ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सूही महला ५ ॥
सूही महला ५ ॥
ਦਰਸਨ ਕਉ ਲੋਚੈ ਸਭੁ ਕੋਈ ॥
दरसन कउ लोचै सभु कोई ॥
हरेक जीव प्रभु के दर्शन करने की अभिलाषा करता है,
ਪੂਰੈ ਭਾਗਿ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਈ ॥ ਰਹਾਉ ॥
पूरै भागि परापति होई ॥ रहाउ ॥
लेकिन उसके दर्शन पूर्ण भाग्य से ही प्राप्त होते हैं। रहाउ ॥
ਸਿਆਮ ਸੁੰਦਰ ਤਜਿ ਨੀਦ ਕਿਉ ਆਈ ॥
सिआम सुंदर तजि नीद किउ आई ॥
उस श्यामसुंदर को छोड़कर नींद क्यों आ गई ?
ਮਹਾ ਮੋਹਨੀ ਦੂਤਾ ਲਾਈ ॥੧॥
महा मोहनी दूता लाई ॥१॥
महामोहिनी माया के दूतों-काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार ने ही नींद ला दी है॥ १॥
ਪ੍ਰੇਮ ਬਿਛੋਹਾ ਕਰਤ ਕਸਾਈ ॥
प्रेम बिछोहा करत कसाई ॥
कसाई दूतों ने ही प्रेम बिछोड़ा करवाया है।
ਨਿਰਦੈ ਜੰਤੁ ਤਿਸੁ ਦਇਆ ਨ ਪਾਈ ॥੨॥
निरदै जंतु तिसु दइआ न पाई ॥२॥
यह बिछोड़ा निर्दयी जंतु है, जिसमें प्रभु ने दया नहीं की ॥ २ ॥
ਅਨਿਕ ਜਨਮ ਬੀਤੀਅਨ ਭਰਮਾਈ ॥
अनिक जनम बीतीअन भरमाई ॥
मेरे अनेक जन्म भ्रम में बीत गए हैं।
ਘਰਿ ਵਾਸੁ ਨ ਦੇਵੈ ਦੁਤਰ ਮਾਈ ॥੩॥
घरि वासु न देवै दुतर माई ॥३॥
यह भयानक माया हृदय-घर में निवास नहीं करने देती ॥ ३ ॥
ਦਿਨੁ ਰੈਨਿ ਅਪਨਾ ਕੀਆ ਪਾਈ ॥
दिनु रैनि अपना कीआ पाई ॥
मैं दिन-रात अपना किया ही पा रहा हूँ,
ਕਿਸੁ ਦੋਸੁ ਨ ਦੀਜੈ ਕਿਰਤੁ ਭਵਾਈ ॥੪॥
किसु दोसु न दीजै किरतु भवाई ॥४॥
अतः किसी को दोष नहीं देता, क्योंकि मेरे कर्म ही मुझे भटका रहे हैं।॥ ४॥
ਸੁਣਿ ਸਾਜਨ ਸੰਤ ਜਨ ਭਾਈ ॥
सुणि साजन संत जन भाई ॥
हे मेरे सज्जन, संतजन, भाई ! जरा सुनो,
ਚਰਣ ਸਰਣ ਨਾਨਕ ਗਤਿ ਪਾਈ ॥੫॥੩੪॥੪੦॥
चरण सरण नानक गति पाई ॥५॥३४॥४०॥
नानक ने परमात्मा के चरणों की शरण में ही गति पाई है॥ ५ ॥ ३४ ॥ ४० ॥
ਰਾਗੁ ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੪
रागु सूही महला ५ घरु ४
रागु सूही महला ५ घरु ४
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਭਲੀ ਸੁਹਾਵੀ ਛਾਪਰੀ ਜਾ ਮਹਿ ਗੁਨ ਗਾਏ ॥
भली सुहावी छापरी जा महि गुन गाए ॥
निर्धन व्यक्ति की वह छोटी-सी कुटिया भली एवं सुहावनी है, जिसमें परमात्मा का गुणगान होता है।
ਕਿਤ ਹੀ ਕਾਮਿ ਨ ਧਉਲਹਰ ਜਿਤੁ ਹਰਿ ਬਿਸਰਾਏ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
कित ही कामि न धउलहर जितु हरि बिसराए ॥१॥ रहाउ ॥
किन्तु जहाँ भगवान ही भूल जाता है, ऐसे बड़े-बड़े आलीशान महल भी किसी काम के नहीं हैं। १॥ रहाउ॥
ਅਨਦੁ ਗਰੀਬੀ ਸਾਧਸੰਗਿ ਜਿਤੁ ਪ੍ਰਭ ਚਿਤਿ ਆਏ ॥
अनदु गरीबी साधसंगि जितु प्रभ चिति आए ॥
