Hindi Page 1130

ਗਿਆਨ ਅੰਜਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਤੇ ਹੋਇ ॥
गिआन अंजनु सतिगुर ते होइ ॥
सतगुरु से ज्ञान अंजन प्राप्त होता है कि

ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਤਿਹੁ ਲੋਇ ॥੩॥
राम नामु रवि रहिआ तिहु लोइ ॥३॥
तीनों लोकों में राम नाम ही व्याप्त है॥३॥

ਕਲਿਜੁਗ ਮਹਿ ਹਰਿ ਜੀਉ ਏਕੁ ਹੋਰ ਰੁਤਿ ਨ ਕਾਈ ॥
कलिजुग महि हरि जीउ एकु होर रुति न काई ॥
कलियुग में केवल ईश्वर के भजन-संकीर्तन का ही समय है, अन्य कोई उचित समय नहीं।

ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਿਰਦੈ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਲੇਹੁ ਜਮਾਈ ॥੪॥੧੦॥
नानक गुरमुखि हिरदै राम नामु लेहु जमाई ॥४॥१०॥
नानक फुरमाते हैं कि हे भक्तजनो ! गुरु के सान्निध्य में राम नाम हृदय में अवस्थित कर लो॥४॥ १०॥

ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੩ ਘਰੁ ੨
भैरउ महला ३ घरु २
भैरउ महला ३ घरु २

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि॥

ਦੁਬਿਧਾ ਮਨਮੁਖ ਰੋਗਿ ਵਿਆਪੇ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਜਲਹਿ ਅਧਿਕਾਈ ॥
दुबिधा मनमुख रोगि विआपे त्रिसना जलहि अधिकाई ॥
स्वेच्छाचारी को दुविधा का रोग लगा रहता है और वह अधिकतर तृष्णा की अग्नि में जलता है।

ਮਰਿ ਮਰਿ ਜੰਮਹਿ ਠਉਰ ਨ ਪਾਵਹਿ ਬਿਰਥਾ ਜਨਮੁ ਗਵਾਈ ॥੧॥
मरि मरि जमहि ठउर न पावहि बिरथा जनमु गवाई ॥१॥
वह पुनः पुनः जन्मता-मरता है, कोई ठौर-ठिकाना नहीं पाता और अपना जन्म निरर्थक गंवा देता है॥१॥

ਮੇਰੇ ਪ੍ਰੀਤਮ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਦੇਹੁ ਬੁਝਾਈ ॥
मेरे प्रीतम करि किरपा देहु बुझाई ॥
मेरे प्रियतम ने कृपा कर समझा दिया है कि

ਹਉਮੈ ਰੋਗੀ ਜਗਤੁ ਉਪਾਇਆ ਬਿਨੁ ਸਬਦੈ ਰੋਗੁ ਨ ਜਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हउमै रोगी जगतु उपाइआ बिनु सबदै रोगु न जाई ॥१॥ रहाउ ॥
अहम् रोग में जगत उत्पन्न हुआ है और शब्द के बिना रोग निवृत्त नहीं होता।॥१॥ रहाउ॥

ਸਿੰਮ੍ਰਿਤਿ ਸਾਸਤ੍ਰ ਪੜਹਿ ਮੁਨਿ ਕੇਤੇ ਬਿਨੁ ਸਬਦੈ ਸੁਰਤਿ ਨ ਪਾਈ ॥
सिम्रिति सासत्र पड़हि मुनि केते बिनु सबदै सुरति न पाई ॥
मुनियों ने शास्त्रों एवं स्मृतियों का पठन किया लेकिन शब्द के बिना उन्हें सुरति प्राप्त नहीं हुई।

ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਸਭੇ ਰੋਗਿ ਵਿਆਪੇ ਮਮਤਾ ਸੁਰਤਿ ਗਵਾਈ ॥੨॥
त्रै गुण सभे रोगि विआपे ममता सुरति गवाई ॥२॥
माया के तीन गुणों के कारण सब रोगी हो गए और ममत्व के कारण सुरति गंवा दी॥२॥

ਇਕਿ ਆਪੇ ਕਾਢਿ ਲਏ ਪ੍ਰਭਿ ਆਪੇ ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਪ੍ਰਭਿ ਲਾਏ ॥
इकि आपे काढि लए प्रभि आपे गुर सेवा प्रभि लाए ॥
मगर किसी को प्रभु ने स्वयं ही रोग से बचा लिया और गुरु की सेवा में तल्लीन कर दिया।

ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੋ ਪਾਇਆ ਸੁਖੁ ਵਸਿਆ ਮਨਿ ਆਏ ॥੩॥
हरि का नामु निधानो पाइआ सुखु वसिआ मनि आए ॥३॥
फिर उसने हरिनाम रूपी सुखों का भण्डार पा लिया और उसके मन में सुख आकर बस गया॥३॥

ਚਉਥੀ ਪਦਵੀ ਗੁਰਮੁਖਿ ਵਰਤਹਿ ਤਿਨ ਨਿਜ ਘਰਿ ਵਾਸਾ ਪਾਇਆ ॥
चउथी पदवी गुरमुखि वरतहि तिन निज घरि वासा पाइआ ॥
गुरु के सान्निध्य में उसे तुरीयावस्था प्राप्त हुई और उसने सच्चे घर में वास पा लिया।

ਪੂਰੈ ਸਤਿਗੁਰਿ ਕਿਰਪਾ ਕੀਨੀ ਵਿਚਹੁ ਆਪੁ ਗਵਾਇਆ ॥੪॥
पूरै सतिगुरि किरपा कीनी विचहु आपु गवाइआ ॥४॥
पूरे सतगुरु ने कृपा कर अन्तर्मन से अहम् भावना निवृत्त कर दी॥४॥

ਏਕਸੁ ਕੀ ਸਿਰਿ ਕਾਰ ਏਕ ਜਿਨਿ ਬ੍ਰਹਮਾ ਬਿਸਨੁ ਰੁਦ੍ਰੁ ਉਪਾਇਆ ॥
एकसु की सिरि कार एक जिनि ब्रहमा बिसनु रुद्रु उपाइआ ॥
जिसने ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव को उत्पन्न किया है, उस एक ईश्वर की सम्पूर्ण सृष्टि पर सत्ता है।

ਨਾਨਕ ਨਿਹਚਲੁ ਸਾਚਾ ਏਕੋ ਨਾ ਓਹੁ ਮਰੈ ਨ ਜਾਇਆ ॥੫॥੧॥੧੧॥
नानक निहचलु साचा एको ना ओहु मरै न जाइआ ॥५॥१॥११॥
नानक का कथन है कि एक सत्यस्वरूप परमेश्वर ही निश्चल है और जन्म-मरण से रहित है॥५॥१॥ ११॥

ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੩ ॥
भैरउ महला ३ ॥
भैरउ महला ३॥

ਮਨਮੁਖਿ ਦੁਬਿਧਾ ਸਦਾ ਹੈ ਰੋਗੀ ਰੋਗੀ ਸਗਲ ਸੰਸਾਰਾ ॥
मनमुखि दुबिधा सदा है रोगी रोगी सगल संसारा ॥
मनमुखी जीव सदा दुविधा का रोगी बना रहता है, इस तरह समूचा संसार ही इस रोग का शिकार है।

ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੂਝਹਿ ਰੋਗੁ ਗਵਾਵਹਿ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਵੀਚਾਰਾ ॥੧॥
गुरमुखि बूझहि रोगु गवावहि गुर सबदी वीचारा ॥१॥
गुरु के सान्निध्य में रहने वाला इस तथ्य को बूझकर रोग निवृत कर देता है और शब्द-गुरु का चिंतन करता है॥१॥

ਹਰਿ ਜੀਉ ਸਤਸੰਗਤਿ ਮੇਲਾਇ ॥
हरि जीउ सतसंगति मेलाइ ॥
ईश्वर ही संतों की संगत में मिलाता है।

ਨਾਨਕ ਤਿਸ ਨੋ ਦੇਇ ਵਡਿਆਈ ਜੋ ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਚਿਤੁ ਲਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
नानक तिस नो देइ वडिआई जो राम नामि चितु लाइ ॥१॥ रहाउ ॥
हे नानक ! जो राम नाम में ध्यान लगाता है, उसे ही कीर्ति प्रदान करता है॥ १॥ रहाउ॥

ਮਮਤਾ ਕਾਲਿ ਸਭਿ ਰੋਗਿ ਵਿਆਪੇ ਤਿਨ ਜਮ ਕੀ ਹੈ ਸਿਰਿ ਕਾਰਾ ॥
ममता कालि सभि रोगि विआपे तिन जम की है सिरि कारा ॥
ममत्व में लीन रहने से काल एवं सभी रोग सताते हैं और उन पर यम की पीड़ा बनी रहती है।

