Hindi Page 1328

ਦੂਖਾ ਤੇ ਸੁਖ ਊਪਜਹਿ ਸੂਖੀ ਹੋਵਹਿ ਦੂਖ ॥
दूखा ते सुख ऊपजहि सूखी होवहि दूख ॥
दुखों के पश्चात् सुख प्राप्त होता है और सुखी रहने के उपरांत दुख भी आते हैं।

ਜਿਤੁ ਮੁਖਿ ਤੂ ਸਾਲਾਹੀਅਹਿ ਤਿਤੁ ਮੁਖਿ ਕੈਸੀ ਭੂਖ ॥੩॥
जितु मुखि तू सालाहीअहि तितु मुखि कैसी भूख ॥३॥
जिस मुख से तेरी प्रशंसा की जाती है, उसे कोई भूख नहीं रहती।॥ ३॥

ਨਾਨਕ ਮੂਰਖੁ ਏਕੁ ਤੂ ਅਵਰੁ ਭਲਾ ਸੈਸਾਰੁ ॥
नानक मूरखु एकु तू अवरु भला सैसारु ॥
गुरु नानक कथन करते हैं कि एकमात्र मैं ही मूर्ख हूँ, अन्य संसार भला है।

ਜਿਤੁ ਤਨਿ ਨਾਮੁ ਨ ਊਪਜੈ ਸੇ ਤਨ ਹੋਹਿ ਖੁਆਰ ॥੪॥੨॥
जितु तनि नामु न ऊपजै से तन होहि खुआर ॥४॥२॥
लेकिन जिस शरीर में परमात्मा का नाम उत्पन्न नहीं होता, वह ख्वार ही होता है॥ ४॥ २॥

ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
प्रभाती महला १ ॥
प्रभाती महला १ ॥

ਜੈ ਕਾਰਣਿ ਬੇਦ ਬ੍ਰਹਮੈ ਉਚਰੇ ਸੰਕਰਿ ਛੋਡੀ ਮਾਇਆ ॥
जै कारणि बेद ब्रहमै उचरे संकरि छोडी माइआ ॥
जिस (परमेश्वर) को पाने के लिए ब्रह्मा ने वेदों का उच्चारण किया तथा भोलेशंकर ने माया छोड़ दी।

ਜੈ ਕਾਰਣਿ ਸਿਧ ਭਏ ਉਦਾਸੀ ਦੇਵੀ ਮਰਮੁ ਨ ਪਾਇਆ ॥੧॥
जै कारणि सिध भए उदासी देवी मरमु न पाइआ ॥१॥
जिसके लिए सिद्ध त्यागी बन गए और देवी-देवताओं ने भी रहस्य प्राप्त नहीं किया॥ १॥

ਬਾਬਾ ਮਨਿ ਸਾਚਾ ਮੁਖਿ ਸਾਚਾ ਕਹੀਐ ਤਰੀਐ ਸਾਚਾ ਹੋਈ ॥
बाबा मनि साचा मुखि साचा कहीऐ तरीऐ साचा होई ॥
हे बाबा ! मन में सत्यस्वरूप का मनन करो, मुख से सच्चे प्रभु का भजन करो क्योंकि सच्चे परमेश्वर से ही मुक्ति मिलती है।

ਦੁਸਮਨੁ ਦੂਖੁ ਨ ਆਵੈ ਨੇੜੈ ਹਰਿ ਮਤਿ ਪਾਵੈ ਕੋਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
दुसमनु दूखु न आवै नेड़ै हरि मति पावै कोई ॥१॥ रहाउ ॥
अगर कोई ईश्वर का बोध पा ले तो दुश्मन एवं दुख भी उसके निकट नहीं आता॥ १॥रहाउ॥

ਅਗਨਿ ਬਿੰਬ ਪਵਣੈ ਕੀ ਬਾਣੀ ਤੀਨਿ ਨਾਮ ਕੇ ਦਾਸਾ ॥
अगनि बि्मब पवणै की बाणी तीनि नाम के दासा ॥
यह सृष्टि अग्नि, जल एवं पवन की बनी हुई है और यह तीनों ही हरिनाम के दास हैं।

ਤੇ ਤਸਕਰ ਜੋ ਨਾਮੁ ਨ ਲੇਵਹਿ ਵਾਸਹਿ ਕੋਟ ਪੰਚਾਸਾ ॥੨॥
ते तसकर जो नामु न लेवहि वासहि कोट पंचासा ॥२॥
जो परमात्मा का नाम नहीं लेता, वस्तुतः वह चोर है और पचासवें कोट में बसता है।॥ २॥

ਜੇ ਕੋ ਏਕ ਕਰੈ ਚੰਗਿਆਈ ਮਨਿ ਚਿਤਿ ਬਹੁਤੁ ਬਫਾਵੈ ॥
जे को एक करै चंगिआई मनि चिति बहुतु बफावै ॥
यदि कोई व्यक्ति एक भी भला कार्य करता है तो मन में बहुत एहसान जतलाता है।

