ਮਨੁ ਕੀਨੋ ਦਹ ਦਿਸ ਬਿਸ੍ਰਾਮੁ ॥
मनु कीनो दह दिस बिस्रामु ॥
किन्तु तेरा मन दसों दिशाओं में भटकता रहता है।
ਤਿਲਕੁ ਚਰਾਵੈ ਪਾਈ ਪਾਇ ॥
तिलकु चरावै पाई पाइ ॥
तू शालिग्राम को तिलक लगाता है और उसके चरण छूता है।
ਲੋਕ ਪਚਾਰਾ ਅੰਧੁ ਕਮਾਇ ॥੨॥
लोक पचारा अंधु कमाइ ॥२॥
यह तू लोगों को प्रसन्न करने का अन्धा कार्य करता है॥ २॥
ਖਟੁ ਕਰਮਾ ਅਰੁ ਆਸਣੁ ਧੋਤੀ ॥
खटु करमा अरु आसणु धोती ॥
तू षट्-कर्म भी करता रहता है, आसन लगाता है और निउली-धोती क्रिया भी करता है।
ਭਾਗਠਿ ਗ੍ਰਿਹਿ ਪੜੈ ਨਿਤ ਪੋਥੀ ॥
भागठि ग्रिहि पड़ै नित पोथी ॥
तू धनवानों के घरों में जाकर नित्य पोथी पढ़ता रहता है,
ਮਾਲਾ ਫੇਰੈ ਮੰਗੈ ਬਿਭੂਤ ॥
माला फेरै मंगै बिभूत ॥
माला फेरता है और उनसे धन मांगता है।
ਇਹ ਬਿਧਿ ਕੋਇ ਨ ਤਰਿਓ ਮੀਤ ॥੩॥
इह बिधि कोइ न तरिओ मीत ॥३॥
हे मित्र ! इस विधि द्वारा कोई भी संसार-सागर में से पार नहीं हुआ॥ ३॥
ਸੋ ਪੰਡਿਤੁ ਗੁਰ ਸਬਦੁ ਕਮਾਇ ॥
सो पंडितु गुर सबदु कमाइ ॥
पण्डित वही है, जो गुरु-शब्द की कमाई करता है,
ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਕੀ ਓਸੁ ਉਤਰੀ ਮਾਇ ॥
त्रै गुण की ओसु उतरी माइ ॥
त्रिगुणात्मक माया उसके मन से दूर हो गई है।
ਚਤੁਰ ਬੇਦ ਪੂਰਨ ਹਰਿ ਨਾਇ ॥
चतुर बेद पूरन हरि नाइ ॥
हे नानक ! हरि नाम का जाप करने से ही चारों वेदों के पाठ का फल मिल जाता है और
ਨਾਨਕ ਤਿਸ ਕੀ ਸਰਣੀ ਪਾਇ ॥੪॥੬॥੧੭॥
नानक तिस की सरणी पाइ ॥४॥६॥१७॥
हम तो नाम की शरण में ही पड़े हैं ॥४॥६॥१७॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
रामकली महला ५ ॥
ਕੋਟਿ ਬਿਘਨ ਨਹੀ ਆਵਹਿ ਨੇਰਿ ॥
कोटि बिघन नही आवहि नेरि ॥
करोड़ों विघ्न भी उसके निकट नहीं आते,”
ਅਨਿਕ ਮਾਇਆ ਹੈ ਤਾ ਕੀ ਚੇਰਿ ॥
अनिक माइआ है ता की चेरि ॥
अनेक प्रकार की माया उसकी दासी बन जाती है तथा
ਅਨਿਕ ਪਾਪ ਤਾ ਕੇ ਪਾਨੀਹਾਰ ॥
अनिक पाप ता के पानीहार ॥
अनेक पाप भी उसके पानी भरने वाले बन जाते हैं
ਜਾ ਕਉ ਮਇਆ ਭਈ ਕਰਤਾਰ ॥੧॥
जा कउ मइआ भई करतार ॥१॥
जिस पर ईश्वर की कृपा हो गई है।॥ १॥
ਜਿਸਹਿ ਸਹਾਈ ਹੋਇ ਭਗਵਾਨ ॥
जिसहि सहाई होइ भगवान ॥
भगवान जिसका सहायक बन जाता है,
ਅਨਿਕ ਜਤਨ ਉਆ ਕੈ ਸਰੰਜਾਮ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अनिक जतन उआ कै सरंजाम ॥१॥ रहाउ ॥
उसके अनेक यत्न कामयाब हो जाते हैं॥ १॥ रहाउ॥
ਕਰਤਾ ਰਾਖੈ ਕੀਤਾ ਕਉਨੁ ॥
करता राखै कीता कउनु ॥
जिसकी रक्षा परमेश्वर करता है तो कोई अन्य जीव उसका क्या बिगाड सकता है?
