Hindi Page 1074

ਆਪੇ ਸਚੁ ਧਾਰਿਓ ਸਭੁ ਸਾਚਾ ਸਚੇ ਸਚਿ ਵਰਤੀਜਾ ਹੇ ॥੪॥
आपे सचु धारिओ सभु साचा सचे सचि वरतीजा हे ॥४॥
उसने स्वयं ही सत्य को धारण किया हुआ है, सब ओर उसके सत्य का ही प्रसार है और वह परम सत्य के रूप में ही कार्यशील है ॥४॥

ਸਚੁ ਤਪਾਵਸੁ ਸਚੇ ਕੇਰਾ ॥
सचु तपावसु सचे केरा ॥
उस परम-सत्य का न्याय भी सत्य है।

ਸਾਚਾ ਥਾਨੁ ਸਦਾ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰਾ ॥
साचा थानु सदा प्रभ तेरा ॥
हे प्रभु ! तेरा निवास स्थान भी सदा अटल है।

ਸਚੀ ਕੁਦਰਤਿ ਸਚੀ ਬਾਣੀ ਸਚੁ ਸਾਹਿਬ ਸੁਖੁ ਕੀਜਾ ਹੇ ॥੫॥
सची कुदरति सची बाणी सचु साहिब सुखु कीजा हे ॥५॥
हे सच्चे मालिक ! तेरी कुदरत एवं वाणी दोनों ही सच्चे हैं और तूने ही सब ओर सुख पैदा किया है॥ ५॥

ਏਕੋ ਆਪਿ ਤੂਹੈ ਵਡ ਰਾਜਾ ॥
एको आपि तूहै वड राजा ॥
एक तू ही सबसे बड़ा राजा है और

ਹੁਕਮਿ ਸਚੇ ਕੈ ਪੂਰੇ ਕਾਜਾ ॥
हुकमि सचे कै पूरे काजा ॥
तेरे सच्चे हुक्म से ही जीवों के समस्त कार्य पूरे होते हैं।

ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਜਾਣੈ ਆਪੇ ਹੀ ਆਪਿ ਪਤੀਜਾ ਹੇ ॥੬॥
अंतरि बाहरि सभु किछु जाणै आपे ही आपि पतीजा हे ॥६॥
जो जीवों के भीतर एवं बाहर जगत् में होता है, तू सब कुछ जानता है और तू स्वयं ही अपने में प्रसन्न रहता है॥ ६॥

ਤੂ ਵਡ ਰਸੀਆ ਤੂ ਵਡ ਭੋਗੀ ॥
तू वड रसीआ तू वड भोगी ॥
तू ही बड़ा रसिया और तू ही बड़ा भोगी

ਤੂ ਨਿਰਬਾਣੁ ਤੂਹੈ ਹੀ ਜੋਗੀ ॥
तू निरबाणु तूहै ही जोगी ॥
तू ही वासना से रहित है और तू ही महान योगी है।

ਸਰਬ ਸੂਖ ਸਹਜ ਘਰਿ ਤੇਰੈ ਅਮਿਉ ਤੇਰੀ ਦ੍ਰਿਸਟੀਜਾ ਹੇ ॥੭॥
सरब सूख सहज घरि तेरै अमिउ तेरी द्रिसटीजा हे ॥७॥
तेरे घर में सहजावस्था वाले सर्व सुख है और तेरी द्रष्टि से अमृत बरसता है॥ ७॥

ਤੇਰੀ ਦਾਤਿ ਤੁਝੈ ਤੇ ਹੋਵੈ ॥
तेरी दाति तुझै ते होवै ॥
तेरी देन तुझ से ही लब्ध होती है और

ਦੇਹਿ ਦਾਨੁ ਸਭਸੈ ਜੰਤ ਲੋਐ ॥
देहि दानु सभसै जंत लोऐ ॥
सब लोकों में जीवों को तू ही देने वाला है

ਤੋਟਿ ਨ ਆਵੈ ਪੂਰ ਭੰਡਾਰੈ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਰਹੇ ਆਘੀਜਾ ਹੇ ॥੮॥
तोटि न आवै पूर भंडारै त्रिपति रहे आघीजा हे ॥८॥
तेरे भण्डार भरे हुए हैं, जो कभी समाप्त नहीं होते और सब जीव तृप्त होकर संतुष्ट रहते है।॥८॥

ਜਾਚਹਿ ਸਿਧ ਸਾਧਿਕ ਬਨਵਾਸੀ ॥
जाचहि सिध साधिक बनवासी ॥
बड़े-बड़े सिद्ध, साधक एवं वनों में रहने वाले तुझसे ही माँगते हैं,”

ਜਾਚਹਿ ਜਤੀ ਸਤੀ ਸੁਖਵਾਸੀ ॥
जाचहि जती सती सुखवासी ॥
संन्यासी, सदाचारी एवं रहने वाले भी तुझसे ही याचना करते हैं।

