Hindi Page 977

ਹਰਿ ਤੁਮ ਵਡ ਅਗਮ ਅਗੋਚਰ ਸੁਆਮੀ ਸਭਿ ਧਿਆਵਹਿ ਹਰਿ ਰੁੜਣੇ ॥
हरि तुम वड अगम अगोचर सुआमी सभि धिआवहि हरि रुड़णे ॥
हे हरि ! तू अगम्य अगोचर एवं महान् है, सभी जीव सुन्दर परमेश्वर का ही मनन करते हैं।

ਜਿਨ ਕਉ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਰੇ ਵਡ ਕਟਾਖ ਹੈ ਤੇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਸਿਮਰਣੇ ॥੧॥
जिन कउ तुम्हरे वड कटाख है ते गुरमुखि हरि सिमरणे ॥१॥
जिन पर तेरी कृपा-दृष्टि हो जाती है, वे गुरुमुख तेरा ही सिमरन करते रहते हैं।॥ १॥

ਇਹੁ ਪਰਪੰਚੁ ਕੀਆ ਪ੍ਰਭ ਸੁਆਮੀ ਸਭੁ ਜਗਜੀਵਨੁ ਜੁਗਣੇ ॥
इहु परपंचु कीआ प्रभ सुआमी सभु जगजीवनु जुगणे ॥
यह समूचा जगत्-प्रपंच ईश्वर ने ही रचा है, वह जग का जीवन है,

ਜਿਉ ਸਲਲੈ ਸਲਲ ਉਠਹਿ ਬਹੁ ਲਹਰੀ ਮਿਲਿ ਸਲਲੈ ਸਲਲ ਸਮਣੇ ॥੨॥
जिउ सललै सलल उठहि बहु लहरी मिलि सललै सलल समणे ॥२॥
जो सब जीवों के साथ ऐसे जुड़ा हुआ है, जैसे जल में से उठने वाली अनेक लहरें उठकर पुनः जल में ही विलीन हो जाती हैं।॥ २॥

ਜੋ ਪ੍ਰਭ ਕੀਆ ਸੁ ਤੁਮ ਹੀ ਜਾਨਹੁ ਹਮ ਨਹ ਜਾਣੀ ਹਰਿ ਗਹਣੇ ॥
जो प्रभ कीआ सु तुम ही जानहु हम नह जाणी हरि गहणे ॥
हे प्रभु ! जो कुछ भी तूने उत्पन्न किया है, उसे तू ही जानता है और तेरी अद्भुत लीला को हम नहीं जानते।

ਹਮ ਬਾਰਿਕ ਕਉ ਰਿਦ ਉਸਤਤਿ ਧਾਰਹੁ ਹਮ ਕਰਹ ਪ੍ਰਭੂ ਸਿਮਰਣੇ ॥੩॥
हम बारिक कउ रिद उसतति धारहु हम करह प्रभू सिमरणे ॥३॥
हम तेरे बालक हैं, हमारे हृदय में स्तुति धारण कर दो ताकि हम तेरा सिमरन करते रहें॥ ३॥

ਤੁਮ ਜਲ ਨਿਧਿ ਹਰਿ ਮਾਨ ਸਰੋਵਰ ਜੋ ਸੇਵੈ ਸਭ ਫਲਣੇ ॥
तुम जल निधि हरि मान सरोवर जो सेवै सभ फलणे ॥
हे भगवान्! तू ही महासागर और मानसरोवर है, जो तेरी भक्ति करता है, उसे मनवांछित सभी फल मिल जाते हैं।

ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਬਾਂਛੈ ਹਰਿ ਦੇਵਹੁ ਕਰਿ ਕ੍ਰਿਪਣੇ ॥੪॥੬॥
जनु नानकु हरि हरि हरि हरि बांछै हरि देवहु करि क्रिपणे ॥४॥६॥
नानक कहते हैं कि मैं तो ‘हरि-हरि’ नाम की ही कामना करता हूँ, अतः हे प्रभु ! कृपा करके मुझे नाम प्रदान कर दीजिए॥ ४॥ ६॥

