ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
धनासरी महला ५ ॥
धनासरी महला ५ ॥
ਅਉਖੀ ਘੜੀ ਨ ਦੇਖਣ ਦੇਈ ਅਪਨਾ ਬਿਰਦੁ ਸਮਾਲੇ ॥
अउखी घड़ी न देखण देई अपना बिरदु समाले ॥
परमात्मा अपना विरद् याद रखता है और अपने दास को संकट काल की एक घड़ी भी देखने नहीं देता।
ਹਾਥ ਦੇਇ ਰਾਖੈ ਅਪਨੇ ਕਉ ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲੇ ॥੧॥
हाथ देइ राखै अपने कउ सासि सासि प्रतिपाले ॥१॥
वह अपना हाथ देकर अपने दास की रक्षा करता है और श्वास -श्वास उसका पालन-पोषण करता है ॥१॥
ਪ੍ਰਭ ਸਿਉ ਲਾਗਿ ਰਹਿਓ ਮੇਰਾ ਚੀਤੁ ॥
प्रभ सिउ लागि रहिओ मेरा चीतु ॥
मेरा चित प्रभु से ही लगा रहता है।
ਆਦਿ ਅੰਤਿ ਪ੍ਰਭੁ ਸਦਾ ਸਹਾਈ ਧੰਨੁ ਹਮਾਰਾ ਮੀਤੁ ॥ ਰਹਾਉ ॥
आदि अंति प्रभु सदा सहाई धंनु हमारा मीतु ॥ रहाउ ॥
मेरा मित्र प्रभु धन्य है, वह तो आदि से अंत तक सदैव ही मेरा सहायक बना रहता है ॥ रहाउ ॥
ਮਨਿ ਬਿਲਾਸ ਭਏ ਸਾਹਿਬ ਕੇ ਅਚਰਜ ਦੇਖਿ ਬਡਾਈ ॥
मनि बिलास भए साहिब के अचरज देखि बडाई ॥
मालिक की आश्चर्यजनक लीला एवं बड़ाई को देख कर मेरे मन में हर्षोल्लास उत्पन्न हो गया है।
ਹਰਿ ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਆਨਦ ਕਰਿ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭਿ ਪੂਰਨ ਪੈਜ ਰਖਾਈ ॥੨॥੧੫॥੪੬॥
हरि सिमरि सिमरि आनद करि नानक प्रभि पूरन पैज रखाई ॥२॥१५॥४६॥
हे नानक ! प्रभु ने मेरी पूरी लाज-प्रतिष्ठा रख ली है, इसलिए परमेश्वर का नाम-स्मरण करके आनंद प्राप्त करो ॥ २॥ १५॥४६॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
धनासरी महला ५ ॥
धनासरी महला ५ ॥
ਜਿਸ ਕਉ ਬਿਸਰੈ ਪ੍ਰਾਨਪਤਿ ਦਾਤਾ ਸੋਈ ਗਨਹੁ ਅਭਾਗਾ ॥
जिस कउ बिसरै प्रानपति दाता सोई गनहु अभागा ॥
जिस आदमी को प्राणपति दाता भूल जाता है, उसे बदनसीब समझो।
ਚਰਨ ਕਮਲ ਜਾ ਕਾ ਮਨੁ ਰਾਗਿਓ ਅਮਿਅ ਸਰੋਵਰ ਪਾਗਾ ॥੧॥
चरन कमल जा का मनु रागिओ अमिअ सरोवर पागा ॥१॥
जिसका मन प्रभु चरणों के प्रेम में लग गया है, उसने अमृत का सरोवर प्राप्त कर लिया है॥१॥
ਤੇਰਾ ਜਨੁ ਰਾਮ ਨਾਮ ਰੰਗਿ ਜਾਗਾ ॥
तेरा जनु राम नाम रंगि जागा ॥
हे ईश्वर ! तेरा सेवक राम नाम के प्रेम में मग्न होकर अज्ञान की निद्रा में से जाग्रत हो गया है।
ਆਲਸੁ ਛੀਜਿ ਗਇਆ ਸਭੁ ਤਨ ਤੇ ਪ੍ਰੀਤਮ ਸਿਉ ਮਨੁ ਲਾਗਾ ॥ ਰਹਾਉ ॥
आलसु छीजि गइआ सभु तन ते प्रीतम सिउ मनु लागा ॥ रहाउ ॥
मेरे शरीर में से सारा आलस्य दूर हो गया है तथा मेरा मन अपने प्रियतम के साथ लग गया है॥ रहाउ ॥
ਜਹ ਜਹ ਪੇਖਉ ਤਹ ਨਾਰਾਇਣ ਸਗਲ ਘਟਾ ਮਹਿ ਤਾਗਾ ॥
जह जह पेखउ तह नाराइण सगल घटा महि तागा ॥
मैं जहाँ कहीं भी देखता हूँ, उधर ही नारायण को माला के मोतियों के धागे की भांति समस्त शरीरों में निवास करता हुआ देखता हूँ।
