ਚਰਣ ਤਲੈ ਉਗਾਹਿ ਬੈਸਿਓ ਸ੍ਰਮੁ ਨ ਰਹਿਓ ਸਰੀਰਿ ॥
चरण तलै उगाहि बैसिओ स्रमु न रहिओ सरीरि ॥
जो व्यक्ति लकड़ी से बनी हुई नाव को पैरों तले दबा कर उसमें बैठ गया है, उसके शरीर की थकावट दूर हो गई है।
ਮਹਾ ਸਾਗਰੁ ਨਹ ਵਿਆਪੈ ਖਿਨਹਿ ਉਤਰਿਓ ਤੀਰਿ ॥੨॥
महा सागरु नह विआपै खिनहि उतरिओ तीरि ॥२॥
महासागर ने भी कोई विघ्न पैदा नहीं किया और एक क्षण में ही सागर के तट पर जा उतारा है॥ २॥
ਚੰਦਨ ਅਗਰ ਕਪੂਰ ਲੇਪਨ ਤਿਸੁ ਸੰਗੇ ਨਹੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ॥
चंदन अगर कपूर लेपन तिसु संगे नही प्रीति ॥
धरती की चन्दन, अगर, कपूर के लेपन एवं सुगन्धि से कोई प्रीति नहीं,
ਬਿਸਟਾ ਮੂਤ੍ਰ ਖੋਦਿ ਤਿਲੁ ਤਿਲੁ ਮਨਿ ਨ ਮਨੀ ਬਿਪਰੀਤਿ ॥੩॥
बिसटा मूत्र खोदि तिलु तिलु मनि न मनी बिपरीति ॥३॥
यदि कोई विष्ठा, मूत्र फेंकता व खोदकर तिल-तिल भी कर देता है तो वह अपने मन में घृणा नहीं करती (वैसे ही संतजन सहिष्णु हैं)॥ ३॥
ਊਚ ਨੀਚ ਬਿਕਾਰ ਸੁਕ੍ਰਿਤ ਸੰਲਗਨ ਸਭ ਸੁਖ ਛਤ੍ਰ ॥
ऊच नीच बिकार सुक्रित संलगन सभ सुख छत्र ॥
सब को सुख देने वाला आकाश रूपी छत्र सबके संग संबंध बनाकर रखता है, चाहे कोई ऊँची अथवा निम्न जाति का है कोई बुराई अथवा भलाई करने वाला है।
ਮਿਤ੍ਰ ਸਤ੍ਰੁ ਨ ਕਛੂ ਜਾਨੈ ਸਰਬ ਜੀਅ ਸਮਤ ॥੪॥
मित्र सत्रु न कछू जानै सरब जीअ समत ॥४॥
वह किसी को अपना मित्र अथवा शत्रु नहीं समझता अपितु सबको एक समान मानता है (वैसे ही संतों के लिए सब एक समान हैं)॥ ४॥
ਕਰਿ ਪ੍ਰਗਾਸੁ ਪ੍ਰਚੰਡ ਪ੍ਰਗਟਿਓ ਅੰਧਕਾਰ ਬਿਨਾਸ ॥
करि प्रगासु प्रचंड प्रगटिओ अंधकार बिनास ॥
सूर्य अपना प्रचण्ड प्रकाश करके प्रगट हो जाता है और अंधकार मिट जाता है,
ਪਵਿਤ੍ਰ ਅਪਵਿਤ੍ਰਹ ਕਿਰਣ ਲਾਗੇ ਮਨਿ ਨ ਭਇਓ ਬਿਖਾਦੁ ॥੫॥
पवित्र अपवित्रह किरण लागे मनि न भइओ बिखादु ॥५॥
उसकी किरणें सभी पवित्र-अपवित्र जीवों को स्पर्श करती हैं परन्तु उसके मन में इस बात का कोई दुख नहीं होता (वैसे ही संतजन सूर्य की मानिंद हैं)॥ ५॥
ਸੀਤ ਮੰਦ ਸੁਗੰਧ ਚਲਿਓ ਸਰਬ ਥਾਨ ਸਮਾਨ ॥
सीत मंद सुगंध चलिओ सरब थान समान ॥
शीतल एवं सुगन्धित वायु मन्द-मन्द सब स्थानों पर समान रूप में बहती है।
ਜਹਾ ਸਾ ਕਿਛੁ ਤਹਾ ਲਾਗਿਓ ਤਿਲੁ ਨ ਸੰਕਾ ਮਾਨ ॥੬॥
जहा सा किछु तहा लागिओ तिलु न संका मान ॥६॥
जहाँ कहीं भी कोई अच्छा-बुरा जीव होता है, वहाँ ही उसे छूती है और तिल भर संकोच नहीं करती (वैसे ही संत मानवता का कल्याण करते हैं)॥ ६॥
ਸੁਭਾਇ ਅਭਾਇ ਜੁ ਨਿਕਟਿ ਆਵੈ ਸੀਤੁ ਤਾ ਕਾ ਜਾਇ ॥
सुभाइ अभाइ जु निकटि आवै सीतु ता का जाइ ॥
