ਨਿਤ ਨਿਤ ਲੇਹੁ ਨ ਛੀਜੈ ਦੇਹ ॥
नित नित लेहु न छीजै देह ॥
प्रतिदिन ऐसी दवा लो, तेरा शरीर नष्ट नहीं होगा,
ਅੰਤ ਕਾਲਿ ਜਮੁ ਮਾਰੈ ਠੇਹ ॥੧॥
अंत कालि जमु मारै ठेह ॥१॥
अन्यथा अन्तिम समय यम तुझे मार देगा॥१॥
ਐਸਾ ਦਾਰੂ ਖਾਹਿ ਗਵਾਰ ॥
ऐसा दारू खाहि गवार ॥
हे मूर्ख ! ऐसी दवा का सेवन कर,
ਜਿਤੁ ਖਾਧੈ ਤੇਰੇ ਜਾਹਿ ਵਿਕਾਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जितु खाधै तेरे जाहि विकार ॥१॥ रहाउ ॥
जिसके सेवन से तेरे विकार दूर हो जाएँगे।॥१॥रहाउ॥
ਰਾਜੁ ਮਾਲੁ ਜੋਬਨੁ ਸਭੁ ਛਾਂਵ ॥
राजु मालु जोबनु सभु छांव ॥
राज्य, माल एवं यौवन सब छाया की तरह हैं और
ਰਥਿ ਫਿਰੰਦੈ ਦੀਸਹਿ ਥਾਵ ॥
रथि फिरंदै दीसहि थाव ॥
सूर्य का चक्र घूमने से सब दिखाई देने लगता है।
ਦੇਹ ਨ ਨਾਉ ਨ ਹੋਵੈ ਜਾਤਿ ॥
देह न नाउ न होवै जाति ॥
यह शरीर, नाम एवं जाति कुछ भी साथ नहीं जाता।
ਓਥੈ ਦਿਹੁ ਐਥੈ ਸਭ ਰਾਤਿ ॥੨॥
ओथै दिहु ऐथै सभ राति ॥२॥
वहाँ (परलोक में) दिन और यहाँ (इहलोक) रात होगी॥२॥
ਸਾਦ ਕਰਿ ਸਮਧਾਂ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਘਿਉ ਤੇਲੁ ॥
साद करि समधां त्रिसना घिउ तेलु ॥
स्वादों को लकड़ियाँ एवं तृष्णा को धी,”
ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਅਗਨੀ ਸਿਉ ਮੇਲੁ ॥
कामु क्रोधु अगनी सिउ मेलु ॥
काम क्रोध को तेल बना (ज्ञान) अग्नि में मिलाओ।
ਹੋਮ ਜਗ ਅਰੁ ਪਾਠ ਪੁਰਾਣ ॥ ਜੋ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਸੋ ਪਰਵਾਣ ॥੩॥
होम जग अरु पाठ पुराण ॥ जो तिसु भावै सो परवाण ॥३॥
इस आहूति यज्ञ में और पुराणों का पाठ जो भी कर्म है, इन में जो प्रभु को उपयुक्त लगता है, वही स्वीकार होता है॥३॥
ਤਪੁ ਕਾਗਦੁ ਤੇਰਾ ਨਾਮੁ ਨੀਸਾਨੁ ॥
तपु कागदु तेरा नामु नीसानु ॥
तपस्या रूपी कागज पर तेरा नाम-सुमिरन (स्मरण) ही परवान है,”
ਜਿਨ ਕਉ ਲਿਖਿਆ ਏਹੁ ਨਿਧਾਨੁ ॥
जिन कउ लिखिआ एहु निधानु ॥
जिसके भाग्य में लिखा होता है, वह नाम रूपी भण्डार पा लेता है।
ਸੇ ਧਨਵੰਤ ਦਿਸਹਿ ਘਰਿ ਜਾਇ ॥
से धनवंत दिसहि घरि जाइ ॥
ऐसे धनवान् सच्चे घर में जाते दिखाई देते हैं।
ਨਾਨਕ ਜਨਨੀ ਧੰਨੀ ਮਾਇ ॥੪॥੩॥੮॥
नानक जननी धंनी माइ ॥४॥३॥८॥
हे नानक ! उनको जन्म देने वाली माता धन्य है॥४॥३॥८॥
ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੧ ॥
मलार महला १ ॥
मलार महला १ ॥
ਬਾਗੇ ਕਾਪੜ ਬੋਲੈ ਬੈਣ ॥
बागे कापड़ बोलै बैण ॥
तेरे कपड़े सफेद हैं, बातें तेरी मीठी हैं,
ਲੰਮਾ ਨਕੁ ਕਾਲੇ ਤੇਰੇ ਨੈਣ ॥
लमा नकु काले तेरे नैण ॥