ਨਾਮ ਉਦਕੁ ਪੀਵਤ ਜਨ ਨਾਨਕ ਤਿਆਗੇ ਸਭਿ ਅਨੁਰਾਗਾ ॥੨॥੧੬॥੪੭॥
नाम उदकु पीवत जन नानक तिआगे सभि अनुरागा ॥२॥१६॥४७॥
हरिनामामृत रूपी जल को पान करते ही नानक ने अन्य सभी अनुराग त्याग दिए हैं।॥ २ ॥ १६ ॥ ४७ ॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
धनासरी महला ५ ॥
धनासरी महला ५ ॥
ਜਨ ਕੇ ਪੂਰਨ ਹੋਏ ਕਾਮ ॥
जन के पूरन होए काम ॥
दास के सभी काम सम्पूर्ण हो गए हैं।
ਕਲੀ ਕਾਲ ਮਹਾ ਬਿਖਿਆ ਮਹਿ ਲਜਾ ਰਾਖੀ ਰਾਮ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
कली काल महा बिखिआ महि लजा राखी राम ॥१॥ रहाउ ॥
इस कलियुग के समय में महा विषैली माया के जाल में राम ने मेरी लाज-प्रतिष्ठा रख ली है ॥१॥ रहाउ॥
ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਸੁਆਮੀ ਪ੍ਰਭੁ ਅਪੁਨਾ ਨਿਕਟਿ ਨ ਆਵੈ ਜਾਮ ॥
सिमरि सिमरि सुआमी प्रभु अपुना निकटि न आवै जाम ॥
अपने स्वामी प्रभु का बार-बार सिमरन करने से यम मेरे निकट नहीं आता।
ਮੁਕਤਿ ਬੈਕੁੰਠ ਸਾਧ ਕੀ ਸੰਗਤਿ ਜਨ ਪਾਇਓ ਹਰਿ ਕਾ ਧਾਮ ॥੧॥
मुकति बैकुंठ साध की संगति जन पाइओ हरि का धाम ॥१॥
दास ने भगवान का धाम पा लिया है और उसके लिए साधु की संगति ही मुक्ति एवं वैकुंठ है॥१॥
ਚਰਨ ਕਮਲ ਹਰਿ ਜਨ ਕੀ ਥਾਤੀ ਕੋਟਿ ਸੂਖ ਬਿਸ੍ਰਾਮ ॥
चरन कमल हरि जन की थाती कोटि सूख बिस्राम ॥
भगवान के चरण कमल ही दास के लिए अक्षय धन की थैली है और करोड़ों सुखों का निवास है।
ਗੋਬਿੰਦੁ ਦਮੋਦਰ ਸਿਮਰਉ ਦਿਨ ਰੈਨਿ ਨਾਨਕ ਸਦ ਕੁਰਬਾਨ ॥੨॥੧੭॥੪੮॥
गोबिंदु दमोदर सिमरउ दिन रैनि नानक सद कुरबान ॥२॥१७॥४८॥
हे नानक ! मैं दिन-रात गोविन्द की आराधना करता रहता हूँ और सदैव ही उस पर कुर्बान जाता हूँ ॥२॥१७॥४८॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
धनासरी महला ५ ॥
धनासरी महला ५ ॥
ਮਾਂਗਉ ਰਾਮ ਤੇ ਇਕੁ ਦਾਨੁ ॥
मांगउ राम ते इकु दानु ॥
मैं राम से एक यही दान माँगता हूँ कि
ਸਗਲ ਮਨੋਰਥ ਪੂਰਨ ਹੋਵਹਿ ਸਿਮਰਉ ਤੁਮਰਾ ਨਾਮੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सगल मनोरथ पूरन होवहि सिमरउ तुमरा नामु ॥१॥ रहाउ ॥
मैं तुम्हारा नाम-सिमरन करता रहूँ, जिसके फलस्वरूप सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਚਰਨ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰੇ ਹਿਰਦੈ ਵਾਸਹਿ ਸੰਤਨ ਕਾ ਸੰਗੁ ਪਾਵਉ ॥
चरन तुम्हारे हिरदै वासहि संतन का संगु पावउ ॥
तेरे चरण कमल मेरे हृदय में बस जाएँ और मैं संतजनों की संगति प्राप्त करूँ।
ਸੋਗ ਅਗਨਿ ਮਹਿ ਮਨੁ ਨ ਵਿਆਪੈ ਆਠ ਪਹਰ ਗੁਣ ਗਾਵਉ ॥੧॥
सोग अगनि महि मनु न विआपै आठ पहर गुण गावउ ॥१॥
मेरा मन चिंता की अग्नि में न जले और आठ प्रहर तेरे गुण गाता रहूँ ॥१॥
ਸ੍ਵਸਤਿ ਬਿਵਸਥਾ ਹਰਿ ਕੀ ਸੇਵਾ ਮਧੵੰਤ ਪ੍ਰਭ ਜਾਪਣ ॥
