Hindi Page 777

ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਤਨਿ ਲੋਚਾ ਗੁਰਮੁਖੇ ਰਾਮ ਰਾਜਿਆ ਹਰਿ ਸਰਧਾ ਸੇਜ ਵਿਛਾਈ ॥
मेरै मनि तनि लोचा गुरमुखे राम राजिआ हरि सरधा सेज विछाई ॥
मेरे मन एवं तन में तेरी ही लालसा है। हे हरि ! मैंने तेरे मिलन के लिए अपने हृदय में श्रद्धा की सेज बिछा रखी है।

ਜਨ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਭਾਣੀਆ ਰਾਮ ਰਾਜਿਆ ਮਿਲਿਆ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਈ ॥੩॥
जन नानक हरि प्रभ भाणीआ राम राजिआ मिलिआ सहजि सुभाई ॥३॥
नानक का कथन है कि जब जीव-स्त्री प्रभु को भा गई तो वह उसे सहज स्वभाव ही मिल गया ॥ ३॥

ਇਕਤੁ ਸੇਜੈ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੋ ਰਾਮ ਰਾਜਿਆ ਗੁਰੁ ਦਸੇ ਹਰਿ ਮੇਲੇਈ ॥
इकतु सेजै हरि प्रभो राम राजिआ गुरु दसे हरि मेलेई ॥
प्रभु जीव-स्त्री के साथ एक ही हृदय-सेज पर मौजूद है परन्तु जीव-स्त्री को यह भेद गुरु बताता है और उसे परमात्मा से मिला देता है।

ਮੈ ਮਨਿ ਤਨਿ ਪ੍ਰੇਮ ਬੈਰਾਗੁ ਹੈ ਰਾਮ ਰਾਜਿਆ ਗੁਰੁ ਮੇਲੇ ਕਿਰਪਾ ਕਰੇਈ ॥
मै मनि तनि प्रेम बैरागु है राम राजिआ गुरु मेले किरपा करेई ॥
मेरे मन एवं तन में परमात्मा के लिए प्रेम है और उसे मिलने के लिए वैराग्य पैदा हो गया है। गुरु कृपा करके मुझे उससे मिला दे।

ਹਉ ਗੁਰ ਵਿਟਹੁ ਘੋਲਿ ਘੁਮਾਇਆ ਰਾਮ ਰਾਜਿਆ ਜੀਉ ਸਤਿਗੁਰ ਆਗੈ ਦੇਈ ॥
हउ गुर विटहु घोलि घुमाइआ राम राजिआ जीउ सतिगुर आगै देई ॥
मैं गुरु पर कोटि-कोटि कुर्बान जाती हूँ, यह प्राण भी उस पर न्योछावर हैं।

ਗੁਰੁ ਤੁਠਾ ਜੀਉ ਰਾਮ ਰਾਜਿਆ ਜਨ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਮੇਲੇਈ ॥੪॥੨॥੬॥੫॥੭॥੬॥੧੮॥
गुरु तुठा जीउ राम राजिआ जन नानक हरि मेलेई ॥४॥२॥६॥५॥७॥६॥१८॥
नानक का कथन है कि जब गुरु प्रसन्न हो गया तो उसने उसे हरि से मिला दिया ॥ ४ ॥ २ ॥ ६ ॥ ५ ॥ ७ ॥ ६॥ १८॥

ਰਾਗੁ ਸੂਹੀ ਛੰਤ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੧
रागु सूही छंत महला ५ घरु १
रागु सूही छंत महला ५ घरु १

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

ਸੁਣਿ ਬਾਵਰੇ ਤੂ ਕਾਏ ਦੇਖਿ ਭੁਲਾਨਾ ॥
सुणि बावरे तू काए देखि भुलाना ॥
अरे पगले ! मेरी बात सुन, तू जगत्-तमाशे को देखकर क्यों भूला हुआ है ?

ਸੁਣਿ ਬਾਵਰੇ ਨੇਹੁ ਕੂੜਾ ਲਾਇਓ ਕੁਸੰਭ ਰੰਗਾਨਾ ॥
सुणि बावरे नेहु कूड़ा लाइओ कुस्मभ रंगाना ॥
इससे झूठा प्रेम लगाया हुआ है, इसका रंग कुसुंभ के फूल जैसा है।

ਕੂੜੀ ਡੇਖਿ ਭੁਲੋ ਅਢੁ ਲਹੈ ਨ ਮੁਲੋ ਗੋਵਿਦ ਨਾਮੁ ਮਜੀਠਾ ॥
कूड़ी डेखि भुलो अढु लहै न मुलो गोविद नामु मजीठा ॥
झूठी माया को देखकर तू भूल गया है, तुझे इसका मूल्य कौड़ियों में भी नहीं मिलना। गोविन्द का नाम मजीठ जैसा स्थिर रहने वाला है।

