Hindi Page 812

ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥

ਸ੍ਰਵਨੀ ਸੁਨਉ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰੇ ਠਾਕੁਰ ਜਸੁ ਗਾਵਉ ॥
स्रवनी सुनउ हरि हरि हरे ठाकुर जसु गावउ ॥
कानों से ‘हरि-हरि’ नाम सुनता रहूँ और ठाकुर जी का यश गाता रहूँ।

ਸੰਤ ਚਰਣ ਕਰ ਸੀਸੁ ਧਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਵਉ ॥੧॥
संत चरण कर सीसु धरि हरि नामु धिआवउ ॥१॥
मैं अपना शीश संतों के चरणों पर रखकर हरि-नाम का ध्यान करता रहूँ ॥१॥

ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਦਇਆਲ ਪ੍ਰਭ ਇਹ ਨਿਧਿ ਸਿਧਿ ਪਾਵਉ ॥
करि किरपा दइआल प्रभ इह निधि सिधि पावउ ॥
हे दयालु प्रभु! ऐसी कृपा करो कि मुझे यह निधियाँ सिद्धियाँ प्राप्त हो जाएँ।

ਸੰਤ ਜਨਾ ਕੀ ਰੇਣੁਕਾ ਲੈ ਮਾਥੈ ਲਾਵਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
संत जना की रेणुका लै माथै लावउ ॥१॥ रहाउ ॥
में तेरे संतजनों की चरण-रज लेकर अपने माथे पर लगाता रहूँ ॥१॥ रहाउ ॥

ਨੀਚ ਤੇ ਨੀਚੁ ਅਤਿ ਨੀਚੁ ਹੋਇ ਕਰਿ ਬਿਨਉ ਬੁਲਾਵਉ ॥
नीच ते नीचु अति नीचु होइ करि बिनउ बुलावउ ॥
मैं निम्न से निम्न अति विनग्न होकर संतों के समक्ष विनती करके उन्हें बुलाता रहूँ।

ਪਾਵ ਮਲੋਵਾ ਆਪੁ ਤਿਆਗਿ ਸੰਤਸੰਗਿ ਸਮਾਵਉ ॥੨॥
पाव मलोवा आपु तिआगि संतसंगि समावउ ॥२॥
मैं अपना अहंत्व त्याग कर संतों के पांव मलता रहूँ और उनकी संगति में लीन रहूँ॥ २॥

ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਨਹ ਵੀਸਰੈ ਅਨ ਕਤਹਿ ਨ ਧਾਵਉ ॥
सासि सासि नह वीसरै अन कतहि न धावउ ॥
मैं श्वास-श्वास से भगवान् को कभी भी न भुलाऊँ और उसे छोड़कर कहीं न भटकूं।

ਸਫਲ ਦਰਸਨ ਗੁਰੁ ਭੇਟੀਐ ਮਾਨੁ ਮੋਹੁ ਮਿਟਾਵਉ ॥੩॥
सफल दरसन गुरु भेटीऐ मानु मोहु मिटावउ ॥३॥
मुझे यह गुरु मिल जाए, जिसका दर्शन करके मेरा जन्म सफल हो जाए और अपना मान-मोह मिटा लूं ॥ ३॥

ਸਤੁ ਸੰਤੋਖੁ ਦਇਆ ਧਰਮੁ ਸੀਗਾਰੁ ਬਨਾਵਉ ॥
सतु संतोखु दइआ धरमु सीगारु बनावउ ॥
मैं सत्य, संतोष, दया एवं धर्म इत्यादि गुणों का श्रृंगार बना लूँ ।

ਸਫਲ ਸੁਹਾਗਣਿ ਨਾਨਕਾ ਅਪੁਨੇ ਪ੍ਰਭ ਭਾਵਉ ॥੪॥੧੫॥੪੫॥
सफल सुहागणि नानका अपुने प्रभ भावउ ॥४॥१५॥४५॥
हे नानक ! इस तरह मैं सफल सुहागिन बनकर अपने पति-प्रभु को भा जाऊं ॥ ४॥ १५॥ ४५ ॥

ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥

ਅਟਲ ਬਚਨ ਸਾਧੂ ਜਨਾ ਸਭ ਮਹਿ ਪ੍ਰਗਟਾਇਆ ॥
अटल बचन साधू जना सभ महि प्रगटाइआ ॥
दुनिया भर में यह तथ्य सुविख्यात है कि साधुजनों का वचन अटल होता है।

