ਸਹਜ ਸਮਾਧਿ ਧੁਨਿ ਗਹਿਰ ਗੰਭੀਰਾ ॥
सहज समाधि धुनि गहिर ग्मभीरा ॥
वह सहज समाधि में अनहद ध्वनि को सुनता है और गहनगंभीर होता है।
ਸਦਾ ਮੁਕਤੁ ਤਾ ਕੇ ਪੂਰੇ ਕਾਮ ॥
सदा मुकतु ता के पूरे काम ॥
वह सदा बंधनों से मुक्त रहता है और उसके सभी कार्य पूर्ण हो जाते हैं,
ਜਾ ਕੈ ਰਿਦੈ ਵਸੈ ਹਰਿ ਨਾਮ ॥੨॥
जा कै रिदै वसै हरि नाम ॥२॥
जिसके हृदय में हरि नाम बस जाता है ॥२॥
ਸਗਲ ਸੂਖ ਆਨੰਦ ਅਰੋਗ ॥
सगल सूख आनंद अरोग ॥
वह सर्व सुख-आनंद प्राप्त करता और आरोग्य रहता है,
ਸਮਦਰਸੀ ਪੂਰਨ ਨਿਰਜੋਗ ॥
समदरसी पूरन निरजोग ॥
वह निर्लिप्त एवं समदर्शी होता है।
ਆਇ ਨ ਜਾਇ ਡੋਲੈ ਕਤ ਨਾਹੀ ॥
आइ न जाइ डोलै कत नाही ॥
उसका जन्म-मरण समाप्त हो जाता है और कभी पथभ्रष्ट नहीं होता
ਜਾ ਕੈ ਨਾਮੁ ਬਸੈ ਮਨ ਮਾਹੀ ॥੩॥
जा कै नामु बसै मन माही ॥३॥
जिसके मन में नाम स्थित हो जाता है।॥ ३॥
ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਗੋੁਪਾਲ ਗੋਵਿੰਦ ॥
दीन दइआल गोपाल गोविंद ॥
दीनदयाल गोविन्द गोपाल
ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਪੀਐ ਉਤਰੈ ਚਿੰਦ ॥
गुरमुखि जपीऐ उतरै चिंद ॥
गुरुमुख बनकर यह जाप करने से सब चिन्ताएँ समाप्त हो जाती हैं।
ਨਾਨਕ ਕਉ ਗੁਰਿ ਦੀਆ ਨਾਮੁ ॥
नानक कउ गुरि दीआ नामु ॥
नानक को गुरु ने हरि-नाम ही दिया है,
ਸੰਤਨ ਕੀ ਟਹਲ ਸੰਤ ਕਾ ਕਾਮੁ ॥੪॥੧੫॥੨੬॥
संतन की टहल संत का कामु ॥४॥१५॥२६॥
अब वह संतों की सेवा एवं उनके कार्य में ही लगा रहता है॥ ४॥ १५ ॥ २६ ॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
रामकली महला ५ ॥
ਬੀਜ ਮੰਤ੍ਰੁ ਹਰਿ ਕੀਰਤਨੁ ਗਾਉ ॥
बीज मंत्रु हरि कीरतनु गाउ ॥
मूलमंत्र हरि का कीर्तन गान करो,
ਆਗੈ ਮਿਲੀ ਨਿਥਾਵੇ ਥਾਉ ॥
आगै मिली निथावे थाउ ॥
इससे बेसहारा को भी परलोक में सहारा मिल जाता है।
ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਕੀ ਚਰਣੀ ਲਾਗੁ ॥
गुर पूरे की चरणी लागु ॥
पूर्ण गुरु के चरणों में लगने से
ਜਨਮ ਜਨਮ ਕਾ ਸੋਇਆ ਜਾਗੁ ॥੧॥
जनम जनम का सोइआ जागु ॥१॥
जन्म-जन्मांतर का सोया हुआ मन जाग जाता है ॥१॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਾਪੁ ਜਪਲਾ ॥
हरि हरि जापु जपला ॥
जिसने हरि-नाम का जाप किया है,
ਗੁਰ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਹਿਰਦੈ ਵਾਸੈ ਭਉਜਲੁ ਪਾਰਿ ਪਰਲਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुर किरपा ते हिरदै वासै भउजलु पारि परला ॥१॥ रहाउ ॥
गुरु कृपा से वह उसके हृदय में बस गया है और वह भवसागर से पार हो गया है॥ १॥ रहाउ॥
ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਧਿਆਇ ਮਨ ਅਟਲ ॥
