ਇਸਤ੍ਰੀ ਰੂਪ ਚੇਰੀ ਕੀ ਨਿਆਈ ਸੋਭ ਨਹੀ ਬਿਨੁ ਭਰਤਾਰੇ ॥੧॥
इसत्री रूप चेरी की निआई सोभ नही बिनु भरतारे ॥१॥
कोमल स्वभाव, दासी की तरहस्त्री अपने पति के बिना शोभा प्राप्त नहीं करती॥१॥
ਬਿਨਉ ਸੁਨਿਓ ਜਬ ਠਾਕੁਰ ਮੇਰੈ ਬੇਗਿ ਆਇਓ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੇ ॥
बिनउ सुनिओ जब ठाकुर मेरै बेगि आइओ किरपा धारे ॥
जब ठाकुर जी ने मेरी विनती सुनी तो कृपा करके आ गया।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਮੇਰੋ ਬਨਿਓ ਸੁਹਾਗੋ ਪਤਿ ਸੋਭਾ ਭਲੇ ਅਚਾਰੇ ॥੨॥੩॥੭॥
कहु नानक मेरो बनिओ सुहागो पति सोभा भले अचारे ॥२॥३॥७॥
हे नानक ! मेरा पति प्रभु सुहाग बन गया है, अब शोभा, आचरण, प्रतिष्ठा सब् भले हैं॥२॥३॥७॥
ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मलार महला ५ ॥
मलार महला ५ ॥
ਪ੍ਰੀਤਮ ਸਾਚਾ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ॥
प्रीतम साचा नामु धिआइ ॥
प्रियतमप्रभु के सच्चे नाम का ही चिंतन किया है।
ਦੂਖ ਦਰਦ ਬਿਨਸੈ ਭਵ ਸਾਗਰੁ ਗੁਰ ਕੀ ਮੂਰਤਿ ਰਿਦੈ ਬਸਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
दूख दरद बिनसै भव सागरु गुर की मूरति रिदै बसाइ ॥१॥ रहाउ ॥
जब गुरु की मूर्ति को मन में बसाया तो संसार-सागर के दुख-दर्द नष्ट हो गए॥१॥रहाउ॥
ਦੁਸਮਨ ਹਤੇ ਦੋਖੀ ਸਭਿ ਵਿਆਪੇ ਹਰਿ ਸਰਣਾਈ ਆਇਆ ॥
दुसमन हते दोखी सभि विआपे हरि सरणाई आइआ ॥
जब मैं भगवान की शरण में आया तो दुश्मनों का अंत हुआ और सब पापी दुखों में लीन हो गए।
ਰਾਖਨਹਾਰੈ ਹਾਥ ਦੇ ਰਾਖਿਓ ਨਾਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਪਾਇਆ ॥੧॥
राखनहारै हाथ दे राखिओ नामु पदारथु पाइआ ॥१॥
बचाने वाले प्रभु ने हाथ देकर मुझे बचाया है और नाम पदार्थ ही प्राप्त हुआ है॥१॥
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਕਿਲਵਿਖ ਸਭਿ ਕਾਟੇ ਨਾਮੁ ਨਿਰਮਲੁ ਮਨਿ ਦੀਆ ॥
करि किरपा किलविख सभि काटे नामु निरमलु मनि दीआ ॥
उसने कृपा करके मेरे सब पाप काट दिए हैं और निर्मल नाम मन को दे दिया है।
ਗੁਣ ਨਿਧਾਨੁ ਨਾਨਕ ਮਨਿ ਵਸਿਆ ਬਾਹੁੜਿ ਦੂਖ ਨ ਥੀਆ ॥੨॥੪॥੮॥
गुण निधानु नानक मनि वसिआ बाहुड़ि दूख न थीआ ॥२॥४॥८॥
नानक फुरमाते हैं कि गुणों का भण्डार प्रभु मन में अवस्थित हो गया है, अतः पुनः कोई दुख नहीं सताता ॥२॥४॥८॥
ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मलार महला ५ ॥
मलार महला ५ ॥
ਪ੍ਰਭ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰੀਤਮ ਪ੍ਰਾਨ ਪਿਆਰੇ ॥
प्रभ मेरे प्रीतम प्रान पिआरे ॥
हे मेरे प्रियतम प्रभु ! तू प्राणों से भी प्यारा है।