ਥੀਵਹਿ ਲਾਲਾ ਅਤਿ ਗੁਲਾਲਾ ਸਬਦੁ ਚੀਨਿ ਗੁਰ ਮੀਠਾ ॥
थीवहि लाला अति गुलाला सबदु चीनि गुर मीठा ॥
गुरु के शब्द को मीठा समझकर तू गुलाल जैसा गहरे रंग वाला पोस्त का सुन्दर फूल बन जाएगा।

ਮਿਥਿਆ ਮੋਹਿ ਮਗਨੁ ਥੀ ਰਹਿਆ ਝੂਠ ਸੰਗਿ ਲਪਟਾਨਾ ॥
मिथिआ मोहि मगनु थी रहिआ झूठ संगि लपटाना ॥
तू माया के मिथ्या मोह में ही मग्न है और झूठ के साथ लिपटा हुआ है।

ਨਾਨਕ ਦੀਨ ਸਰਣਿ ਕਿਰਪਾ ਨਿਧਿ ਰਾਖੁ ਲਾਜ ਭਗਤਾਨਾ ॥੧॥
नानक दीन सरणि किरपा निधि राखु लाज भगताना ॥१॥
नानक प्रार्थना करता है कि हे कृपानिधि ! मैं गरीब तेरी शरण में आया हूँ। जैसे तू अपने भक्तों की लाज रखता है, मेरी भी लाज रखो ॥ १ ॥

ਸੁਣਿ ਬਾਵਰੇ ਸੇਵਿ ਠਾਕੁਰੁ ਨਾਥੁ ਪਰਾਣਾ ॥
सुणि बावरे सेवि ठाकुरु नाथु पराणा ॥
हे विमूढ़ जीव ! सुन, तू प्राणनाथ ठाकुर जी की उपासना कर।

ਸੁਣਿ ਬਾਵਰੇ ਜੋ ਆਇਆ ਤਿਸੁ ਜਾਣਾ ॥
सुणि बावरे जो आइआ तिसु जाणा ॥
जो भी इस जगत् में जन्म लेकर आया है, उसने एक न एक दिन यहाँ से चले जाना है।

ਨਿਹਚਲੁ ਹਭ ਵੈਸੀ ਸੁਣਿ ਪਰਦੇਸੀ ਸੰਤਸੰਗਿ ਮਿਲਿ ਰਹੀਐ ॥
निहचलु हभ वैसी सुणि परदेसी संतसंगि मिलि रहीऐ ॥
हे परदेसी ! ध्यानपूर्वक सुन; संतों की संगति में मिलकर रहना चाहिए क्योंकि यह सारी दुनिया नाशवान है।

ਹਰਿ ਪਾਈਐ ਭਾਗੀ ਸੁਣਿ ਬੈਰਾਗੀ ਚਰਣ ਪ੍ਰਭੂ ਗਹਿ ਰਹੀਐ ॥
हरि पाईऐ भागी सुणि बैरागी चरण प्रभू गहि रहीऐ ॥
हे वैरागी ! सुन, भाग्य से ही भगवान् प्राप्त होता है एवं प्रभु-चरणों में पड़े रहना चाहिए।

ਏਹੁ ਮਨੁ ਦੀਜੈ ਸੰਕ ਨ ਕੀਜੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਤਜਿ ਬਹੁ ਮਾਣਾ ॥
एहु मनु दीजै संक न कीजै गुरमुखि तजि बहु माणा ॥
अपना मन ईश्वर को अर्पण कर देना चाहिए, कोई शंका नहीं करनी चाहिए और गुरुमुख बनकर घमण्ड को त्याग दो।

ਨਾਨਕ ਦੀਨ ਭਗਤ ਭਵ ਤਾਰਣ ਤੇਰੇ ਕਿਆ ਗੁਣ ਆਖਿ ਵਖਾਣਾ ॥੨॥
नानक दीन भगत भव तारण तेरे किआ गुण आखि वखाणा ॥२॥
नानक प्रार्थना करता है कि हे प्रभु ! तू गरीब एवं भक्तों का संसार-सागर से उद्धार करने वाला है। मैं तेरे कौन-कौन से गुण कहकर बखान करूँ ? ॥ २॥

ਸੁਣਿ ਬਾਵਰੇ ਕਿਆ ਕੀਚੈ ਕੂੜਾ ਮਾਨੋ ॥
सुणि बावरे किआ कीचै कूड़ा मानो ॥
हे बावरे जीव ! जरा सुन; क्यों झूठा अहंकार करता है ?

