ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ਪੰਚਪਦੇ ॥
आसा महला ५ पंचपदे ॥
आसा महला ५ पंचपदे ॥
ਪ੍ਰਥਮੇ ਤੇਰੀ ਨੀਕੀ ਜਾਤਿ ॥
प्रथमे तेरी नीकी जाति ॥
हे जीव रूपी नारी ! सर्वप्रथम, तेरी जाति कुलीन है।
ਦੁਤੀਆ ਤੇਰੀ ਮਨੀਐ ਪਾਂਤਿ ॥
दुतीआ तेरी मनीऐ पांति ॥
द्वितीय, तेरा वंश भी महान् माना जाता है।
ਤ੍ਰਿਤੀਆ ਤੇਰਾ ਸੁੰਦਰ ਥਾਨੁ ॥
त्रितीआ तेरा सुंदर थानु ॥
तृतीय, तेरा निवास स्थान अति सुन्दर है परन्तु
ਬਿਗੜ ਰੂਪੁ ਮਨ ਮਹਿ ਅਭਿਮਾਨੁ ॥੧॥
बिगड़ रूपु मन महि अभिमानु ॥१॥
तेरा रूप कुरूप ही रहा क्योंकि तेरे मन में अभिमान है॥ १॥
ਸੋਹਨੀ ਸਰੂਪਿ ਸੁਜਾਣਿ ਬਿਚਖਨਿ ॥
सोहनी सरूपि सुजाणि बिचखनि ॥
हे सुन्दर स्वरूप वाली, बुद्धिमान एवं चतुर नारी !”
ਅਤਿ ਗਰਬੈ ਮੋਹਿ ਫਾਕੀ ਤੂੰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अति गरबै मोहि फाकी तूं ॥१॥ रहाउ ॥
तू अत्यंत अहंकार एवं मोह-माया में फँसी हुई है॥ १॥ रहाउ॥
ਅਤਿ ਸੂਚੀ ਤੇਰੀ ਪਾਕਸਾਲ ॥
अति सूची तेरी पाकसाल ॥
(हे जीव रूपी नारी !) तेरी पाकशाला अर्थात् रसोई बड़ी पावन है।
ਕਰਿ ਇਸਨਾਨੁ ਪੂਜਾ ਤਿਲਕੁ ਲਾਲ ॥
करि इसनानु पूजा तिलकु लाल ॥
तुम स्नान करके पूजा भी करती हो एवं माथे पर लाल तिलक लगाती हो।
ਗਲੀ ਗਰਬਹਿ ਮੁਖਿ ਗੋਵਹਿ ਗਿਆਨ ॥
गली गरबहि मुखि गोवहि गिआन ॥
अपने मुख से तुम ज्ञान की बातें करती हो परन्तु अभिमान ने तुझे नष्ट कर दिया है।
ਸਭ ਬਿਧਿ ਖੋਈ ਲੋਭਿ ਸੁਆਨ ॥੨॥
सभ बिधि खोई लोभि सुआन ॥२॥
यह भी सत्य है कि लालच रूपी कुते ने तेरी हर प्रकार की बड़ाई को बर्बाद कर दिया है॥ २॥
ਕਾਪਰ ਪਹਿਰਹਿ ਭੋਗਹਿ ਭੋਗ ॥
कापर पहिरहि भोगहि भोग ॥
तुम सुन्दर वस्त्र धारण करती हो, भोग-विलास करती हो।
ਆਚਾਰ ਕਰਹਿ ਸੋਭਾ ਮਹਿ ਲੋਗ ॥
आचार करहि सोभा महि लोग ॥
संसार में शोभा पाने के लिए धर्म-कर्म करती हो।
ਚੋਆ ਚੰਦਨ ਸੁਗੰਧ ਬਿਸਥਾਰ ॥
चोआ चंदन सुगंध बिसथार ॥
अपने शरीर पर इत्र, चन्दन एवं अन्य सुगन्धियां प्रयुक्त करती हो,”
ਸੰਗੀ ਖੋਟਾ ਕ੍ਰੋਧੁ ਚੰਡਾਲ ॥੩॥
संगी खोटा क्रोधु चंडाल ॥३॥
लेकिन चाण्डाल क्रोध तेरा सदा खोटा साथी बना हुआ है॥ ३॥
ਅਵਰ ਜੋਨਿ ਤੇਰੀ ਪਨਿਹਾਰੀ ॥
अवर जोनि तेरी पनिहारी ॥
दूसरी तमाम योनियाँ तेरी दासी हैं।
