ਰਾਗੁ ਕਾਨੜਾ ਚਉਪਦੇ ਮਹਲਾ ੪ ਘਰੁ ੧
रागु कानड़ा चउपदे महला ४ घरु १
रागु कानड़ा चउपदे महला ४ घरु १
ੴ ਸਤਿ ਨਾਮੁ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਭਉ ਨਿਰਵੈਰੁ ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਅਜੂਨੀ ਸੈਭੰ ਗੁਰਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सति नामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुरप्रसादि ॥
वह अनंतशक्ति परमात्मा एक है, नाम उसका सत्य है, वह सृष्टि को बनानेवाला है, सर्वशक्तिमान है, वह निर्भय है, वह वैर भावना से रहित है, वह कालातीत ब्रह्म-मूर्ति सदा अमर है, वह जन्म-मरण के चक्र से रहित है, स्वजन्मा है, गुरु की कृपा से प्राप्त होता है।
ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਸਾਧ ਜਨਾਂ ਮਿਲਿ ਹਰਿਆ ॥
मेरा मनु साध जनां मिलि हरिआ ॥
मेरा मन साधुजनों से मिलकर प्रसन्न हो गया है,
ਹਉ ਬਲਿ ਬਲਿ ਬਲਿ ਬਲਿ ਸਾਧ ਜਨਾਂ ਕਉ ਮਿਲਿ ਸੰਗਤਿ ਪਾਰਿ ਉਤਰਿਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हउ बलि बलि बलि बलि साध जनां कउ मिलि संगति पारि उतरिआ ॥१॥ रहाउ ॥
अतः मैं साधुजनों पर बलिहारी जाता हूँ, दरअसल इनकी संगत में संसार-सागर से पार उतारा होता है॥१॥रहाउ॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਹੁ ਪ੍ਰਭ ਅਪਨੀ ਹਮ ਸਾਧ ਜਨਾਂ ਪਗ ਪਰਿਆ ॥
हरि हरि क्रिपा करहु प्रभ अपनी हम साध जनां पग परिआ ॥
हे प्रभु ! अपनी कृपा करो, हम साधुजनों के पैरों में पड़े हुए हैं।
ਧਨੁ ਧਨੁ ਸਾਧ ਜਿਨ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਜਾਨਿਆ ਮਿਲਿ ਸਾਧੂ ਪਤਿਤ ਉਧਰਿਆ ॥੧॥
धनु धनु साध जिन हरि प्रभु जानिआ मिलि साधू पतित उधरिआ ॥१॥
वे साधु पुरुष धन्य हैं, जिन्होंने प्रभु (की महिमा) को जाना है। साधुओं को मिलकर पापियों का उद्धार हो जाता है॥१॥
ਮਨੂਆ ਚਲੈ ਚਲੈ ਬਹੁ ਬਹੁ ਬਿਧਿ ਮਿਲਿ ਸਾਧੂ ਵਸਗਤਿ ਕਰਿਆ ॥
मनूआ चलै चलै बहु बहु बिधि मिलि साधू वसगति करिआ ॥
चंचल मन अनेक प्रकार से दोलायमान होता है, पर साधुओं को मिलकर वश में आता है।
ਜਿਉਂ ਜਲ ਤੰਤੁ ਪਸਾਰਿਓ ਬਧਕਿ ਗ੍ਰਸਿ ਮੀਨਾ ਵਸਗਤਿ ਖਰਿਆ ॥੨॥
जिउं जल तंतु पसारिओ बधकि ग्रसि मीना वसगति खरिआ ॥२॥
यह इस प्रकार है, जैसे जल में शिकारी ने जाल बिछा दिया होता है और मछली को फंसा लेता है॥२॥
ਹਰਿ ਕੇ ਸੰਤ ਸੰਤ ਭਲ ਨੀਕੇ ਮਿਲਿ ਸੰਤ ਜਨਾ ਮਲੁ ਲਹੀਆ ॥
हरि के संत संत भल नीके मिलि संत जना मलु लहीआ ॥
ईश्वर के संत भले एवं नेक हैं, इन संतजनों को मिलकर पापों की मैल दूर होती है।
ਹਉਮੈ ਦੁਰਤੁ ਗਇਆ ਸਭੁ ਨੀਕਰਿ ਜਿਉ ਸਾਬੁਨਿ ਕਾਪਰੁ ਕਰਿਆ ॥੩॥