नाक लम्बी एवं ऑखें तेरी काली हैं।
ਕਬਹੂੰ ਸਾਹਿਬੁ ਦੇਖਿਆ ਭੈਣ ॥੧॥
कबहूं साहिबु देखिआ भैण ॥१॥
अरी बहिन ! कभी मालिक को देखा है॥१॥
ਊਡਾਂ ਊਡਿ ਚੜਾਂ ਅਸਮਾਨਿ ॥ ਸਾਹਿਬ ਸੰਮ੍ਰਿਥ ਤੇਰੈ ਤਾਣਿ ॥
ऊडां ऊडि चड़ां असमानि ॥ साहिब सम्रिथ तेरै ताणि ॥
में उड़-उड़कर आसमान में चढ़ जाऊँ तो हे समर्थ मालिक ! सब तेरी शक्ति से हुआ है,
ਜਲਿ ਥਲਿ ਡੂੰਗਰਿ ਦੇਖਾਂ ਤੀਰ ॥ ਥਾਨ ਥਨੰਤਰਿ ਸਾਹਿਬੁ ਬੀਰ ॥੨॥
जलि थलि डूंगरि देखां तीर ॥ थान थनंतरि साहिबु बीर ॥२॥
पानी, भूमि, पहाड़ों एवं नदियों के तट जहाँ देखता हूँ, स्थान-स्थान पर मालिक ही मौजूद है॥२॥
ਜਿਨਿ ਤਨੁ ਸਾਜਿ ਦੀਏ ਨਾਲਿ ਖੰਭ ॥
जिनि तनु साजि दीए नालि ख्मभ ॥
जिसने शरीर बनाकर साथ श्वास रूपी पंख दिए हैं,
ਅਤਿ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਉਡਣੈ ਕੀ ਡੰਝ ॥
अति त्रिसना उडणै की डंझ ॥
अत्यंत तृष्णा के कारण उड़ने की चाह लगी रहती है।
ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਤਾਂ ਬੰਧਾਂ ਧੀਰ ॥
नदरि करे तां बंधां धीर ॥
यदि ईश्वर कृपा करे तो धैर्य हो।
ਜਿਉ ਵੇਖਾਲੇ ਤਿਉ ਵੇਖਾਂ ਬੀਰ ॥੩॥
जिउ वेखाले तिउ वेखां बीर ॥३॥
हे भाई ! ज्यों सतगुरु दिखाए त्यों देखू॥३॥
ਨ ਇਹੁ ਤਨੁ ਜਾਇਗਾ ਨ ਜਾਹਿਗੇ ਖੰਭ ॥
न इहु तनु जाइगा न जाहिगे ख्मभ ॥
न यह शरीर साथ जाएगा और न ही श्वास जाएंगे।
ਪਉਣੈ ਪਾਣੀ ਅਗਨੀ ਕਾ ਸਨਬੰਧ ॥
पउणै पाणी अगनी का सनबंध ॥
यह तो केवल पवन, पानी एवं अग्नि का नाता था।
ਨਾਨਕ ਕਰਮੁ ਹੋਵੈ ਜਪੀਐ ਕਰਿ ਗੁਰੁ ਪੀਰੁ ॥
नानक करमु होवै जपीऐ करि गुरु पीरु ॥
हे नानक ! उत्तम कर्म हो तो गुरु-पीर अपनाकर ईश्वर के नाम का जाप होता है और
ਸਚਿ ਸਮਾਵੈ ਏਹੁ ਸਰੀਰੁ ॥੪॥੪॥੯॥
सचि समावै एहु सरीरु ॥४॥४॥९॥
यह शरीर सत्य में विलीन हो जाता है॥४॥४॥६॥
ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੩ ਚਉਪਦੇ ਘਰੁ ੧
मलार महला ३ चउपदे घरु १
मलार महला ३ चउपदे घरु १
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਨਿਰੰਕਾਰੁ ਆਕਾਰੁ ਹੈ ਆਪੇ ਆਪੇ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਏ ॥
निरंकारु आकारु है आपे आपे भरमि भुलाए ॥
निरंकार ने संसार बनाकर स्वयं ही लोगों को भ्रम में भुलाया हुआ है।
ਕਰਿ ਕਰਿ ਕਰਤਾ ਆਪੇ ਵੇਖੈ ਜਿਤੁ ਭਾਵੈ ਤਿਤੁ ਲਾਏ ॥
करि करि करता आपे वेखै जितु भावै तितु लाए ॥
वह सृष्टि-कर्ता पैदा करके स्वयं ही देखभाल करता है, जैसा चाहता है, उधर ही लगा देता है।
ਸੇਵਕ ਕਉ ਏਹਾ ਵਡਿਆਈ ਜਾ ਕਉ ਹੁਕਮੁ ਮਨਾਏ ॥੧॥
