ਸਤਿਗੁਰੁ ਭੇਟੇ ਸੋ ਸੁਖੁ ਪਾਏ ॥
सतिगुरु भेटे सो सुखु पाए ॥
जो सतगुरु से मिलता है, उसे सुख प्राप्त होता है
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਮੰਨਿ ਵਸਾਏ ॥
हरि का नामु मंनि वसाए ॥
और हरि का नाम वह अपने मन में बसा लेता है।
ਨਾਨਕ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਸੋ ਪਾਏ ॥
नानक नदरि करे सो पाए ॥
हे नानक ! प्रभु की कृपा-दृष्टि से सब कुछ प्राप्त हो जाता है।
ਆਸ ਅੰਦੇਸੇ ਤੇ ਨਿਹਕੇਵਲੁ ਹਉਮੈ ਸਬਦਿ ਜਲਾਏ ॥੨॥
आस अंदेसे ते निहकेवलु हउमै सबदि जलाए ॥२॥
आशा-चिंता से वह निर्लिप्त हो जाता है और ब्रह्म-शब्द द्वारा वह अहंकार को जला देता है॥ २ ॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਭਗਤ ਤੇਰੈ ਮਨਿ ਭਾਵਦੇ ਦਰਿ ਸੋਹਨਿ ਕੀਰਤਿ ਗਾਵਦੇ ॥
भगत तेरै मनि भावदे दरि सोहनि कीरति गावदे ॥
हे प्रभु ! तेरे मन को भक्त बहुत प्यारे लगते हैं, जो तेरे द्वार पर भजन-कीर्तन गाते हुए बहुत सुन्दर लगते हैं।
ਨਾਨਕ ਕਰਮਾ ਬਾਹਰੇ ਦਰਿ ਢੋਅ ਨ ਲਹਨੑੀ ਧਾਵਦੇ ॥
नानक करमा बाहरे दरि ढोअ न लहन्ही धावदे ॥
हे नानक ! भाग्यहीन लोगों को प्रभु की कृपा-दृष्टि के बिना उसके दर पर शरण नहीं मिलती और वे भटकते रहते हैं।
ਇਕਿ ਮੂਲੁ ਨ ਬੁਝਨੑਿ ਆਪਣਾ ਅਣਹੋਦਾ ਆਪੁ ਗਣਾਇਦੇ ॥
इकि मूलु न बुझन्हि आपणा अणहोदा आपु गणाइदे ॥
कुछ लोग अपने मूल (प्रभु) को नहीं पहचानते और व्यर्थ ही अपना अहंकार दिखाते हैं।
ਹਉ ਢਾਢੀ ਕਾ ਨੀਚ ਜਾਤਿ ਹੋਰਿ ਉਤਮ ਜਾਤਿ ਸਦਾਇਦੇ ॥
हउ ढाढी का नीच जाति होरि उतम जाति सदाइदे ॥
मैं निम्न जाति का तुच्छ ढाढी हूँ, शेष अपने आपको उत्तम जाति के कहलवाते हैं।
ਤਿਨੑ ਮੰਗਾ ਜਿ ਤੁਝੈ ਧਿਆਇਦੇ ॥੯॥
तिन्ह मंगा जि तुझै धिआइदे ॥९॥
हे प्रभु! मैं उनकी संगति माँगता हूँ, जो तेरा ध्यान-मनन करते हैं।॥ ६॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੧ ॥
सलोकु मः १ ॥
श्लोक महला १॥
ਕੂੜੁ ਰਾਜਾ ਕੂੜੁ ਪਰਜਾ ਕੂੜੁ ਸਭੁ ਸੰਸਾਰੁ ॥
कूड़ु राजा कूड़ु परजा कूड़ु सभु संसारु ॥
राजा झूठ है, प्रजा झूठ है यह सारा संसार ही झूठ है,
ਕੂੜੁ ਮੰਡਪ ਕੂੜੁ ਮਾੜੀ ਕੂੜੁ ਬੈਸਣਹਾਰੁ ॥