ਏਤੇ ਗੁਣ ਏਤੀਆ ਚੰਗਿਆਈਆ ਦੇਇ ਨ ਪਛੋਤਾਵੈ ॥੩॥
एते गुण एतीआ चंगिआईआ देइ न पछोतावै ॥३॥
परन्तु ईश्वर में इतने गुण हैं, इतनी अच्छाइयाँ हैं कि लोगों को देता ही रहता है (संसारी जीव ईश्वर से नियामतें पाकर भी उसका एहसान नहीं मानते) परन्तु वह दातार देने के बाद एहसान की बात नहीं सोचता॥ ३॥

ਤੁਧੁ ਸਾਲਾਹਨਿ ਤਿਨ ਧਨੁ ਪਲੈ ਨਾਨਕ ਕਾ ਧਨੁ ਸੋਈ ॥
तुधु सालाहनि तिन धनु पलै नानक का धनु सोई ॥
गुरु नानक का कथन है कि हे प्रभु ! तेरी स्तुति करने वाले को ही ऐश्वर्य प्राप्त होता है और तू ही मेरा धन है।

ਜੇ ਕੋ ਜੀਉ ਕਹੈ ਓਨਾ ਕਉ ਜਮ ਕੀ ਤਲਬ ਨ ਹੋਈ ॥੪॥੩॥
जे को जीउ कहै ओना कउ जम की तलब न होई ॥४॥३॥
यदि कोई इनका आदर करता है तो उसे यमराज को हिसाब नहीं देना पड़ता॥ ४॥ ३॥

ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
प्रभाती महला १ ॥
प्रभाती महला १ ॥

ਜਾ ਕੈ ਰੂਪੁ ਨਾਹੀ ਜਾਤਿ ਨਾਹੀ ਨਾਹੀ ਮੁਖੁ ਮਾਸਾ ॥
जा कै रूपु नाही जाति नाही नाही मुखु मासा ॥
जिसका कोई रूप नहीं, कोई उच्च जाति नहीं, न ही सुन्दर चेहरा अथवा शरीर है,

ਸਤਿਗੁਰਿ ਮਿਲੇ ਨਿਰੰਜਨੁ ਪਾਇਆ ਤੇਰੈ ਨਾਮਿ ਹੈ ਨਿਵਾਸਾ ॥੧॥
सतिगुरि मिले निरंजनु पाइआ तेरै नामि है निवासा ॥१॥
जब सतगुरु से मिलता है तो उसे ईश्वर की प्राप्ति हो जाती है और हरिनाम में ही लीन रहता है॥ १॥

ਅਉਧੂ ਸਹਜੇ ਤਤੁ ਬੀਚਾਰਿ ॥
अउधू सहजे ततु बीचारि ॥
हे अवधूत योगी ! सहज तत्व का चिंतन करो,

ਜਾ ਤੇ ਫਿਰਿ ਨ ਆਵਹੁ ਸੈਸਾਰਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जा ते फिरि न आवहु सैसारि ॥१॥ रहाउ ॥
जिससे पुनः संसार में आना न पड़े॥ १॥रहाउ॥

ਜਾ ਕੈ ਕਰਮੁ ਨਾਹੀ ਧਰਮੁ ਨਾਹੀ ਨਾਹੀ ਸੁਚਿ ਮਾਲਾ ॥
जा कै करमु नाही धरमु नाही नाही सुचि माला ॥
जिसका कोई कर्म नहीं, न ही धर्म है, न ही जपमाला है,

ਸਿਵ ਜੋਤਿ ਕੰਨਹੁ ਬੁਧਿ ਪਾਈ ਸਤਿਗੁਰੂ ਰਖਵਾਲਾ ॥੨॥
सिव जोति कंनहु बुधि पाई सतिगुरू रखवाला ॥२॥
जब सतगुरु रखवाला बनता है, तो उसे कल्याणमय ज्योति से विवेक बुद्धि प्राप्त होती है।॥ २॥

ਜਾ ਕੈ ਬਰਤੁ ਨਾਹੀ ਨੇਮੁ ਨਾਹੀ ਨਾਹੀ ਬਕਬਾਈ ॥
जा कै बरतु नाही नेमु नाही नाही बकबाई ॥
जो व्रत-उपवास नहीं रखता, न ही कोई नियम धारण करता है, जो शास्त्रानुसार चतुरता भरे वचन नहीं करता।

ਗਤਿ ਅਵਗਤਿ ਕੀ ਚਿੰਤ ਨਾਹੀ ਸਤਿਗੁਰੂ ਫੁਰਮਾਈ ॥੩॥
गति अवगति की चिंत नाही सतिगुरू फुरमाई ॥३॥
सतिगुरु का फुरमान है कि उसे भले-बुरे की चिंता नहीं होती।॥ ३॥

ਜਾ ਕੈ ਆਸ ਨਾਹੀ ਨਿਰਾਸ ਨਾਹੀ ਚਿਤਿ ਸੁਰਤਿ ਸਮਝਾਈ ॥
जा कै आस नाही निरास नाही चिति सुरति समझाई ॥
जिसे कोई आशा नहीं, आशाओं से रहित है, वह मन को समझाता है।

