ਵਾਰੀ ਫੇਰੀ ਸਦਾ ਘੁਮਾਈ ਕਵਨੁ ਅਨੂਪੁ ਤੇਰੋ ਠਾਉ ॥੧॥
वारी फेरी सदा घुमाई कवनु अनूपु तेरो ठाउ ॥१॥
हे प्रभु ! मैं सदैव तुझ पर बलिहारी जाता हूँ, तेरा अनुपम स्थान कैसा है॥ १॥
ਸਰਬ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਹਿ ਸਗਲ ਸਮਾਲਹਿ ਸਗਲਿਆ ਤੇਰੀ ਛਾਉ ॥
सरब प्रतिपालहि सगल समालहि सगलिआ तेरी छाउ ॥
तू सब जीवों का पोषक है, सबकी संभाल करता है और उन्हें तेरा ही आसरा है।
ਨਾਨਕ ਕੇ ਪ੍ਰਭ ਪੁਰਖ ਬਿਧਾਤੇ ਘਟਿ ਘਟਿ ਤੁਝਹਿ ਦਿਖਾਉ ॥੨॥੨॥੪॥
नानक के प्रभ पुरख बिधाते घटि घटि तुझहि दिखाउ ॥२॥२॥४॥
हे नानक के प्रभु ! हे परमपुरुष विधाता ! मैं घट-घट तुझे ही देखता रहता हूँ।॥ २॥ २॥ ४॥
ਕੇਦਾਰਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
केदारा महला ५ ॥
केदारा महला ५॥
ਪ੍ਰਿਅ ਕੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਪਿਆਰੀ ॥
प्रिअ की प्रीति पिआरी ॥
प्रिय प्रभु की प्रीति अत्यंत प्यारी है।
ਮਗਨ ਮਨੈ ਮਹਿ ਚਿਤਵਉ ਆਸਾ ਨੈਨਹੁ ਤਾਰ ਤੁਹਾਰੀ ॥ ਰਹਾਉ ॥
मगन मनै महि चितवउ आसा नैनहु तार तुहारी ॥ रहाउ ॥
हे प्रभु ! मन में मग्न होकर तेरी आशा लगाए रखता हूँ और नयनों से तुझे देखने की तीव्र लालसा लगी हुई है॥ रहाउ॥
ਓਇ ਦਿਨ ਪਹਰ ਮੂਰਤ ਪਲ ਕੈਸੇ ਓਇ ਪਲ ਘਰੀ ਕਿਹਾਰੀ ॥
ओइ दिन पहर मूरत पल कैसे ओइ पल घरी किहारी ॥
वे दिन, प्रहर, मुहूर्त, पल एवं घड़ी कैंसी होगी,”
ਖੂਲੇ ਕਪਟ ਧਪਟ ਬੁਝਿ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਜੀਵਉ ਪੇਖਿ ਦਰਸਾਰੀ ॥੧॥
खूले कपट धपट बुझि त्रिसना जीवउ पेखि दरसारी ॥१॥
जब तुरंत कपाट खुलकर तृष्णा बुझेगी और दर्शन पाकर जीवन प्राप्त होगा॥ १॥
ਕਉਨੁ ਸੁ ਜਤਨੁ ਉਪਾਉ ਕਿਨੇਹਾ ਸੇਵਾ ਕਉਨ ਬੀਚਾਰੀ ॥
कउनु सु जतनु उपाउ किनेहा सेवा कउन बीचारी ॥
गुरु नानक का कथन है कि वह कौन-सा यत्न, कारगर उपाय है, कैसी सेवा एवं कौन-सा विचार है,”
ਮਾਨੁ ਅਭਿਮਾਨੁ ਮੋਹੁ ਤਜਿ ਨਾਨਕ ਸੰਤਹ ਸੰਗਿ ਉਧਾਰੀ ॥੨॥੩॥੫॥
मानु अभिमानु मोहु तजि नानक संतह संगि उधारी ॥२॥३॥५॥
जिससे मान-अभिमान एवं मोह छोड़कर संतों के संग उद्धार हो सकता है॥ २॥३॥५॥
ਕੇਦਾਰਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
केदारा महला ५ ॥
केदारा महला ५॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਗੁਨ ਗਾਵਹੁ ॥
हरि हरि हरि गुन गावहु ॥
हर पल ईश्वर की महिमा गान करो।
ਕਰਹੁ ਕ੍ਰਿਪਾ ਗੋਪਾਲ ਗੋਬਿਦੇ ਅਪਨਾ ਨਾਮੁ ਜਪਾਵਹੁ ॥ ਰਹਾਉ ॥