ਇਸੁ ਧਰਤੀ ਮਹਿ ਤੇਰੀ ਸਿਕਦਾਰੀ ॥
इसु धरती महि तेरी सिकदारी ॥
इस धरती पर तेरा ही प्रभुत्व कायम है।
ਸੁਇਨਾ ਰੂਪਾ ਤੁਝ ਪਹਿ ਦਾਮ ॥
सुइना रूपा तुझ पहि दाम ॥
तेरे पास सोना-चांदी इत्यादि धन पदार्थ हैं लेकिन
ਸੀਲੁ ਬਿਗਾਰਿਓ ਤੇਰਾ ਕਾਮ ॥੪॥
सीलु बिगारिओ तेरा काम ॥४॥
कामवासना ने तेरा शील भ्रष्ट कर दिया है॥ ४॥
ਜਾ ਕਉ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਮਇਆ ਹਰਿ ਰਾਇ ॥
जा कउ द्रिसटि मइआ हरि राइ ॥
जिस पर भगवान कृपादृष्टि करता है,”
ਸਾ ਬੰਦੀ ਤੇ ਲਈ ਛਡਾਇ ॥
सा बंदी ते लई छडाइ ॥
वह (विकारों की) कैद से मुक्ति प्राप्त कर लेता है।
ਸਾਧਸੰਗਿ ਮਿਲਿ ਹਰਿ ਰਸੁ ਪਾਇਆ ॥
साधसंगि मिलि हरि रसु पाइआ ॥
जो सत्संगति में सम्मिलित होकर हरि-रस का आस्वादन करती है॥ ५॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸਫਲ ਓਹ ਕਾਇਆ ॥੫॥
कहु नानक सफल ओह काइआ ॥५॥
हे नानक ! वही काया सफल है
ਸਭਿ ਰੂਪ ਸਭਿ ਸੁਖ ਬਨੇ ਸੁਹਾਗਨਿ ॥
सभि रूप सभि सुख बने सुहागनि ॥
हे जीव रूपी नारी ! तब तुम समस्त रूप एवं समस्त सुखों वाली सुहागिन बन जाओगी।
ਅਤਿ ਸੁੰਦਰਿ ਬਿਚਖਨਿ ਤੂੰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ਦੂਜਾ ॥੧੨॥
अति सुंदरि बिचखनि तूं ॥१॥ रहाउ दूजा ॥१२॥
तब तुम सचमुच अत्यंत सुन्दर एवं चतुर बन जाओगी ॥ १॥ रहाउ दूसरा ॥ १२ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ਇਕਤੁਕੇ ੨ ॥
आसा महला ५ इकतुके २ ॥
आसा महला ५ इकतुके २ ॥
ਜੀਵਤ ਦੀਸੈ ਤਿਸੁ ਸਰਪਰ ਮਰਣਾ ॥
जीवत दीसै तिसु सरपर मरणा ॥
जो व्यक्ति (मोह-माया में फँसा) जीवित दिखाई देता है, उसने निश्चित ही मर जाना है।
ਮੁਆ ਹੋਵੈ ਤਿਸੁ ਨਿਹਚਲੁ ਰਹਣਾ ॥੧॥
मुआ होवै तिसु निहचलु रहणा ॥१॥
लेकिन जो व्यक्ति मोह-माया से निर्लिप्त है, वह सदैव ही स्थिर रहेगा।॥ १ ॥
ਜੀਵਤ ਮੁਏ ਮੁਏ ਸੇ ਜੀਵੇ ॥
जीवत मुए मुए से जीवे ॥
जो लोग अभिमान में जीवित रहते हैं दरअसल वे मरे हुए हैं और जो लोग अपना अभिमान समाप्त कर देते हैं, वास्तव में वही जिन्दा हैं।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਅਵਖਧੁ ਮੁਖਿ ਪਾਇਆ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਰਸੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਵੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि हरि नामु अवखधु मुखि पाइआ गुर सबदी रसु अम्रितु पीवे ॥१॥ रहाउ ॥