ਪ੍ਰੇਮ ਭਗਤਿ ਅਪਨੋ ਨਾਮੁ ਦੀਜੈ ਦਇਆਲ ਅਨੁਗ੍ਰਹੁ ਧਾਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
प्रेम भगति अपनो नामु दीजै दइआल अनुग्रहु धारे ॥१॥ रहाउ ॥
दयालु कृपालु होकर मुझे अपनी प्रेम भक्ति एवं नाम ही दीजिए॥१॥रहाउ॥
ਸਿਮਰਉ ਚਰਨ ਤੁਹਾਰੇ ਪ੍ਰੀਤਮ ਰਿਦੈ ਤੁਹਾਰੀ ਆਸਾ ॥
सिमरउ चरन तुहारे प्रीतम रिदै तुहारी आसा ॥
हे प्रियतम ! मैं तुम्हारे चरणों का स्मरण करता हूँ और हृदय में तुम्हारी ही आशा है।
ਸੰਤ ਜਨਾ ਪਹਿ ਕਰਉ ਬੇਨਤੀ ਮਨਿ ਦਰਸਨ ਕੀ ਪਿਆਸਾ ॥੧॥
संत जना पहि करउ बेनती मनि दरसन की पिआसा ॥१॥
मैं संतजनों के पास विनती करता हूँ कि मेरे मन में दर्शनों की ही तीव्र लालसा है॥१॥
ਬਿਛੁਰਤ ਮਰਨੁ ਜੀਵਨੁ ਹਰਿ ਮਿਲਤੇ ਜਨ ਕਉ ਦਰਸਨੁ ਦੀਜੈ ॥
बिछुरत मरनु जीवनु हरि मिलते जन कउ दरसनु दीजै ॥
हे प्रभु ! तुझसे बिछुड़ना मरने के बराबर है, तेरा मिलन ही एकमात्र जीवन है, दास को दर्शन दीजिए।
ਨਾਮ ਅਧਾਰੁ ਜੀਵਨ ਧਨੁ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਮੇਰੇ ਕਿਰਪਾ ਕੀਜੈ ॥੨॥੫॥੯॥
नाम अधारु जीवन धनु नानक प्रभ मेरे किरपा कीजै ॥२॥५॥९॥
नानक प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु ! तेरा नाम ही जीवन का आसरा एवं धन है, मुझ पर कृपा करो॥२॥५॥६॥
ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मलार महला ५ ॥
मलार महला ५ ॥
ਅਬ ਅਪਨੇ ਪ੍ਰੀਤਮ ਸਿਉ ਬਨਿ ਆਈ ॥
अब अपने प्रीतम सिउ बनि आई ॥
अब अपने प्रियतम प्रभु के संग मेरी प्रीति लगी हुई है।
ਰਾਜਾ ਰਾਮੁ ਰਮਤ ਸੁਖੁ ਪਾਇਓ ਬਰਸੁ ਮੇਘ ਸੁਖਦਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
राजा रामु रमत सुखु पाइओ बरसु मेघ सुखदाई ॥१॥ रहाउ ॥
राजा राम का मनन करते हुए परम सुख प्राप्त हुआ है और गुरु ने सुखों की बरसात की है॥१॥रहाउ॥
ਇਕੁ ਪਲੁ ਬਿਸਰਤ ਨਹੀ ਸੁਖ ਸਾਗਰੁ ਨਾਮੁ ਨਵੈ ਨਿਧਿ ਪਾਈ ॥
इकु पलु बिसरत नही सुख सागरु नामु नवै निधि पाई ॥
सुखसागर परमेश्वर एक पल भी नहीं भूलता और नामोच्चारण से नवनिधि प्राप्त हुई है।
ਉਦੌਤੁ ਭਇਓ ਪੂਰਨ ਭਾਵੀ ਕੋ ਭੇਟੇ ਸੰਤ ਸਹਾਈ ॥੧॥
उदौतु भइओ पूरन भावी को भेटे संत सहाई ॥१॥
हमारा भाग्योदय हुआ तो सहायक संतों से भेंट हो गई।॥१॥
ਸੁਖ ਉਪਜੇ ਦੁਖ ਸਗਲ ਬਿਨਾਸੇ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥
सुख उपजे दुख सगल बिनासे पारब्रहम लिव लाई ॥
परब्रह्म में लगन लगाई तो सुख उत्पन्न हो गए और सब दुख समाप्त हो गए।
ਤਰਿਓ ਸੰਸਾਰੁ ਕਠਿਨ ਭੈ ਸਾਗਰੁ ਹਰਿ ਨਾਨਕ ਚਰਨ ਧਿਆਈ ॥੨॥੬॥੧੦॥
तरिओ संसारु कठिन भै सागरु हरि नानक चरन धिआई ॥२॥६॥१०॥
