Hindi Page 171

ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਪਾਇਆ ਵਡਭਾਗੀ ਹਰਿ ਮੰਤ੍ਰੁ ਦੀਆ ਮਨੁ ਠਾਢੇ ॥੧॥
गुरु पूरा पाइआ वडभागी हरि मंत्रु दीआ मनु ठाढे ॥१॥
लेकिन बड़े सौभाग्य से मुझे पूर्ण गुरु मिल गए हैं, जिन्होंने मुझे हरि नाम रूपी मंत्र प्रदान किया है, जिससे यह अस्थिर मन शांत हो गया है। १॥

ਰਾਮ ਹਮ ਸਤਿਗੁਰ ਲਾਲੇ ਕਾਂਢੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
राम हम सतिगुर लाले कांढे ॥१॥ रहाउ ॥
हे मेरे राम ! मुझे सतिगुरु का गुलाम कहा जाता है। १॥ रहाउ॥

ਹਮਰੈ ਮਸਤਕਿ ਦਾਗੁ ਦਗਾਨਾ ਹਮ ਕਰਜ ਗੁਰੂ ਬਹੁ ਸਾਢੇ ॥
हमरै मसतकि दागु दगाना हम करज गुरू बहु साढे ॥
मेरे मस्तक पर सतिगुरु के गुलाम होने का चिन्ह लगा हुआ है। गुरु के उपकार का मैंने बहुत अधिक कर्जा अदा करना है अर्थात् मैं गुरु कर्जा उतार नहीं सकता इसलिए गुरु का गुलाम बन गया।

ਪਰਉਪਕਾਰੁ ਪੁੰਨੁ ਬਹੁ ਕੀਆ ਭਉ ਦੁਤਰੁ ਤਾਰਿ ਪਰਾਢੇ ॥੨॥
परउपकारु पुंनु बहु कीआ भउ दुतरु तारि पराढे ॥२॥
गुरु ने मुझ पर बहुत बड़ा परोपकार एवं उदार किया है और मुझे इस कठिन एवं भयानक संसार-सागर से पार कर दिया है। ॥२॥

ਜਿਨ ਕਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ਰਿਦੈ ਹਰਿ ਨਾਹੀ ਤਿਨ ਕੂਰੇ ਗਾਢਨ ਗਾਢੇ ॥
जिन कउ प्रीति रिदै हरि नाही तिन कूरे गाढन गाढे ॥
जिन लोगों के हृदय में प्रभु का प्यार नहीं होता, वे झूठी योजनाएँ ही बनाते रहते हैं।

ਜਿਉ ਪਾਣੀ ਕਾਗਦੁ ਬਿਨਸਿ ਜਾਤ ਹੈ ਤਿਉ ਮਨਮੁਖ ਗਰਭਿ ਗਲਾਢੇ ॥੩॥
जिउ पाणी कागदु बिनसि जात है तिउ मनमुख गरभि गलाढे ॥३॥
जैसे जल में कागज का नाश हो जाता है, वैसे ही स्वेच्छाचारी जीव अहंकार में योनियों के चक्र में फंसकर नष्ट हो जाता है। ३॥

ਹਮ ਜਾਨਿਆ ਕਛੂ ਨ ਜਾਨਹ ਆਗੈ ਜਿਉ ਹਰਿ ਰਾਖੈ ਤਿਉ ਠਾਢੇ ॥ 
हम जानिआ कछू न जानह आगै जिउ हरि राखै तिउ ठाढे ॥
मुझे भूतकाल का कुछ पता नहीं, न ही मैं भविष्यकाल बारे कुछ जानता हूँ, जैसे परमेश्वर हमें रखता है, उसी अवस्था में हम रहते हैं।

ਹਮ ਭੂਲ ਚੂਕ ਗੁਰ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰਹੁ ਜਨ ਨਾਨਕ ਕੁਤਰੇ ਕਾਢੇ ॥੪॥੭॥੨੧॥੫੯॥
हम भूल चूक गुर किरपा धारहु जन नानक कुतरे काढे ॥४॥७॥२१॥५९॥
हे गुरु जी ! हम बहुत भूल-चूक करते रहते हैं अत: हम पर कृपा करो। हे नानक ! मुझे गुरु के घर का कुत्ता कहा जाता है ॥ ४॥ ७॥ २१॥ ५९ ॥