ਜਿਸੁ ਜਨ ਹੋਆ ਸਾਧਸੰਗੁ ਤਿਸੁ ਭੇਟੈ ਹਰਿ ਰਾਇਆ ॥੧॥
जिसु जन होआ साधसंगु तिसु भेटै हरि राइआ ॥१॥
जिस व्यक्ति को साधु का साथ हासिल हुआ है, उसे भगवान् भी मिल गया है ॥१॥

ਇਹ ਪਰਤੀਤਿ ਗੋਵਿੰਦ ਕੀ ਜਪਿ ਹਰਿ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥
इह परतीति गोविंद की जपि हरि सुखु पाइआ ॥
जिसे गोविंद पर पूर्ण निष्ठा है, उसने उसका नाम जपकर सुख हासिल कर लिया है।

ਅਨਿਕ ਬਾਤਾ ਸਭਿ ਕਰਿ ਰਹੇ ਗੁਰੁ ਘਰਿ ਲੈ ਆਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अनिक बाता सभि करि रहे गुरु घरि लै आइआ ॥१॥ रहाउ ॥
सभी लोग अनेक प्रकार की बातें कर रहे हैं लेकिन गुरु तो प्रभु को मेरे हृदय में ले आया है॥ १॥ रहाउ॥

ਸਰਣਿ ਪਰੇ ਕੀ ਰਾਖਤਾ ਨਾਹੀ ਸਹਸਾਇਆ ॥
सरणि परे की राखता नाही सहसाइआ ॥
इसमें कोई सन्देह नहीं है कि शरण में आए जीव की भगवान् लाज रखता है।

ਕਰਮ ਭੂਮਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਬੋਇ ਅਉਸਰੁ ਦੁਲਭਾਇਆ ॥੨॥
करम भूमि हरि नामु बोइ अउसरु दुलभाइआ ॥२॥
इस शरीर रूपी कर्मभूमि में हरि-नाम रूपी बीज बोओ, यह सुनहरी अवसर बडा दुर्लभ है॥ २॥

ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਆਪਿ ਪ੍ਰਭੁ ਸਭ ਕਰੇ ਕਰਾਇਆ ॥
अंतरजामी आपि प्रभु सभ करे कराइआ ॥
प्रभु स्वयं अन्तर्यामी है, सारे जीव वही करते हैं, जो वह करवाता है।

ਪਤਿਤ ਪੁਨੀਤ ਘਣੇ ਕਰੇ ਠਾਕੁਰ ਬਿਰਦਾਇਆ ॥੩॥
पतित पुनीत घणे करे ठाकुर बिरदाइआ ॥३॥
ठाकुर जी का यही धर्म है कि वह कितने ही पतित जीवों को पुनीत कर देता है॥ ३ ॥

ਮਤ ਭੂਲਹੁ ਮਾਨੁਖ ਜਨ ਮਾਇਆ ਭਰਮਾਇਆ ॥
मत भूलहु मानुख जन माइआ भरमाइआ ॥
हे मानव-जीवो ! माया के भ्रम में डालने से मत भूलो।

ਨਾਨਕ ਤਿਸੁ ਪਤਿ ਰਾਖਸੀ ਜੋ ਪ੍ਰਭਿ ਪਹਿਰਾਇਆ ॥੪॥੧੬॥੪੬॥
नानक तिसु पति राखसी जो प्रभि पहिराइआ ॥४॥१६॥४६॥
हे नानक ! जिसे प्रभु कीर्ति प्रदान करता है, उसकी ही मान-प्रतिष्ठा रखता है॥ ४॥ १६॥ ४६ ॥

ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥

ਮਾਟੀ ਤੇ ਜਿਨਿ ਸਾਜਿਆ ਕਰਿ ਦੁਰਲਭ ਦੇਹ ॥
माटी ते जिनि साजिआ करि दुरलभ देह ॥
जिसने मिट्टी से हमारा यह दुर्लभ शरीर बनाया है,

ਅਨਿਕ ਛਿਦ੍ਰ ਮਨ ਮਹਿ ਢਕੇ ਨਿਰਮਲ ਦ੍ਰਿਸਟੇਹ ॥੧॥
अनिक छिद्र मन महि ढके निरमल द्रिसटेह ॥१॥
हमारे अनेक अवगुण मन में छिपा रखे हैं, जिस कारण हम निर्मल दिखाई देते हैं।॥ १॥

ਕਿਉ ਬਿਸਰੈ ਪ੍ਰਭੁ ਮਨੈ ਤੇ ਜਿਸ ਕੇ ਗੁਣ ਏਹ ॥
किउ बिसरै प्रभु मनै ते जिस के गुण एह ॥
जिसने हम पर इतने उपकार किए हैं, उस प्रभु को मन से कैसे विस्मृत किया जा सकता है ?

