ਕੋਈ ਐਸੋ ਰੇ ਭੇਟੈ ਸੰਤੁ ਮੇਰੀ ਲਾਹੈ ਸਗਲ ਚਿੰਤ ਠਾਕੁਰ ਸਿਉ ਮੇਰਾ ਰੰਗੁ ਲਾਵੈ ॥੨॥
कोई ऐसो रे भेटै संतु मेरी लाहै सगल चिंत ठाकुर सिउ मेरा रंगु लावै ॥२॥
मेरी अभिलाषा है कि मुझे कोई ऐसा संत मिल जाए, जो मेरी सारी चिन्ता दूर कर दे और ठाकुर जी से मेरा प्यार लगा दे ॥२॥
ਪੜੇ ਰੇ ਸਗਲ ਬੇਦ ਨਹ ਚੂਕੈ ਮਨ ਭੇਦ ਇਕੁ ਖਿਨੁ ਨ ਧੀਰਹਿ ਮੇਰੇ ਘਰ ਕੇ ਪੰਚਾ ॥
पड़े रे सगल बेद नह चूकै मन भेद इकु खिनु न धीरहि मेरे घर के पंचा ॥
मैंने सभी वेद पढ़े हैं परन्तु मेरे मन के सन्देह दूर नहीं होते और मेरे शरीर रूपी घर में रहने वाली पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, आँख, कान, नाक, जिव्हा इत्यादि एक क्षण भर के लिए धैर्य नहीं करते।
ਕੋਈ ਐਸੋ ਰੇ ਭਗਤੁ ਜੁ ਮਾਇਆ ਤੇ ਰਹਤੁ ਇਕੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਮੇਰੈ ਰਿਦੈ ਸਿੰਚਾ ॥੩॥
कोई ऐसो रे भगतु जु माइआ ते रहतु इकु अम्रित नामु मेरै रिदै सिंचा ॥३॥
क्या कोई ऐसा भक्त है, जो मोह-माया से निर्लिप्त हो और वह मेरे हृदय में नामामृत को सींच दे॥ ३॥
ਜੇਤੇ ਰੇ ਤੀਰਥ ਨਾਏ ਅਹੰਬੁਧਿ ਮੈਲੁ ਲਾਏ ਘਰ ਕੋ ਠਾਕੁਰੁ ਇਕੁ ਤਿਲੁ ਨ ਮਾਨੈ ॥
जेते रे तीरथ नाए अह्मबुधि मैलु लाए घर को ठाकुरु इकु तिलु न मानै ॥
मैंने जितने भी तीर्थ किए हैं, इन तीर्थों पर स्नान करने से उतनी अहंकार रूपी मैल मैंने अपने मन को लगा ली है और मेरे हृदय रूपी घर का स्वामी प्रभु एक तिल भर के लिए भी प्रसन्न नहीं होता।
ਕਦਿ ਪਾਵਉ ਸਾਧਸੰਗੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਸਦਾ ਆਨੰਦੁ ਗਿਆਨ ਅੰਜਨਿ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਇਸਨਾਨੈ ॥੪॥
कदि पावउ साधसंगु हरि हरि सदा आनंदु गिआन अंजनि मेरा मनु इसनानै ॥४॥
मैं ऐसी साधसंगति कब प्राप्त करूँगा जिसमें मैं परमेश्वर का नाम जप कर सदैव ही आनंदित रहूँगा और मेरा मन अपनी आँखों में ज्ञान रूपी सुरमा डालकर ज्ञान रूपी तीर्थ में स्नान करेगा ॥ ४॥
ਸਗਲ ਅਸ੍ਰਮ ਕੀਨੇ ਮਨੂਆ ਨਹ ਪਤੀਨੇ ਬਿਬੇਕਹੀਨ ਦੇਹੀ ਧੋਏ ॥
सगल अस्रम कीने मनूआ नह पतीने बिबेकहीन देही धोए ॥
