ਭੋਲਤਣਿ ਭੈ ਮਨਿ ਵਸੈ ਹੇਕੈ ਪਾਧਰ ਹੀਡੁ ॥
भोलतणि भै मनि वसै हेकै पाधर हीडु ॥
भोलापन और प्रभु-भय मन में वास करे तो हृदय में से ही एक (प्रभु-मिलन का) रास्ता है।
ਅਤਿ ਡਾਹਪਣਿ ਦੁਖੁ ਘਣੋ ਤੀਨੇ ਥਾਵ ਭਰੀਡੁ ॥੧॥
अति डाहपणि दुखु घणो तीने थाव भरीडु ॥१॥
अधिक ईष्या-द्वेष करने से बहुत दुख भोगना पड़ता है और इससे मन, तन एवं वाणी तीनों भ्र्ष्ट हो जाते हैं। १॥
ਮਃ ੧ ॥
मः १ ॥
महला १॥
ਮਾਂਦਲੁ ਬੇਦਿ ਸਿ ਬਾਜਣੋ ਘਣੋ ਧੜੀਐ ਜੋਇ ॥
मांदलु बेदि सि बाजणो घणो धड़ीऐ जोइ ॥
जो लोग पक्षपात करते हैं, उनके लिए वेदों में भी अन्ध-भक्ति का ढोल बजता अनुभूत होता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਸਮਾਲਿ ਤੂ ਬੀਜਉ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ॥੨॥
नानक नामु समालि तू बीजउ अवरु न कोइ ॥२॥
नानक का कथन है कि हे मानव ! तू ईश्वर का नाम-स्मरण कर, क्योंकि उसके अलावा अन्य कोई नहीं॥ २॥
ਮਃ ੧ ॥
मः १ ॥
महला १॥
ਸਾਗਰੁ ਗੁਣੀ ਅਥਾਹੁ ਕਿਨਿ ਹਾਥਾਲਾ ਦੇਖੀਐ ॥
सागरु गुणी अथाहु किनि हाथाला देखीऐ ॥
तीन गुणों वाला संसार-सागर अथाह है, इसकी गहराई से कौन परिचित है।
ਵਡਾ ਵੇਪਰਵਾਹੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ਤ ਪਾਰਿ ਪਵਾ ॥
वडा वेपरवाहु सतिगुरु मिलै त पारि पवा ॥
यदि बड़ा बेपरवाह सतिगुरु मिल जाए तो इससे पार हो सकता हूँ।
ਮਝ ਭਰਿ ਦੁਖ ਬਦੁਖ ॥
मझ भरि दुख बदुख ॥
इस संसार-सागर में निरा दुख ही भरा हुआ है।
ਨਾਨਕ ਸਚੇ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਕਿਸੈ ਨ ਲਥੀ ਭੁਖ ॥੩॥
नानक सचे नाम बिनु किसै न लथी भुख ॥३॥
हे नानक ! सच्चे नाम के बिना किसी की भी भूख दूर नहीं हुई॥ ३॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਜਿਨੀ ਅੰਦਰੁ ਭਾਲਿਆ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਸੁਹਾਵੈ ॥
जिनी अंदरु भालिआ गुर सबदि सुहावै ॥
न्होंने सुन्दर शब्द-गुरु द्वारा हृदय में ही सत्य को खोजा है,
ਜੋ ਇਛਨਿ ਸੋ ਪਾਇਦੇ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਵੈ ॥
जो इछनि सो पाइदे हरि नामु धिआवै ॥
परमात्मा के नाम का चिंतन करके उन्होंने मनवांछित फल पा लिया है।
ਜਿਸ ਨੋ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੇ ਤਿਸੁ ਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ਸੋ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ॥
जिस नो क्रिपा करे तिसु गुरु मिलै सो हरि गुण गावै ॥
जिस पर कृपा करता है, उसे गुरु मिल जाता है और वह प्रभु के गुण गाता रहता है।
ਧਰਮ ਰਾਇ ਤਿਨ ਕਾ ਮਿਤੁ ਹੈ ਜਮ ਮਗਿ ਨ ਪਾਵੈ ॥
धरम राइ तिन का मितु है जम मगि न पावै ॥
धर्मराज उसका मित्र बन जाता है और उसे यम-मार्ग में नहीं डालता
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਵਹਿ ਦਿਨਸੁ ਰਾਤਿ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਵੈ ॥੧੪॥
हरि नामु धिआवहि दिनसु राति हरि नामि समावै ॥१४॥
यह दिनरात प्रभु नाम का ध्यान करता रहता है और उस में ही समाहित हो जाता है॥१४॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੧ ॥
सलोकु मः १ ॥
श्लोक महला १॥
ਸੁਣੀਐ ਏਕੁ ਵਖਾਣੀਐ ਸੁਰਗਿ ਮਿਰਤਿ ਪਇਆਲਿ ॥
सुणीऐ एकु वखाणीऐ सुरगि मिरति पइआलि ॥
स्वर्गलोक, मृत्युलोक तथा पाताल लोक सब में एक ईश्वर का ही नाम यश सुना जाता एवं बखान होता है।
ਹੁਕਮੁ ਨ ਜਾਈ ਮੇਟਿਆ ਜੋ ਲਿਖਿਆ ਸੋ ਨਾਲਿ ॥
हुकमु न जाई मेटिआ जो लिखिआ सो नालि ॥
उसका हुक्म मिटाया नहीं जा सकता, जो उसने तकदीर में लिख दिया है, वह जीव के साथ ही रहता है।
ਕਉਣੁ ਮੂਆ ਕਉਣੁ ਮਾਰਸੀ ਕਉਣੁ ਆਵੈ ਕਉਣੁ ਜਾਇ ॥
कउणु मूआ कउणु मारसी कउणु आवै कउणु जाइ ॥
संसार में कौन मरा है, कौन मारता है, जीवन-मृत्यु के चक्र में कौन पड़ता है ?