नामु निधानु धिआइ मन अटल ॥
हे मन ! नाम-भण्डार अटल है,
ਤਾ ਛੂਟਹਿ ਮਾਇਆ ਕੇ ਪਟਲ ॥
ता छूटहि माइआ के पटल ॥
उसका ध्यान करने से माया के बंधन छूट जाते हैं।
ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਰਸੁ ਪੀਉ ॥
गुर का सबदु अम्रित रसु पीउ ॥
गुरु का शब्द अमृतमय रस है,
ਤਾ ਤੇਰਾ ਹੋਇ ਨਿਰਮਲ ਜੀਉ ॥੨॥
ता तेरा होइ निरमल जीउ ॥२॥
इसका पान करने से तेरा हृदय निर्मल हो जाएगा ॥ २॥
ਸੋਧਤ ਸੋਧਤ ਸੋਧਿ ਬੀਚਾਰਾ ॥
सोधत सोधत सोधि बीचारा ॥
खोज-खोजकर सोच-समझकर मैंने यही विचार किया है कि
ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਨਹੀ ਛੁਟਕਾਰਾ ॥
बिनु हरि भगति नही छुटकारा ॥
हरि की भक्ति के बिना किसी का छुटकारा नहीं होता।
ਸੋ ਹਰਿ ਭਜਨੁ ਸਾਧ ਕੈ ਸੰਗਿ ॥
सो हरि भजनु साध कै संगि ॥
इसलिए साधुओं की संगति में हरि का भजन करना चाहिए,
ਮਨੁ ਤਨੁ ਰਾਪੈ ਹਰਿ ਕੈ ਰੰਗਿ ॥੩॥
मनु तनु रापै हरि कै रंगि ॥३॥
इस प्रकार मन-तन हरि के रंग में लीन हो जाता है॥ ३॥
ਛੋਡਿ ਸਿਆਣਪ ਬਹੁ ਚਤੁਰਾਈ ॥
छोडि सिआणप बहु चतुराई ॥
अपनी अक्लमंदी एवं चतुराई को छोड़ दो।
ਮਨ ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਨਾਵੈ ਜਾਇ ਨ ਕਾਈ ॥
मन बिनु हरि नावै जाइ न काई ॥
हे मन ! हरि के नाम बिना पापों की मैल दूर नहीं होती।
ਦਇਆ ਧਾਰੀ ਗੋਵਿਦ ਗੋੁਸਾਈ ॥
दइआ धारी गोविद गोसाई ॥
हे नानक ! ईश्वर ने मुझ पर दया की है,
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਨਕ ਟੇਕ ਟਿਕਾਈ ॥੪॥੧੬॥੨੭॥
हरि हरि नानक टेक टिकाई ॥४॥१६॥२७॥
इसलिए हरि-नाम का ही सहारा लिया है ॥४॥१६॥२७॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
रामकली महला ५ ॥
ਸੰਤ ਕੈ ਸੰਗਿ ਰਾਮ ਰੰਗ ਕੇਲ ॥
संत कै संगि राम रंग केल ॥
जो संतों के संग मिलकर राम-रंग की क्रीड़ा करता है,
ਆਗੈ ਜਮ ਸਿਉ ਹੋਇ ਨ ਮੇਲ ॥
आगै जम सिउ होइ न मेल ॥
उसका आगे परलोक में यमों से मिलाप नहीं होता।
ਅਹੰਬੁਧਿ ਕਾ ਭਇਆ ਬਿਨਾਸ ॥
अह्मबुधि का भइआ बिनास ॥
उसकी अहम्-भावना मिट जाती है और
ਦੁਰਮਤਿ ਹੋਈ ਸਗਲੀ ਨਾਸ ॥੧॥
दुरमति होई सगली नास ॥१॥
सारी दुर्मति भी नाश हो जाती है।॥ १॥
ਰਾਮ ਨਾਮ ਗੁਣ ਗਾਇ ਪੰਡਿਤ ॥
राम नाम गुण गाइ पंडित ॥
हे पण्डित ! राम नाम का गुणगान कर ले,
ਕਰਮ ਕਾਂਡ ਅਹੰਕਾਰੁ ਨ ਕਾਜੈ ਕੁਸਲ ਸੇਤੀ ਘਰਿ ਜਾਹਿ ਪੰਡਿਤ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
करम कांड अहंकारु न काजै कुसल सेती घरि जाहि पंडित ॥१॥ रहाउ ॥
कर्मकाण्ड एवं तेरा अहंकार किसी काम नहीं आना, राम की स्तुति करने से तू सहर्ष मोक्ष प्राप्त कर लेगा।॥ १॥ रहाउ॥
ਹਰਿ ਕਾ ਜਸੁ ਨਿਧਿ ਲੀਆ ਲਾਭ ॥
हरि का जसु निधि लीआ लाभ ॥