हे नानक ! हरि-चरणों का ध्यान किया तो कठिन एवं भयानक संसार-सागर पार कर लिया॥२॥६॥१०॥
ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मलार महला ५ ॥
मलार महला ५ ॥
ਘਨਿਹਰ ਬਰਸਿ ਸਗਲ ਜਗੁ ਛਾਇਆ ॥
घनिहर बरसि सगल जगु छाइआ ॥
गुरु ने ज्ञान एवं उपदेश की वर्षा करके पूरे जगत को छाया दे दी है।
ਭਏ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਪ੍ਰੀਤਮ ਪ੍ਰਭ ਮੇਰੇ ਅਨਦ ਮੰਗਲ ਸੁਖ ਪਾਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
भए क्रिपाल प्रीतम प्रभ मेरे अनद मंगल सुख पाइआ ॥१॥ रहाउ ॥
मेरा प्रियतम प्रभु कृपालु हुआ तो आनंद एवं मंगल सुख प्राप्त हो गया॥१॥रहाउ॥
ਮਿਟੇ ਕਲੇਸ ਤ੍ਰਿਸਨ ਸਭ ਬੂਝੀ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਮਨਿ ਧਿਆਇਆ ॥
मिटे कलेस त्रिसन सभ बूझी पारब्रहमु मनि धिआइआ ॥
परब्रह्म का मन में ध्यान करने से सब क्लेश मिट गए हैं और तृष्णा बुझ गई है।
ਸਾਧਸੰਗਿ ਜਨਮ ਮਰਨ ਨਿਵਾਰੇ ਬਹੁਰਿ ਨ ਕਤਹੂ ਧਾਇਆ ॥੧॥
साधसंगि जनम मरन निवारे बहुरि न कतहू धाइआ ॥१॥
साधु पुरुषों की संगत में जन्म-मरण का निवारण हुआ है, अब इधर-उधर नहीं भटकता॥१॥
ਮਨੁ ਤਨੁ ਨਾਮਿ ਨਿਰੰਜਨਿ ਰਾਤਉ ਚਰਨ ਕਮਲ ਲਿਵ ਲਾਇਆ ॥
मनु तनु नामि निरंजनि रातउ चरन कमल लिव लाइआ ॥
यह मन तन परमात्मा के पावन नाम में ही लीन है और उसी के चरण-कमल में लगन लगाई हुई है।
ਅੰਗੀਕਾਰੁ ਕੀਓ ਪ੍ਰਭਿ ਅਪਨੈ ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਸਰਣਾਇਆ ॥੨॥੭॥੧੧॥
अंगीकारु कीओ प्रभि अपनै नानक दास सरणाइआ ॥२॥७॥११॥
नानक का कथन है कि प्रभु ने अपने साथ मिलाकर दास को शरण में ले लिया है॥२॥७॥११॥
ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मलार महला ५ ॥
मलार महला ५ ॥
ਬਿਛੁਰਤ ਕਿਉ ਜੀਵੇ ਓਇ ਜੀਵਨ ॥
बिछुरत किउ जीवे ओइ जीवन ॥
हे परब्रह्म ! तुझसे बिछुड़कर यह जीवन कैसे जीया जा सकता है?
ਚਿਤਹਿ ਉਲਾਸ ਆਸ ਮਿਲਬੇ ਕੀ ਚਰਨ ਕਮਲ ਰਸ ਪੀਵਨ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
चितहि उलास आस मिलबे की चरन कमल रस पीवन ॥१॥ रहाउ ॥
तेरे मिलन की आशा में मन में उत्साह बना हुआ है और तेरे चरण-कमल का रस पीना चाहता हूँ॥१॥रहाउ॥
ਜਿਨ ਕਉ ਪਿਆਸ ਤੁਮਾਰੀ ਪ੍ਰੀਤਮ ਤਿਨ ਕਉ ਅੰਤਰੁ ਨਾਹੀ ॥
जिन कउ पिआस तुमारी प्रीतम तिन कउ अंतरु नाही ॥
हे मेरे प्रियतम ! जिनको तेरे दर्शनों की तीव्र लालसा हैं, उनको कोई भेदभाव नहीं होता।
ਜਿਨ ਕਉ ਬਿਸਰੈ ਮੇਰੋ ਰਾਮੁ ਪਿਆਰਾ ਸੇ ਮੂਏ ਮਰਿ ਜਾਂਹੀਂ ॥੧॥
जिन कउ बिसरै मेरो रामु पिआरा से मूए मरि जांहीं ॥१॥
जिनको मेरा प्यारा राम भूल जाता है, वे मरते ही रहते हैं।॥१॥