ਕਉਣੁ ਰਹਸੀ ਨਾਨਕਾ ਕਿਸ ਕੀ ਸੁਰਤਿ ਸਮਾਇ ॥੧॥
कउणु रहसी नानका किस की सुरति समाइ ॥१॥
हे नानक ! कौन रहेगा? किस की आत्मा परम-सत्य में विलीन हो जाती है॥ १॥
ਮਃ ੧ ॥
मः १ ॥
महला १॥
ਹਉ ਮੁਆ ਮੈ ਮਾਰਿਆ ਪਉਣੁ ਵਹੈ ਦਰੀਆਉ ॥
हउ मुआ मै मारिआ पउणु वहै दरीआउ ॥
अहम्-भावना के कारण ही जीव मृत्यु को प्राप्त हुआ है, उसकी मैं-ममता ने उसे मारा है और उसके प्राण नदिया की तरह बहते हैं अर्थात् प्राणों से ही जीवन चलता है।
ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਥਕੀ ਨਾਨਕਾ ਜਾ ਮਨੁ ਰਤਾ ਨਾਇ ॥
त्रिसना थकी नानका जा मनु रता नाइ ॥
हे नानक ! अगर मन प्रभु-नाम में लीन हो जाए तो तृष्णा मिट जाती है।
ਲੋਇਣ ਰਤੇ ਲੋਇਣੀ ਕੰਨੀ ਸੁਰਤਿ ਸਮਾਇ ॥
लोइण रते लोइणी कंनी सुरति समाइ ॥
आँखें प्रभु-दर्शन में लीन हो जाती हैं और सुरति कानों द्वारा हरि-नाम में समा जाती है।
ਜੀਭ ਰਸਾਇਣਿ ਚੂਨੜੀ ਰਤੀ ਲਾਲ ਲਵਾਇ ॥
जीभ रसाइणि चूनड़ी रती लाल लवाइ ॥
जीभ हरि-नाम रूपी औषधि पान करती रहती है और नाम जपकर प्रियतम के प्रेम में लीन रहती है।
ਅੰਦਰੁ ਮੁਸਕਿ ਝਕੋਲਿਆ ਕੀਮਤਿ ਕਹੀ ਨ ਜਾਇ ॥੨॥
अंदरु मुसकि झकोलिआ कीमति कही न जाइ ॥२॥
उसका हृदय नाम से सुगन्धित हो जाता है और उसका मूल्यांकन नहीं किया जा सकता॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਇਸੁ ਜੁਗ ਮਹਿ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਹੈ ਨਾਮੋ ਨਾਲਿ ਚਲੈ ॥
इसु जुग महि नामु निधानु है नामो नालि चलै ॥
इस जग में परमात्मा का नाम ही सुखों का भण्डार है और केवल नाम ही साथ जाता है।
ਏਹੁ ਅਖੁਟੁ ਕਦੇ ਨ ਨਿਖੁਟਈ ਖਾਇ ਖਰਚਿਉ ਪਲੈ ॥
एहु अखुटु कदे न निखुटई खाइ खरचिउ पलै ॥
यह नाम-भण्डार अक्षय है और कभी समाप्त नहीं होता, खाने एवं खर्च करने पर भी इसमें वृद्धि ही होती है।
ਹਰਿ ਜਨ ਨੇੜਿ ਨ ਆਵਈ ਜਮਕੰਕਰ ਜਮਕਲੈ ॥
हरि जन नेड़ि न आवई जमकंकर जमकलै ॥
यमराज के यमदूत भी भक्तजनों के निकट नहीं आते।
ਸੇ ਸਾਹ ਸਚੇ ਵਣਜਾਰਿਆ ਜਿਨ ਹਰਿ ਧਨੁ ਪਲੈ ॥
से साह सचे वणजारिआ जिन हरि धनु पलै ॥
जिनके पास हरि-नाम रूपी धन है, वही सच्चे शाह एवं व्यापारी हैं।
ਹਰਿ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਹਰਿ ਪਾਈਐ ਜਾ ਆਪਿ ਹਰਿ ਘਲੈ ॥੧੫॥
हरि किरपा ते हरि पाईऐ जा आपि हरि घलै ॥१५॥
परमात्मा को उसकी कृपा से ही पाया जा सकता है, यदि वह स्वयं प्रदान कर दे॥१५॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੩ ॥
सलोकु मः ३ ॥
श्लोक महला ३॥
ਮਨਮੁਖ ਵਾਪਾਰੈ ਸਾਰ ਨ ਜਾਣਨੀ ਬਿਖੁ ਵਿਹਾਝਹਿ ਬਿਖੁ ਸੰਗ੍ਰਹਹਿ ਬਿਖ ਸਿਉ ਧਰਹਿ ਪਿਆਰੁ ॥
मनमुख वापारै सार न जाणनी बिखु विहाझहि बिखु संग्रहहि बिख सिउ धरहि पिआरु ॥