ਗਉੜੀ ਪੂਰਬੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
गउड़ी पूरबी महला ४ ॥
गउड़ी पूरबी महला ४ ॥

ਕਾਮਿ ਕਰੋਧਿ ਨਗਰੁ ਬਹੁ ਭਰਿਆ ਮਿਲਿ ਸਾਧੂ ਖੰਡਲ ਖੰਡਾ ਹੇ ॥
कामि करोधि नगरु बहु भरिआ मिलि साधू खंडल खंडा हे ॥
यह मानव शरीर रूपी-नगर काम-क्रोध जैसे विकारों से पूरी तरह भरा हुआ है। लेकिन सन्तजनों के मिलाप से तुमने इन्हें क्षीण कर दिया है।

ਪੂਰਬਿ ਲਿਖਤ ਲਿਖੇ ਗੁਰੁ ਪਾਇਆ ਮਨਿ ਹਰਿ ਲਿਵ ਮੰਡਲ ਮੰਡਾ ਹੇ ॥੧॥
पूरबि लिखत लिखे गुरु पाइआ मनि हरि लिव मंडल मंडा हे ॥१॥
जिस मनुष्य ने पूर्व लिखित कर्मों के माध्यम से गुरु को प्राप्त किया है, उसका चंचल मन ही भगवान में लीन हुआ है। १॥

ਕਰਿ ਸਾਧੂ ਅੰਜੁਲੀ ਪੁੰਨੁ ਵਡਾ ਹੇ ॥
करि साधू अंजुली पुंनु वडा हे ॥
संतजनों को हाथ जोड़कर नमन करना बड़ा पुण्य कर्म है।

ਕਰਿ ਡੰਡਉਤ ਪੁਨੁ ਵਡਾ ਹੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
करि डंडउत पुनु वडा हे ॥१॥ रहाउ ॥
उन्हें दण्डवत् प्रणाम करना भी महान् पुण्य कर्म है॥ १॥ रहाउ॥

ਸਾਕਤ ਹਰਿ ਰਸ ਸਾਦੁ ਨ ਜਾਨਿਆ ਤਿਨ ਅੰਤਰਿ ਹਉਮੈ ਕੰਡਾ ਹੇ ॥
साकत हरि रस सादु न जानिआ तिन अंतरि हउमै कंडा हे ॥
पतित मनुष्यों (माया में लिप्त अथवा जो भगवान से विस्मृत) ने हरि-रस का आनंद प्राप्त नहीं किया, क्योंकि उनके अन्तर्मन में अहंकार रूपी कांटा होता है।

ਜਿਉ ਜਿਉ ਚਲਹਿ ਚੁਭੈ ਦੁਖੁ ਪਾਵਹਿ ਜਮਕਾਲੁ ਸਹਹਿ ਸਿਰਿ ਡੰਡਾ ਹੇ ॥੨॥
जिउ जिउ चलहि चुभै दुखु पावहि जमकालु सहहि सिरि डंडा हे ॥२॥
जैसे-जैसे वह अहंकारवश जीवन मार्ग पर चलते हैं, वह अहं का कांटा उन्हें चुभ-चुभकर कष्ट देता रहता है और अन्तिम समय में यमों द्वारा दी जाने वाली यातना को सहन करते हैं। २॥

ਹਰਿ ਜਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਣੇ ਦੁਖੁ ਜਨਮ ਮਰਣ ਭਵ ਖੰਡਾ ਹੇ ॥
हरि जन हरि हरि नामि समाणे दुखु जनम मरण भव खंडा हे ॥
प्रभु के भक्त प्रभु-परमेश्वर के नाम सिमरन में लीन रहते हैं और वे आवागमन के चक्र से मुक्ति प्राप्त करके संसार के दुखों से छूट जाते हैं।