वे हरि-नाम की औषधि अपने मुँह में रखते हैं और गुरु-शब्द के माध्यमसे वह अमर करने वाले अमृत रस का पान करते हैं॥ १॥ रहाउ॥
ਕਾਚੀ ਮਟੁਕੀ ਬਿਨਸਿ ਬਿਨਾਸਾ ॥
काची मटुकी बिनसि बिनासा ॥
यह देहि रूपी कच्चा घड़ा अवश्य ही टूट जाएगा।
ਜਿਸੁ ਛੂਟੈ ਤ੍ਰਿਕੁਟੀ ਤਿਸੁ ਨਿਜ ਘਰਿ ਵਾਸਾ ॥੨॥
जिसु छूटै त्रिकुटी तिसु निज घरि वासा ॥२॥
लेकिन जिस मनुष्य की रजो, तमो एवं सतो गुण की त्रिकुटी रूपी कैद से मुक्ति हो गई है, वह अपने आत्मस्वरूप में निवास करता है॥ २॥
ਊਚਾ ਚੜੈ ਸੁ ਪਵੈ ਪਇਆਲਾ ॥
ऊचा चड़ै सु पवै पइआला ॥
जो अत्यंत ऊँचा चढ़ता है अर्थात् अभिमान करता है, ऐसा अभिमानी आखिरकार पाताल में ही गिरता है।
ਧਰਨਿ ਪੜੈ ਤਿਸੁ ਲਗੈ ਨ ਕਾਲਾ ॥੩॥
धरनि पड़ै तिसु लगै न काला ॥३॥
जो मनुष्य धरती पर गिरे हुए अर्थात् विनम्रतापूर्वक रहते हैं उन्हें काल स्पर्श नहीं कर सकता॥ ३॥
ਭ੍ਰਮਤ ਫਿਰੇ ਤਿਨ ਕਿਛੂ ਨ ਪਾਇਆ ॥
भ्रमत फिरे तिन किछू न पाइआ ॥
जो मनुष्य भटकते रहते हैं, उन्हें कुछ भी प्राप्त नहीं होता।
ਸੇ ਅਸਥਿਰ ਜਿਨ ਗੁਰ ਸਬਦੁ ਕਮਾਇਆ ॥੪॥
से असथिर जिन गुर सबदु कमाइआ ॥४॥
लेकिन जिन्होंने गुरु के शब्द का आचरण किया है, वे स्थिरचित रहते हैं।॥ ४॥
ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਸਭੁ ਹਰਿ ਕਾ ਮਾਲੁ ॥
जीउ पिंडु सभु हरि का मालु ॥
हे नानक ! यह प्राण एवं शरीर सब ईश्वर का ही माल हैं,”
ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਭਏ ਨਿਹਾਲ ॥੫॥੧੩॥
नानक गुर मिलि भए निहाल ॥५॥१३॥
गुरु से मिलकर मनुष्य आनंदित हो गए हैं॥ ५॥ १३॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥
ਪੁਤਰੀ ਤੇਰੀ ਬਿਧਿ ਕਰਿ ਥਾਟੀ ॥
पुतरी तेरी बिधि करि थाटी ॥
हे मानव ! तेरी यह शरीर रूपी पुतली की संरचना अति बुद्धिमत्ता से हुई है परन्तु
ਜਾਨੁ ਸਤਿ ਕਰਿ ਹੋਇਗੀ ਮਾਟੀ ॥੧॥
जानु सति करि होइगी माटी ॥१॥
तू यह बात सत्य जान कि इसने (एक दिन) मिट्टी हो जाना है॥ १॥
ਮੂਲੁ ਸਮਾਲਹੁ ਅਚੇਤ ਗਵਾਰਾ ॥