साधसंगति में गरीबी में भी आनंद है, जहाँ प्रभु याद आता है।
ਜਲਿ ਜਾਉ ਏਹੁ ਬਡਪਨਾ ਮਾਇਆ ਲਪਟਾਏ ॥੧॥
जलि जाउ एहु बडपना माइआ लपटाए ॥१॥
वह बड़प्पन जल जाना चाहिए जो आदमी को माया में फँसता है॥ १॥
ਪੀਸਨੁ ਪੀਸਿ ਓਢਿ ਕਾਮਰੀ ਸੁਖੁ ਮਨੁ ਸੰਤੋਖਾਏ ॥
पीसनु पीसि ओढि कामरी सुखु मनु संतोखाए ॥
चक्की पीसकर एवं साधारण कम्बल पहनकर भी आदमी को सुख और मन को बड़ा संतोष हासिल होता है।
ਐਸੋ ਰਾਜੁ ਨ ਕਿਤੈ ਕਾਜਿ ਜਿਤੁ ਨਹ ਤ੍ਰਿਪਤਾਏ ॥੨॥
ऐसो राजु न कितै काजि जितु नह त्रिपताए ॥२॥
ऐसा राज किसी काम का नहीं जिससे मन तृप्त नहीं होता।॥ २॥
ਨਗਨ ਫਿਰਤ ਰੰਗਿ ਏਕ ਕੈ ਓਹੁ ਸੋਭਾ ਪਾਏ ॥
नगन फिरत रंगि एक कै ओहु सोभा पाए ॥
जो आदमी परमात्मा के रंग में चाहे फटे-पुराने वस्त्रों में फिरता रहता है, वही शोभा पाता है।
ਪਾਟ ਪਟੰਬਰ ਬਿਰਥਿਆ ਜਿਹ ਰਚਿ ਲੋਭਾਏ ॥੩॥
पाट पट्मबर बिरथिआ जिह रचि लोभाए ॥३॥
वे रेशमी सुन्दर वस्त्र व्यर्थ हैं, जिसमें लीन होने से इन्सान के लालच में और भी वृद्धि होती है॥ ३॥
ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਰੈ ਹਾਥਿ ਪ੍ਰਭ ਆਪਿ ਕਰੇ ਕਰਾਏ ॥
सभु किछु तुम्हरै हाथि प्रभ आपि करे कराए ॥
हे प्रभु ! सच तो यही है कि सबकुछ तेरे हाथ में है। तू खुद ही सबकुछ करता और जीवों से करवाता है।
ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਸਿਮਰਤ ਰਹਾ ਨਾਨਕ ਦਾਨੁ ਪਾਏ ॥੪॥੧॥੪੧॥
सासि सासि सिमरत रहा नानक दानु पाए ॥४॥१॥४१॥
नानक प्रार्थना करता है कि हे परमात्मा ! मैं तुझसे यह दान प्राप्त करूँ कि श्वास-श्वास से तुझे ही याद करता रहूँ॥ ४ ॥१॥ ४१ ॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सूही महला ५ ॥
सूही महला ५ ॥
ਹਰਿ ਕਾ ਸੰਤੁ ਪਰਾਨ ਧਨ ਤਿਸ ਕਾ ਪਨਿਹਾਰਾ ॥
हरि का संतु परान धन तिस का पनिहारा ॥
परमात्मा का संत मेरे प्राण एवं धन है और मैं उसका पानी भरने वाला सेवक हूँ।
ਭਾਈ ਮੀਤ ਸੁਤ ਸਗਲ ਤੇ ਜੀਅ ਹੂੰ ਤੇ ਪਿਆਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
भाई मीत सुत सगल ते जीअ हूं ते पिआरा ॥१॥ रहाउ ॥
वह मुझे मेरे भाई, मित्र, पुत्र इत्यादि मेरी जान से भी अधिक प्यारा है॥ १॥ रहाउ॥
ਕੇਸਾ ਕਾ ਕਰਿ ਬੀਜਨਾ ਸੰਤ ਚਉਰੁ ਢੁਲਾਵਉ ॥
केसा का करि बीजना संत चउरु ढुलावउ ॥
मैं अपने केशों का पंखा बनाकर उस संत को चेवर झुलाता हूँ।
ਸੀਸੁ ਨਿਹਾਰਉ ਚਰਣ ਤਲਿ ਧੂਰਿ ਮੁਖਿ ਲਾਵਉ ॥੧॥
सीसु निहारउ चरण तलि धूरि मुखि लावउ ॥१॥
मैं उसके समक्ष अपना सिर झुकाता हूँ और उसकी चरण-धूलि अपने मुख पर लगाता हूँ॥ १॥
ਮਿਸਟ ਬਚਨ ਬੇਨਤੀ ਕਰਉ ਦੀਨ ਕੀ ਨਿਆਈ ॥
मिसट बचन बेनती करउ दीन की निआई ॥