मैंने ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ एवं सन्यास इन सभी आश्रमों के धर्म कमाए हैं परन्तु मेरा मन संतुष्ट नहीं होता। मैं ज्ञानहीन स्नान करके अपने शरीर को स्वच्छ करता रहता हूँ।
ਕੋਈ ਪਾਈਐ ਰੇ ਪੁਰਖੁ ਬਿਧਾਤਾ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਕੈ ਰੰਗਿ ਰਾਤਾ ਮੇਰੇ ਮਨ ਕੀ ਦੁਰਮਤਿ ਮਲੁ ਖੋਏ ॥੫॥
कोई पाईऐ रे पुरखु बिधाता पारब्रहम कै रंगि राता मेरे मन की दुरमति मलु खोए ॥५॥
मेरी तो कामना है कि कोई ऐसा महापुरुष मुझे मिल जाए जो विधाता परब्रह्म के प्रेम में मग्न हुआ हो और वह मेरी दुर्मति की मैल दूर कर दे ॥ ५॥
ਕਰਮ ਧਰਮ ਜੁਗਤਾ ਨਿਮਖ ਨ ਹੇਤੁ ਕਰਤਾ ਗਰਬਿ ਗਰਬਿ ਪੜੈ ਕਹੀ ਨ ਲੇਖੈ ॥
करम धरम जुगता निमख न हेतु करता गरबि गरबि पड़ै कही न लेखै ॥
मनुष्य धर्म-कर्मों में ही मग्न रहता है परन्तु वह क्षण भर के लिए भी प्रभु से प्रेम नहीं करता। वह तो घमण्ड एवं अहंकार में ही पड़ा रहता है परन्तु उसका कोई भी धर्म-कर्म किसी काम नहीं आता।
ਜਿਸੁ ਭੇਟੀਐ ਸਫਲ ਮੂਰਤਿ ਕਰੈ ਸਦਾ ਕੀਰਤਿ ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਕੋਊ ਨੇਤ੍ਰਹੁ ਪੇਖੈ ॥੬॥
जिसु भेटीऐ सफल मूरति करै सदा कीरति गुर परसादि कोऊ नेत्रहु पेखै ॥६॥
जिसे शुभ फल देने वाला सत्य की मूर्ति गुरु मिल जाता है, वह सदा परमात्मा का कीर्ति-गान करता रहता है और गुरु की कृपा से कोई विरला पुरुष ही अपने नेत्रों से भगवान के दर्शन प्राप्त करता है॥ ६॥
ਮਨਹਠਿ ਜੋ ਕਮਾਵੈ ਤਿਲੁ ਨ ਲੇਖੈ ਪਾਵੈ ਬਗੁਲ ਜਿਉ ਧਿਆਨੁ ਲਾਵੈ ਮਾਇਆ ਰੇ ਧਾਰੀ ॥
मनहठि जो कमावै तिलु न लेखै पावै बगुल जिउ धिआनु लावै माइआ रे धारी ॥
जो मनुष्य अपने मन के हठ से अभ्यास करता है, उसकी साधना तिल भर भी स्वीकृत नहीं होती। वह तो मायाधारी बगुले की तरह ही ध्यान लगाकर रखता है।
ਕੋਈ ਐਸੋ ਰੇ ਸੁਖਹ ਦਾਈ ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਕਥਾ ਸੁਨਾਈ ਤਿਸੁ ਭੇਟੇ ਗਤਿ ਹੋਇ ਹਮਾਰੀ ॥੭॥
कोई ऐसो रे सुखह दाई प्रभ की कथा सुनाई तिसु भेटे गति होइ हमारी ॥७॥
क्या कोई ऐसा सुख देने वाला महापुरुष है, जो मुझे प्रभु की कथा सुनाए और उसे मिलने से मेरी मुक्ति हो जाए॥ ७॥
ਸੁਪ੍ਰਸੰਨ ਗੋਪਾਲ ਰਾਇ ਕਾਟੈ ਰੇ ਬੰਧਨ ਮਾਇ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਰਾਤਾ ॥