अच्छे-बुरे स्वभाव वाला जो भी व्यक्ति अग्नि के निकट आता है, उसकी शीत दूर हो जाती है।
ਆਪ ਪਰ ਕਾ ਕਛੁ ਨ ਜਾਣੈ ਸਦਾ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਇ ॥੭॥
आप पर का कछु न जाणै सदा सहजि सुभाइ ॥७॥
अग्नि अपने पराए के भेद को कुछ भी नहीं जानती और सहज-स्वभाव विचरण करती है (वैसे ही संत सबका भला करते हैं)॥ ७॥
ਚਰਣ ਸਰਣ ਸਨਾਥ ਇਹੁ ਮਨੁ ਰੰਗਿ ਰਾਤੇ ਲਾਲ ॥
चरण सरण सनाथ इहु मनु रंगि राते लाल ॥
जो इनकी चरण शरण में आ जाता है, उसे अवलम्य मिल जाता है और उसका मन प्रियतम के रंग में रंगा रहता है।
ਗੋਪਾਲ ਗੁਣ ਨਿਤ ਗਾਉ ਨਾਨਕ ਭਏ ਪ੍ਰਭ ਕਿਰਪਾਲ ॥੮॥੩॥
गोपाल गुण नित गाउ नानक भए प्रभ किरपाल ॥८॥३॥
हे नानक ! प्रभु कृपालु हो गया है, नित्य उसका गुणगान करो॥ ८॥ ३॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੪ ਅਸਟਪਦੀਆ
मारू महला ५ घरु ४ असटपदीआ
मारू महला ५ घरु ४ असटपदीआ
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि॥
ਚਾਦਨਾ ਚਾਦਨੁ ਆਂਗਨਿ ਪ੍ਰਭ ਜੀਉ ਅੰਤਰਿ ਚਾਦਨਾ ॥੧॥
चादना चादनु आंगनि प्रभ जीउ अंतरि चादना ॥१॥
हृदय रूपी ऑगन में प्रभु का प्रकाश ही सबसे बड़ी चाँदनी है॥ १॥
ਆਰਾਧਨਾ ਅਰਾਧਨੁ ਨੀਕਾ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਅਰਾਧਨਾ ॥੨॥
आराधना अराधनु नीका हरि हरि नामु अराधना ॥२॥
अगर आराधना करनी है तो ईश्वर की करो, यही सफल आराधना है॥ २॥
ਤਿਆਗਨਾ ਤਿਆਗਨੁ ਨੀਕਾ ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਲੋਭੁ ਤਿਆਗਨਾ ॥੩॥
तिआगना तिआगनु नीका कामु क्रोधु लोभु तिआगना ॥३॥
(अगर त्यागना है तो) मन में से काम, क्रोध एवं लोभ का त्याग करो, यही सबसे बड़ा त्याग है॥ ३॥
ਮਾਗਨਾ ਮਾਗਨੁ ਨੀਕਾ ਹਰਿ ਜਸੁ ਗੁਰ ਤੇ ਮਾਗਨਾ ॥੪॥
मागना मागनु नीका हरि जसु गुर ते मागना ॥४॥
सबसे बड़ी माँग गुरु से हरि-यश माँगना है॥ ४॥
ਜਾਗਨਾ ਜਾਗਨੁ ਨੀਕਾ ਹਰਿ ਕੀਰਤਨ ਮਹਿ ਜਾਗਨਾ ॥੫॥
जागना जागनु नीका हरि कीरतन महि जागना ॥५॥
जागने में जागरण हरि-संकीर्तन में जागना है॥ ५॥
ਲਾਗਨਾ ਲਾਗਨੁ ਨੀਕਾ ਗੁਰ ਚਰਣੀ ਮਨੁ ਲਾਗਨਾ ॥੬॥
लागना लागनु नीका गुर चरणी मनु लागना ॥६॥
गुरु-चरणों में मन को लगाना ही सर्वोत्तम लगन है॥ ६॥
ਇਹ ਬਿਧਿ ਤਿਸਹਿ ਪਰਾਪਤੇ ਜਾ ਕੈ ਮਸਤਕਿ ਭਾਗਨਾ ॥੭॥
इह बिधि तिसहि परापते जा कै मसतकि भागना ॥७॥
जिसके माथे पर उत्तम भाग्य होता है, उसे ही इस युक्ति की प्राप्ति होती है॥ ७॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਤਿਸੁ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਨੀਕਾ ਜੋ ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਸਰਨਾਗਨਾ ॥੮॥੧॥੪॥
