Hindi Page 1340

ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਸਦਾ ਸਦ ਅਟਲਾ ॥
गुर का सबदु सदा सद अटला ॥
गुरु का शब्द सदैव अटल है।

ਗੁਰ ਕੀ ਬਾਣੀ ਜਿਸੁ ਮਨਿ ਵਸੈ ॥ ਦੂਖੁ ਦਰਦੁ ਸਭੁ ਤਾ ਕਾ ਨਸੈ ॥੧॥
गुर की बाणी जिसु मनि वसै ॥ दूखु दरदु सभु ता का नसै ॥१॥
जिसके मन में गुरु की वाणी बस जाती है, उसका दुख-दर्द सब निवृत्त हो जाता है॥ १॥

ਹਰਿ ਰੰਗਿ ਰਾਤਾ ਮਨੁ ਰਾਮ ਗੁਨ ਗਾਵੈ ॥
हरि रंगि राता मनु राम गुन गावै ॥
परमात्मा के रंग में लीन मन उसी के गुण गाता है।

ਮੁਕਤੋੁ ਸਾਧੂ ਧੂਰੀ ਨਾਵੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मुकतो साधू धूरी नावै ॥१॥ रहाउ ॥
जो साधुओं की चरण-धूल में स्नान करता है, वह सब बन्धनों से मुक्त हो जाता है॥ १॥रहाउ॥

ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਉਤਰੇ ਪਾਰਿ ॥
गुर परसादी उतरे पारि ॥
गुरु की कृपा से जीव संसार-सागर से पार उतरता है और

ਭਉ ਭਰਮੁ ਬਿਨਸੇ ਬਿਕਾਰ ॥
भउ भरमु बिनसे बिकार ॥
उसके भ्रम-भय, विकार नष्ट हो जाते हैं।

ਮਨ ਤਨ ਅੰਤਰਿ ਬਸੇ ਗੁਰ ਚਰਨਾ ