Hindi Page 898

ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
रामकली महला ५ ॥

ਕਿਸੁ ਭਰਵਾਸੈ ਬਿਚਰਹਿ ਭਵਨ ॥
किसु भरवासै बिचरहि भवन ॥
अरे तू किसके भरोसे दुनिया में विचरण कर रहा है,

ਮੂੜ ਮੁਗਧ ਤੇਰਾ ਸੰਗੀ ਕਵਨ ॥
मूड़ मुगध तेरा संगी कवन ॥
हे मूर्ख ! यहाँ तेरा कौन साथी है?

ਰਾਮੁ ਸੰਗੀ ਤਿਸੁ ਗਤਿ ਨਹੀ ਜਾਨਹਿ ॥
रामु संगी तिसु गति नही जानहि ॥
राम ही तेरा साथी है किन्तु तू उसकी गति को नहीं जानता।

ਪੰਚ ਬਟਵਾਰੇ ਸੇ ਮੀਤ ਕਰਿ ਮਾਨਹਿ ॥੧॥
पंच बटवारे से मीत करि मानहि ॥१॥
काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार-इन पाँच चोरों को तू अपना मित्र समझ रहा है॥ १॥

ਸੋ ਘਰੁ ਸੇਵਿ ਜਿਤੁ ਉਧਰਹਿ ਮੀਤ ॥
सो घरु सेवि जितु उधरहि मीत ॥
हे मित्र ! उस भगवान की भक्ति करो, जिससे तेरा उद्धार हो जाएगा।

ਗੁਣ ਗੋਵਿੰਦ ਰਵੀਅਹਿ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਸਾਧਸੰਗਿ ਕਰਿ ਮਨ ਕੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुण गोविंद रवीअहि दिनु राती साधसंगि करि मन की प्रीति ॥१॥ रहाउ ॥
दिन-रात गोविंद का स्तुतिगान करना चाहिए और मन में साधुओं की संगति से प्रेम करो। १॥ रहाउ ॥

ਜਨਮੁ ਬਿਹਾਨੋ ਅਹੰਕਾਰਿ ਅਰੁ ਵਾਦਿ ॥
जनमु बिहानो अहंकारि अरु वादि ॥
अहंकार एवं झगड़ों में जन्म व्यर्थ ही व्यतीत हो जाता है।

ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਨ ਆਵੈ ਬਿਖਿਆ ਸਾਦਿ ॥
त्रिपति न आवै बिखिआ सादि ॥
विषय-विकारों के स्वाद में तृप्ति नहीं होती।

ਭਰਮਤ ਭਰਮਤ ਮਹਾ ਦੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥
भरमत भरमत महा दुखु पाइआ ॥
इधर-उधर भटक कर बड़ा दुख प्राप्त होता है।

ਤਰੀ ਨ ਜਾਈ ਦੁਤਰ ਮਾਇਆ ॥੨॥
तरी न जाई दुतर माइआ ॥२॥
इस माया रूपी भयानक नदिया से पार नहीं हुआ जा सकता ॥ २॥

ਕਾਮਿ ਨ ਆਵੈ ਸੁ ਕਾਰ ਕਮਾਵੈ ॥
कामि न आवै सु कार कमावै ॥
तू वही कार्य करता है, जो तेरे किसी काम नहीं आना।

ਆਪਿ ਬੀਜਿ ਆਪੇ ਹੀ ਖਾਵੈ ॥
आपि बीजि आपे ही खावै ॥
तू स्वयं ही अपने शुभाशुभ कर्मों का फल भोगता है।

ਰਾਖਨ ਕਉ ਦੂਸਰ ਨਹੀ ਕੋਇ ॥
राखन कउ दूसर नही कोइ ॥
भगवान के अतिरिक्त अन्य कोई भी रक्षा करने वाला नहीं है।

ਤਉ ਨਿਸਤਰੈ ਜਉ ਕਿਰਪਾ ਹੋਇ ॥੩॥
तउ निसतरै जउ किरपा होइ ॥३॥
यदि उसकी कृपा हो जाए तो ही मुक्ति हो सकती है॥ ३॥

ਪਤਿਤ ਪੁਨੀਤ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰੋ ਨਾਮੁ ॥
पतित पुनीत प्रभ तेरो नामु ॥
हे प्रभु ! तेरा नाम पतितों को पवित्र करने वाला है,

ਅਪਨੇ ਦਾਸ ਕਉ ਕੀਜੈ ਦਾਨੁ ॥
अपने दास कउ कीजै दानु ॥
अपने दास को भी नाम का दान दीजिए।

ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪ੍ਰਭ ਗਤਿ ਕਰਿ ਮੇਰੀ ॥
करि किरपा प्रभ गति करि मेरी ॥
नानक प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु ! कृपा करके मेरी मुक्ति कर दो,