सुप्रसंन गोपाल राइ काटै रे बंधन माइ गुर कै सबदि मेरा मनु राता ॥
यदि सृष्टि का पालनहार परमात्मा मुझ पर सुप्रसन्न हो जाए तो मेरे मोह-माया के बन्धन काट दे। मेरा मन गुरु के शब्द द्वारा प्रभु के प्रेम में मग्न रहता है।
ਸਦਾ ਸਦਾ ਆਨੰਦੁ ਭੇਟਿਓ ਨਿਰਭੈ ਗੋਬਿੰਦੁ ਸੁਖ ਨਾਨਕ ਲਾਧੇ ਹਰਿ ਚਰਨ ਪਰਾਤਾ ॥੮॥
सदा सदा आनंदु भेटिओ निरभै गोबिंदु सुख नानक लाधे हरि चरन पराता ॥८॥
अपने निर्भय गोविन्द को मिलकर मैं सदैव ही आनंदपूर्वक रहता हूँ। हे नानक ! भगवान के चरणों में पड़कर मैंने सर्व सुख प्राप्त कर लिए हैं।॥ ८॥
ਸਫਲ ਸਫਲ ਭਈ ਸਫਲ ਜਾਤ੍ਰਾ ॥ ਆਵਣ ਜਾਣ ਰਹੇ ਮਿਲੇ ਸਾਧਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ਦੂਜਾ ॥੧॥੩॥
सफल सफल भई सफल जात्रा ॥ आवण जाण रहे मिले साधा ॥१॥ रहाउ दूजा ॥१॥३॥
अब मेरी जीवन-यात्रा सफल हो गई है और संतों से मिलकर मेरा जन्म-मरण का चक्र समाप्त हो गया है॥ १॥ रहाउ दूसरा ॥ १॥ ३॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੧ ਛੰਤ
धनासरी महला १ छंत
धनासरी महला १ छंत
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਤੀਰਥਿ ਨਾਵਣ ਜਾਉ ਤੀਰਥੁ ਨਾਮੁ ਹੈ ॥
तीरथि नावण जाउ तीरथु नामु है ॥
मैं तीर्थ पर स्नान करने के लिए जाऊँ ? किन्तु परमात्मा का नाम ही वास्तविक तीर्थ है।
ਤੀਰਥੁ ਸਬਦ ਬੀਚਾਰੁ ਅੰਤਰਿ ਗਿਆਨੁ ਹੈ ॥
तीरथु सबद बीचारु अंतरि गिआनु है ॥
शब्द का चिन्तन ही तीर्थ है और यह ज्ञान मेरे हृदय में है।
ਗੁਰ ਗਿਆਨੁ ਸਾਚਾ ਥਾਨੁ ਤੀਰਥੁ ਦਸ ਪੁਰਬ ਸਦਾ ਦਸਾਹਰਾ ॥
गुर गिआनु साचा थानु तीरथु दस पुरब सदा दसाहरा ॥
गुरु का दिया हुआ ज्ञान ही सच्चा तीर्थ-स्थान और दसाहरा है, जहाँ हमेशा ही दस पर्व (अष्टमी, चौदश, संक्रान्ति, पूर्णिमा, अमावस्या, सूर्य ग्रहण, चन्द्र ग्रहण, उत्तरायण, दक्षिणयान एवं व्यतिपात) मनाए जाते हैं।
ਹਉ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਕਾ ਸਦਾ ਜਾਚਉ ਦੇਹੁ ਪ੍ਰਭ ਧਰਣੀਧਰਾ ॥
हउ नामु हरि का सदा जाचउ देहु प्रभ धरणीधरा ॥
हे पृथ्वी को धारण करने वाले प्रभु! मैं तुझसे सदैव ही नाम माँगता रहता हूँ, मुझे यह नाम प्रदान कीजिए।
ਸੰਸਾਰੁ ਰੋਗੀ ਨਾਮੁ ਦਾਰੂ ਮੈਲੁ ਲਾਗੈ ਸਚ ਬਿਨਾ ॥