ਇਕੁ ਦਾਤਾਰੁ ਸਗਲ ਹੈ ਜਾਚਿਕ ਦੇਹਿ ਦਾਨੁ ਸ੍ਰਿਸਟੀਜਾ ਹੇ ॥੯॥
इकु दातारु सगल है जाचिक देहि दानु स्रिसटीजा हे ॥९॥
एक तू ही दातार है, अन्य सभी याचक हैं और समरत सृष्टि को तू ही देने वाला है॥ ९॥

ਕਰਹਿ ਭਗਤਿ ਅਰੁ ਰੰਗ ਅਪਾਰਾ ॥
करहि भगति अरु रंग अपारा ॥
बेअंत जीव तेरी भक्ति करते हैं और तुझसे ही प्रेम करते है

ਖਿਨ ਮਹਿ ਥਾਪਿ ਉਥਾਪਨਹਾਰਾ ॥
खिन महि थापि उथापनहारा ॥
तू ही क्षण में बनाने-तोड़ने वाला है।

ਭਾਰੋ ਤੋਲੁ ਬੇਅੰਤ ਸੁਆਮੀ ਹੁਕਮੁ ਮੰਨਿ ਭਗਤੀਜਾ ਹੇ ॥੧੦॥
भारो तोलु बेअंत सुआमी हुकमु मंनि भगतीजा हे ॥१०॥
हे बेअंत स्वामी ! तू सर्वशक्तिमान है और जिव तेरे हुक्म को मानकर ही तेरी भक्ति करते हैं।॥१०॥

ਜਿਸੁ ਦੇਹਿ ਦਰਸੁ ਸੋਈ ਤੁਧੁ ਜਾਣੈ ॥
जिसु देहि दरसु सोई तुधु जाणै ॥
जिसे तू दर्शन देता है केवल वही तुझे जानता है।

ਓਹੁ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਸਦਾ ਰੰਗ ਮਾਣੈ ॥
ओहु गुर कै सबदि सदा रंग माणै ॥
वह गुरु के शब्द द्वारा सदा आनंदपूर्वक रहता है।

ਚਤੁਰੁ ਸਰੂਪੁ ਸਿਆਣਾ ਸੋਈ ਜੋ ਮਨਿ ਤੇਰੈ ਭਾਵੀਜਾ ਹੇ ॥੧੧॥
चतुरु सरूपु सिआणा सोई जो मनि तेरै भावीजा हे ॥११॥
जो तेरे मन को भा जाता है, वही चतुर, सुन्दर रूप वाला एवं बुद्धिमान है॥ ११॥

ਜਿਸੁ ਚੀਤਿ ਆਵਹਿ ਸੋ ਵੇਪਰਵਾਹਾ ॥
जिसु चीति आवहि सो वेपरवाहा ॥
जिसे तू याद आता है, वही बेपरवाह है,”

ਜਿਸੁ ਚੀਤਿ ਆਵਹਿ ਸੋ ਸਾਚਾ ਸਾਹਾ ॥
जिसु चीति आवहि सो साचा साहा ॥
जिसकी स्मृति में तू आता है, वही सच्चा बादशाह है।

ਜਿਸੁ ਚੀਤਿ ਆਵਹਿ ਤਿਸੁ ਭਉ ਕੇਹਾ ਅਵਰੁ ਕਹਾ ਕਿਛੁ ਕੀਜਾ ਹੇ ॥੧੨॥
जिसु चीति आवहि तिसु भउ केहा अवरु कहा किछु कीजा हे ॥१२॥
जिसे तू स्मरण आ जाता है, उसे कोई भय नहीं और उसका कोई क्या बिगाड़ सकता है॥ १२॥

ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਬੂਝੀ ਅੰਤਰੁ ਠੰਢਾ ॥ ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਲੈ ਤੂਟਾ ਗੰਢਾ ॥
त्रिसना बूझी अंतरु ठंढा ॥ गुरि पूरै लै तूटा गंढा ॥
गुरु के सान्निध्य में उसकी तृष्णा बुझ गई है और मन शीतल हो गया है। जो पूर्ण गुरु के सम्पर्क में आ गया है, उसका टूटा हुआ दिल परमात्मा से जुड़ गया है।

ਸੁਰਤਿ ਸਬਦੁ ਰਿਦ ਅੰਤਰਿ ਜਾਗੀ ਅਮਿਉ ਝੋਲਿ ਝੋਲਿ ਪੀਜਾ ਹੇ ॥੧੩॥
सुरति सबदु रिद अंतरि जागी अमिउ झोलि झोलि पीजा हे ॥१३॥
उसके हृदय में ब्रह्म-शब्द से प्रीति जाग्रत हो गई है और वह आनंद से नामामृत का पान करता है।॥१३॥

ਮਰੈ ਨਾਹੀ ਸਦ ਸਦ ਹੀ ਜੀਵੈ ॥
मरै नाही सद सद ही जीवै ॥
वह कभी मरता नहीं अपितु सदा जीवित रहता है।