ਸਰਣਿ ਗਹੀ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰੀ ॥੪॥੩੭॥੪੮॥
सरणि गही नानक प्रभ तेरी ॥४॥३७॥४८॥
क्योंकि मैंने तेरी ही शरण ली है॥ ४॥ ३७ ॥ ४८॥

ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
रामकली महला ५ ॥

ਇਹ ਲੋਕੇ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥
इह लोके सुखु पाइआ ॥
जिसे इहलोक में सुख हासिल हो जाता है,

ਨਹੀ ਭੇਟਤ ਧਰਮ ਰਾਇਆ ॥
नही भेटत धरम राइआ ॥
उसकी यमराज से मुलाकात नहीं होती।

ਹਰਿ ਦਰਗਹ ਸੋਭਾਵੰਤ ॥
हरि दरगह सोभावंत ॥
भगवान के दरबार में वह शोभा का पात्र बन जाता है और

ਫੁਨਿ ਗਰਭਿ ਨਾਹੀ ਬਸੰਤ ॥੧॥
फुनि गरभि नाही बसंत ॥१॥
दोबारा गर्भ में निवास नहीं करता ॥ १ ॥

ਜਾਨੀ ਸੰਤ ਕੀ ਮਿਤ੍ਰਾਈ ॥
जानी संत की मित्राई ॥
मैंने संत की मित्रता जान ली है,

ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਦੀਨੋ ਹਰਿ ਨਾਮਾ ਪੂਰਬਿ ਸੰਜੋਗਿ ਮਿਲਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
करि किरपा दीनो हरि नामा पूरबि संजोगि मिलाई ॥१॥ रहाउ ॥
उन्होंने कृपा करके हरि-नाम ही दिया है और पूर्व संयोग से ही संतों से मिलाप होता है॥ १॥ रहाउ॥

ਗੁਰ ਕੈ ਚਰਣਿ ਚਿਤੁ ਲਾਗਾ ॥
गुर कै चरणि चितु लागा ॥
जब गुरु के चरणों में चित्त लगा,

ਧੰਨਿ ਧੰਨਿ ਸੰਜੋਗੁ ਸਭਾਗਾ ॥
धंनि धंनि संजोगु सभागा ॥
वह सौभाग्य एवं संयोग धन्य है।

ਸੰਤ ਕੀ ਧੂਰਿ ਲਾਗੀ ਮੇਰੈ ਮਾਥੇ ॥
संत की धूरि लागी मेरै माथे ॥
जब संतों की चरण-धूलि मेरे माथे पर लगी तो

ਕਿਲਵਿਖ ਦੁਖ ਸਗਲੇ ਮੇਰੇ ਲਾਥੇ ॥੨॥
किलविख दुख सगले मेरे लाथे ॥२॥
सब दुख-क्लेश एवं पाप दूर हो गए॥ २॥

ਸਾਧ ਕੀ ਸਚੁ ਟਹਲ ਕਮਾਨੀ ॥
साध की सचु टहल कमानी ॥
जब श्रद्धा से साधु महात्मा की सच्ची सेवा की जाती है,”

ਤਬ ਹੋਏ ਮਨ ਸੁਧ ਪਰਾਨੀ ॥
तब होए मन सुध परानी ॥
हे प्राणी ! मन तभी शुद्ध होता है।

ਜਨ ਕਾ ਸਫਲ ਦਰਸੁ ਡੀਠਾ ॥
जन का सफल दरसु डीठा ॥
जिसने संतजनों का सफल दर्शन किया है,

ਨਾਮੁ ਪ੍ਰਭੂ ਕਾ ਘਟਿ ਘਟਿ ਵੂਠਾ ॥੩॥
नामु प्रभू का घटि घटि वूठा ॥३॥
उसे प्रभु का नाम प्रत्येक हृदय में निवासित लगता है॥ ३॥

ਮਿਟਾਨੇ ਸਭਿ ਕਲਿ ਕਲੇਸ ॥
मिटाने सभि कलि कलेस ॥
सभी कलह-क्लेश मिट गए हैं और

ਜਿਸ ਤੇ ਉਪਜੇ ਤਿਸੁ ਮਹਿ ਪਰਵੇਸ ॥
जिस ते उपजे तिसु महि परवेस ॥
जिससे उत्पन्न हुए थे, उसमें प्रविष्ट हो गए हैं।

ਪ੍ਰਗਟੇ ਆਨੂਪ ਗੋੁਵਿੰਦ ॥ ਪ੍ਰਭ ਪੂਰੇ ਨਾਨਕ ਬਖਸਿੰਦ ॥੪॥੩੮॥੪੯॥
प्रगटे आनूप गोविंद ॥ प्रभ पूरे नानक बखसिंद ॥४॥३८॥४९॥
गोविन्द का अनुपम प्रताप प्रगट हुआ है। हे नानक ! पूर्ण प्रभु क्षमावान है ॥४॥३८॥४६॥

ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
रामकली महला ५ ॥

ਗਊ ਕਉ ਚਾਰੇ ਸਾਰਦੂਲੁ ॥
गऊ कउ चारे सारदूलु ॥
नम्रता रूपी गाय को अहम् रूपी शेर चरा रहा है,

ਕਉਡੀ ਕਾ ਲਖ ਹੂਆ ਮੂਲੁ ॥
कउडी का लख हूआ मूलु ॥
देह कौड़ी का मूल्य लाख रुपए हो गया है तथा

ਬਕਰੀ ਕਉ ਹਸਤੀ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲੇ ॥ ਅਪਨਾ ਪ੍ਰਭੁ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲੇ ॥੧॥
बकरी कउ हसती प्रतिपाले ॥ अपना प्रभु नदरि निहाले ॥१॥
हाथी बकरी का पालन-पोषण कर रहा है प्रभु ने ऐसी कृपा-दृष्टि कर दी है॥ १॥

ਕ੍ਰਿਪਾ ਨਿਧਾਨ ਪ੍ਰੀਤਮ ਪ੍ਰਭ ਮੇਰੇ ॥
क्रिपा निधान प्रीतम प्रभ मेरे ॥
हे मेरे प्रियतम प्रभु! तू कृपानिधि है,

ਬਰਨਿ ਨ ਸਾਕਉ ਬਹੁ ਗੁਨ ਤੇਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
बरनि न साकउ बहु गुन तेरे ॥१॥ रहाउ ॥
मैं तेरे अनेक गुणों का बखान नहीं कर सकता ॥ १॥ रहाउ॥

ਦੀਸਤ ਮਾਸੁ ਨ ਖਾਇ ਬਿਲਾਈ ॥
दीसत मासु न खाइ बिलाई ॥
सामने नजर आ रहा विकार रूपी मांस तृष्णा रूपी बिल्ली नहीं खा रही,”

ਮਹਾ ਕਸਾਬਿ ਛੁਰੀ ਸਟਿ ਪਾਈ ॥
महा कसाबि छुरी सटि पाई ॥
क्रोध रूपी निर्दयी कसाई ने हिंसा रूपी छुरी अपने हाथ से फेंक दी है,

ਕਰਣਹਾਰ ਪ੍ਰਭੁ ਹਿਰਦੈ ਵੂਠਾ ॥
करणहार प्रभु हिरदै वूठा ॥
सृजनहार प्रभु हृदय में आ बसा है,

ਫਾਥੀ ਮਛੁਲੀ ਕਾ ਜਾਲਾ ਤੂਟਾ ॥੨॥
फाथी मछुली का जाला तूटा ॥२॥
फँसी हुई मछली का जाल टूट गया है॥ २॥

ਸੂਕੇ ਕਾਸਟ ਹਰੇ ਚਲੂਲ ॥ ਊਚੈ ਥਲਿ ਫੂਲੇ ਕਮਲ ਅਨੂਪ ॥
सूके कासट हरे चलूल ॥ ऊचै थलि फूले कमल अनूप ॥
सूखे हुए वृक्ष हरे भरे हो गए हैं, ऊँचे रेगिस्तान पर भी सुन्दर कमल के फूल खिल गए हैं।

ਅਗਨਿ ਨਿਵਾਰੀ ਸਤਿਗੁਰ ਦੇਵ ॥
अगनि निवारी सतिगुर देव ॥
सतगुरु ने तृष्णाग्नि बुझा दी है और

ਸੇਵਕੁ ਅਪਨੀ ਲਾਇਓ ਸੇਵ ॥੩॥
सेवकु अपनी लाइओ सेव ॥३॥
सेवक को अपनी सेवा में लगा लिया है॥ ३॥

ਅਕਿਰਤਘਣਾ ਕਾ ਕਰੇ ਉਧਾਰੁ ॥
अकिरतघणा का करे उधारु ॥
कृतघ्न जीवों का भी उद्धार कर देता है

ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਰਾ ਹੈ ਸਦਾ ਦਇਆਰੁ ॥
प्रभु मेरा है सदा दइआरु ॥
मेरा प्रभु सदा ही दयालु है,

ਸੰਤ ਜਨਾ ਕਾ ਸਦਾ ਸਹਾਈ ॥
संत जना का सदा सहाई ॥
वह संतजनों का सदा सहायक है और

ਚਰਨ ਕਮਲ ਨਾਨਕ ਸਰਣਾਈ ॥੪॥੩੯॥੫੦॥
चरन कमल नानक सरणाई ॥४॥३९॥५०॥
नानक ने भी उसके चरणों की शरण ली है।४॥ ३६॥ ५० ॥

ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
रामकली महला ५ ॥

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