ਦਇਆ ਕਰਹੁ ਕਿਰਮ ਅਪੁਨੇ ਕਉ ਇਹੈ ਮਨੋਰਥੁ ਸੁਆਉ ॥੨॥
दइआ करहु किरम अपुने कउ इहै मनोरथु सुआउ ॥२॥
अपने तुच्छ कीड़े पर दया करो, केवल यही मेरा मनोरथ एवं प्रयोजन है॥ २॥
ਤਨੁ ਧਨੁ ਤੇਰਾ ਤੂੰ ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਰਾ ਹਮਰੈ ਵਸਿ ਕਿਛੁ ਨਾਹਿ ॥
तनु धनु तेरा तूं प्रभु मेरा हमरै वसि किछु नाहि ॥
हे मेरे प्रभु ! तू मेरा मालिक है और मेरा तन एवं धन सब तेरे ही दिए हुए हैं। मेरे वश में कुछ भी नहीं है।
ਜਿਉ ਜਿਉ ਰਾਖਹਿ ਤਿਉ ਤਿਉ ਰਹਣਾ ਤੇਰਾ ਦੀਆ ਖਾਹਿ ॥੩॥
जिउ जिउ राखहि तिउ तिउ रहणा तेरा दीआ खाहि ॥३॥
जैसे तुम रखते हो, वैसे ही मैं रहता हूँ। मैं वही खाता हूँ जो तुम मुझे देते हो॥ ३॥
ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੇ ਕਿਲਵਿਖ ਕਾਟੈ ਮਜਨੁ ਹਰਿ ਜਨ ਧੂਰਿ ॥
जनम जनम के किलविख काटै मजनु हरि जन धूरि ॥
हरि के भक्तजनों की चरण-धूलि में किया हुआ स्नान जन्म-जन्मांतर के पाप काट देता है।
ਭਾਇ ਭਗਤਿ ਭਰਮ ਭਉ ਨਾਸੈ ਹਰਿ ਨਾਨਕ ਸਦਾ ਹਜੂਰਿ ॥੪॥੪॥੧੩੯॥
भाइ भगति भरम भउ नासै हरि नानक सदा हजूरि ॥४॥४॥१३९॥
प्रभु की प्रेम-भक्ति के कारण दुविधा एवं भय नष्ट हो जाते हैं। हे नानक ! ईश्वर सदैव जीव के साथ ही रहता है॥ ४॥ ४॥ १३६॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥
ਅਗਮ ਅਗੋਚਰੁ ਦਰਸੁ ਤੇਰਾ ਸੋ ਪਾਏ ਜਿਸੁ ਮਸਤਕਿ ਭਾਗੁ ॥
अगम अगोचरु दरसु तेरा सो पाए जिसु मसतकि भागु ॥
हे परमपिता, तेरे दर्शन अगम्य और अगोचर हैं। इसलिए तेरे दर्शन वही करता है जिसके मस्तक पर भाग्य उदय हुआ हो।
ਆਪਿ ਕ੍ਰਿਪਾਲਿ ਕ੍ਰਿਪਾ ਪ੍ਰਭਿ ਧਾਰੀ ਸਤਿਗੁਰਿ ਬਖਸਿਆ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ॥੧॥
आपि क्रिपालि क्रिपा प्रभि धारी सतिगुरि बखसिआ हरि नामु ॥१॥
कृपालु प्रभु ने स्वयं मुझ पर कृपा की है, इसलिए सतिगुरु ने मुझे हरि का नाम प्रदान किया है॥ १॥
ਕਲਿਜੁਗੁ ਉਧਾਰਿਆ ਗੁਰਦੇਵ ॥
कलिजुगु उधारिआ गुरदेव ॥
गुरुदेव ने कलियुग का भी उद्धार कर दिया है।
ਮਲ ਮੂਤ ਮੂੜ ਜਿ ਮੁਘਦ ਹੋਤੇ ਸਭਿ ਲਗੇ ਤੇਰੀ ਸੇਵ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मल मूत मूड़ जि मुघद होते सभि लगे तेरी सेव ॥१॥ रहाउ ॥
हे प्रभु ! मूर्ख एवं बेवकूफ जो मल-मूत्र की भाँति दूषित थे, सब तेरी सेवा में जुट गए हैं।॥ १॥ रहाउ ॥
ਤੂ ਆਪਿ ਕਰਤਾ ਸਭ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਧਰਤਾ ਸਭ ਮਹਿ ਰਹਿਆ ਸਮਾਇ ॥
तू आपि करता सभ स्रिसटि धरता सभ महि रहिआ समाइ ॥