मूलु समालहु अचेत गवारा ॥
हे मूर्ख गंवार ! अपने मूल परमात्मा को याद कर।
ਇਤਨੇ ਕਉ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਕਿਆ ਗਰਬੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
इतने कउ तुम्ह किआ गरबे ॥१॥ रहाउ ॥
अपने इस तुच्छ वजूद वाले शरीर का क्यों अभिमान करते हो।॥ १॥ रहाउ॥
ਤੀਨਿ ਸੇਰ ਕਾ ਦਿਹਾੜੀ ਮਿਹਮਾਨੁ ॥
तीनि सेर का दिहाड़ी मिहमानु ॥
तू इस दुनिया में एक अतिथि है, जिसे रोजाना तीन सेर अन्न खाने को मिलता है।
ਅਵਰ ਵਸਤੁ ਤੁਝ ਪਾਹਿ ਅਮਾਨ ॥੨॥
अवर वसतु तुझ पाहि अमान ॥२॥
अन्य सभी वस्तुएँ तेरे पास धरोहर रूप में रखी हुई हैं।॥ २॥
ਬਿਸਟਾ ਅਸਤ ਰਕਤੁ ਪਰੇਟੇ ਚਾਮ ॥
बिसटा असत रकतु परेटे चाम ॥
तुम विष्टा, हड्डियों, रक्त एवं चमड़ी में लपेटे हुए हो।
ਇਸੁ ਊਪਰਿ ਲੇ ਰਾਖਿਓ ਗੁਮਾਨ ॥੩॥
इसु ऊपरि ले राखिओ गुमान ॥३॥
लेकिन तुम इस पर ही घमण्ड कर रहे हो॥ ३॥
ਏਕ ਵਸਤੁ ਬੂਝਹਿ ਤਾ ਹੋਵਹਿ ਪਾਕ ॥
एक वसतु बूझहि ता होवहि पाक ॥
यदि तुम एक नाम रूपी वस्तु का बोध कर लोगे तो तुम पवित्र-जीवन वाले हो जाओगे।
ਬਿਨੁ ਬੂਝੇ ਤੂੰ ਸਦਾ ਨਾਪਾਕ ॥੪॥
बिनु बूझे तूं सदा नापाक ॥४॥
प्रभु-नाम की सूझ बिना तुम सदैव ही नापाक हो।॥ ४॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਕਉ ਕੁਰਬਾਨੁ ॥
कहु नानक गुर कउ कुरबानु ॥
हे नानक ! मैं अपने गुरु पर बलिहारी जाता हूँ
ਜਿਸ ਤੇ ਪਾਈਐ ਹਰਿ ਪੁਰਖੁ ਸੁਜਾਨੁ ॥੫॥੧੪॥
जिस ते पाईऐ हरि पुरखु सुजानु ॥५॥१४॥
जिसके माध्यम से सर्वज्ञ परमात्मा मिलता है।॥ ५॥ १४॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ਇਕਤੁਕੇ ਚਉਪਦੇ ॥
आसा महला ५ इकतुके चउपदे ॥
आसा महला ५ इकतुके चउपदे ॥
ਇਕ ਘੜੀ ਦਿਨਸੁ ਮੋ ਕਉ ਬਹੁਤੁ ਦਿਹਾਰੇ ॥
इक घड़ी दिनसु मो कउ बहुतु दिहारे ॥
परमेश्वर से वियोग की एक घड़ी भी दिन में मेरे लिए बहुत दिनों के समान है।
ਮਨੁ ਨ ਰਹੈ ਕੈਸੇ ਮਿਲਉ ਪਿਆਰੇ ॥੧॥
मनु न रहै कैसे मिलउ पिआरे ॥१॥
मेरा मन उसके बिना रह नहीं सकता। फिर मैं अपने प्रियतम से कैसे मिलूगी॥ १॥
ਇਕੁ ਪਲੁ ਦਿਨਸੁ ਮੋ ਕਉ ਕਬਹੁ ਨ ਬਿਹਾਵੈ ॥
इकु पलु दिनसु मो कउ कबहु न बिहावै ॥
दिन में एक क्षण भी ईश्वर से जुदा होकर व्यतीत नहीं होता।