ਨਟ ਨਾਰਾਇਨ ਮਹਲਾ ੪ ਪੜਤਾਲ
नट नाराइन महला ४ पड़ताल
नट नाराइन महला ४ पड़ताल

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि॥

ਮੇਰੇ ਮਨ ਸੇਵ ਸਫਲ ਹਰਿ ਘਾਲ ॥
मेरे मन सेव सफल हरि घाल ॥
हे मेरे मन ! ईश्वर की उपासना ही सफल सेवा है,

ਲੇ ਗੁਰ ਪਗ ਰੇਨ ਰਵਾਲ ॥
ले गुर पग रेन रवाल ॥
गुरु की चरण-धूलि पा लो,

ਸਭਿ ਦਾਲਿਦ ਭੰਜਿ ਦੁਖ ਦਾਲ ॥
सभि दालिद भंजि दुख दाल ॥
इससे सभी दुख-दर्द एवं दारिद्रय मिट जाएँगे।

ਹਰਿ ਹੋ ਹੋ ਹੋ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि हो हो हो नदरि निहाल ॥१॥ रहाउ ॥
प्रभु की कृपा-दृष्टि से आनंद पा लो॥ १॥ रहाउ॥

ਹਰਿ ਕਾ ਗ੍ਰਿਹੁ ਹਰਿ ਆਪਿ ਸਵਾਰਿਓ ਹਰਿ ਰੰਗ ਰੰਗ ਮਹਲ ਬੇਅੰਤ ਲਾਲ ਲਾਲ ਹਰਿ ਲਾਲ ॥
हरि का ग्रिहु हरि आपि सवारिओ हरि रंग रंग महल बेअंत लाल लाल हरि लाल ॥
यह शरीर ईश्वर का घर है, जिसे उसने स्वयं ही सुन्दर बनाया है। ईश्वर का यह सुन्दर महल बड़ा आनंददायक है, जिसमें गुण रूपी बेअंत रत्न-जवाहर, माणिक्य मौजूद हैं।

ਹਰਿ ਆਪਨੀ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੀ ਆਪਿ ਗ੍ਰਿਹਿ ਆਇਓ ਹਮ ਹਰਿ ਕੀ ਗੁਰ ਕੀਈ ਹੈ ਬਸੀਠੀ ਹਮ ਹਰਿ ਦੇਖੇ ਭਈ ਨਿਹਾਲ ਨਿਹਾਲ ਨਿਹਾਲ ਨਿਹਾਲ ॥੧॥
हरि आपनी क्रिपा करी आपि ग्रिहि आइओ हम हरि की गुर कीई है बसीठी हम हरि देखे भई निहाल निहाल निहाल निहाल ॥१॥
हरि ने मुझ पर कृपा की है और स्वयं ही हृदय-घर में आ गया है। गुरु ने हरि से मेरी सिफारिश की है, जिससे हरि-दर्शन करके हम निहाल हो गए हैं॥ १॥

ਹਰਿ ਆਵਤੇ ਕੀ ਖਬਰਿ ਗੁਰਿ ਪਾਈ ਮਨਿ ਤਨਿ ਆਨਦੋ ਆਨੰਦ ਭਏ ਹਰਿ ਆਵਤੇ ਸੁਨੇ ਮੇਰੇ ਲਾਲ ਹਰਿ ਲਾਲ ॥
हरि आवते की खबरि गुरि पाई मनि तनि आनदो आनंद भए हरि आवते सुने मेरे लाल हरि लाल ॥
जब गुरु ने हरि के आने की खबर बताई तो हरि के आने की खबर सुनकर मन-तन आनंदित हो गया।

ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਮਿਲੇ ਭਏ ਗਲਤਾਨ ਹਾਲ ਨਿਹਾਲ ਨਿਹਾਲ ॥੨॥੧॥੭॥
जनु नानकु हरि हरि मिले भए गलतान हाल निहाल निहाल ॥२॥१॥७॥
जब नानक को प्रभु मिला तो वह उसमें लीन होकर परम निहाल हो गया॥२॥१॥७॥