ਤੰਤ ਕਉ ਪਰਮ ਤੰਤੁ ਮਿਲਿਆ ਨਾਨਕਾ ਬੁਧਿ ਪਾਈ ॥੪॥੪॥
तंत कउ परम तंतु मिलिआ नानका बुधि पाई ॥४॥४॥
हे नानक ! विवेक बुद्धि को पाकर उसकी आत्मा परमात्मा में ही मिल जाती है॥४॥४॥

ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
प्रभाती महला १ ॥
प्रभाती महला १ ॥

ਤਾ ਕਾ ਕਹਿਆ ਦਰਿ ਪਰਵਾਣੁ ॥
ता का कहिआ दरि परवाणु ॥
उस महापुरुष की कही बात प्रभु के दरबार में मान्य होती है,

ਬਿਖੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਦੁਇ ਸਮ ਕਰਿ ਜਾਣੁ ॥੧॥
बिखु अम्रितु दुइ सम करि जाणु ॥१॥
जो दुख-सुख को समान मानता है॥ १॥

ਕਿਆ ਕਹੀਐ ਸਰਬੇ ਰਹਿਆ ਸਮਾਇ ॥
किआ कहीऐ सरबे रहिआ समाइ ॥
उसका क्या यश कथन किया जाए, वह तो पूरे संसार में विद्यमान है।

ਜੋ ਕਿਛੁ ਵਰਤੈ ਸਭ ਤੇਰੀ ਰਜਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जो किछु वरतै सभ तेरी रजाइ ॥१॥ रहाउ ॥
हे परमेश्वर ! जो कुछ हो रहा है, सब तेरी मर्जी से हो रहा है॥ १॥रहाउ॥

ਪ੍ਰਗਟੀ ਜੋਤਿ ਚੂਕਾ ਅਭਿਮਾਨੁ ॥
प्रगटी जोति चूका अभिमानु ॥
तब मन में ज्ञान का उजाला हो गया और अभिमान समाप्त हो गया

ਸਤਿਗੁਰਿ ਦੀਆ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ॥੨॥
सतिगुरि दीआ अम्रित नामु ॥२॥
जब सतगुरु ने हरिनाम अमृत प्रदान किया॥ २॥

ਕਲਿ ਮਹਿ ਆਇਆ ਸੋ ਜਨੁ ਜਾਣੁ ॥
कलि महि आइआ सो जनु जाणु ॥
कलियुग में उसी व्यक्ति का जीवन सफल माना जाता है,

ਸਾਚੀ ਦਰਗਹ ਪਾਵੈ ਮਾਣੁ ॥੩॥
साची दरगह पावै माणु ॥३॥
जो सच्चे दरबार में सम्मान प्राप्त करता है॥ ३॥

ਕਹਣਾ ਸੁਨਣਾ ਅਕਥ ਘਰਿ ਜਾਇ ॥
कहणा सुनणा अकथ घरि जाइ ॥
उसका कहना सुनना अकथनीय प्रभु के घर में स्वीकार होता है,

ਕਥਨੀ ਬਦਨੀ ਨਾਨਕ ਜਲਿ ਜਾਇ ॥੪॥੫॥
कथनी बदनी नानक जलि जाइ ॥४॥५॥
गुरु नानक कथन करते हैं कि बेकार की बातें तो जल जाने के बराबर हैं॥ ४॥ ५॥

ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
प्रभाती महला १ ॥
प्रभाती महला १ ॥

ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਨੀਰੁ ਗਿਆਨਿ ਮਨ ਮਜਨੁ ਅਠਸਠਿ ਤੀਰਥ ਸੰਗਿ ਗਹੇ ॥
अम्रितु नीरु गिआनि मन मजनु अठसठि तीरथ संगि गहे ॥
गुरु-ज्ञान द्वारा ही मन अमृत जल में स्नान करता है और अड़सठ तीर्थों का फल साथ ही ग्रहण करता है।

ਗੁਰ ਉਪਦੇਸਿ ਜਵਾਹਰ ਮਾਣਕ ਸੇਵੇ ਸਿਖੁ ਸੋੁ ਖੋਜਿ ਲਹੈ ॥੧॥
गुर उपदेसि जवाहर माणक सेवे सिखु सो खोजि लहै ॥१॥
गुरु का उपदेश अमूल्य मोती एवं माणिक्य है, जिसे शिष्य खोज सकता है॥ १॥

ਗੁਰ ਸਮਾਨਿ ਤੀਰਥੁ ਨਹੀ ਕੋਇ ॥
गुर समानि तीरथु नही कोइ ॥
गुरु के समान कोई तीर्थ नहीं,

ਸਰੁ ਸੰਤੋਖੁ ਤਾਸੁ ਗੁਰੁ ਹੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सरु संतोखु तासु गुरु होइ ॥१॥ रहाउ ॥
दरअसल गुरु ही संतोष का सरोवर है॥ १॥रहाउ॥

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