Hindi Page 895

ਸੰਤਨ ਕੇ ਪ੍ਰਾਣ ਅਧਾਰ ॥
संतन के प्राण अधार ॥
और वह संतों के प्राणों का आधार है।

ਊਚੇ ਤੇ ਊਚ ਅਪਾਰ ॥੩॥
ऊचे ते ऊच अपार ॥३॥
वह सबसे ऊँचा एवं अपरम्पार है॥ ३॥

ਸੁ ਮਤਿ ਸਾਰੁ ਜਿਤੁ ਹਰਿ ਸਿਮਰੀਜੈ ॥
सु मति सारु जितु हरि सिमरीजै ॥
वही सुमति है, जिस द्वारा भगवान् का सिमरन किया जाता है।

ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਜਿਸੁ ਆਪੇ ਦੀਜੈ ॥
करि किरपा जिसु आपे दीजै ॥
वह जिस पर अपनी कृपा करता है, उसे ही सुमति देता है।

ਸੂਖ ਸਹਜ ਆਨੰਦ ਹਰਿ ਨਾਉ ॥
सूख सहज आनंद हरि नाउ ॥
हरि का नाम परम सुख एवं आनंद प्रदान करने वाला है,

ਨਾਨਕ ਜਪਿਆ ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਨਾਉ ॥੪॥੨੭॥੩੮॥
नानक जपिआ गुर मिलि नाउ ॥४॥२७॥३८॥
अतः हे नानक ! गुरु को मिलकर नाम ही जपा है॥ ४॥ २७ ॥ ३८ ॥

ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
रामकली महला ५ ॥

ਸਗਲ ਸਿਆਨਪ ਛਾਡਿ ॥
सगल सिआनप छाडि ॥
अपनी सब चतुराइयाँ छोड़ दो और

ਕਰਿ ਸੇਵਾ ਸੇਵਕ ਸਾਜਿ ॥
करि सेवा सेवक साजि ॥
सेवक बनकर गुरु की सेवा करो।

ਅਪਨਾ ਆਪੁ ਸਗਲ ਮਿਟਾਇ ॥
अपना आपु सगल मिटाइ ॥
जो अपना सारा अहंत्व मिटा देता है,

ਮਨ ਚਿੰਦੇ ਸੇਈ ਫਲ ਪਾਇ ॥੧॥
मन चिंदे सेई फल पाइ ॥१॥
उसे मनोवांछित फल प्राप्त होता है॥ १॥

ਹੋਹੁ ਸਾਵਧਾਨ ਅਪੁਨੇ ਗੁਰ ਸਿਉ ॥
होहु सावधान अपुने गुर सिउ ॥
अपने गुरु के साथ सावधान होकर रहो,

ਆਸਾ ਮਨਸਾ ਪੂਰਨ ਹੋਵੈ ਪਾਵਹਿ ਸਗਲ ਨਿਧਾਨ ਗੁਰ ਸਿਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
आसा मनसा पूरन होवै पावहि सगल निधान गुर सिउ ॥१॥ रहाउ ॥
आशा-अभिलाषा सब पूर्ण हो जाएँगी और गुरु से सर्व भण्डार हासिल हो जाएँगे॥ १॥ रहाउ॥

ਦੂਜਾ ਨਹੀ ਜਾਨੈ ਕੋਇ ॥
दूजा नही जानै कोइ ॥
अन्य कोई नहीं जानता कि

ਸਤਗੁਰੁ ਨਿਰੰਜਨੁ ਸੋਇ ॥
सतगुरु निरंजनु सोइ ॥
सतगुरु ही निरंजन है।

ਮਾਨੁਖ ਕਾ ਕਰਿ ਰੂਪੁ ਨ ਜਾਨੁ ॥
मानुख का करि रूपु न जानु ॥
गुरु को मनुष्य का रूप न समझो।

ਮਿਲੀ ਨਿਮਾਨੇ ਮਾਨੁ ॥੨॥
मिली निमाने मानु ॥२॥
मुझ मानहीन को भी उसके द्वार पर सम्मान मिला है ॥२॥

ਗੁਰ ਕੀ ਹਰਿ ਟੇਕ ਟਿਕਾਇ ॥
गुर की हरि टेक टिकाइ ॥
भगवान् के रूप गुरु का सहारा लो,

ਅਵਰ ਆਸਾ ਸਭ ਲਾਹਿ ॥
अवर आसा सभ लाहि ॥
अन्य सब आशाएँ त्याग दो।

ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਮਾਗੁ ਨਿਧਾਨੁ ॥
हरि का नामु मागु निधानु ॥
गुरु से हरि-नाम का भण्डार मांगो,

