Hindi Page 911

ਪਾਰਸ ਪਰਸੇ ਫਿਰਿ ਪਾਰਸੁ ਹੋਏ ਹਰਿ ਜੀਉ ਅਪਣੀ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੀ ॥੨॥
पारस परसे फिरि पारसु होए हरि जीउ अपणी किरपा धारी ॥२॥
परमेश्वर ने अपनी कृपा की गुरु रूपी पारस को छूने से गुणवान रूपी पारस बन गया हूँ॥ २॥

ਇਕਿ ਭੇਖ ਕਰਹਿ ਫਿਰਹਿ ਅਭਿਮਾਨੀ ਤਿਨ ਜੂਐ ਬਾਜੀ ਹਾਰੀ ॥੩॥
इकि भेख करहि फिरहि अभिमानी तिन जूऐ बाजी हारी ॥३॥
कुछ लोग वेष बनाकर होकर फिरते हैं और उन्होंने अपनी जीवन बाजी जुए में हार दी है॥ ३॥

ਇਕਿ ਅਨਦਿਨੁ ਭਗਤਿ ਕਰਹਿ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਉਰਿ ਧਾਰੀ ॥੪॥
इकि अनदिनु भगति करहि दिनु राती राम नामु उरि धारी ॥४॥
कोई राम-नाम हृदय में बसाकर रात-दिन भक्ति करता है ॥ ४॥

ਅਨਦਿਨੁ ਰਾਤੇ ਸਹਜੇ ਮਾਤੇ ਸਹਜੇ ਹਉਮੈ ਮਾਰੀ ॥੫॥
अनदिनु राते सहजे माते सहजे हउमै मारी ॥५॥
वे रात-दिन सहजावस्था में मस्त होकर हैं और सहज ही अपने अहंत्व को मिटा दिया है।॥ ५॥

ਭੈ ਬਿਨੁ ਭਗਤਿ ਨ ਹੋਈ ਕਬ ਹੀ ਭੈ ਭਾਇ ਭਗਤਿ ਸਵਾਰੀ ॥੬॥
भै बिनु भगति न होई कब ही भै भाइ भगति सवारी ॥६॥
भगवान के श्रद्धा-भय के बिना भक्ति नहीं हो सकती, इसलिए उन्होंने भय एवं भक्ति-भाव से अपना जीवन संवार लिया ॥ ६ ॥

ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਸਬਦਿ ਜਲਾਇਆ ਗਿਆਨਿ ਤਤਿ ਬੀਚਾਰੀ ॥੭॥
माइआ मोहु सबदि जलाइआ गिआनि तति बीचारी ॥७॥
ज्ञान-तत्व का विचार करके उन्होंने शब्द द्वारा मोह-माया को जला दिया है॥ ७ ॥

ਆਪੇ ਆਪਿ ਕਰਾਏ ਕਰਤਾ ਆਪੇ ਬਖਸਿ ਭੰਡਾਰੀ ॥੮॥
आपे आपि कराए करता आपे बखसि भंडारी ॥८॥
परमेश्वर स्वयं ही सब करवाता है और वह स्वयं ही कृपा का भण्डार है॥ ८ ॥

ਤਿਸ ਕਿਆ ਗੁਣਾ ਕਾ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਇਆ ਹਉ ਗਾਵਾ ਸਬਦਿ ਵੀਚਾਰੀ ॥੯॥
तिस किआ गुणा का अंतु न पाइआ हउ गावा सबदि वीचारी ॥९॥
उसके गुणों का अन्त नहीं पाया जा सकता, मैं शब्द द्वारा विचार करके उसका स्तुतिगान करता हूँ॥ ६॥

ਹਰਿ ਜੀਉ ਜਪੀ ਹਰਿ ਜੀਉ ਸਾਲਾਹੀ ਵਿਚਹੁ ਆਪੁ ਨਿਵਾਰੀ ॥੧੦॥
हरि जीउ जपी हरि जीउ सालाही विचहु आपु निवारी ॥१०॥
अपना अहंत्व दूर करके परमात्मा का जाप करता हूँ और उसकी ही स्तुति करता हूँ॥ १०॥

ਨਾਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਗੁਰ ਤੇ ਪਾਇਆ ਅਖੁਟ ਸਚੇ ਭੰਡਾਰੀ ॥੧੧॥
नामु पदारथु गुर ते पाइआ अखुट सचे भंडारी ॥११॥
मैंने नाम पदार्थ गुरु से प्राप्त किया है, सच्चे प्रभु के नाम का भण्डार अक्षय है॥ ११॥

ਅਪਣਿਆ ਭਗਤਾ ਨੋ ਆਪੇ ਤੁਠਾ ਅਪਣੀ ਕਿਰਪਾ ਕਰਿ ਕਲ ਧਾਰੀ ॥੧੨॥
अपणिआ भगता नो आपे तुठा अपणी किरपा करि कल धारी ॥१२॥
परमात्मा अपने भक्तों पर मेहरबान हो गया है, उसने कृपा करके नाम-रूपी कला हृदय में रख दी है॥ १२ ॥