करहु क्रिपा गोपाल गोबिदे अपना नामु जपावहु ॥ रहाउ ॥
हे परमेश्वर ! कृपा करो और अपने नाम का ही जाप करवाओ॥ रहाउ॥
ਕਾਢਿ ਲੀਏ ਪ੍ਰਭ ਆਨ ਬਿਖੈ ਤੇ ਸਾਧਸੰਗਿ ਮਨੁ ਲਾਵਹੁ ॥
काढि लीए प्रभ आन बिखै ते साधसंगि मनु लावहु ॥
प्रभु ने अन्य विषय-विकारों से निकाल लिया है, अब साधु-संगत में मन लीन है।
ਭ੍ਰਮੁ ਭਉ ਮੋਹੁ ਕਟਿਓ ਗੁਰ ਬਚਨੀ ਅਪਨਾ ਦਰਸੁ ਦਿਖਾਵਹੁ ॥੧॥
भ्रमु भउ मोहु कटिओ गुर बचनी अपना दरसु दिखावहु ॥१॥
गुरु के वचन ने भ्रम-भय और मोह काट दिया है, अपने दर्शन करवा दो॥ १॥
ਸਭ ਕੀ ਰੇਨ ਹੋਇ ਮਨੁ ਮੇਰਾ ਅਹੰਬੁਧਿ ਤਜਾਵਹੁ ॥
सभ की रेन होइ मनु मेरा अह्मबुधि तजावहु ॥
मेरा मन सब की चरणरज बना रहे, अतः मेरी अहम्-बुद्धि नष्ट कर दो।
ਅਪਨੀ ਭਗਤਿ ਦੇਹਿ ਦਇਆਲਾ ਵਡਭਾਗੀ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਪਾਵਹੁ ॥੨॥੪॥੬॥
अपनी भगति देहि दइआला वडभागी नानक हरि पावहु ॥२॥४॥६॥
नानक का कथन है कि हे दयालु परमेश्वर ! जिसे तू अपनी भक्ति प्रदान करता है, ऐसा भाग्यशाली तुझे पा लेता है॥२॥४॥६॥
ਕੇਦਾਰਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
केदारा महला ५ ॥
केदारा महला ५॥
ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਜਨਮੁ ਅਕਾਰਥ ਜਾਤ ॥
हरि बिनु जनमु अकारथ जात ॥
हे जीव ! प्रभु-सिमरन बिना तेरा जीवन व्यर्थ ही जा रहा है।
ਤਜਿ ਗੋਪਾਲ ਆਨ ਰੰਗਿ ਰਾਚਤ ਮਿਥਿਆ ਪਹਿਰਤ ਖਾਤ ॥ ਰਹਾਉ ॥
तजि गोपाल आन रंगि राचत मिथिआ पहिरत खात ॥ रहाउ ॥
ईश्वर की अर्चना को तजकर अन्य रंगों में लीन रहकर तुम्हारा खाना-पहनना भी मात्र झूठा है॥ रहाउ॥
ਧਨੁ ਜੋਬਨੁ ਸੰਪੈ ਸੁਖ ਭੋੁਗਵੈ ਸੰਗਿ ਨ ਨਿਬਹਤ ਮਾਤ ॥
धनु जोबनु स्मपै सुख भोगवै संगि न निबहत मात ॥
धन-दौलत, यौवन, संपति इत्यादि सुख भोगते रहते हो परन्तु अन्त में ये साथ नहीं निभाते।
ਮ੍ਰਿਗ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਦੇਖਿ ਰਚਿਓ ਬਾਵਰ ਦ੍ਰੁਮ ਛਾਇਆ ਰੰਗਿ ਰਾਤ ॥੧॥
म्रिग त्रिसना देखि रचिओ बावर द्रुम छाइआ रंगि रात ॥१॥
अरे पगले ! मृगतृष्णा को देख कर उसमें ही तू आसक्त है, ये सब सुख-सुविधाएँ जिनमें तू लीन है, यह तो पेड़ की छाया मानिंद अस्थाई हैं।॥ १॥
ਮਾਨ ਮੋਹ ਮਹਾ ਮਦ ਮੋਹਤ ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਕੈ ਖਾਤ ॥
मान मोह महा मद मोहत काम क्रोध कै खात ॥
मैं मान-मोह एवं महा मद में मोहित हूँ और काम-क्रोध के गङ्गे में पड़ा हुआ हूँ।
ਕਰੁ ਗਹਿ ਲੇਹੁ ਦਾਸ ਨਾਨਕ ਕਉ ਪ੍ਰਭ ਜੀਉ ਹੋਇ ਸਹਾਤ ॥੨॥੫॥੭॥