ਨਟ ਮਹਲਾ ੪ ॥
नट महला ४ ॥
नट महला ४॥

ਮਨ ਮਿਲੁ ਸੰਤਸੰਗਤਿ ਸੁਭਵੰਤੀ ॥
मन मिलु संतसंगति सुभवंती ॥
हे मन ! शोभावान् संतों की संगति में मिलो,

ਸੁਨਿ ਅਕਥ ਕਥਾ ਸੁਖਵੰਤੀ ॥
सुनि अकथ कथा सुखवंती ॥
सुखदायक हरि की अकथनीय कथा सुनो,

ਸਭ ਕਿਲਬਿਖ ਪਾਪ ਲਹੰਤੀ ॥
सभ किलबिख पाप लहंती ॥
इससे सभी दोष-पाप मिट जाते हैं।

ਹਰਿ ਹੋ ਹੋ ਹੋ ਲਿਖਤੁ ਲਿਖੰਤੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि हो हो हो लिखतु लिखंती ॥१॥ रहाउ ॥
मगर ईश्वर की प्राप्ति उत्तम भाग्यालेख से ही होती है।॥ १॥ रहाउ॥

ਹਰਿ ਕੀਰਤਿ ਕਲਜੁਗ ਵਿਚਿ ਊਤਮ ਮਤਿ ਗੁਰਮਤਿ ਕਥਾ ਭਜੰਤੀ ॥
हरि कीरति कलजुग विचि ऊतम मति गुरमति कथा भजंती ॥
कलियुग में ईश्वर का कीर्ति-गान ही उत्तम कर्म है, अतः गुरु-मतानुसार हरि-कथा एवं भजनगान करो।

ਜਿਨਿ ਜਨਿ ਸੁਣੀ ਮਨੀ ਹੈ ਜਿਨਿ ਜਨਿ ਤਿਸੁ ਜਨ ਕੈ ਹਉ ਕੁਰਬਾਨੰਤੀ ॥੧॥
जिनि जनि सुणी मनी है जिनि जनि तिसु जन कै हउ कुरबानंती ॥१॥
जिस ने यह कथा सुनी है और उसका निष्ठापूर्वक मनन किया है, मैं तो उस पर कुर्बान जाता हूँ॥ १॥

ਹਰਿ ਅਕਥ ਕਥਾ ਕਾ ਜਿਨਿ ਰਸੁ ਚਾਖਿਆ ਤਿਸੁ ਜਨ ਸਭ ਭੂਖ ਲਹੰਤੀ ॥
हरि अकथ कथा का जिनि रसु चाखिआ तिसु जन सभ भूख लहंती ॥
जिस ने हरि की अकथनीय कथा का आनंद प्राप्त किया है, उसकी सारी भूख मिट गई है।

ਨਾਨਕ ਜਨ ਹਰਿ ਕਥਾ ਸੁਣਿ ਤ੍ਰਿਪਤੇ ਜਪਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹੋਵੰਤੀ ॥੨॥੨॥੮॥
नानक जन हरि कथा सुणि त्रिपते जपि हरि हरि हरि होवंती ॥२॥२॥८॥
हे नानक ! भक्तजन हरि-कथा सुनकर तृप्त हो गए हैं और हरि-हरि जपकर उसका ही रूप हो गए हैं॥ २॥ २॥ ८॥

ਨਟ ਮਹਲਾ ੪ ॥
नट महला ४ ॥
नट महला ४॥

ਕੋਈ ਆਨਿ ਸੁਨਾਵੈ ਹਰਿ ਕੀ ਹਰਿ ਗਾਲ ॥
कोई आनि सुनावै हरि की हरि गाल ॥
कोई आकर मुझे हरि की महिमा सुनाए तो

ਤਿਸ ਕਉ ਹਉ ਬਲਿ ਬਲਿ ਬਾਲ ॥
तिस कउ हउ बलि बलि बाल ॥
मैं उस पर न्यौछावर हो जाऊँगा।

ਸੋ ਹਰਿ ਜਨੁ ਹੈ ਭਲ ਭਾਲ ॥
सो हरि जनु है भल भाल ॥
वह हरि का भक्त बहुत ही भला है।

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