Hindi Page 270

ਮੁਖਿ ਤਾ ਕੋ ਜਸੁ ਰਸਨ ਬਖਾਨੈ ॥
मुखि ता को जसु रसन बखानै ॥
अपने मुँह एवं जिव्हा से उसका यश सदैव बखान कर।

ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਤੇਰੋ ਰਹਤਾ ਧਰਮੁ ॥
जिह प्रसादि तेरो रहता धरमु ॥
जिसकी कृपा से तेरा धर्म कायम रहता है,

ਮਨ ਸਦਾ ਧਿਆਇ ਕੇਵਲ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ॥
मन सदा धिआइ केवल पारब्रहमु ॥
हे मेरे मन ! तू हमेशा उस परब्रह्म का ध्यान कर।

ਪ੍ਰਭ ਜੀ ਜਪਤ ਦਰਗਹ ਮਾਨੁ ਪਾਵਹਿ ॥
प्रभ जी जपत दरगह मानु पावहि ॥
पूज्य परमेश्वर की आराधना करने से तू उसके दरबार में शोभा प्राप्त करेगा।

ਨਾਨਕ ਪਤਿ ਸੇਤੀ ਘਰਿ ਜਾਵਹਿ ॥੨॥
नानक पति सेती घरि जावहि ॥२॥
हे नानक ! इस तरह तुम प्रतिष्ठा सहित अपने धाम (परलोक) जाओगे॥ २॥

ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਆਰੋਗ ਕੰਚਨ ਦੇਹੀ ॥
जिह प्रसादि आरोग कंचन देही ॥
हे मन ! जिसकी कृपा से तुझे सोने जैसा सुन्दर शरीर मिला है,

ਲਿਵ ਲਾਵਹੁ ਤਿਸੁ ਰਾਮ ਸਨੇਹੀ ॥
लिव लावहु तिसु राम सनेही ॥
उस प्रियतम राम से वृति लगा।

ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਤੇਰਾ ਓਲਾ ਰਹਤ ॥
जिह प्रसादि तेरा ओला रहत ॥
जिसकी कृपा से तेरा पर्दा रहता है,

ਮਨ ਸੁਖੁ ਪਾਵਹਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਸੁ ਕਹਤ ॥
मन सुखु पावहि हरि हरि जसु कहत ॥
उस प्रभु-परमेश्वर की स्तुति करने से तुम सुख प्राप्त कर लोगे।

ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਤੇਰੇ ਸਗਲ ਛਿਦ੍ਰ ਢਾਕੇ ॥
जिह प्रसादि तेरे सगल छिद्र ढाके ॥
जिसकी कृपा से तेरे तमाम पाप छिप जाते हैं।

ਮਨ ਸਰਨੀ ਪਰੁ ਠਾਕੁਰ ਪ੍ਰਭ ਤਾ ਕੈ ॥
मन सरनी परु ठाकुर प्रभ ता कै ॥
हे मन ! उस प्रभु-परमेश्वर की शरण ले।

ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਤੁਝੁ ਕੋ ਨ ਪਹੂਚੈ ॥
जिह प्रसादि तुझु को न पहूचै ॥
जिसकी कृपा से कोई तेरे बराबर नहीं पहुँचता,

ਮਨ ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਸਿਮਰਹੁ ਪ੍ਰਭ ਊਚੇ ॥
मन सासि सासि सिमरहु प्रभ ऊचे ॥
हे मेरे मन ! अपने श्वास-श्वास से सर्वोपरि प्रभु को याद कर।

ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਪਾਈ ਦ੍ਰੁਲਭ ਦੇਹ ॥
जिह प्रसादि पाई द्रुलभ देह ॥
जिसकी कृपा से तुझे दुर्लभ मनुष्य शरीर मिला है,

ਨਾਨਕ ਤਾ ਕੀ ਭਗਤਿ ਕਰੇਹ ॥੩॥
नानक ता की भगति करेह ॥३॥
हे नानक ! उस भगवान की भक्ति किया कर ॥ ३॥

ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਆਭੂਖਨ ਪਹਿਰੀਜੈ ॥
जिह प्रसादि आभूखन पहिरीजै ॥
जिसकी कृपा से आभूषण पहने जाते हैं,

ਮਨ ਤਿਸੁ ਸਿਮਰਤ ਕਿਉ ਆਲਸੁ ਕੀਜੈ ॥
मन तिसु सिमरत किउ आलसु कीजै ॥
हे मन ! उसकी आराधना करते हुए आलस्य क्यों किया जाए?

ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਅਸ੍ਵ ਹਸਤਿ ਅਸਵਾਰੀ ॥
जिह प्रसादि अस्व हसति असवारी ॥
जिसकी कृपा से तुम घोड़ों एवं हाथियों की सवारी करते हो,

ਮਨ ਤਿਸੁ ਪ੍ਰਭ ਕਉ ਕਬਹੂ ਨ ਬਿਸਾਰੀ ॥
मन तिसु प्रभ कउ कबहू न बिसारी ॥
हे मन ! उस ईश्वर को कभी विस्मृत न कर।

ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਬਾਗ ਮਿਲਖ ਧਨਾ ॥
जिह प्रसादि बाग मिलख धना ॥
जिसकी कृपा से उद्यान, धरती एवं धन प्राप्त हुए हैं,

ਰਾਖੁ ਪਰੋਇ ਪ੍ਰਭੁ ਅਪੁਨੇ ਮਨਾ ॥
राखु परोइ प्रभु अपुने मना ॥
उस ईश्वर को अपने मन में पिरोकर रख।

ਜਿਨਿ ਤੇਰੀ ਮਨ ਬਨਤ ਬਨਾਈ ॥
जिनि तेरी मन बनत बनाई ॥
हे मन ! जिस ईश्वर ने तेरी रचना की है,

ਊਠਤ ਬੈਠਤ ਸਦ ਤਿਸਹਿ ਧਿਆਈ ॥
ऊठत बैठत सद तिसहि धिआई ॥
उठते-बैठते हर वक्त उसका ध्यान करते रहना चाहिए।

ਤਿਸਹਿ ਧਿਆਇ ਜੋ ਏਕ ਅਲਖੈ ॥
तिसहि धिआइ जो एक अलखै ॥
हे नानक ! उस एक अदृश्य प्रभु का चिन्तन कर।

ਈਹਾ ਊਹਾ ਨਾਨਕ ਤੇਰੀ ਰਖੈ ॥੪॥
ईहा ऊहा नानक तेरी रखै ॥४॥
वह लोक-परलोक दोनों में तेरी रक्षा करेगा ॥ ४ ॥

ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਕਰਹਿ ਪੁੰਨ ਬਹੁ ਦਾਨ ॥
जिह प्रसादि करहि पुंन बहु दान ॥
जिसकी कृपा से तुम बड़ा दान-पुण्य करते हो,

ਮਨ ਆਠ ਪਹਰ ਕਰਿ ਤਿਸ ਕਾ ਧਿਆਨ ॥
मन आठ पहर करि तिस का धिआन ॥
हे मन ! आठों पहर उसका ही ध्यान करना चाहिए।

ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਤੂ ਆਚਾਰ ਬਿਉਹਾਰੀ ॥
जिह प्रसादि तू आचार बिउहारी ॥
जिसकी कृपा से तू धार्मिक संस्कार एवं सांसारिक कर्म करता है,

ਤਿਸੁ ਪ੍ਰਭ ਕਉ ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਚਿਤਾਰੀ ॥
तिसु प्रभ कउ सासि सासि चितारी ॥
अपने श्वास-श्वास से उस प्रभु का चिन्तन करना चाहिए।

ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਤੇਰਾ ਸੁੰਦਰ ਰੂਪੁ ॥
जिह प्रसादि तेरा सुंदर रूपु ॥
जिसकी कृपा से तेरा सुन्दर रूप है,

ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਸਿਮਰਹੁ ਸਦਾ ਅਨੂਪੁ ॥
सो प्रभु सिमरहु सदा अनूपु ॥
उस अनुपम प्रभु का हमेशा सिमरन करना चाहिए।

ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਤੇਰੀ ਨੀਕੀ ਜਾਤਿ ॥
जिह प्रसादि तेरी नीकी जाति ॥
जिसकी दया से तुझे उच्च (मनुष्य) जाति मिली है,

ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਸਿਮਰਿ ਸਦਾ ਦਿਨ ਰਾਤਿ ॥
सो प्रभु सिमरि सदा दिन राति ॥
सदा उस प्रभु का दिन-रात चिन्तन कर।

ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਤੇਰੀ ਪਤਿ ਰਹੈ ॥
जिह प्रसादि तेरी पति रहै ॥
जिसकी कृपा से तेरी प्रतिष्ठा बरकरार रही है,

ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਨਾਨਕ ਜਸੁ ਕਹੈ ॥੫॥
गुर प्रसादि नानक जसु कहै ॥५॥
हे नानक ! गुरु की कृपा से उसकी महिमा किया कर ॥५॥

ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਸੁਨਹਿ ਕਰਨ ਨਾਦ ॥
जिह प्रसादि सुनहि करन नाद ॥
जिसकी दया से तू कानों से शब्द सुनता है।

ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਪੇਖਹਿ ਬਿਸਮਾਦ ॥
जिह प्रसादि पेखहि बिसमाद ॥
जिसकी दया से तू आश्चर्यजनक कौतुक देखता है।

ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਬੋਲਹਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਰਸਨਾ ॥
जिह प्रसादि बोलहि अम्रित रसना ॥
जिसकी दया से तू अपनी जिव्हा से मीठे वचन बोलता है।

ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਸੁਖਿ ਸਹਜੇ ਬਸਨਾ ॥
जिह प्रसादि सुखि सहजे बसना ॥
जिसकी कृपा से तू सहज ही सुखपूर्वक रहता है।

ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਹਸਤ ਕਰ ਚਲਹਿ ॥
जिह प्रसादि हसत कर चलहि ॥
जिसकी दया से तेरे हाथ हिलते और काम करते हैं।

ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਸੰਪੂਰਨ ਫਲਹਿ ॥
जिह प्रसादि स्मपूरन फलहि ॥
जिसकी दया से तेरे सम्पूर्ण काम सफल होते हैं।

ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਪਰਮ ਗਤਿ ਪਾਵਹਿ ॥
जिह प्रसादि परम गति पावहि ॥
जिसकी दया से तुझे परमगति मिलती है।

ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਸੁਖਿ ਸਹਜਿ ਸਮਾਵਹਿ ॥
जिह प्रसादि सुखि सहजि समावहि ॥
जिसकी दया से तुम सहज सुख में लीन हो जाओगे,

ਐਸਾ ਪ੍ਰਭੁ ਤਿਆਗਿ ਅਵਰ ਕਤ ਲਾਗਹੁ ॥
ऐसा प्रभु तिआगि अवर कत लागहु ॥
ऐसे प्रभु को छोड़कर तुम क्यों किसी दूसरे से लग रहे हो ?

ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਨਾਨਕ ਮਨਿ ਜਾਗਹੁ ॥੬॥
गुर प्रसादि नानक मनि जागहु ॥६॥
हे नानक ! गुरु की कृपा से अपने मन को ईश्वर की ओर जाग्रत कर ॥६॥

ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਤੂੰ ਪ੍ਰਗਟੁ ਸੰਸਾਰਿ ॥
जिह प्रसादि तूं प्रगटु संसारि ॥
जिसकी कृपा से तू दुनिया में लोकप्रिय हुआ है,

ਤਿਸੁ ਪ੍ਰਭ ਕਉ ਮੂਲਿ ਨ ਮਨਹੁ ਬਿਸਾਰਿ ॥
तिसु प्रभ कउ मूलि न मनहु बिसारि ॥
उस प्रभु को कभी अपने हृदय से न भुला।

ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਤੇਰਾ ਪਰਤਾਪੁ ॥
जिह प्रसादि तेरा परतापु ॥
जिसकी कृपा से तेरा तेज-प्रताप बना है,

ਰੇ ਮਨ ਮੂੜ ਤੂ ਤਾ ਕਉ ਜਾਪੁ ॥
रे मन मूड़ तू ता कउ जापु ॥
हे मेरे मूर्ख मन ! तू उसकी आराधना करता रह।

ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਤੇਰੇ ਕਾਰਜ ਪੂਰੇ ॥
जिह प्रसादि तेरे कारज पूरे ॥
जिसकी दया से तेरे समस्त कार्य सम्पूर्ण हुए हैं,

ਤਿਸਹਿ ਜਾਨੁ ਮਨ ਸਦਾ ਹਜੂਰੇ ॥
तिसहि जानु मन सदा हजूरे ॥
अपने हृदय में उसको सदा निकट समझ।

ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਤੂੰ ਪਾਵਹਿ ਸਾਚੁ ॥
जिह प्रसादि तूं पावहि साचु ॥
जिसकी दया से तुझे सत्य प्राप्त होता है,

ਰੇ ਮਨ ਮੇਰੇ ਤੂੰ ਤਾ ਸਿਉ ਰਾਚੁ ॥
रे मन मेरे तूं ता सिउ राचु ॥
हे मेरे मन ! तू उससे प्रेम कर।

ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਸਭ ਕੀ ਗਤਿ ਹੋਇ ॥
जिह प्रसादि सभ की गति होइ ॥
जिसकी कृपा से सबकी गति हो जाती है,

ਨਾਨਕ ਜਾਪੁ ਜਪੈ ਜਪੁ ਸੋਇ ॥੭॥
नानक जापु जपै जपु सोइ ॥७॥
हे नानक ! उस प्रभु के नाम का एक रस जाप करना चाहिए ॥ ७ ॥

ਆਪਿ ਜਪਾਏ ਜਪੈ ਸੋ ਨਾਉ ॥
आपि जपाए जपै सो नाउ ॥
वही पुरुष ईश्वर का नाम जपता है, जिससे वह स्वयं जपाता है।

ਆਪਿ ਗਾਵਾਏ ਸੁ ਹਰਿ ਗੁਨ ਗਾਉ ॥
आपि गावाए सु हरि गुन गाउ ॥
केवल वही ईश्वर का यशोगान करता है, जिससे वह स्वयं गुणगान करवाता है।

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