सेवक कउ एहा वडिआई जा कउ हुकमु मनाए ॥१॥
उसके हुक्म को मानना ही सेवक की बड़ाई है॥१॥
ਆਪਣਾ ਭਾਣਾ ਆਪੇ ਜਾਣੈ ਗੁਰ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਲਹੀਐ ॥
आपणा भाणा आपे जाणै गुर किरपा ते लहीऐ ॥
अपनी रज़ा को वह स्वयं ही जानता है और गुरु की कृपा से ही समझा जाता है।
ਏਹਾ ਸਕਤਿ ਸਿਵੈ ਘਰਿ ਆਵੈ ਜੀਵਦਿਆ ਮਰਿ ਰਹੀਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
एहा सकति सिवै घरि आवै जीवदिआ मरि रहीऐ ॥१॥ रहाउ ॥
इस माया-शक्ति से उलट कर सच्चे घर में आया जाए तो जीते जी विकारों की ओर से रहित रहा जाता है॥१॥रहाउ॥
ਵੇਦ ਪੜੈ ਪੜਿ ਵਾਦੁ ਵਖਾਣੈ ਬ੍ਰਹਮਾ ਬਿਸਨੁ ਮਹੇਸਾ ॥
वेद पड़ै पड़ि वादु वखाणै ब्रहमा बिसनु महेसा ॥
वेदों का पाठ-पठन कर पण्डितजन त्रिदेवों के बारे में वाद-विवाद करते हैं (वे कहते हैं) कि ब्रह्म (सृष्टिकर्ता), विष्णु (संसार का पोषक) एवं महेश (संहारक) है।
ਏਹ ਤ੍ਰਿਗੁਣ ਮਾਇਆ ਜਿਨਿ ਜਗਤੁ ਭੁਲਾਇਆ ਜਨਮ ਮਰਣ ਕਾ ਸਹਸਾ ॥
एह त्रिगुण माइआ जिनि जगतु भुलाइआ जनम मरण का सहसा ॥
यह माया त्रिगुणात्मक है, जिसने पूरे जगत को भुलाया हुआ है, जिस कारण जन्म-मरण का संशय बना हुआ है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਏਕੋ ਜਾਣੈ ਚੂਕੈ ਮਨਹੁ ਅੰਦੇਸਾ ॥੨॥
गुर परसादी एको जाणै चूकै मनहु अंदेसा ॥२॥
गुरु की कृपा से जब ईश्वर का बोध हो जाता है तो मन से शंका दूर हो जाती है।॥२॥
ਹਮ ਦੀਨ ਮੂਰਖ ਅਵੀਚਾਰੀ ਤੁਮ ਚਿੰਤਾ ਕਰਹੁ ਹਮਾਰੀ ॥
हम दीन मूरख अवीचारी तुम चिंता करहु हमारी ॥
हे प्रभु ! हम दीन, मूर्ख एवं नासमझ हैं, तुम ही हमारी चिंता करो।
ਹੋਹੁ ਦਇਆਲ ਕਰਿ ਦਾਸੁ ਦਾਸਾ ਕਾ ਸੇਵਾ ਕਰੀ ਤੁਮਾਰੀ ॥
होहु दइआल करि दासु दासा का सेवा करी तुमारी ॥
दयालु होकर अपने दासों का दास बना लो, ताकि तेरी सेवा में तल्लीन रहें।
ਏਕੁ ਨਿਧਾਨੁ ਦੇਹਿ ਤੂ ਅਪਣਾ ਅਹਿਨਿਸਿ ਨਾਮੁ ਵਖਾਣੀ ॥੩॥
एकु निधानु देहि तू अपणा अहिनिसि नामु वखाणी ॥३॥
तुम नाम रूपी निधान प्रदान करो, ताकि दिन-रात तेरे नाम चिंतन में निमग्न रहें।॥३॥
ਕਹਤ ਨਾਨਕੁ ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਬੂਝਹੁ ਕੋਈ ਐਸਾ ਕਰੇ ਵੀਚਾਰਾ ॥
कहत नानकु गुर परसादी बूझहु कोई ऐसा करे वीचारा ॥
गुरु नानक कहते हैं कि गुरु की कृपा से इस रहस्य को समझकर कोई मनन कर सकता है।
ਜਿਉ ਜਲ ਊਪਰਿ ਫੇਨੁ ਬੁਦਬੁਦਾ ਤੈਸਾ ਇਹੁ ਸੰਸਾਰਾ ॥
जिउ जल ऊपरि फेनु बुदबुदा तैसा इहु संसारा ॥
ज्यों जल के ऊपर बुलबुला होता है, वैसा ही यह संसार है।