करु गहि लेहु दास नानक कउ प्रभ जीउ होइ सहात ॥२॥५॥७॥
हे प्रभु जी ! दास नानक को बाँह पकड़ा कर इन से निकालने में सहायता करो॥२॥ ५॥ ७॥
ਕੇਦਾਰਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
केदारा महला ५ ॥
केदारा महला ५॥
ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਕੋਇ ਨ ਚਾਲਸਿ ਸਾਥ ॥
हरि बिनु कोइ न चालसि साथ ॥
प्रभु के सिवा कोई भी अंतकाल साथ नहीं निभाता।
ਦੀਨਾ ਨਾਥ ਕਰੁਣਾਪਤਿ ਸੁਆਮੀ ਅਨਾਥਾ ਕੇ ਨਾਥ ॥ ਰਹਾਉ ॥
दीना नाथ करुणापति सुआमी अनाथा के नाथ ॥ रहाउ ॥
हे दीनानाथ ! तू करुणापति, सबका स्वामी एवं अनाथों का नाथ है॥ रहाउ॥
ਸੁਤ ਸੰਪਤਿ ਬਿਖਿਆ ਰਸ ਭੋੁਗਵਤ ਨਹ ਨਿਬਹਤ ਜਮ ਕੈ ਪਾਥ ॥
सुत स्मपति बिखिआ रस भोगवत नह निबहत जम कै पाथ ॥
पुत्र-सम्पति, विकारों के रस भोग यम के मार्ग पर साथ नहीं निभा पाते ।
ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਗਾਉ ਗੁਨ ਗੋਬਿੰਦ ਉਧਰੁ ਸਾਗਰ ਕੇ ਖਾਤ ॥੧॥
नामु निधानु गाउ गुन गोबिंद उधरु सागर के खात ॥१॥
सुखनिधि हरिनाम जपो, उस गोविंद के गुण गाओ, अंततः यही संसार-सागर के गङ्गे से उद्धार करवाता है॥ १॥
ਸਰਨਿ ਸਮਰਥ ਅਕਥ ਅਗੋਚਰ ਹਰਿ ਸਿਮਰਤ ਦੁਖ ਲਾਥ ॥
सरनि समरथ अकथ अगोचर हरि सिमरत दुख लाथ ॥
शरण देने वाले, पूर्ण समर्थ, अकथनीय, इन्द्रियातीत परमेश्वर का सिमरन करने से दुःख-दर्द निवृत्त हो जाते हैं।
ਨਾਨਕ ਦੀਨ ਧੂਰਿ ਜਨ ਬਾਂਛਤ ਮਿਲੈ ਲਿਖਤ ਧੁਰਿ ਮਾਥ ॥੨॥੬॥੮॥
नानक दीन धूरि जन बांछत मिलै लिखत धुरि माथ ॥२॥६॥८॥
नानक दीन संतजनों की चरण-धूल की कामना करता है, पर माथे पर भाग्य हो तो ही यह मिलती है॥ २॥ ६॥ ८॥
ਕੇਦਾਰਾ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੫
केदारा महला ५ घरु ५
केदारा महला ५ घरु ५
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
वह अद्वितीय परमेश्वर जिसका वाचक ओम् है, केवल (ऑकार स्वरूप) एक है, सतगुरु की कृपा से प्राप्त होता है।
ਬਿਸਰਤ ਨਾਹਿ ਮਨ ਤੇ ਹਰੀ ॥
बिसरत नाहि मन ते हरी ॥
मन से ईश्वर कदापि नहीं भूलता,”
ਅਬ ਇਹ ਪ੍ਰੀਤਿ ਮਹਾ ਪ੍ਰਬਲ ਭਈ ਆਨ ਬਿਖੈ ਜਰੀ ॥ ਰਹਾਉ ॥
अब इह प्रीति महा प्रबल भई आन बिखै जरी ॥ रहाउ ॥
यह प्रेम अब अटूट हो चुका है और अन्य सब विकार दूर हो गए हैं।॥ रहाउ॥
ਬੂੰਦ ਕਹਾ ਤਿਆਗਿ ਚਾਤ੍ਰਿਕ ਮੀਨ ਰਹਤ ਨ ਘਰੀ ॥
बूंद कहा तिआगि चात्रिक मीन रहत न घरी ॥
जिस प्रकार चातक बूंद को छोड़ नहीं सकता, मछली जल बिना घड़ी भी नहीं रहती।