ਤਾ ਦਰਗਹ ਪਾਵਹਿ ਮਾਨੁ ॥੩॥
ता दरगह पावहि मानु ॥३॥
तो दरबार में आदर प्राप्त हो जाएगा।॥ ३॥

ਗੁਰ ਕਾ ਬਚਨੁ ਜਪਿ ਮੰਤੁ ॥
गुर का बचनु जपि मंतु ॥
गुरु वचन का जाप करो, यही मंत्र है,

ਏਹਾ ਭਗਤਿ ਸਾਰ ਤਤੁ ॥
एहा भगति सार ततु ॥
यही भक्ति का सार तत्व है।

ਸਤਿਗੁਰ ਭਏ ਦਇਆਲ ॥ ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਨਿਹਾਲ ॥੪॥੨੮॥੩੯॥
सतिगुर भए दइआल ॥ नानक दास निहाल ॥४॥२८॥३९॥
जब सतगुरु दयालु हो गया तो दास नानक भी निहाल हो गया।॥ ४॥ २८ ॥ ३६ ॥

ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
रामकली महला ५ ॥

ਹੋਵੈ ਸੋਈ ਭਲ ਮਾਨੁ ॥
होवै सोई भल मानु ॥
जो कुछ हो रहा है, उसे ही भला मानो।

ਆਪਨਾ ਤਜਿ ਅਭਿਮਾਨੁ ॥
आपना तजि अभिमानु ॥
अपना अभिमान त्याग दो और

ਦਿਨੁ ਰੈਨਿ ਸਦਾ ਗੁਨ ਗਾਉ ॥
दिनु रैनि सदा गुन गाउ ॥
दिन-रात भगवान का गुणगान करो,

ਪੂਰਨ ਏਹੀ ਸੁਆਉ ॥੧॥
पूरन एही सुआउ ॥१॥
यही मानव-जीवन का पूर्ण मनोरथ है॥ १॥

ਆਨੰਦ ਕਰਿ ਸੰਤ ਹਰਿ ਜਪਿ ॥
आनंद करि संत हरि जपि ॥
संतों के संग ईश्वर का नाम जपो एवं आनंद करो।

ਛਾਡਿ ਸਿਆਨਪ ਬਹੁ ਚਤੁਰਾਈ ਗੁਰ ਕਾ ਜਪਿ ਮੰਤੁ ਨਿਰਮਲ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
छाडि सिआनप बहु चतुराई गुर का जपि मंतु निरमल ॥१॥ रहाउ ॥
अपनी बुद्धिमता एवं चतुराई को छोड़कर गुरु के निर्मल मंत्र का जाप करो॥ १॥ रहाउ॥

ਏਕ ਕੀ ਕਰਿ ਆਸ ਭੀਤਰਿ ॥
एक की करि आस भीतरि ॥
मन में एक परमात्मा की आशा करो,

ਨਿਰਮਲ ਜਪਿ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ॥
निरमल जपि नामु हरि हरि ॥
निर्मल हरि-नाम का जाप करो।

ਗੁਰ ਕੇ ਚਰਨ ਨਮਸਕਾਰਿ ॥
गुर के चरन नमसकारि ॥
गुरु के चरणों को प्रणाम करो,

ਭਵਜਲੁ ਉਤਰਹਿ ਪਾਰਿ ॥੨॥
भवजलु उतरहि पारि ॥२॥
भवसागर से उद्धार हो जाएगा।॥ २॥

ਦੇਵਨਹਾਰ ਦਾਤਾਰ ॥
देवनहार दातार ॥
सबकुछ देने वाले दातार का

ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਰਾਵਾਰ ॥
अंतु न पारावार ॥
कोई अन्त एवं आर-पार नहीं है,

ਜਾ ਕੈ ਘਰਿ ਸਰਬ ਨਿਧਾਨ ॥
जा कै घरि सरब निधान ॥
जिसके घर में सर्व भण्डार हैं,

ਰਾਖਨਹਾਰ ਨਿਦਾਨ ॥੩॥
राखनहार निदान ॥३॥
अंत में वही रक्षा करने वाला है॥ ३॥

ਨਾਨਕ ਪਾਇਆ ਏਹੁ ਨਿਧਾਨ ॥ ਹਰੇ ਹਰਿ ਨਿਰਮਲ ਨਾਮ ॥
नानक पाइआ एहु निधान ॥ हरे हरि निरमल नाम ॥
नानक ने वह कोष पा लिया है, जो हरि का निर्मल नाम है,”

ਜੋ ਜਪੈ ਤਿਸ ਕੀ ਗਤਿ ਹੋਇ ॥
जो जपै तिस की गति होइ ॥
जो भी पावन हरि नाम का जाप करता है, उसकी गति हो जाती है।