ਤਿਨ ਸਾਚੇ ਨਾਮ ਕੀ ਸਦਾ ਭੁਖ ਲਾਗੀ ਗਾਵਨਿ ਸਬਦਿ ਵੀਚਾਰੀ ॥੧੩॥
तिन साचे नाम की सदा भुख लागी गावनि सबदि वीचारी ॥१३॥
उन्हें सदैव रहते सत्य-नाम की भूख लगी रहती है और शब्द का चिंतन करके प्रभु का गुणगान करते रहते हैं।॥ १३॥

ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਹੈ ਤਿਸ ਕਾ ਆਖਣੁ ਬਿਖਮੁ ਬੀਚਾਰੀ ॥੧੪॥
जीउ पिंडु सभु किछु है तिस का आखणु बिखमु बीचारी ॥१४॥
यह प्राण एवं शरीर सबकुछ उसकी देन है, इसलिए उसके दान का वर्णन एवं विचार करना बहुत कठिन है॥ १४॥

ਸਬਦਿ ਲਗੇ ਸੇਈ ਜਨ ਨਿਸਤਰੇ ਭਉਜਲੁ ਪਾਰਿ ਉਤਾਰੀ ॥੧੫॥
सबदि लगे सेई जन निसतरे भउजलु पारि उतारी ॥१५॥
जो शब्द से लगे हैं, उनका ही उद्धार हुआ है और वही भवसागर से पार हो गए हैं।॥ १५॥

ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਸਾਚੇ ਕੋ ਪਾਰਿ ਨ ਪਾਵੈ ਬੂਝੈ ਕੋ ਵੀਚਾਰੀ ॥੧੬॥
बिनु हरि साचे को पारि न पावै बूझै को वीचारी ॥१६॥
सच्चे परमात्मा के बिना कोई भी पार नहीं हो सकता, परन्तु कोई विरला ही इस तथ्य को सोचता-समझता है॥ १६॥

ਜੋ ਧੁਰਿ ਲਿਖਿਆ ਸੋਈ ਪਾਇਆ ਮਿਲਿ ਹਰਿ ਸਬਦਿ ਸਵਾਰੀ ॥੧੭॥
जो धुरि लिखिआ सोई पाइआ मिलि हरि सबदि सवारी ॥१७॥
प्रारम्भ से ही जो भाग्य में लिखा हुआ है, यही प्राप्त हुआ है और प्रभु से मिलकर शब्द द्वारा जीवन संवार लिया है॥ १७॥

ਕਾਇਆ ਕੰਚਨੁ ਸਬਦੇ ਰਾਤੀ ਸਾਚੈ ਨਾਇ ਪਿਆਰੀ ॥੧੮॥
काइआ कंचनु सबदे राती साचै नाइ पिआरी ॥१८॥
शब्द में लीन काया सोने की तरह हो गई है और सच्चे नाम के प्यार में ही लीन है ॥ १८ ॥

ਕਾਇਆ ਅੰਮ੍ਰਿਤਿ ਰਹੀ ਭਰਪੂਰੇ ਪਾਈਐ ਸਬਦਿ ਵੀਚਾਰੀ ॥੧੯॥
काइआ अम्रिति रही भरपूरे पाईऐ सबदि वीचारी ॥१९॥
यह काया नामामृत से भरपूर रहती है, पर आज काया शब्द का चिंतन करने से है प्राप्त होती है ॥ १९ ॥

ਜੋ ਪ੍ਰਭੁ ਖੋਜਹਿ ਸੇਈ ਪਾਵਹਿ ਹੋਰਿ ਫੂਟਿ ਮੂਏ ਅਹੰਕਾਰੀ ॥੨੦॥
जो प्रभु खोजहि सेई पावहि होरि फूटि मूए अहंकारी ॥२०॥
जो व्यक्ति प्रभु की खोज करते हैं, उसे पा लेते हैं परन्तु अन्य अहंकारी जीव अपने अहंकार में ही मर मिट जाता है।॥ २०॥

ਬਾਦੀ ਬਿਨਸਹਿ ਸੇਵਕ ਸੇਵਹਿ ਗੁਰ ਕੈ ਹੇਤਿ ਪਿਆਰੀ ॥੨੧॥
बादी बिनसहि सेवक सेवहि गुर कै हेति पिआरी ॥२१॥
वाद-विवाद करने वाले जीव नाश हो जाते हैं पर गुरु से प्रेम करने वाला सेवक उसकी ही सेवा करता है॥ २१॥

ਸੋ ਜੋਗੀ ਤਤੁ ਗਿਆਨੁ ਬੀਚਾਰੇ ਹਉਮੈ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਮਾਰੀ ॥੨੨॥
सो जोगी ततु गिआनु बीचारे हउमै त्रिसना मारी ॥२२॥
सच्चा योगी यही है, जो अहम् एवं तृष्णा को मिटाकर ज्ञान-तत्प का चिंतन करता है॥ २२॥