तू जगत का रचयिता है, सारी सृष्टि को स्थापित करने वाला है और तू सब में समा रहा है।
ਧਰਮ ਰਾਜਾ ਬਿਸਮਾਦੁ ਹੋਆ ਸਭ ਪਈ ਪੈਰੀ ਆਇ ॥੨॥
धरम राजा बिसमादु होआ सभ पई पैरी आइ ॥२॥
समूचा जगत तेरी चरण-सेवा में लगा हुआ है और यह देख कर धर्मराज आश्चर्यचकित हो गया है॥ २॥
ਸਤਜੁਗੁ ਤ੍ਰੇਤਾ ਦੁਆਪਰੁ ਭਣੀਐ ਕਲਿਜੁਗੁ ਊਤਮੋ ਜੁਗਾ ਮਾਹਿ ॥
सतजुगु त्रेता दुआपरु भणीऐ कलिजुगु ऊतमो जुगा माहि ॥
सतियुग, त्रैता एवं द्वापर को भला युग कहा जाता है परन्तु कलियुग सब युगों से उत्तम है।
ਅਹਿ ਕਰੁ ਕਰੇ ਸੁ ਅਹਿ ਕਰੁ ਪਾਏ ਕੋਈ ਨ ਪਕੜੀਐ ਕਿਸੈ ਥਾਇ ॥੩॥
अहि करु करे सु अहि करु पाए कोई न पकड़ीऐ किसै थाइ ॥३॥
क्योंकि इस युग में मनुष्य इस हाथ से जैसा कर्म करता है, उसे वैसे ही उस हाथ से फल मिलता है। कोई भी निर्दोष व्यक्ति दूसरे दोषी इन्सान के पापों के परिणामस्वरूप नहीं पकड़ा जाता॥ ३॥
ਹਰਿ ਜੀਉ ਸੋਈ ਕਰਹਿ ਜਿ ਭਗਤ ਤੇਰੇ ਜਾਚਹਿ ਏਹੁ ਤੇਰਾ ਬਿਰਦੁ ॥
हरि जीउ सोई करहि जि भगत तेरे जाचहि एहु तेरा बिरदु ॥
हे पूजनीय हरि ! तुम वही करते हो जो तेरे भक्त तुझसे मांगते हैं। यही तेरा विरद् है।
ਕਰ ਜੋੜਿ ਨਾਨਕ ਦਾਨੁ ਮਾਗੈ ਅਪਣਿਆ ਸੰਤਾ ਦੇਹਿ ਹਰਿ ਦਰਸੁ ॥੪॥੫॥੧੪੦॥
कर जोड़ि नानक दानु मागै अपणिआ संता देहि हरि दरसु ॥४॥५॥१४०॥
हे हरि ! नानक भी हाथ जोड़कर तुझसे एक यही दान माँगता है कि मुझे अपने संतों के दर्शन प्रदान करो॥४॥५॥१४०॥
ਰਾਗੁ ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੧੩
रागु आसा महला ५ घरु १३
रागु आसा महला ५ घरु १३
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਸਤਿਗੁਰ ਬਚਨ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰੇ ॥ ਨਿਰਗੁਣ ਨਿਸਤਾਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सतिगुर बचन तुम्हारे ॥ निरगुण निसतारे ॥१॥ रहाउ ॥
हे सतगुरु ! तेरे वचनों ने निर्गुण जीव भी भवसागर से पार कर दिए हैं।॥ १॥ रहाउ ॥
ਮਹਾ ਬਿਖਾਦੀ ਦੁਸਟ ਅਪਵਾਦੀ ਤੇ ਪੁਨੀਤ ਸੰਗਾਰੇ ॥੧॥
महा बिखादी दुसट अपवादी ते पुनीत संगारे ॥१॥
तेरी संगति में महा क्रूर, दुष्ट एवं अपवादी भी पवित्र-पावन बन गए हैं। १ ॥
ਜਨਮ ਭਵੰਤੇ ਨਰਕਿ ਪੜੰਤੇ ਤਿਨੑ ਕੇ ਕੁਲ ਉਧਾਰੇ ॥੨॥
जनम भवंते नरकि पड़ंते तिन्ह के कुल उधारे ॥२॥
जो मनुष्य योनियों में भटकते थे और नरक में डाले जाते थे, उनके वंश का भी तूने उद्धार कर दिया है।॥ २॥
ਕੋਇ ਨ ਜਾਨੈ ਕੋਇ ਨ ਮਾਨੈ ਸੇ ਪਰਗਟੁ ਹਰਿ ਦੁਆਰੇ ॥੩॥
कोइ न जानै कोइ न मानै से परगटु हरि दुआरे ॥३॥