ਗੁਰਮੁਖਿ ਪ੍ਰਾਣੀ ਜਮੁ ਨੇੜਿ ਨ ਆਵੈ ਜਿਨ ਹਰਿ ਰਾਖਿਆ ਉਰਿ ਧਾਰਾ ॥੨॥
गुरमुखि प्राणी जमु नेड़ि न आवै जिन हरि राखिआ उरि धारा ॥२॥
जिसने परमात्मा को अपने मन में बसा लिया है, उस गुरमुख प्राणी के निकट यम भी नहीं आता॥२॥

ਜਿਨ ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਨ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਾਤਾ ਸੇ ਜਗ ਮਹਿ ਕਾਹੇ ਆਇਆ ॥
जिन हरि का नामु न गुरमुखि जाता से जग महि काहे आइआ ॥
जिसने गुरु के सान्निध्य में हरिनाम को नहीं समझा, वह जगत में क्यों आया है।

ਗੁਰ ਕੀ ਸੇਵਾ ਕਦੇ ਨ ਕੀਨੀ ਬਿਰਥਾ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇਆ ॥੩॥
गुर की सेवा कदे न कीनी बिरथा जनमु गवाइआ ॥३॥
गुरु की सेवा कभी की नहीं, अपना जन्म व्यर्थ ही गंवा दिया॥३॥

ਨਾਨਕ ਸੇ ਪੂਰੇ ਵਡਭਾਗੀ ਸਤਿਗੁਰ ਸੇਵਾ ਲਾਏ ॥
नानक से पूरे वडभागी सतिगुर सेवा लाए ॥
नानक का कथन है कि वही पूर्ण भाग्यशाली हैं, जो सतगुरु की सेवा में तल्लीन रहते हैं,

ਜੋ ਇਛਹਿ ਸੋਈ ਫਲੁ ਪਾਵਹਿ ਗੁਰਬਾਣੀ ਸੁਖੁ ਪਾਏ ॥੪॥੨॥੧੨॥
जो इछहि सोई फलु पावहि गुरबाणी सुखु पाए ॥४॥२॥१२॥
जैसी कामना करते हैं, वैसा ही फल प्राप्त करते हैं और गुरु की वाणी से सुख पाते हैं।॥४॥२॥ १२॥

ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੩ ॥
भैरउ महला ३ ॥
भैरउ महला ३॥

ਦੁਖ ਵਿਚਿ ਜੰਮੈ ਦੁਖਿ ਮਰੈ ਦੁਖ ਵਿਚਿ ਕਾਰ ਕਮਾਇ ॥
दुख विचि जमै दुखि मरै दुख विचि कार कमाइ ॥
(मनमर्जी करने वाला) मनुष्य दुख में जन्म लेता है, दुख में ही मृत्यु को प्राप्त होता है और दुखों में ही कामकाज करता है।

ਗਰਭ ਜੋਨੀ ਵਿਚਿ ਕਦੇ ਨ ਨਿਕਲੈ ਬਿਸਟਾ ਮਾਹਿ ਸਮਾਇ ॥੧॥
गरभ जोनी विचि कदे न निकलै बिसटा माहि समाइ ॥१॥
वह गर्भ योनि में से कभी मुक्त नहीं होता और विष्ठा में ही पड़ा रहता है॥१॥

ਧ੍ਰਿਗੁ ਧ੍ਰਿਗੁ ਮਨਮੁਖਿ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇਆ ॥
ध्रिगु ध्रिगु मनमुखि जनमु गवाइआ ॥
इस प्रकार के मनमुख मनुष्य को धिक्कार है, अपना जीवन उसने व्यर्थ ही गंवा दिया है।

ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਕੀ ਸੇਵ ਨ ਕੀਨੀ ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਨ ਭਾਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
पूरे गुर की सेव न कीनी हरि का नामु न भाइआ ॥१॥ रहाउ ॥
पूरे गुरु की कभी न सेवा की और न ही परमात्मा का नाम उसे अच्छा लगा॥१॥रहाउ॥

ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਸਭਿ ਰੋਗ ਗਵਾਏ ਜਿਸ ਨੋ ਹਰਿ ਜੀਉ ਲਾਏ ॥
गुर का सबदु सभि रोग गवाए जिस नो हरि जीउ लाए ॥
जिसे ईश्वर लगन में लगाता है, गुरु का शब्द उसके सब रोग दूर कर देता है।

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