हउमै दुरतु गइआ सभु नीकरि जिउ साबुनि कापरु करिआ ॥३॥
जैसे कपड़े को साबुन से साफ किया जाता है, वैसे ही अहम् एवं द्वैतभाव सब निकल गया है॥३॥
ਮਸਤਕਿ ਲਿਲਾਟਿ ਲਿਖਿਆ ਧੁਰਿ ਠਾਕੁਰਿ ਗੁਰ ਸਤਿਗੁਰ ਚਰਨ ਉਰ ਧਰਿਆ ॥
मसतकि लिलाटि लिखिआ धुरि ठाकुरि गुर सतिगुर चरन उर धरिआ ॥
मालिक ने प्रारम्भ से ही माथे पर भाग्य लिखा हुआ था, गुरु के चरणों को मन में बसा लिया है।
ਸਭੁ ਦਾਲਦੁ ਦੂਖ ਭੰਜ ਪ੍ਰਭੁ ਪਾਇਆ ਜਨ ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਉਧਰਿਆ ॥੪॥੧॥
सभु दालदु दूख भंज प्रभु पाइआ जन नानक नामि उधरिआ ॥४॥१॥
सब दरिद्र एवं दुख दूर करने वाले प्रभु को पा लिया है, हे नानक ! हरिनाम से उद्धार हो गया है॥४॥१॥
ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੪ ॥
कानड़ा महला ४ ॥
कानड़ा महला ४ ॥
ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਸੰਤ ਜਨਾ ਪਗ ਰੇਨ ॥
मेरा मनु संत जना पग रेन ॥
मेरा मन संतजनों के पैरों की धूल समान है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਕਥਾ ਸੁਨੀ ਮਿਲਿ ਸੰਗਤਿ ਮਨੁ ਕੋਰਾ ਹਰਿ ਰੰਗਿ ਭੇਨ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि हरि कथा सुनी मिलि संगति मनु कोरा हरि रंगि भेन ॥१॥ रहाउ ॥
अच्छी संगति में मिलकर हरि कथा सुनी तो कोरा मन प्रभु प्रेम में भीग गया॥१॥रहाउ॥
ਹਮ ਅਚਿਤ ਅਚੇਤ ਨ ਜਾਨਹਿ ਗਤਿ ਮਿਤਿ ਗੁਰਿ ਕੀਏ ਸੁਚਿਤ ਚਿਤੇਨ ॥
हम अचित अचेत न जानहि गति मिति गुरि कीए सुचित चितेन ॥
हम नासमझ, बुद्धिमान ईश्वर की महानता को नहीं जानते, पर गुरु ने हमें बुद्धिमान एवं समझदार बना दिया है।
ਪ੍ਰਭਿ ਦੀਨ ਦਇਆਲਿ ਕੀਓ ਅੰਗੀਕ੍ਰਿਤੁ ਮਨਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪੇਨ ॥੧॥
प्रभि दीन दइआलि कीओ अंगीक्रितु मनि हरि हरि नामु जपेन ॥१॥
दीनदयाल प्रभु ने अंगीकार किया है, मन प्रभु का नाम जप रहा है॥१॥
ਹਰਿ ਕੇ ਸੰਤ ਮਿਲਹਿ ਮਨ ਪ੍ਰੀਤਮ ਕਟਿ ਦੇਵਉ ਹੀਅਰਾ ਤੇਨ ॥
हरि के संत मिलहि मन प्रीतम कटि देवउ हीअरा तेन ॥
यदि प्रभु के प्रिय भक्तों से मिलन हो जाए तो हृदय को भी काट कर सौंप दूँ।
ਹਰਿ ਕੇ ਸੰਤ ਮਿਲੇ ਹਰਿ ਮਿਲਿਆ ਹਮ ਕੀਏ ਪਤਿਤ ਪਵੇਨ ॥੨॥
हरि के संत मिले हरि मिलिआ हम कीए पतित पवेन ॥२॥
प्रभु के भक्तों को मिलकर ही प्रभु मिला है, हम जैसे पापी भी पावन हो गए हैं।॥२॥
ਹਰਿ ਕੇ ਜਨ ਊਤਮ ਜਗਿ ਕਹੀਅਹਿ ਜਿਨ ਮਿਲਿਆ ਪਾਥਰ ਸੇਨ ॥
हरि के जन ऊतम जगि कहीअहि जिन मिलिआ पाथर सेन ॥
परमात्मा की उपासना करने वाले संसार में उत्तम कहलाते हैं, जिनको मिलकर पत्थर दिल भी कोमल हो जाते हैं।