कूड़ु मंडप कूड़ु माड़ी कूड़ु बैसणहारु ॥
राजाओं के मंडप और महल झूठ एवं छल ही हैं,
ਕੂੜੁ ਸੁਇਨਾ ਕੂੜੁ ਰੁਪਾ ਕੂੜੁ ਪੈਨੑਣਹਾਰੁ ॥
कूड़ु सुइना कूड़ु रुपा कूड़ु पैन्हणहारु ॥
सोना-चांदी झूठा है और इसे पहनने वाला कपट ही है।
ਕੂੜੁ ਕਾਇਆ ਕੂੜੁ ਕਪੜੁ ਕੂੜੁ ਰੂਪੁ ਅਪਾਰੁ ॥
कूड़ु काइआ कूड़ु कपड़ु कूड़ु रूपु अपारु ॥
यह काया, वस्त्र एवं अपार रूप सभी झूठे हैं।
ਕੂੜੁ ਮੀਆ ਕੂੜੁ ਬੀਬੀ ਖਪਿ ਹੋਏ ਖਾਰੁ ॥
कूड़ु मीआ कूड़ु बीबी खपि होए खारु ॥
पति और पत्नी झूठ रूप ही है, क्योंकि दोनों ही वासनाओं में फंसकर खराब होते हैं।
ਕੂੜਿ ਕੂੜੈ ਨੇਹੁ ਲਗਾ ਵਿਸਰਿਆ ਕਰਤਾਰੁ ॥
कूड़ि कूड़ै नेहु लगा विसरिआ करतारु ॥
झूठा मनुष्य झूठ से प्रेम करता है और करतार प्रभु को विस्मृत कर देता है।
ਕਿਸੁ ਨਾਲਿ ਕੀਚੈ ਦੋਸਤੀ ਸਭੁ ਜਗੁ ਚਲਣਹਾਰੁ ॥
किसु नालि कीचै दोसती सभु जगु चलणहारु ॥
मैं किसके साथ दोस्ती करूं ? क्योंकि यह संसार नाशवान है।
ਕੂੜੁ ਮਿਠਾ ਕੂੜੁ ਮਾਖਿਉ ਕੂੜੁ ਡੋਬੇ ਪੂਰੁ ॥
कूड़ु मिठा कूड़ु माखिउ कूड़ु डोबे पूरु ॥
झुठ मीठा गुड़ है, झूठ मीठा मधु है, झूठ ही झुण्डों के झुण्ड जीवों को नरक में डुबो रहा है।
ਨਾਨਕੁ ਵਖਾਣੈ ਬੇਨਤੀ ਤੁਧੁ ਬਾਝੁ ਕੂੜੋ ਕੂੜੁ ॥੧॥
नानकु वखाणै बेनती तुधु बाझु कूड़ो कूड़ु ॥१॥
नानक प्रभु के समक्ष प्रार्थना करता हुआ कहता है कि हे परम-सत्य ! तेरे बिना यह सारा संसार झूठा ही है॥ १॥
ਮਃ ੧ ॥
मः १ ॥
महला १॥
ਸਚੁ ਤਾ ਪਰੁ ਜਾਣੀਐ ਜਾ ਰਿਦੈ ਸਚਾ ਹੋਇ ॥
सचु ता परु जाणीऐ जा रिदै सचा होइ ॥
सत्य तो तभी जाना जाता है यदि सत्य मनुष्य के हृदय में हो।
ਕੂੜ ਕੀ ਮਲੁ ਉਤਰੈ ਤਨੁ ਕਰੇ ਹਛਾ ਧੋਇ ॥
कूड़ की मलु उतरै तनु करे हछा धोइ ॥
उसकी झूठ की मैल उतर जाती है और वह अपने तन को शुद्ध कर लेता है।
ਸਚੁ ਤਾ ਪਰੁ ਜਾਣੀਐ ਜਾ ਸਚਿ ਧਰੇ ਪਿਆਰੁ ॥
सचु ता परु जाणीऐ जा सचि धरे पिआरु ॥
सत्य तो ही जाना जाता है यदि मनुष्य सत्य (प्रभु) से प्रेम करे।
ਨਾਉ ਸੁਣਿ ਮਨੁ ਰਹਸੀਐ ਤਾ ਪਾਏ ਮੋਖ ਦੁਆਰੁ ॥
नाउ सुणि मनु रहसीऐ ता पाए मोख दुआरु ॥
जब प्रभु नाम को सुनकर मन प्रसन्न हो जाता है तो जीव मोक्ष द्वार प्राप्त कर लेता है।