ਅਬਿਨਾਸੀ ਪੁਰਖੁ ਪਾਇਆ ਪਰਮੇਸਰੁ ਬਹੁ ਸੋਭ ਖੰਡ ਬ੍ਰਹਮੰਡਾ ਹੇ ॥੩॥
अबिनासी पुरखु पाइआ परमेसरु बहु सोभ खंड ब्रहमंडा हे ॥३॥
फिर वे अविनाशी सर्वव्यापक प्रभु को पा लेते हैं और वे खण्डों-ब्रह्मण्डों में शोभा पाते हैं। ३ ।

ਹਮ ਗਰੀਬ ਮਸਕੀਨ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰੇ ਹਰਿ ਰਾਖੁ ਰਾਖੁ ਵਡ ਵਡਾ ਹੇ ॥
हम गरीब मसकीन प्रभ तेरे हरि राखु राखु वड वडा हे ॥
हे प्रभु! हम निर्धन व निराश्रय तुम्हारे ही अधीन हैं तुम सर्वोच्चतम शक्ति हो, इसलिए हमें इन विकारों से बचा लो।

ਜਨ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰੁ ਟੇਕ ਹੈ ਹਰਿ ਨਾਮੇ ਹੀ ਸੁਖੁ ਮੰਡਾ ਹੇ ॥੪॥੮॥੨੨॥੬੦॥
जन नानक नामु अधारु टेक है हरि नामे ही सुखु मंडा हे ॥४॥८॥२२॥६०॥
हे नानक ! जीव को तुम्हारे ही नाम का आधार है, हरि-नाम में लिप्त होने से ही आत्मिक सुखों की उपलब्धि होती है ॥४॥८॥२२॥६०॥

ਗਉੜੀ ਪੂਰਬੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
गउड़ी पूरबी महला ४ ॥
गउड़ी पूरबी महला ४ ॥

ਇਸੁ ਗੜ ਮਹਿ ਹਰਿ ਰਾਮ ਰਾਇ ਹੈ ਕਿਛੁ ਸਾਦੁ ਨ ਪਾਵੈ ਧੀਠਾ ॥
इसु गड़ महि हरि राम राइ है किछु सादु न पावै धीठा ॥
मानव-शरीर रूपी दुर्ग में जगत् के बादशाह हरेि-परमेश्वर का निवास है परन्तु निर्लज्ज प्राणी उसके स्वाद को प्राप्त नहीं करता।

ਹਰਿ ਦੀਨ ਦਇਆਲਿ ਅਨੁਗ੍ਰਹੁ ਕੀਆ ਹਰਿ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਚਖਿ ਡੀਠਾ ॥੧॥
हरि दीन दइआलि अनुग्रहु कीआ हरि गुर सबदी चखि डीठा ॥१॥
जब दीनदयालु ईश्वर ने मुझ पर करुणा-दृष्टि की तो मैंने गुरु के शब्द द्वारा हरि-रस के स्वाद को चख कर देख लिया ॥ १॥

ਰਾਮ ਹਰਿ ਕੀਰਤਨੁ ਗੁਰ ਲਿਵ ਮੀਠਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
राम हरि कीरतनु गुर लिव मीठा ॥१॥ रहाउ ॥
हे मेरे राम ! गुरु में सुरति धारण करने से परमेश्वर का यश गायन करना मुझे मीठा लगने लग गया ॥ १॥ रहाउ॥

ਹਰਿ ਅਗਮੁ ਅਗੋਚਰੁ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਹੈ ਮਿਲਿ ਸਤਿਗੁਰ ਲਾਗਿ ਬਸੀਠਾ ॥
हरि अगमु अगोचरु पारब्रहमु है मिलि सतिगुर लागि बसीठा ॥
हरि-परमेश्वर अगम्य, अगोचर एवं पारब्रह्म है। सतिगुरु-मध्यस्थ के साथ मिलने से वह मिलता है।

ਜਿਨ ਗੁਰ ਬਚਨ ਸੁਖਾਨੇ ਹੀਅਰੈ ਤਿਨ ਆਗੈ ਆਣਿ ਪਰੀਠਾ ॥੨॥
जिन गुर बचन सुखाने हीअरै तिन आगै आणि परीठा ॥२॥
जिनके हृदय को गुरु का वचन सुखदायक लगता है, गुरु उनके समक्ष नाम रूपी अमृत रस सेवन करने के लिए परोस देता है। ॥ २॥