जिन्हें कोई नहीं जानता था और जिनका कोई सम्मान नहीं करता था, वह हरि के द्वार पर लोकप्रिय हो गए हैं।॥ ३॥
ਕਵਨ ਉਪਮਾ ਦੇਉ ਕਵਨ ਵਡਾਈ ਨਾਨਕ ਖਿਨੁ ਖਿਨੁ ਵਾਰੇ ॥੪॥੧॥੧੪੧॥
कवन उपमा देउ कवन वडाई नानक खिनु खिनु वारे ॥४॥१॥१४१॥
नानक का कथन है कि हे मेरे सतगुरु ! मैं कौन-सी उपमा एवं कौन-सी बड़ाई तुझ पर अर्पित करूँ, मैं क्षण-क्षण तुझ पर न्यौछावर होता हूँ॥ ४॥ १ ॥ १४१॥”
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥
ਬਾਵਰ ਸੋਇ ਰਹੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
बावर सोइ रहे ॥१॥ रहाउ ॥
बावले मनुष्य माया मोह की निद्रा में सो रहे हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਮੋਹ ਕੁਟੰਬ ਬਿਖੈ ਰਸ ਮਾਤੇ ਮਿਥਿਆ ਗਹਨ ਗਹੇ ॥੧॥
मोह कुट्मब बिखै रस माते मिथिआ गहन गहे ॥१॥
वे कुटुंब के मोह एवं विषय-विकारों के रसों में मस्त हुए हैं और झूठी उपलब्धियों प्राप्त करते हैं। १॥
ਮਿਥਨ ਮਨੋਰਥ ਸੁਪਨ ਆਨੰਦ ਉਲਾਸ ਮਨਿ ਮੁਖਿ ਸਤਿ ਕਹੇ ॥੨॥
मिथन मनोरथ सुपन आनंद उलास मनि मुखि सति कहे ॥२॥
मिथ्या मनोरथ एवं स्वप्न के आनन्दों एवं उल्लासों को मनमुख मनुष्य सत्य कहते हैं। २॥
ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਨਾਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਸੰਗੇ ਤਿਲੁ ਮਰਮੁ ਨ ਲਹੇ ॥੩॥
अम्रितु नामु पदारथु संगे तिलु मरमु न लहे ॥३॥
अमृत रूपी हरि-नाम ही सदैव साथ देने वाला पदार्थ है। लेकिन मनमुख मनुष्य हरि-नाम का भेद तिलमात्र भी नहीं समझते॥ ३॥
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਰਾਖੇ ਸਤਸੰਗੇ ਨਾਨਕ ਸਰਣਿ ਆਹੇ ॥੪॥੨॥੧੪੨॥
करि किरपा राखे सतसंगे नानक सरणि आहे ॥४॥२॥१४२॥
हे नानक ! परमात्मा ने अपनी कृपा करके जिन लोगों को सत्संगति में रखा हुआ है, वही उसकी शरण में आए हैं।॥ ४ ॥ २॥ १४२ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ਤਿਪਦੇ ॥
आसा महला ५ तिपदे ॥
आसा महला ५ तिपदे ॥
ਓਹਾ ਪ੍ਰੇਮ ਪਿਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
ओहा प्रेम पिरी ॥१॥ रहाउ ॥
मुझे तो उस प्रिय-प्रभु का ही प्रेम चाहिए॥ १॥ रहाउ॥
ਕਨਿਕ ਮਾਣਿਕ ਗਜ ਮੋਤੀਅਨ ਲਾਲਨ ਨਹ ਨਾਹ ਨਹੀ ॥੧॥
कनिक माणिक गज मोतीअन लालन नह नाह नही ॥१॥
सोना, माणिक्य, गज मोती एवं लाल नहीं, नहीं मुझे नहीं चाहिए॥ १॥
ਰਾਜ ਨ ਭਾਗ ਨ ਹੁਕਮ ਨ ਸਾਦ ਨ ॥
राज न भाग न हुकम न साद न ॥
न राज्य, न धन-दौलत, न प्रभुसत्ता और न ही स्वाद