ रंगि राता ॥ रहाउ ॥
हे दीनदयालु प्रभु ! मुझ पर कृपा करो ताकि तेरे रंग में लीन होकर तेरा गुणगान करता रहूँ॥ रहाउ॥

ਸਤਿਗੁਰਿ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਦ੍ਰਿੜਾਇਆ ਚਿੰਤਾ ਸਗਲ ਬਿਨਾਸੀ ॥
सतिगुरि नामु निधानु द्रिड़ाइआ चिंता सगल बिनासी ॥
सतगुरु ने मेरे अन्तर्मन में नाम का खजाना दृढ़ कर दिया है और मेरी समस्त चिंताओं का नाश हो गया है।

error: Content is protected !!