ਕੀਰੀ ਜੀਤੋ ਸਗਲਾ ਭਵਨੁ ॥
कीरी जीतो सगला भवनु ॥
उसकी कृपा से तो चींटी ने भी समूचा जगत् जीत लिया है।
ਬੇਅੰਤ ਮਹਿਮਾ ਤਾ ਕੀ ਕੇਤਕ ਬਰਨ ॥
बेअंत महिमा ता की केतक बरन ॥
उसकी महिमा बेअंत है, उसे कितना बयान किया जाए ?
ਬਲਿ ਬਲਿ ਜਾਈਐ ਤਾ ਕੇ ਚਰਨ ॥੨॥
बलि बलि जाईऐ ता के चरन ॥२॥
मैं तो उसके सुन्दर चरणों पर बलिहारी जाता हूँ॥ २॥
ਤਿਨ ਹੀ ਕੀਆ ਜਪੁ ਤਪੁ ਧਿਆਨੁ ॥
तिन ही कीआ जपु तपु धिआनु ॥
उसने ही जप, तप एवं ध्यान किया है,
ਅਨਿਕ ਪ੍ਰਕਾਰ ਕੀਆ ਤਿਨਿ ਦਾਨੁ ॥
अनिक प्रकार कीआ तिनि दानु ॥
उसने ही अनेक प्रकार का दान किया है,
ਭਗਤੁ ਸੋਈ ਕਲਿ ਮਹਿ ਪਰਵਾਨੁ ॥
भगतु सोई कलि महि परवानु ॥
वही भक्त कलियुग में स्वीकार हुआ है,
ਜਾ ਕਉ ਠਾਕੁਰਿ ਦੀਆ ਮਾਨੁ ॥੩॥
जा कउ ठाकुरि दीआ मानु ॥३॥
जिसे ठाकुर जी ने सम्मान दिया है॥ ३॥
ਸਾਧਸੰਗਿ ਮਿਲਿ ਭਏ ਪ੍ਰਗਾਸ ॥
साधसंगि मिलि भए प्रगास ॥
संतों की संगति में मिलकर मन में ज्ञान का प्रकाश हो गया है,
ਸਹਜ ਸੂਖ ਆਸ ਨਿਵਾਸ ॥
सहज सूख आस निवास ॥
सहज सुख प्राप्त हो गया है, सब कामनाएँ पूरी हो गई हैं।
ਪੂਰੈ ਸਤਿਗੁਰਿ ਦੀਆ ਬਿਸਾਸ ॥
पूरै सतिगुरि दीआ बिसास ॥
हे नानक ! जिसे पूर्ण सतगुरु ने विश्वास दिलवाया है,
ਨਾਨਕ ਹੋਏ ਦਾਸਨਿ ਦਾਸ ॥੪॥੭॥੧੮॥
नानक होए दासनि दास ॥४॥७॥१८॥
वह दासों का दास बन गया है॥ ४॥ ७ ॥ १८ ॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
रामकली महला ५ ॥
ਦੋਸੁ ਨ ਦੀਜੈ ਕਾਹੂ ਲੋਗ ॥
दोसु न दीजै काहू लोग ॥
हे जीव ! किसी को दोष नहीं देना चाहिए,
ਜੋ ਕਮਾਵਨੁ ਸੋਈ ਭੋਗ ॥
जो कमावनु सोई भोग ॥
वास्तव में जो शुभाशुभ कमाना है, यही तुमने भोगना है।
ਆਪਨ ਕਰਮ ਆਪੇ ਹੀ ਬੰਧ ॥
आपन करम आपे ही बंध ॥
अपने कर्म स्वयं ही तुम्हारे बंधन हैं और
ਆਵਨੁ ਜਾਵਨੁ ਮਾਇਆ ਧੰਧ ॥੧॥
आवनु जावनु माइआ धंध ॥१॥
जन्म-मरण केवल माया का ही खेल है॥ १॥
ਐਸੀ ਜਾਨੀ ਸੰਤ ਜਨੀ ॥
ऐसी जानी संत जनी ॥
संतजनों से यह सत्य जान लिया है,
ਪਰਗਾਸੁ ਭਇਆ ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਬਚਨੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
परगासु भइआ पूरे गुर बचनी ॥१॥ रहाउ ॥
पूर्ण गुरु के वचन से मन में ज्ञान का प्रकाश हो गया है॥ १॥ रहाउ॥
ਤਨੁ ਧਨੁ ਕਲਤੁ ਮਿਥਿਆ ਬਿਸਥਾਰ ॥
तनु धनु कलतु मिथिआ बिसथार ॥
तन, धन एवं नारी यह सभी मिथ्या प्रसार हैं।
ਹੈਵਰ ਗੈਵਰ ਚਾਲਨਹਾਰ ॥
हैवर गैवर चालनहार ॥
कुशल घोड़े एवं हाथी नाशवान् हैं।
ਰਾਜ ਰੰਗ ਰੂਪ ਸਭਿ ਕੂਰ ॥
राज रंग रूप सभि कूर ॥
राज, रंग-तमाशे एवं सौन्दर्य सब झूठे हैं।
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਹੋਇ ਜਾਸੀ ਧੂਰ ॥੨॥