हरि का यश ही सुख का कोष है, जिसने इसका लाभ प्राप्त किया है,
ਪੂਰਨ ਭਏ ਮਨੋਰਥ ਸਾਭ ॥
पूरन भए मनोरथ साभ ॥
उसके सारे मनोरथ पूर्ण हो गए हैं।
ਦੁਖੁ ਨਾਠਾ ਸੁਖੁ ਘਰ ਮਹਿ ਆਇਆ ॥
दुखु नाठा सुखु घर महि आइआ ॥
उसके दुख दूर हो गए हैं, और हृदय-घर में सुख उपलब्ध हो गया है।
ਸੰਤ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਕਮਲੁ ਬਿਗਸਾਇਆ ॥੨॥
संत प्रसादि कमलु बिगसाइआ ॥२॥
संतों की कृपा से उसका हृदय कमल खिल गया है॥ २॥
ਨਾਮ ਰਤਨੁ ਜਿਨਿ ਪਾਇਆ ਦਾਨੁ ॥
नाम रतनु जिनि पाइआ दानु ॥
जिसने नाम रूपी रत्न का दान प्राप्त किया है,
ਤਿਸੁ ਜਨ ਹੋਏ ਸਗਲ ਨਿਧਾਨ ॥
तिसु जन होए सगल निधान ॥
उसे सब भण्डार हासिल हो गए हैं।
ਸੰਤੋਖੁ ਆਇਆ ਮਨਿ ਪੂਰਾ ਪਾਇ ॥
संतोखु आइआ मनि पूरा पाइ ॥
उसके मन में पूर्ण संतोष आ गया है और
ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਮਾਗਨ ਕਾਹੇ ਜਾਇ ॥੩॥
फिरि फिरि मागन काहे जाइ ॥३॥
फिर वह पुनः पुनः किसी से माँगने के लिए नहीं जाता॥ ३॥
ਹਰਿ ਕੀ ਕਥਾ ਸੁਨਤ ਪਵਿਤ ॥
हरि की कथा सुनत पवित ॥
हरि की कथा सुनने से मन पवित्र हो जाता है।
ਜਿਹਵਾ ਬਕਤ ਪਾਈ ਗਤਿ ਮਤਿ ॥
जिहवा बकत पाई गति मति ॥
जो जिव्हा स्तुतिगान करती है, उसकी गतेि हो जाती है।
ਸੋ ਪਰਵਾਣੁ ਜਿਸੁ ਰਿਦੈ ਵਸਾਈ ॥
सो परवाणु जिसु रिदै वसाई ॥
हे नानक ! जिसने इसे हृदय में बसाया है, वह मंजूर हो गया है और
ਨਾਨਕ ਤੇ ਜਨ ਊਤਮ ਭਾਈ ॥੪॥੧੭॥੨੮॥
नानक ते जन ऊतम भाई ॥४॥१७॥२८॥
वही व्यक्ति सर्वोत्तम हो गया ॥४॥१७॥२८॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
रामकली महला ५ ॥
ਗਹੁ ਕਰਿ ਪਕਰੀ ਨ ਆਈ ਹਾਥਿ ॥
गहु करि पकरी न आई हाथि ॥
माया को अगर सावधानी से पकड़ा भी जाए तो यह किसी के हाथ में नहीं आती।
ਪ੍ਰੀਤਿ ਕਰੀ ਚਾਲੀ ਨਹੀ ਸਾਥਿ ॥
प्रीति करी चाली नही साथि ॥
अगर इससे प्रीति भी की जाए तो यह साथ नहीं देती।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜਉ ਤਿਆਗਿ ਦਈ ॥
कहु नानक जउ तिआगि दई ॥
हे नानक ! जब इसे त्याग दिया जाए तो
ਤਬ ਓਹ ਚਰਣੀ ਆਇ ਪਈ ॥੧॥
तब ओह चरणी आइ पई ॥१॥
तब यह चरणों में आ जाती है।॥१॥
ਸੁਣਿ ਸੰਤਹੁ ਨਿਰਮਲ ਬੀਚਾਰ ॥
सुणि संतहु निरमल बीचार ॥
हे सज्जनो ! यह निर्मल विचार सुनो;
ਰਾਮ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਗਤਿ ਨਹੀ ਕਾਈ ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਭੇਟਤ ਉਧਾਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
राम नाम बिनु गति नही काई गुरु पूरा भेटत उधार ॥१॥ रहाउ ॥
राम-नाम के बिना किसी की गति नहीं होती, पूर्ण गुरु से भेंट करने से उद्धार हो जाता है॥ १॥ रहाउ॥