ਨਾਨਕ ਕਰਮਿ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਇ ॥੪॥੨੯॥੪੦॥
नानक करमि परापति होइ ॥४॥२९॥४०॥
हे नानक ! भाग्य से ही इसकी प्राप्ति होती है॥ ४॥ २६ ॥ ४०॥

ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
रामकली महला ५ ॥

ਦੁਲਭ ਦੇਹ ਸਵਾਰਿ ॥
दुलभ देह सवारि ॥
हे मानव ! अपना दुर्लभ जीवन सफल कर ले;

ਜਾਹਿ ਨ ਦਰਗਹ ਹਾਰਿ ॥
जाहि न दरगह हारि ॥
इस तरह जीवन बाजी हार कर दरबार में नहीं जाना पड़ेगा।

ਹਲਤਿ ਪਲਤਿ ਤੁਧੁ ਹੋਇ ਵਡਿਆਈ ॥
हलति पलति तुधु होइ वडिआई ॥
लोक-परलोक में तेरी बड़ी प्रशंसा होगी तथा

ਅੰਤ ਕੀ ਬੇਲਾ ਲਏ ਛਡਾਈ ॥੧॥
अंत की बेला लए छडाई ॥१॥
अन्तिम समय परमात्मा यमों से बचा लेगा।॥ १॥

ਰਾਮ ਕੇ ਗੁਨ ਗਾਉ ॥
राम के गुन गाउ ॥
राम का गुणगान करो,

ਹਲਤੁ ਪਲਤੁ ਹੋਹਿ ਦੋਵੈ ਸੁਹੇਲੇ ਅਚਰਜ ਪੁਰਖੁ ਧਿਆਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हलतु पलतु होहि दोवै सुहेले अचरज पुरखु धिआउ ॥१॥ रहाउ ॥
लोक-परलोक दोनों सुखद हो जाएँगे, अद्भुत परमेश्वर का ध्यान करते रहो॥ १॥ रहाउ ॥

ਊਠਤ ਬੈਠਤ ਹਰਿ ਜਾਪੁ ॥
ऊठत बैठत हरि जापु ॥
उठते-बैठते हर वक्त परमात्मा का जाप करो,

ਬਿਨਸੈ ਸਗਲ ਸੰਤਾਪੁ ॥
बिनसै सगल संतापु ॥
इससे दुख-संताप नाश हो जाएँगे,

ਬੈਰੀ ਸਭਿ ਹੋਵਹਿ ਮੀਤ ॥
बैरी सभि होवहि मीत ॥
सब शत्रु भी मित्र बन जाएँगे, और

ਨਿਰਮਲੁ ਤੇਰਾ ਹੋਵੈ ਚੀਤ ॥੨॥
निरमलु तेरा होवै चीत ॥२॥
तेरा चित्त भी निर्मल हो जाएगा ॥ २॥

ਸਭ ਤੇ ਊਤਮ ਇਹੁ ਕਰਮੁ ॥
सभ ते ऊतम इहु करमु ॥
सबसे उत्तम यही कर्म है,

ਸਗਲ ਧਰਮ ਮਹਿ ਸ੍ਰੇਸਟ ਧਰਮੁ ॥
सगल धरम महि स्रेसट धरमु ॥
सब धर्मों में यही श्रेष्ठ धर्म है कि भगवान् का सिमरन करते रहो।

ਹਰਿ ਸਿਮਰਨਿ ਤੇਰਾ ਹੋਇ ਉਧਾਰੁ ॥
हरि सिमरनि तेरा होइ उधारु ॥
भगवान् का सिमरन करने से तेरा उद्धार हो जाएगा और

ਜਨਮ ਜਨਮ ਕਾ ਉਤਰੈ ਭਾਰੁ ॥੩॥
जनम जनम का उतरै भारु ॥३॥
जन्म-जन्मांतरों के किए पापों का भार उतर जाएगा ॥ ३ ॥

ਪੂਰਨ ਤੇਰੀ ਹੋਵੈ ਆਸ ॥
पूरन तेरी होवै आस ॥
तेरी हर आशा पूर्ण हो जाएगी और

ਜਮ ਕੀ ਕਟੀਐ ਤੇਰੀ ਫਾਸ ॥
जम की कटीऐ तेरी फास ॥
तेरी यम की फांसी भी कट जाएगी।

ਗੁਰ ਕਾ ਉਪਦੇਸੁ ਸੁਨੀਜੈ ॥ ਨਾਨਕ ਸੁਖਿ ਸਹਜਿ ਸਮੀਜੈ ॥੪॥੩੦॥੪੧॥
गुर का उपदेसु सुनीजै ॥ नानक सुखि सहजि समीजै ॥४॥३०॥४१॥
हे नानक ! गुरु का उपदेश सुनना चाहिए, इससे सहज सुख में समाया जा सकता है॥ ४॥ ३०॥ ४१॥

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