संसारु रोगी नामु दारू मैलु लागै सच बिना ॥
समूचा संसार ही रोगी है और इन रोगों की औषधि केवल परमात्मा का नाम ही है।सत्य नाम के बिना मन को अहंकार की मैल लग जाती है।
ਗੁਰ ਵਾਕੁ ਨਿਰਮਲੁ ਸਦਾ ਚਾਨਣੁ ਨਿਤ ਸਾਚੁ ਤੀਰਥੁ ਮਜਨਾ ॥੧॥
गुर वाकु निरमलु सदा चानणु नित साचु तीरथु मजना ॥१॥
गुरु की वाणी पवित्र है, जो सदैव ही मन में से अज्ञान रूपी अन्धेरे को दूर करके प्रकाश करती है। यह नित्य ही स्नान करने वाला सच्चा तीर्थ स्थान है॥ १॥
ਸਾਚਿ ਨ ਲਾਗੈ ਮੈਲੁ ਕਿਆ ਮਲੁ ਧੋਈਐ ॥
साचि न लागै मैलु किआ मलु धोईऐ ॥
सत्य नाम में समावेश करने से मन को अहंकार की मैल नहीं लगती, तदन्तर अहंकार की मैल को स्वच्छ करने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
ਗੁਣਹਿ ਹਾਰੁ ਪਰੋਇ ਕਿਸ ਕਉ ਰੋਈਐ ॥
गुणहि हारु परोइ किस कउ रोईऐ ॥
अपने हृदय में भगवान के गुणों का हार पिरोने से मनुष्य को किसी के समक्ष विनती करने की जरूरत नहीं पड़ती।
ਵੀਚਾਰਿ ਮਾਰੈ ਤਰੈ ਤਾਰੈ ਉਲਟਿ ਜੋਨਿ ਨ ਆਵਏ ॥
वीचारि मारै तरै तारै उलटि जोनि न आवए ॥
जो मनुष्य सिमरन द्वारा अपने मन के अहंकार को नष्ट कर देता है, वह भवसागर में से पार हो जाता है और दूसरों को भी भवसागर से पार करवा देता है। वह पुनः योनि-चक्र में नहीं पड़ता अर्थात् उसकी मुक्ति हो जाती है।
ਆਪਿ ਪਾਰਸੁ ਪਰਮ ਧਿਆਨੀ ਸਾਚੁ ਸਾਚੇ ਭਾਵਏ ॥
आपि पारसु परम धिआनी साचु साचे भावए ॥
वह स्वयं ही पारस और ध्यानी बन जाता है। ऐसा सत्यवादी पुरुष ही सच्चे प्रभु को अच्छा लगता है।
ਆਨੰਦੁ ਅਨਦਿਨੁ ਹਰਖੁ ਸਾਚਾ ਦੂਖ ਕਿਲਵਿਖ ਪਰਹਰੇ ॥
आनंदु अनदिनु हरखु साचा दूख किलविख परहरे ॥
वह रात-दिन आनंद एवं हर्ष की अनुभूति करता है और उसके तमाम दुःख एवं पाप नाश हो जाते हैं।
ਸਚੁ ਨਾਮੁ ਪਾਇਆ ਗੁਰਿ ਦਿਖਾਇਆ ਮੈਲੁ ਨਾਹੀ ਸਚ ਮਨੇ ॥੨॥
सचु नामु पाइआ गुरि दिखाइआ मैलु नाही सच मने ॥२॥
वह सत्यनाम को प्राप्त कर लेता है और गुरु उसे भगवान के दर्शन करवा देता है। फिर उसके मन को अहंकार की मैल नहीं लगती, क्योंकि सत्य उसके हृदय में बस जाता है॥ २॥
ਸੰਗਤਿ ਮੀਤ ਮਿਲਾਪੁ ਪੂਰਾ ਨਾਵਣੋ ॥
संगति मीत मिलापु पूरा नावणो ॥
हे मित्र ! सत्संगियों से मिलाप ही पूर्ण स्नान है।