Hindi Page 1114

ਮੇਰੈ ਅੰਤਰਿ ਹੋਇ ਵਿਗਾਸੁ ਪ੍ਰਿਉ ਪ੍ਰਿਉ ਸਚੁ ਨਿਤ ਚਵਾ ਰਾਮ ॥
मेरै अंतरि होइ विगासु प्रिउ प्रिउ सचु नित चवा राम ॥
मेरा अन्तर्मन प्रसन्न हो जाए और बाबीहे की तरह प्रिय-प्रिय करता नित्य हरि का नामोच्चारण करता रहे।

ਪ੍ਰਿਉ ਚਵਾ ਪਿਆਰੇ ਸਬਦਿ ਨਿਸਤਾਰੇ ਬਿਨੁ ਦੇਖੇ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਨ ਆਵਏ ॥
प्रिउ चवा पिआरे सबदि निसतारे बिनु देखे त्रिपति न आवए ॥
मैं प्रिय-प्रिय उच्चारण करता रहूँ, शब्द प्रभु द्वारा मेरा उद्धार हो जाएगा, प्रियतम के दर्शन बिना मन तृप्त नहीं होता।

ਸਬਦਿ ਸੀਗਾਰੁ ਹੋਵੈ ਨਿਤ ਕਾਮਣਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਵਏ ॥
सबदि सीगारु होवै नित कामणि हरि हरि नामु धिआवए ॥
यदि जीव रूपी कामिनी शब्द का श्रृंगार करे, तो वह नित्य हरिनाम का ध्यान करती रहेगी।

ਦਇਆ ਦਾਨੁ ਮੰਗਤ ਜਨ ਦੀਜੈ ਮੈ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਦੇਹੁ ਮਿਲਾਏ ॥
दइआ दानु मंगत जन दीजै मै प्रीतमु देहु मिलाए ॥
हे प्रियतम ! मुझ याचक को दया का दान देकर अपने साथ मिला लो।

ਅਨਦਿਨੁ ਗੁਰੁ ਗੋਪਾਲੁ ਧਿਆਈ ਹਮ ਸਤਿਗੁਰ ਵਿਟਹੁ ਘੁਮਾਏ ॥੨॥
अनदिनु गुरु गोपालु धिआई हम सतिगुर विटहु घुमाए ॥२॥
दिन-रात गुरु-परमेश्वर का ही भजन किया है, अतः हम सतगुरु पर कुर्बान हैं।॥ २॥

ਹਮ ਪਾਥਰ ਗੁਰੁ ਨਾਵ ਬਿਖੁ ਭਵਜਲੁ ਤਾਰੀਐ ਰਾਮ ॥
हम पाथर गुरु नाव बिखु भवजलु तारीऐ राम ॥
हम पत्थर हैं, गुरु नैया है, जो विषम संसार-सागर से पार उतार देता है।

ਗੁਰ ਦੇਵਹੁ ਸਬਦੁ ਸੁਭਾਇ ਮੈ ਮੂੜ ਨਿਸਤਾਰੀਐ ਰਾਮ ॥
गुर देवहु सबदु सुभाइ मै मूड़ निसतारीऐ राम ॥
हे गुरु ! मुझ मूर्ख को सहज-स्वभाव शब्द प्रदान करो, ताकि मेरा उद्धार हो जाए।

ਹਮ ਮੂੜ ਮੁਗਧ ਕਿਛੁ ਮਿਤਿ ਨਹੀ ਪਾਈ ਤੂ ਅਗੰਮੁ ਵਡ ਜਾਣਿਆ ॥
हम मूड़ मुगध किछु मिति नही पाई तू अगमु वड जाणिआ ॥
हम मूर्ख तेरे रहस्य का अनुमान नहीं लगा पाए, तू अगम्य एवं बड़ा माना जाता है।

ਤੂ ਆਪਿ ਦਇਆਲੁ ਦਇਆ ਕਰਿ ਮੇਲਹਿ ਹਮ ਨਿਰਗੁਣੀ ਨਿਮਾਣਿਆ ॥
तू आपि दइआलु दइआ करि मेलहि हम निरगुणी निमाणिआ ॥
हे दया के घर ! तू स्वयं दयालु है, अतः दया करके अपने साथ मिला लो, हम तो गुणविहीन एवं नाचीज हैं।

ਅਨੇਕ ਜਨਮ ਪਾਪ ਕਰਿ ਭਰਮੇ ਹੁਣਿ ਤਉ ਸਰਣਾਗਤਿ ਆਏ ॥
अनेक जनम पाप करि भरमे हुणि तउ सरणागति आए ॥
अनेक जन्म पाप करते हुए भटकते रहे, परन्तु अब तेरी शरणागत आए हैं।