ਪ੍ਰਭ ਤਜਿ ਰਚੇ ਜਿ ਆਨ ਸਿਉ ਸੋ ਰਲੀਐ ਖੇਹ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
प्रभ तजि रचे जि आन सिउ सो रलीऐ खेह ॥१॥ रहाउ ॥
जो प्रभु को तजकर दुनिया के मोह में फंस जाते हैं, वे खाक में मिल जाते हैं ॥ १॥ रहाउ ॥

ਸਿਮਰਹੁ ਸਿਮਰਹੁ ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਮਤ ਬਿਲਮ ਕਰੇਹ ॥
सिमरहु सिमरहु सासि सासि मत बिलम करेह ॥
जीवन की हर एक धड़कन से परमात्मा का सिमरन करते रहो तथा इस कार्य में विलम्ब मत करो।

ਛੋਡਿ ਪ੍ਰਪੰਚੁ ਪ੍ਰਭ ਸਿਉ ਰਚਹੁ ਤਜਿ ਕੂੜੇ ਨੇਹ ॥੨॥
छोडि प्रपंचु प्रभ सिउ रचहु तजि कूड़े नेह ॥२॥
झूठे स्नेह त्यागकर एवं प्रपंचों को छोड़कर प्रभु की स्मृति में लीन रहो ॥ २॥

ਜਿਨਿ ਅਨਿਕ ਏਕ ਬਹੁ ਰੰਗ ਕੀਏ ਹੈ ਹੋਸੀ ਏਹ ॥
जिनि अनिक एक बहु रंग कीए है होसी एह ॥
जिसने अनेक प्रकार के ये खेल-तमाशे बनाए हैं, वह वर्तमान में भी है और भविष्य में भी उसका ही अस्तित्व रहेगा।

ਕਰਿ ਸੇਵਾ ਤਿਸੁ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਗੁਰ ਤੇ ਮਤਿ ਲੇਹ ॥੩॥
करि सेवा तिसु पारब्रहम गुर ते मति लेह ॥३॥
गुरु से उपदेश लेकर उस परब्रह्म की उपासना करो ॥ ३॥

ਊਚੇ ਤੇ ਊਚਾ ਵਡਾ ਸਭ ਸੰਗਿ ਬਰਨੇਹ ॥
ऊचे ते ऊचा वडा सभ संगि बरनेह ॥
ईश्वर महान् है, सर्वोपरि है, लेकिन यह भी वर्णन योग्य है कि वह सबका हमदर्द है।

ਦਾਸ ਦਾਸ ਕੋ ਦਾਸਰਾ ਨਾਨਕ ਕਰਿ ਲੇਹ ॥੪॥੧੭॥੪੭॥
दास दास को दासरा नानक करि लेह ॥४॥१७॥४७॥
नानक विनती करता है कि हे रचनहार ! मुझे अपने दासों के दासों का दास बना लो॥ ४॥ १७॥ ४७ ॥

ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥

ਏਕ ਟੇਕ ਗੋਵਿੰਦ ਕੀ ਤਿਆਗੀ ਅਨ ਆਸ ॥
एक टेक गोविंद की तिआगी अन आस ॥
सब आशाएँ छोड़कर केवल गोविंद का ही सहारा लिया है।

ਸਭ ਊਪਰਿ ਸਮਰਥ ਪ੍ਰਭ ਪੂਰਨ ਗੁਣਤਾਸ ॥੧॥
सभ ऊपरि समरथ प्रभ पूरन गुणतास ॥१॥
प्रभु गुणों का पूर्ण भण्डार है और वह सर्वशक्तिमान है॥ १ ॥

ਜਨ ਕਾ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰੁ ਹੈ ਪ੍ਰਭ ਸਰਣੀ ਪਾਹਿ ॥
जन का नामु अधारु है प्रभ सरणी पाहि ॥
परमात्मा का नाम ही भक्तजनों के जीवन का आधार है, इसलिए वे उसकी शरण में ही पड़े रहते हैं।

ਪਰਮੇਸਰ ਕਾ ਆਸਰਾ ਸੰਤਨ ਮਨ ਮਾਹਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
परमेसर का आसरा संतन मन माहि ॥१॥ रहाउ ॥
संतों के मन में परमेश्वर का ही आसरा है ॥ १॥ रहाउ॥

ਆਪਿ ਰਖੈ ਆਪਿ ਦੇਵਸੀ ਆਪੇ ਪ੍ਰਤਿਪਾਰੈ ॥
आपि रखै आपि देवसी आपे प्रतिपारै ॥
वह स्वयं ही जीवों की रक्षा करता है, स्वयं ही उन्हें भोजन देता है और स्वयं ही सबका पालन-पोषण करता है।

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