ਸੁਣਿ ਬਾਵਰੇ ਹਭੁ ਵੈਸੀ ਗਰਬੁ ਗੁਮਾਨੋ ॥
सुणि बावरे हभु वैसी गरबु गुमानो ॥
तेरा सारा घमण्ड एवं गुमान नाश हो जाएगा।

ਨਿਹਚਲੁ ਹਭ ਜਾਣਾ ਮਿਥਿਆ ਮਾਣਾ ਸੰਤ ਪ੍ਰਭੂ ਹੋਇ ਦਾਸਾ ॥
निहचलु हभ जाणा मिथिआ माणा संत प्रभू होइ दासा ॥
स्थिर लगता यह सारा जगत् चला जाएगा; तेरा अभिमान झूठा है, इसलिए प्रभु के संतों का दास बन जा।

ਜੀਵਤ ਮਰੀਐ ਭਉਜਲੁ ਤਰੀਐ ਜੇ ਥੀਵੈ ਕਰਮਿ ਲਿਖਿਆਸਾ ॥
जीवत मरीऐ भउजलु तरीऐ जे थीवै करमि लिखिआसा ॥
यदि तेरी किस्मत में ऐसा लिखा हो तो तू जगत के मोह से जीते जी मरकर भवसागर में से पार हो जाए।

ਗੁਰੁ ਸੇਵੀਜੈ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਜੈ ਜਿਸੁ ਲਾਵਹਿ ਸਹਜਿ ਧਿਆਨੋ ॥
गुरु सेवीजै अम्रितु पीजै जिसु लावहि सहजि धिआनो ॥
परमात्मा जिससे सहज ही अपना ध्यान-मनन करवाता है, वही गुरु की सेवा करता है और नाम-अमृत पीता रहता है।

ਨਾਨਕੁ ਸਰਣਿ ਪਇਆ ਹਰਿ ਦੁਆਰੈ ਹਉ ਬਲਿ ਬਲਿ ਸਦ ਕੁਰਬਾਨੋ ॥੩॥
नानकु सरणि पइआ हरि दुआरै हउ बलि बलि सद कुरबानो ॥३॥
हे भाई ! नानक हरि के द्वार पर उसकी शरण में पड़ा है और सदैव उस पर कुर्बान जाता है॥ ३॥

ਸੁਣਿ ਬਾਵਰੇ ਮਤੁ ਜਾਣਹਿ ਪ੍ਰਭੁ ਮੈ ਪਾਇਆ ॥
सुणि बावरे मतु जाणहि प्रभु मै पाइआ ॥
हे मूर्ख जीव ! सुन, यह मत समझ कि तूने प्रभु को पा लिया है।

ਸੁਣਿ ਬਾਵਰੇ ਥੀਉ ਰੇਣੁ ਜਿਨੀ ਪ੍ਰਭੁ ਧਿਆਇਆ ॥
सुणि बावरे थीउ रेणु जिनी प्रभु धिआइआ ॥
जिन्होंने प्रभु का मनन किया है, तू उनके चरणों की धूलि बन जा।

ਜਿਨਿ ਪ੍ਰਭੁ ਧਿਆਇਆ ਤਿਨਿ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਵਡਭਾਗੀ ਦਰਸਨੁ ਪਾਈਐ ॥
जिनि प्रभु धिआइआ तिनि सुखु पाइआ वडभागी दरसनु पाईऐ ॥
जिन्होंने प्रभु का ध्यान किया है, उन्हें ही सुख उपलब्ध हुआ है और भाग्यशाली को ही परमात्मा के दर्शन होते हैं।

ਥੀਉ ਨਿਮਾਣਾ ਸਦ ਕੁਰਬਾਣਾ ਸਗਲਾ ਆਪੁ ਮਿਟਾਈਐ ॥
थीउ निमाणा सद कुरबाणा सगला आपु मिटाईऐ ॥
विनम्र बनकर हमेशा प्रभु पर कुर्बान होना चाहिए और अपना सारा अहंत्व मिटा देना चाहिए।

ਓਹੁ ਧਨੁ ਭਾਗ ਸੁਧਾ ਜਿਨਿ ਪ੍ਰਭੁ ਲਧਾ ਹਮ ਤਿਸੁ ਪਹਿ ਆਪੁ ਵੇਚਾਇਆ ॥
ओहु धनु भाग सुधा जिनि प्रभु लधा हम तिसु पहि आपु वेचाइआ ॥
जिसने प्रभु को ढूंढ लिया है, वह धन्य एवं भाग्यशाली है और मैंने अपना आप उसे बेचा हुआ है।

ਨਾਨਕ ਦੀਨ ਸਰਣਿ ਸੁਖ ਸਾਗਰ ਰਾਖੁ ਲਾਜ ਅਪਨਾਇਆ ॥੪॥੧॥
नानक दीन सरणि सुख सागर राखु लाज अपनाइआ ॥४॥१॥
नानक प्रार्थना करता है कि हे सुखों के सागर प्रभु ! मैं गरीब तेरी शरण में आया हूँ, अपने सेवक की लाज रखो॥ ४॥ १॥

ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सूही महला ५ ॥
सूही महला ५ ॥

ਹਰਿ ਚਰਣ ਕਮਲ ਕੀ ਟੇਕ ਸਤਿਗੁਰਿ ਦਿਤੀ ਤੁਸਿ ਕੈ ਬਲਿ ਰਾਮ ਜੀਉ ॥
हरि चरण कमल की टेक सतिगुरि दिती तुसि कै बलि राम जीउ ॥
सतगुरु ने प्रसन्न होकर मुझे हरि चरणों का सहारा दिया है।

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