ਦਇਆ ਕਰਹੁ ਰਖਿ ਲੇਵਹੁ ਹਰਿ ਜੀਉ ਹਮ ਲਾਗਹ ਸਤਿਗੁਰ ਪਾਏ ॥੩॥
दइआ करहु रखि लेवहु हरि जीउ हम लागह सतिगुर पाए ॥३॥
हे प्रभु ! दया करके हमें बचा लो, चूंकि हम तो सतगुरु के चरणों में लग गए हैं।॥ ३॥

ਗੁਰ ਪਾਰਸ ਹਮ ਲੋਹ ਮਿਲਿ ਕੰਚਨੁ ਹੋਇਆ ਰਾਮ ॥
गुर पारस हम लोह मिलि कंचनु होइआ राम ॥
गुरु पारस है, जिसके संग मिलकर हम लोहे जैसे स्वर्णयुक्त हो गए हैं।

ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਮਿਲਾਇ ਕਾਇਆ ਗੜੁ ਸੋਹਿਆ ਰਾਮ ॥
जोती जोति मिलाइ काइआ गड़ु सोहिआ राम ॥
आत्म-ज्योति को परम-ज्योति से मिलाया गया, यह शरीर रूपी दुर्ग सुन्दर बन गया।

ਕਾਇਆ ਗੜੁ ਸੋਹਿਆ ਮੇਰੈ ਪ੍ਰਭਿ ਮੋਹਿਆ ਕਿਉ ਸਾਸਿ ਗਿਰਾਸਿ ਵਿਸਾਰੀਐ ॥
काइआ गड़ु सोहिआ मेरै प्रभि मोहिआ किउ सासि गिरासि विसारीऐ ॥
शरीर रूपी सुन्दर दुर्ग ने प्रभु को मोह लिया है, वह इसमें ही स्थित है, फिर श्वास-ग्रास से उसे कैसे भुलाया जा सकता है।

ਅਦ੍ਰਿਸਟੁ ਅਗੋਚਰੁ ਪਕੜਿਆ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਹਉ ਸਤਿਗੁਰ ਕੈ ਬਲਿਹਾਰੀਐ ॥
अद्रिसटु अगोचरु पकड़िआ गुर सबदी हउ सतिगुर कै बलिहारीऐ ॥
शब्द-गुरु द्वारा अदृश्य, अगोचर प्रभु को पा लिया है, अतः मैं ऐसे सतगुरु पर कुर्बान हूँ।

ਸਤਿਗੁਰ ਆਗੈ ਸੀਸੁ ਭੇਟ ਦੇਉ ਜੇ ਸਤਿਗੁਰ ਸਾਚੇ ਭਾਵੈ ॥
सतिगुर आगै सीसु भेट देउ जे सतिगुर साचे भावै ॥
अगर सच्चा सतगुरु चाहे तो यह शीश भी उसके चरणों में भेंट कर दूँ।

ਆਪੇ ਦਇਆ ਕਰਹੁ ਪ੍ਰਭ ਦਾਤੇ ਨਾਨਕ ਅੰਕਿ ਸਮਾਵੈ ॥੪॥੧॥
आपे दइआ करहु प्रभ दाते नानक अंकि समावै ॥४॥१॥
नानक की विनती है कि हे दाता प्रभु ! दया करो, ताकि वह तेरी गोद में लवलीन हो जाए॥ ४॥ १॥

ਤੁਖਾਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
तुखारी महला ४ ॥
तुखारी महला ४॥

ਹਰਿ ਹਰਿ ਅਗਮ ਅਗਾਧਿ ਅਪਰੰਪਰ ਅਪਰਪਰਾ ॥
हरि हरि अगम अगाधि अपर्मपर अपरपरा ॥
ईश्वर अगम्य, असीम, परे से परे, अपरंपार है।

ਜੋ ਤੁਮ ਧਿਆਵਹਿ ਜਗਦੀਸ ਤੇ ਜਨ ਭਉ ਬਿਖਮੁ ਤਰਾ ॥
जो तुम धिआवहि जगदीस ते जन भउ बिखमु तरा ॥
हे जगदीश्वर ! जो जन तुम्हारा ध्यान करते हैं, वे विषम भवसागर से पार उतर जाते हैं।

ਬਿਖਮ ਭਉ ਤਿਨ ਤਰਿਆ ਸੁਹੇਲਾ ਜਿਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ॥
बिखम भउ तिन तरिआ सुहेला जिन हरि हरि नामु धिआइआ ॥
इस विषम संसार-सागर से वही पार हुआ है, जिसने हरिनाम का चिंतन किया है।

ਗੁਰ ਵਾਕਿ ਸਤਿਗੁਰ ਜੋ ਭਾਇ ਚਲੇ ਤਿਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਆਪਿ ਮਿਲਾਇਆ ॥
गुर वाकि सतिगुर जो भाइ चले तिन हरि हरि आपि मिलाइआ ॥
जो निष्ठापूर्वक गुरु के वचनानुसार चलता है, उसे प्रभु ने स्वयं ही अपने साथ मिला लिया है।

ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਮਿਲਿ ਜੋਤਿ ਸਮਾਣੀ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਿ ਧਰਣੀਧਰਾ ॥
जोती जोति मिलि जोति समाणी हरि क्रिपा करि धरणीधरा ॥
प्रभु की कृपा हुई तो आत्म-ज्योति परम-ज्योति में विलीन हो गई।

ਹਰਿ ਹਰਿ ਅਗਮ ਅਗਾਧਿ ਅਪਰੰਪਰ ਅਪਰਪਰਾ ॥੧॥
हरि हरि अगम अगाधि अपर्मपर अपरपरा ॥१॥
वह परमशक्ति ईश्वर अगम्य, अगाध, अनंत एवं अपरंपार है॥ १॥

ਤੁਮ ਸੁਆਮੀ ਅਗਮ ਅਥਾਹ ਤੂ ਘਟਿ ਘਟਿ ਪੂਰਿ ਰਹਿਆ ॥
तुम सुआमी अगम अथाह तू घटि घटि पूरि रहिआ ॥
हे स्वामी ! तुम अगम्य-अथाह हो और संसार के कण-कण में तू ही रमण कर रहा है।

ਤੂ ਅਲਖ ਅਭੇਉ ਅਗੰਮੁ ਗੁਰ ਸਤਿਗੁਰ ਬਚਨਿ ਲਹਿਆ ॥
तू अलख अभेउ अगमु गुर सतिगुर बचनि लहिआ ॥
तू अदृश्य, रहस्यातीत एवं अपहुँच है और गुरु के वचन से तुझे पाया जा सकता है।

ਧਨੁ ਧੰਨੁ ਤੇ ਜਨ ਪੁਰਖ ਪੂਰੇ ਜਿਨ ਗੁਰ ਸੰਤਸੰਗਤਿ ਮਿਲਿ ਗੁਣ ਰਵੇ ॥
धनु धंनु ते जन पुरख पूरे जिन गुर संतसंगति मिलि गुण रवे ॥
वे लोग धन्य-धन्य एवं पूर्ण पुरुष हैं, जिन्होंने गुरु-संत की संगति में मिलकर प्रभु महिमा का गान किया है।

ਬਿਬੇਕ ਬੁਧਿ ਬੀਚਾਰਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਖਿਨੁ ਖਿਨੁ ਹਰਿ ਨਿਤ ਚਵੇ ॥
बिबेक बुधि बीचारि गुरमुखि गुर सबदि खिनु खिनु हरि नित चवे ॥
गुरुमुख के पास विवेक बुद्धि एवं चिंतन-मनन की बात होती है अतः शब्द गुरु द्वारा वह पल-पल प्रभु का ध्यान करता है।

ਜਾ ਬਹਹਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਬੋਲਹਿ ਜਾ ਖੜੇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਕਹਿਆ ॥
जा बहहि गुरमुखि हरि नामु बोलहि जा खड़े गुरमुखि हरि हरि कहिआ ॥
अगर गुरमुख बैठता है तो प्रभु-नाम ही बोलता है और खड़े होकर भी प्रभु के गुण गाता है।

ਤੁਮ ਸੁਆਮੀ ਅਗਮ ਅਥਾਹ ਤੂ ਘਟਿ ਘਟਿ ਪੂਰਿ ਰਹਿਆ ॥੨॥
तुम सुआमी अगम अथाह तू घटि घटि पूरि रहिआ ॥२॥
हे स्वामी ! तू अगम्य-असीम है और संसार के कण-कण में तू ही व्याप्त है॥२॥

ਸੇਵਕ ਜਨ ਸੇਵਹਿ ਤੇ ਪਰਵਾਣੁ ਜਿਨ ਸੇਵਿਆ ਗੁਰਮਤਿ ਹਰੇ ॥
सेवक जन सेवहि ते परवाणु जिन सेविआ गुरमति हरे ॥
जिन्होंने गुरु-मतानुसार प्रभु की उपासना की है, ऐसे सेवक जन ईशोपासना करके दरबार में मान्य हो गए हैं।

ਤਿਨ ਕੇ ਕੋਟਿ ਸਭਿ ਪਾਪ ਖਿਨੁ ਪਰਹਰਿ ਹਰਿ ਦੂਰਿ ਕਰੇ ॥
तिन के कोटि सभि पाप खिनु परहरि हरि दूरि करे ॥
उनके करोड़ों पाप क्षण में प्रभु निवृत कर देता है।

ਤਿਨ ਕੇ ਪਾਪ ਦੋਖ ਸਭਿ ਬਿਨਸੇ ਜਿਨ ਮਨਿ ਚਿਤਿ ਇਕੁ ਅਰਾਧਿਆ ॥
तिन के पाप दोख सभि बिनसे जिन मनि चिति इकु अराधिआ ॥
जिन्होंने एकाग्रचित होकर ईश्वर की आराधना की है, उनके पाप-दोष सब नष्ट हो गए हैं।

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