मैं एक दीन की तरह मीठे वचनों द्वारा उसके आगे विनती करता हूँ और
ਤਜਿ ਅਭਿਮਾਨੁ ਸਰਣੀ ਪਰਉ ਹਰਿ ਗੁਣ ਨਿਧਿ ਪਾਈ ॥੨॥
तजि अभिमानु सरणी परउ हरि गुण निधि पाई ॥२॥
अपना अभिमान तज कर उसकी शरण पड़ता हूँ ताकि गुणों के भण्डार परमात्मा को पा लूं ॥ २॥
ਅਵਲੋਕਨ ਪੁਨਹ ਪੁਨਹ ਕਰਉ ਜਨ ਕਾ ਦਰਸਾਰੁ ॥
अवलोकन पुनह पुनह करउ जन का दरसारु ॥
मैं उस ईश्वर के उपासक का दर्शन पुनःपुनः देखता रहता हूँ।
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਚਨ ਮਨ ਮਹਿ ਸਿੰਚਉ ਬੰਦਉ ਬਾਰ ਬਾਰ ॥੩॥
अम्रित बचन मन महि सिंचउ बंदउ बार बार ॥३॥
मैं उसके अमृत वचन मन में सिंचित करता रहता हूँ और बार-बार उसे वंदना करता हूँ॥ ३॥
ਚਿਤਵਉ ਮਨਿ ਆਸਾ ਕਰਉ ਜਨ ਕਾ ਸੰਗੁ ਮਾਗਉ ॥
चितवउ मनि आसा करउ जन का संगु मागउ ॥
मैं अपने मन में याद और आशा करता रहता हूँ तथा उस उपासक का ही साथ माँगता हूँ।
ਨਾਨਕ ਕਉ ਪ੍ਰਭ ਦਇਆ ਕਰਿ ਦਾਸ ਚਰਣੀ ਲਾਗਉ ॥੪॥੨॥੪੨॥
नानक कउ प्रभ दइआ करि दास चरणी लागउ ॥४॥२॥४२॥
नानक प्रार्थना करता है कि हे प्रभु ! मुझ पर दया करो ताकि तेरे दास के चरणों में लग जाऊँ ॥ ४॥ २॥ ४२ ॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सूही महला ५ ॥
सूही महला ५ ॥
ਜਿਨਿ ਮੋਹੇ ਬ੍ਰਹਮੰਡ ਖੰਡ ਤਾਹੂ ਮਹਿ ਪਾਉ ॥
जिनि मोहे ब्रहमंड खंड ताहू महि पाउ ॥
हे ईश्वर ! मैं उस माया के मोह में पड़ा हुआ हूँ, जिसने खण्ड-ब्रह्माण्ड मोह लिए हैं।
ਰਾਖਿ ਲੇਹੁ ਇਹੁ ਬਿਖਈ ਜੀਉ ਦੇਹੁ ਅਪੁਨਾ ਨਾਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
राखि लेहु इहु बिखई जीउ देहु अपुना नाउ ॥१॥ रहाउ ॥
मुझ जैसे विकारी जीव को इससे बचा लो और अपना नाम दीजिए ॥ १॥ रहाउ ॥
ਜਾ ਤੇ ਨਾਹੀ ਕੋ ਸੁਖੀ ਤਾ ਕੈ ਪਾਛੈ ਜਾਉ ॥
जा ते नाही को सुखी ता कै पाछै जाउ ॥
जिस माया से कभी कोई सुखी नहीं हुआ, मैं उसके पीछे भागता रहता हूँ।
ਛੋਡਿ ਜਾਹਿ ਜੋ ਸਗਲ ਕਉ ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਲਪਟਾਉ ॥੧॥
छोडि जाहि जो सगल कउ फिरि फिरि लपटाउ ॥१॥
जो सब को छोड़ जाती है, मैं बार-बार उससे लिपटता रहता हूँ॥ १॥
ਕਰਹੁ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੁਣਾਪਤੇ ਤੇਰੇ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਉ ॥
करहु क्रिपा करुणापते तेरे हरि गुण गाउ ॥
हे करुणानिधि ! कृपा करो ताकि तेरे गुण गाता रहूँ।
ਨਾਨਕ ਕੀ ਪ੍ਰਭ ਬੇਨਤੀ ਸਾਧਸੰਗਿ ਸਮਾਉ ॥੨॥੩॥੪੩॥
नानक की प्रभ बेनती साधसंगि समाउ ॥२॥३॥४३॥
हे प्रभु ! नानक की तुझसे यही विनती है कि मैं साधु-संगति में प्रवृत रहूँ॥ २ ॥ ३॥ ४३ ॥