ਅਮਰੁ ਭਇਆ ਅਬਿਨਾਸੀ ਥੀਵੈ ॥
अमरु भइआ अबिनासी थीवै ॥
वह अमर होकर अविनाशी बन गया है।

ਨਾ ਕੋ ਆਵੈ ਨਾ ਕੋ ਜਾਵੈ ਗੁਰਿ ਦੂਰਿ ਕੀਆ ਭਰਮੀਜਾ ਹੇ ॥੧੪॥
ना को आवै ना को जावै गुरि दूरि कीआ भरमीजा हे ॥१४॥
गुरु ने मेरा भ्रम दूर कर दिया है कि न कोई जन्म लेता है और न कोई मरता है॥ १४॥

ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਕੀ ਪੂਰੀ ਬਾਣੀ ॥
पूरे गुर की पूरी बाणी ॥
पूर्ण गुरु की वाणी पूर्ण है

ਪੂਰੈ ਲਾਗਾ ਪੂਰੇ ਮਾਹਿ ਸਮਾਣੀ ॥
पूरै लागा पूरे माहि समाणी ॥
जो पूर्ण गुरु के साथ लग जाता है, वह पूर्ण परमेश्वर में ही समा जाता है।

ਚੜੈ ਸਵਾਇਆ ਨਿਤ ਨਿਤ ਰੰਗਾ ਘਟੈ ਨਾਹੀ ਤੋਲੀਜਾ ਹੇ ॥੧੫॥
चड़ै सवाइआ नित नित रंगा घटै नाही तोलीजा हे ॥१५॥
ऐसे जीव का परमात्मा से रंग दिन-ब-दिन बढ़ता जाता है, जो कभी कम नहीं होता॥ १५॥

ਬਾਰਹਾ ਕੰਚਨੁ ਸੁਧੁ ਕਰਾਇਆ ॥
बारहा कंचनु सुधु कराइआ ॥
जब सोना शत प्रतिशत शुद्ध हो गया तो

ਨਦਰਿ ਸਰਾਫ ਵੰਨੀ ਸਚੜਾਇਆ ॥
नदरि सराफ वंनी सचड़ाइआ ॥
वह सराफ की नजर में सच्चा सिद्ध हो गया और

ਪਰਖਿ ਖਜਾਨੈ ਪਾਇਆ ਸਰਾਫੀ ਫਿਰਿ ਨਾਹੀ ਤਾਈਜਾ ਹੇ ॥੧੬॥
परखि खजानै पाइआ सराफी फिरि नाही ताईजा हे ॥१६॥
सरfफ ने परख कर उसे खजाने में डाल लिया और उस सोने को परखने के लिए फिर तपाया नहीं जाता अर्थात् जब जीव गुरु रूपी सर्राफ की नजर में शुद्ध हो गया तो उसे परखकर खजाने में डाल दिया गया और उसे पुनः परीक्षा में से नहीं गुजरना पड़ा।॥ १६॥

ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਤੁਮਾਰਾ ਸੁਆਮੀ ॥
अम्रित नामु तुमारा सुआमी ॥
हे स्वामी ! तुम्हारा नाम अमृत की तरह मीठा है और

ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਸਦਾ ਕੁਰਬਾਨੀ ॥
नानक दास सदा कुरबानी ॥
दास नानक सदा तुझ पर कुर्बान जाता है।

ਸੰਤਸੰਗਿ ਮਹਾ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਦੇਖਿ ਦਰਸਨੁ ਇਹੁ ਮਨੁ ਭੀਜਾ ਹੇ ॥੧੭॥੧॥੩॥
संतसंगि महा सुखु पाइआ देखि दरसनु इहु मनु भीजा हे ॥१७॥१॥३॥
संतों की संगति में मुझे महा सुख प्राप्त हुआ है और उनके दर्शन से यह मन खुशी से भर गया है॥ १७॥ १॥ ३॥

ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੫ ਸੋਲਹੇ
मारू महला ५ सोलहे
मारू महला ५ सोलहे

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि॥

ਗੁਰੁ ਗੋਪਾਲੁ ਗੁਰੁ ਗੋਵਿੰਦਾ ॥
गुरु गोपालु गुरु गोविंदा ॥
गुरु ही संसार का पालक है, गुरु ही गोविन्द है,

ਗੁਰੁ ਦਇਆਲੁ ਸਦਾ ਬਖਸਿੰਦਾ ॥
गुरु दइआलु सदा बखसिंदा ॥
दया का सागर गुरु सदैव क्षमावान् है।

ਗੁਰੁ ਸਾਸਤ ਸਿਮ੍ਰਿਤਿ ਖਟੁ ਕਰਮਾ ਗੁਰੁ ਪਵਿਤ੍ਰੁ ਅਸਥਾਨਾ ਹੇ ॥੧॥
गुरु सासत सिम्रिति खटु करमा गुरु पवित्रु असथाना हे ॥१॥
शास्त्र, स्मृतियों एवं छः कर्मों का ज्ञान गुरु ही है, वही हमारा पावन स्थान है ॥१॥

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