ਸਚੁ ਤਾ ਪਰੁ ਜਾਣੀਐ ਜਾ ਜੁਗਤਿ ਜਾਣੈ ਜੀਉ ॥
सचु ता परु जाणीऐ जा जुगति जाणै जीउ ॥
सत्य का बोध तभी होता है यदि मनुष्य प्रभु-मिलन की युक्ति समझ लेता है।
ਧਰਤਿ ਕਾਇਆ ਸਾਧਿ ਕੈ ਵਿਚਿ ਦੇਇ ਕਰਤਾ ਬੀਉ ॥
धरति काइआ साधि कै विचि देइ करता बीउ ॥
शरीर रूपी धरती को संवार कर वह इसमें कर्ता प्रभु के नाम का बीज बो देता है।
ਸਚੁ ਤਾ ਪਰੁ ਜਾਣੀਐ ਜਾ ਸਿਖ ਸਚੀ ਲੇਇ ॥
सचु ता परु जाणीऐ जा सिख सची लेइ ॥
सत्य तो ही जाना जा सकता है, जब वह सच्ची शिक्षा प्राप्त करता है।
ਦਇਆ ਜਾਣੈ ਜੀਅ ਕੀ ਕਿਛੁ ਪੁੰਨੁ ਦਾਨੁ ਕਰੇਇ ॥
दइआ जाणै जीअ की किछु पुंनु दानु करेइ ॥
वह जीवों पर दया करता है ओर यथाशक्ति अनुसार दान-पुण्य करता है।
ਸਚੁ ਤਾਂ ਪਰੁ ਜਾਣੀਐ ਜਾ ਆਤਮ ਤੀਰਥਿ ਕਰੇ ਨਿਵਾਸੁ ॥
सचु तां परु जाणीऐ जा आतम तीरथि करे निवासु ॥
सत्य तो ही जाना जा सकता है, जब वह अपनी आत्मा के तीर्थ-स्थान में निवास करता हो।
ਸਤਿਗੁਰੂ ਨੋ ਪੁਛਿ ਕੈ ਬਹਿ ਰਹੈ ਕਰੇ ਨਿਵਾਸੁ ॥
सतिगुरू नो पुछि कै बहि रहै करे निवासु ॥
वह सतिगुरु से पूछकर, उपदेश प्राप्त करके, बैठता एवं निवास करता है।
ਸਚੁ ਸਭਨਾ ਹੋਇ ਦਾਰੂ ਪਾਪ ਕਢੈ ਧੋਇ ॥
सचु सभना होइ दारू पाप कढै धोइ ॥
सत्य सबके लिए एक औषधि है, यह पाप को साफ करके बाहर निकाल देता है।
ਨਾਨਕੁ ਵਖਾਣੈ ਬੇਨਤੀ ਜਿਨ ਸਚੁ ਪਲੈ ਹੋਇ ॥੨॥
नानकु वखाणै बेनती जिन सचु पलै होइ ॥२॥
नानक उनके समक्ष विनती करता है, जिनके दामन में सत्य विद्यमान है॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥
ਦਾਨੁ ਮਹਿੰਡਾ ਤਲੀ ਖਾਕੁ ਜੇ ਮਿਲੈ ਤ ਮਸਤਕਿ ਲਾਈਐ ॥
दानु महिंडा तली खाकु जे मिलै त मसतकि लाईऐ ॥
मेरा मन संतों की चरण-धूल का दान मांगता है,यदि यह मिल जाए तो मैं इसे अपने मस्तक पर लगाऊँ।
ਕੂੜਾ ਲਾਲਚੁ ਛਡੀਐ ਹੋਇ ਇਕ ਮਨਿ ਅਲਖੁ ਧਿਆਈਐ ॥
कूड़ा लालचु छडीऐ होइ इक मनि अलखु धिआईऐ ॥
झूठा लालच छोड़कर हमें एक मन होकर भगवान का ध्यान करना चाहिए।
ਫਲੁ ਤੇਵੇਹੋ ਪਾਈਐ ਜੇਵੇਹੀ ਕਾਰ ਕਮਾਈਐ ॥
फलु तेवेहो पाईऐ जेवेही कार कमाईऐ ॥
जैसा कर्म हम करते हैं वैसा ही फल हमें प्राप्त होता है।