स्वेच्छाचारी सच्चे व्यापार के महत्व को नहीं जानते, अत: वे विष ही खरीदते, विष ही संचित करते और विष से ही प्रेम करते हैं।
ਬਾਹਰਹੁ ਪੰਡਿਤ ਸਦਾਇਦੇ ਮਨਹੁ ਮੂਰਖ ਗਾਵਾਰ ॥
बाहरहु पंडित सदाइदे मनहु मूरख गावार ॥
वे बाहर से तो पण्डित-विद्वान कहलवाते हैं, किन्तु मन से मूर्ख एवं गंवार ही सिद्ध होते हैं।
ਹਰਿ ਸਿਉ ਚਿਤੁ ਨ ਲਾਇਨੀ ਵਾਦੀ ਧਰਨਿ ਪਿਆਰੁ ॥
हरि सिउ चितु न लाइनी वादी धरनि पिआरु ॥
ऐसे व्यक्ति परमात्मा की स्मृति में चित नहीं लगाते, मगर वाद-विवाद एवं झगड़ों में इनकी रुचि बनी रहती है।
ਵਾਦਾ ਕੀਆ ਕਰਨਿ ਕਹਾਣੀਆ ਕੂੜੁ ਬੋਲਿ ਕਰਹਿ ਆਹਾਰੁ ॥
वादा कीआ करनि कहाणीआ कूड़ु बोलि करहि आहारु ॥
वे नित्य ही वाद-विवाद अथवा लड़ाई-झगड़े की कहानियाँ करते रहते हैं और झूठ करते हैं।
ਜਗ ਮਹਿ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਨਿਰਮਲਾ ਹੋਰੁ ਮੈਲਾ ਸਭੁ ਆਕਾਰੁ ॥
जग महि राम नामु हरि निरमला होरु मैला सभु आकारु ॥
जगत् में राम नाम ही अत्यंत निर्मल है, अन्य समूचा आकार ही मैला है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਨ ਚੇਤਨੀ ਹੋਇ ਮੈਲੇ ਮਰਹਿ ਗਵਾਰ ॥੧॥
नानक नामु न चेतनी होइ मैले मरहि गवार ॥१॥
हे नानक ! जो ईश्वर का नाम-स्मरण नहीं करते और ऐसे गंवार मैले होकर ही मरते हैं।
ਮਃ ੩ ॥
मः ३ ॥
महला ३॥
ਦੁਖੁ ਲਗਾ ਬਿਨੁ ਸੇਵਿਐ ਹੁਕਮੁ ਮੰਨੇ ਦੁਖੁ ਜਾਇ ॥
दुखु लगा बिनु सेविऐ हुकमु मंने दुखु जाइ ॥
ईश्वर की उपासना के बिना दुख ही प्राप्त हुआ है, परन्तु उसका हुक्म मानने से दुख-दर्द दूर हो जाता है।
ਆਪੇ ਦਾਤਾ ਸੁਖੈ ਦਾ ਆਪੇ ਦੇਇ ਸਜਾਇ ॥
आपे दाता सुखै दा आपे देइ सजाइ ॥
वह स्वयं ही सुख देने वाला है और स्वयं ही जीवों को कर्मो के अनुसार दण्ड देता है।
ਨਾਨਕ ਏਵੈ ਜਾਣੀਐ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਤਿਸੈ ਰਜਾਇ ॥੨॥
नानक एवै जाणीऐ सभु किछु तिसै रजाइ ॥२॥
हे नानक ! इस तरह समझ लो कि सबकुछ उसकी रज़ा में हो रहा है॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਹਰਿ ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਜਗਤੁ ਹੈ ਨਿਰਧਨੁ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਨਾਹੀ ॥
हरि नाम बिना जगतु है निरधनु बिनु नावै त्रिपति नाही ॥
परमेश्वर के नाम बिना समूचा जगत् निर्धन है और नाम के बिना तृप्ति नहीं होती।
ਦੂਜੈ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਇਆ ਹਉਮੈ ਦੁਖੁ ਪਾਹੀ ॥
दूजै भरमि भुलाइआ हउमै दुखु पाही ॥
जो मनुष्य द्वैतभाव द्वारा भ्रम में भूला रहता है, वह अहंम् के कारण दुख ही पाता है।