ਮਨਮੁਖ ਹੀਅਰਾ ਅਤਿ ਕਠੋਰੁ ਹੈ ਤਿਨ ਅੰਤਰਿ ਕਾਰ ਕਰੀਠਾ ॥
मनमुख हीअरा अति कठोरु है तिन अंतरि कार करीठा ॥
स्वेच्छाचारी का हृदय बड़ा निष्ठुर है, उनके भीतर माया के विकारों की कालिख ही कालिख होती है।

ਬਿਸੀਅਰ ਕਉ ਬਹੁ ਦੂਧੁ ਪੀਆਈਐ ਬਿਖੁ ਨਿਕਸੈ ਫੋਲਿ ਫੁਲੀਠਾ ॥੩॥
बिसीअर कउ बहु दूधु पीआईऐ बिखु निकसै फोलि फुलीठा ॥३॥
यदि हम साँप को कितना भी दूध पिलाएँ, जाँच पड़ताल करने पर उसके भीतर से विष ही निकलेगा। ॥ ३॥

ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਆਨਿ ਮਿਲਾਵਹੁ ਗੁਰੁ ਸਾਧੂ ਘਸਿ ਗਰੁੜੁ ਸਬਦੁ ਮੁਖਿ ਲੀਠਾ ॥
हरि प्रभ आनि मिलावहु गुरु साधू घसि गरुड़ु सबदु मुखि लीठा ॥
हे मेरे हरि-प्रभु! मुझे गुरदेव से मिला दीजिए चूंकि जो साँप का विष नाश करने के लिए मैं अपने मुख से गुरुवाणी को नीलकण्ठ के मन्त्र के तौर पर पीकर सेवन करूं (गायन करू)।

ਜਨ ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਕੇ ਲਾਲੇ ਗੋਲੇ ਲਗਿ ਸੰਗਤਿ ਕਰੂਆ ਮੀਠਾ ॥੪॥੯॥੨੩॥੬੧॥
जन नानक गुर के लाले गोले लगि संगति करूआ मीठा ॥४॥९॥२३॥६१॥
हे नानक ! मैं गुरु का सेवक एवं गुलाम हूँ। उनकी सत्संग से मिलकर कड़वा विष भी मीठा अमृत बन जाता है ॥४॥९॥२३॥६१॥

ਗਉੜੀ ਪੂਰਬੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
गउड़ी पूरबी महला ४ ॥
गउड़ी पूरबी महला ४ ॥

ਹਰਿ ਹਰਿ ਅਰਥਿ ਸਰੀਰੁ ਹਮ ਬੇਚਿਆ ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਕੈ ਆਗੇ ॥
हरि हरि अरथि सरीरु हम बेचिआ पूरे गुर कै आगे ॥
हरि-परमेश्वर का नाम लेने की खातिर मैंने अपना शरीर पूर्ण गुरु के समक्ष बेच दिया है।

ਸਤਿਗੁਰ ਦਾਤੈ ਨਾਮੁ ਦਿੜਾਇਆ ਮੁਖਿ ਮਸਤਕਿ ਭਾਗ ਸਭਾਗੇ ॥੧॥
सतिगुर दातै नामु दिड़ाइआ मुखि मसतकि भाग सभागे ॥१॥
दाता सतिगुरु ने मेरे हृदय में ईश्वर का नाम सुदृढ़ कर दिया है। मेरे चेहरे एवं मस्तक पर भाग्य जाग गए हैं, मैं बड़ा सौभाग्यशाली हूँ॥ १ ॥

ਰਾਮ ਗੁਰਮਤਿ ਹਰਿ ਲਿਵ ਲਾਗੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
राम गुरमति हरि लिव लागे ॥१॥ रहाउ ॥
हे मेरे राम ! गुरु की मति से मेरी सुरति भगवान में लग गई है। १॥ रहाउ॥

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