ਸਤਿਗੁਰੁ ਦਾਤਾ ਤਿਨੈ ਪਛਾਤਾ ਜਿਸ ਨੋ ਕ੍ਰਿਪਾ ਤੁਮਾਰੀ ॥੨੩॥
सतिगुरु दाता तिनै पछाता जिस नो क्रिपा तुमारी ॥२३॥
हे परमेश्वर ! जिस पर तुम्हारी कृपा हुई है, उसने दाता सतगुरु को पहचान लिया है॥ २३॥

ਸਤਿਗੁਰੁ ਨ ਸੇਵਹਿ ਮਾਇਆ ਲਾਗੇ ਡੂਬਿ ਮੂਏ ਅਹੰਕਾਰੀ ॥੨੪॥
सतिगुरु न सेवहि माइआ लागे डूबि मूए अहंकारी ॥२४॥
माया में लगे हुए जीव सतगुरु की सेवा नहीं करते और ऐसे अहंकारी डूबकर मर जाते हैं।॥ २४ ॥

ਜਿਚਰੁ ਅੰਦਰਿ ਸਾਸੁ ਤਿਚਰੁ ਸੇਵਾ ਕੀਚੈ ਜਾਇ ਮਿਲੀਐ ਰਾਮ ਮੁਰਾਰੀ ॥੨੫॥
जिचरु अंदरि सासु तिचरु सेवा कीचै जाइ मिलीऐ राम मुरारी ॥२५॥
जब तक जीवन-सॉसें हैं, तब तक सेवा करनी चाहिए, इस प्रकार राम मिल जाता है॥ २५ ॥

ਅਨਦਿਨੁ ਜਾਗਤ ਰਹੈ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਅਪਨੇ ਪ੍ਰਿਅ ਪ੍ਰੀਤਿ ਪਿਆਰੀ ॥੨੬॥
अनदिनु जागत रहै दिनु राती अपने प्रिअ प्रीति पिआरी ॥२६॥
जिन्हें अपने प्रिय प्रभु की प्रीति लग जाती है, वे दिन-रात जाग्रत रहते हैं।॥ २६॥

ਤਨੁ ਮਨੁ ਵਾਰੀ ਵਾਰਿ ਘੁਮਾਈ ਅਪਨੇ ਗੁਰ ਵਿਟਹੁ ਬਲਿਹਾਰੀ ॥੨੭॥
तनु मनु वारी वारि घुमाई अपने गुर विटहु बलिहारी ॥२७॥
मैं अपने गुरु पर बलिहारी जाता हूँ और अपना तन-मन सबकुछ उस पर न्योछावर करता हूँ॥ २७ ॥

ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਬਿਨਸਿ ਜਾਇਗਾ ਉਬਰੇ ਸਬਦਿ ਵੀਚਾਰੀ ॥੨੮॥
माइआ मोहु बिनसि जाइगा उबरे सबदि वीचारी ॥२८॥
यह मोह-माया तो नाशवान है, शब्द का चिंतन करने से उद्धार हो सकता है॥ २८॥

ਆਪਿ ਜਗਾਏ ਸੇਈ ਜਾਗੇ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਵੀਚਾਰੀ ॥੨੯॥
आपि जगाए सेई जागे गुर कै सबदि वीचारी ॥२९॥
गुरु के शब्द का विचार करके वही अज्ञान से जागते हैं, जिन्हें प्रभु ने स्वयं सचेत किया है ॥२६॥

ਨਾਨਕ ਸੇਈ ਮੂਏ ਜਿ ਨਾਮੁ ਨ ਚੇਤਹਿ ਭਗਤ ਜੀਵੇ ਵੀਚਾਰੀ ॥੩੦॥੪॥੧੩॥
नानक सेई मूए जि नामु न चेतहि भगत जीवे वीचारी ॥३०॥४॥१३॥
हे नानक ! जो नाम-स्मरण नहीं करते, वही जीव मरे हैं और भक्त तो शब्द का विचार करके जीते रहते हैं। ३० ॥ ४॥१३॥

ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੩ ॥
रामकली महला ३ ॥
रामकली महला ३ ॥

ਨਾਮੁ ਖਜਾਨਾ ਗੁਰ ਤੇ ਪਾਇਆ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਰਹੇ ਆਘਾਈ ॥੧॥
नामु खजाना गुर ते पाइआ त्रिपति रहे आघाई ॥१॥
नाम का खजाना गुरु से प्राप्त किया है, जिससे अब मैं तृप्त एवं संतुष्ट रहता हूँ॥ १॥

ਸੰਤਹੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਮੁਕਤਿ ਗਤਿ ਪਾਈ ॥
संतहु गुरमुखि मुकति गति पाई ॥
हे संतजनो ! गुरु के सान्निध्य में मुक्ति एवं परमगति प्राप्त हुई है।

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