ਜੇ ਹੋਵੈ ਪੂਰਬਿ ਲਿਖਿਆ ਤਾ ਧੂੜਿ ਤਿਨੑਾ ਦੀ ਪਾਈਐ ॥
जे होवै पूरबि लिखिआ ता धूड़ि तिन्हा दी पाईऐ ॥
यदि प्रारम्भ से ऐसा कर्म लिखा हो तो मनुष्य को संतों की चरणों की धूल प्राप्त हो जाती है।
ਮਤਿ ਥੋੜੀ ਸੇਵ ਗਵਾਈਐ ॥੧੦॥
मति थोड़ी सेव गवाईऐ ॥१०॥
अल्पबुद्धि के फलस्वरूप हम सेवा के फल को गंवा लेते हैं॥ १० ॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੧ ॥
सलोकु मः १ ॥
श्लोक महला १॥
ਸਚਿ ਕਾਲੁ ਕੂੜੁ ਵਰਤਿਆ ਕਲਿ ਕਾਲਖ ਬੇਤਾਲ ॥
सचि कालु कूड़ु वरतिआ कलि कालख बेताल ॥
अब सत्य का अकाल पड़ गया है अर्थात् सत्य लुप्त हो गया है एवं झूठ का प्रसार प्रचलित है, इस कलियुग की कालिख ने लोगों को बेताल बना दिया है।
ਬੀਉ ਬੀਜਿ ਪਤਿ ਲੈ ਗਏ ਅਬ ਕਿਉ ਉਗਵੈ ਦਾਲਿ ॥
बीउ बीजि पति लै गए अब किउ उगवै दालि ॥
जिन्होंने प्रभु-नाम का बीज बोया था वह मान-प्रतिष्ठा से (जगत से) गए हैं, परन्तु अब टूटा हुआ (नाम का) बीज कैसे अंकुरित हो सकता है ?
ਜੇ ਇਕੁ ਹੋਇ ਤ ਉਗਵੈ ਰੁਤੀ ਹੂ ਰੁਤਿ ਹੋਇ ॥
जे इकु होइ त उगवै रुती हू रुति होइ ॥
यदि बीज सम्पूर्ण हो और ऋतु भी सुहावनी हो तो यह अंकुरित हो सकता है।
ਨਾਨਕ ਪਾਹੈ ਬਾਹਰਾ ਕੋਰੈ ਰੰਗੁ ਨ ਸੋਇ ॥
नानक पाहै बाहरा कोरै रंगु न सोइ ॥
हे नानक ! यदि लाग का प्रयोग न किया जाए तो नवीन वस्त्र रंगा नहीं जा सकता।
ਭੈ ਵਿਚਿ ਖੁੰਬਿ ਚੜਾਈਐ ਸਰਮੁ ਪਾਹੁ ਤਨਿ ਹੋਇ ॥
भै विचि खु्मबि चड़ाईऐ सरमु पाहु तनि होइ ॥
यदि शरीर पर लज्जा की लाग लगा दी जाए तो यह प्रभु के भय में पापों से धुलकर उज्ज्वल हो जाती है।
ਨਾਨਕ ਭਗਤੀ ਜੇ ਰਪੈ ਕੂੜੈ ਸੋਇ ਨ ਕੋਇ ॥੧॥
नानक भगती जे रपै कूड़ै सोइ न कोइ ॥१॥
हे नानक ! यदि मनुष्य प्रभु-भक्ति से रंगा जाए तो झूठ इसे निकट भी स्पर्श नहीं कर सकता ॥ १॥
ਮਃ ੧ ॥
मः १ ॥
महला १॥
ਲਬੁ ਪਾਪੁ ਦੁਇ ਰਾਜਾ ਮਹਤਾ ਕੂੜੁ ਹੋਆ ਸਿਕਦਾਰੁ ॥
लबु पापु दुइ राजा महता कूड़ु होआ सिकदारु ॥
लोभ एवं पाप दोनों ही राजा तथा मंत्री हैं और झूठ चौधरी बना बैठा है।
ਕਾਮੁ ਨੇਬੁ ਸਦਿ ਪੁਛੀਐ ਬਹਿ ਬਹਿ ਕਰੇ ਬੀਚਾਰੁ ॥
कामु नेबु सदि पुछीऐ बहि बहि करे बीचारु ॥
लोग बैठ कर बुरे दांव पेच सोचते हैं।