नाम बिना होइ जासी धूर ॥२॥
नाम के बिना ये सभी मिट्टी हो जाएँगे॥ २॥
ਭਰਮਿ ਭੂਲੇ ਬਾਦਿ ਅਹੰਕਾਰੀ ॥
भरमि भूले बादि अहंकारी ॥
अहंकारी इन्सान व्यर्थ ही भ्रम में भूला हुआ है।
ਸੰਗਿ ਨਾਹੀ ਰੇ ਸਗਲ ਪਸਾਰੀ ॥
संगि नाही रे सगल पसारी ॥
ये सभी प्रसार किसी के साथ नहीं जाते।
ਸੋਗ ਹਰਖ ਮਹਿ ਦੇਹ ਬਿਰਧਾਨੀ ॥
सोग हरख महि देह बिरधानी ॥
गम एवं खुशी में मानव शरीर बूढ़ा हो जाता है।
ਸਾਕਤ ਇਵ ਹੀ ਕਰਤ ਬਿਹਾਨੀ ॥੩॥
साकत इव ही करत बिहानी ॥३॥
ऐसा करते ही शाक्त ने अपनी आयु व्यतीत कर ली है॥ ३॥
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਕਲਿ ਮਾਹਿ ॥
हरि का नामु अम्रितु कलि माहि ॥
कलियुग में हरि का नाम ही अमृत है और
ਏਹੁ ਨਿਧਾਨਾ ਸਾਧੂ ਪਾਹਿ ॥
एहु निधाना साधू पाहि ॥
यह सुख का कोष साधु-महात्मा के ही पास है।
ਨਾਨਕ ਗੁਰੁ ਗੋਵਿਦੁ ਜਿਸੁ ਤੂਠਾ ॥
नानक गुरु गोविदु जिसु तूठा ॥
हे नानक ! गोविन्द गुरु जिस पर प्रसन्न हुआ है,
ਘਟਿ ਘਟਿ ਰਮਈਆ ਤਿਨ ਹੀ ਡੀਠਾ ॥੪॥੮॥੧੯॥
घटि घटि रमईआ तिन ही डीठा ॥४॥८॥१९॥
उसने ही घट-घट में परमात्मा को देखा है॥ ४॥ ८॥१९॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
रामकली महला ५ ॥
ਪੰਚ ਸਬਦ ਤਹ ਪੂਰਨ ਨਾਦ ॥
पंच सबद तह पूरन नाद ॥
सत्संग में पंच प्रकार का शब्द गूंजता रहता है,
ਅਨਹਦ ਬਾਜੇ ਅਚਰਜ ਬਿਸਮਾਦ ॥
अनहद बाजे अचरज बिसमाद ॥
वहाँ बड़ी ही विचित्र एवं अद्भुत अनहद ध्वनि वाला वाद्य बजता रहता है।
ਕੇਲ ਕਰਹਿ ਸੰਤ ਹਰਿ ਲੋਗ ॥
केल करहि संत हरि लोग ॥
हरि के संतजन क्रीड़ा करते हैं,
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਪੂਰਨ ਨਿਰਜੋਗ ॥੧॥
पारब्रहम पूरन निरजोग ॥१॥
वहाँ पर पूर्ण निर्लिप्त परब्रह्म का निवास होता है॥ १॥
ਸੂਖ ਸਹਜ ਆਨੰਦ ਭਵਨ ॥
सूख सहज आनंद भवन ॥
सत्संग सहज सुख एवं आनंद का घर है।
ਸਾਧਸੰਗਿ ਬੈਸਿ ਗੁਣ ਗਾਵਹਿ ਤਹ ਰੋਗ ਸੋਗ ਨਹੀ ਜਨਮ ਮਰਨ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
साधसंगि बैसि गुण गावहि तह रोग सोग नही जनम मरन ॥१॥ रहाउ ॥
वहाँ पर साधु-संत बैठकर भगवान का गुणगान करते हैं और वहाँ पर कोई रोग, शोक नहीं होता एवं जन्म-मरण से छुटकारा हो जाता है॥ १॥ रहाउ॥
ਊਹਾ ਸਿਮਰਹਿ ਕੇਵਲ ਨਾਮੁ ॥
ऊहा सिमरहि केवल नामु ॥
वहाँ केवल नाम-स्मरण ही होता है और
ਬਿਰਲੇ ਪਾਵਹਿ ਓਹੁ ਬਿਸ੍ਰਾਮੁ ॥
बिरले पावहि ओहु बिस्रामु ॥
कोई विरला ही यह सुख-शान्ति का स्थान प्राप्त करता है।
ਭੋਜਨੁ ਭਾਉ ਕੀਰਤਨ ਆਧਾਰੁ ॥
भोजनु भाउ कीरतन आधारु ॥
वहाँ भक्तजनों का भक्तिभाव ही भोजन होता है और हरि-कीर्तन ही उनका आधार होता है।