स्वसति बिवसथा हरि की सेवा मध्यंत प्रभ जापण ॥
मैं सुख-कल्याण की अवस्था में भगवान की भक्ति करता रहूँ और जीवन भर प्रभु का जाप करता रहूँ।
ਨਾਨਕ ਰੰਗੁ ਲਗਾ ਪਰਮੇਸਰ ਬਾਹੁੜਿ ਜਨਮ ਨ ਛਾਪਣ ॥੨॥੧੮॥੪੯॥
नानक रंगु लगा परमेसर बाहुड़ि जनम न छापण ॥२॥१८॥४९॥
हे नानक ! मेरा परमेश्वर से अटूट प्रेम-रंग लग गया है, अब पुनः जन्म-मरण के चक्र में नहीं पडूंगा ॥२॥१८॥४६॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
धनासरी महला ५ ॥
धनासरी महला ५ ॥
ਮਾਂਗਉ ਰਾਮ ਤੇ ਸਭਿ ਥੋਕ ॥
मांगउ राम ते सभि थोक ॥
मैं तो राम से ही सभी पदार्थ माँगता हूँ।
ਮਾਨੁਖ ਕਉ ਜਾਚਤ ਸ੍ਰਮੁ ਪਾਈਐ ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਸਿਮਰਨਿ ਮੋਖ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मानुख कउ जाचत स्रमु पाईऐ प्रभ कै सिमरनि मोख ॥१॥ रहाउ ॥
किसी मनुष्य से माँगने से मेहनत के बाद चिंता ही मिलती है, किन्तु प्रभु के सिमरन से ही मोक्ष मिल जाता है।॥१॥ रहाउ॥
ਘੋਖੇ ਮੁਨਿ ਜਨ ਸਿੰਮ੍ਰਿਤਿ ਪੁਰਾਨਾਂ ਬੇਦ ਪੁਕਾਰਹਿ ਘੋਖ ॥
घोखे मुनि जन सिम्रिति पुरानां बेद पुकारहि घोख ॥
ऋषियों-मुनियों ने स्मृतियों एवं पुराणों का ध्यानपूर्वक विश्लेषण किया है और वे वेदों का अध्ययन करके उच्च स्वर में पढ़कर दूसरों को सुनाते रहते हैं।
ਕ੍ਰਿਪਾ ਸਿੰਧੁ ਸੇਵਿ ਸਚੁ ਪਾਈਐ ਦੋਵੈ ਸੁਹੇਲੇ ਲੋਕ ॥੧॥
क्रिपा सिंधु सेवि सचु पाईऐ दोवै सुहेले लोक ॥१॥
कृपा के सागर भगवान की भक्ति करने से ही उस परम-सत्य को पाया जाता है और यह लोक एवं परलोक दोनों ही सुखद हो जाते हैं।॥१॥
ਆਨ ਅਚਾਰ ਬਿਉਹਾਰ ਹੈ ਜੇਤੇ ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਸਿਮਰਨ ਫੋਕ ॥
आन अचार बिउहार है जेते बिनु हरि सिमरन फोक ॥
भगवान के सिमरन के सिवाय अन्य जितने भी आचार-व्यवहार हैं, वे सभी निष्फल हैं।
ਨਾਨਕ ਜਨਮ ਮਰਣ ਭੈ ਕਾਟੇ ਮਿਲਿ ਸਾਧੂ ਬਿਨਸੇ ਸੋਕ ॥੨॥੧੯॥੫੦॥
नानक जनम मरण भै काटे मिलि साधू बिनसे सोक ॥२॥१९॥५०॥
हे नानक ! संत गुरुदेव को मिलने से चिन्ता मिट जाती है और जन्म-मरण का भय नाश हो जाता है।॥२॥१६॥५०॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
धनासरी महला ५ ॥
धनासरी महला ५ ॥
ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਬੁਝੈ ਹਰਿ ਕੈ ਨਾਮਿ ॥
त्रिसना बुझै हरि कै नामि ॥
भगवान के नाम-सिमरन से सारी तृष्णा बुझ जाती है।
ਮਹਾ ਸੰਤੋਖੁ ਹੋਵੈ ਗੁਰ ਬਚਨੀ ਪ੍ਰਭ ਸਿਉ ਲਾਗੈ ਪੂਰਨ ਧਿਆਨੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
महा संतोखु होवै गुर बचनी प्रभ सिउ लागै पूरन धिआनु ॥१॥ रहाउ ॥
गुरु की वाणी से मन में बड़ा संतोष उत्पन्न होता है और प्रभु के साथ पूर्ण ध्यान लग जाता है ॥१॥ रहाउ ॥