कहु नानक तिसु सभु किछु नीका जो प्रभ की सरनागना ॥८॥१॥४॥
हे नानक ! जो प्रभु की शरण में आ जाता है, उसके लिए सब कुछ अच्छा होता है॥८॥१॥४॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मारू महला ५ ॥
मारू महला ५॥
ਆਉ ਜੀ ਤੂ ਆਉ ਹਮਾਰੈ ਹਰਿ ਜਸੁ ਸ੍ਰਵਨ ਸੁਨਾਵਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
आउ जी तू आउ हमारै हरि जसु स्रवन सुनावना ॥१॥ रहाउ ॥
हे संतजनो ! मेरे घर में आओ, कानों में भगवान का यश सुनाओ॥ १॥ रहाउ॥
ਤੁਧੁ ਆਵਤ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਤਨੁ ਹਰਿਆ ਹਰਿ ਜਸੁ ਤੁਮ ਸੰਗਿ ਗਾਵਨਾ ॥੧॥
तुधु आवत मेरा मनु तनु हरिआ हरि जसु तुम संगि गावना ॥१॥
तुम्हारे आने से मन-तन खिल जाता है और तुम्हारे संग मिलकर ईश्वर का ही गुणगान करना है॥ १॥
ਸੰਤ ਕ੍ਰਿਪਾ ਤੇ ਹਿਰਦੈ ਵਾਸੈ ਦੂਜਾ ਭਾਉ ਮਿਟਾਵਨਾ ॥੨॥
संत क्रिपा ते हिरदै वासै दूजा भाउ मिटावना ॥२॥
संतों की कृपा से हृदय में सत्य स्थित होता है और द्वैतभाव मिट जाता है॥ २॥
ਭਗਤ ਦਇਆ ਤੇ ਬੁਧਿ ਪਰਗਾਸੈ ਦੁਰਮਤਿ ਦੂਖ ਤਜਾਵਨਾ ॥੩॥
भगत दइआ ते बुधि परगासै दुरमति दूख तजावना ॥३॥
भक्तों की दया से बुद्धि आलोकित हो जाती है और दुर्मति के सब दुख दूर होते हैं।॥ ३॥
ਦਰਸਨੁ ਭੇਟਤ ਹੋਤ ਪੁਨੀਤਾ ਪੁਨਰਪਿ ਗਰਭਿ ਨ ਪਾਵਨਾ ॥੪॥
दरसनु भेटत होत पुनीता पुनरपि गरभि न पावना ॥४॥
संतों के दर्शन एवं भेंट से ही जीवन-आचरण पावन होता है और गर्भ-योनि से छुटकारा हो जाता है॥ ४॥
ਨਉ ਨਿਧਿ ਰਿਧਿ ਸਿਧਿ ਪਾਈ ਜੋ ਤੁਮਰੈ ਮਨਿ ਭਾਵਨਾ ॥੫॥
नउ निधि रिधि सिधि पाई जो तुमरै मनि भावना ॥५॥
जो तुम्हारे मन को है, उसे नौ निधियाँ, ऋद्धियों, सिद्धियाँ हासिल हो जाती हैं॥ ५॥
ਸੰਤ ਬਿਨਾ ਮੈ ਥਾਉ ਨ ਕੋਈ ਅਵਰ ਨ ਸੂਝੈ ਜਾਵਨਾ ॥੬॥
संत बिना मै थाउ न कोई अवर न सूझै जावना ॥६॥
संतों के बिना मेरा अन्य स्थान नहीं और अन्य स्थान जाना भी नहीं सूझता॥ ६॥
ਮੋਹਿ ਨਿਰਗੁਨ ਕਉ ਕੋਇ ਨ ਰਾਖੈ ਸੰਤਾ ਸੰਗਿ ਸਮਾਵਨਾ ॥੭॥
मोहि निरगुन कउ कोइ न राखै संता संगि समावना ॥७॥
मुझ निर्गुण को कोई बचाने वाला है, इसलिए संतों के संग ही रहना है॥ ७॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਗੁਰਿ ਚਲਤੁ ਦਿਖਾਇਆ ਮਨ ਮਧੇ ਹਰਿ ਹਰਿ ਰਾਵਨਾ ॥੮॥੨॥੫॥
कहु नानक गुरि चलतु दिखाइआ मन मधे हरि हरि रावना ॥८॥२॥५॥
हे नानक ! गुरु ने कौतुक दिखा दिया है, अब में ही प्रभु-दर्शन से सुख मिल गया है॥ ८॥ २॥ ५॥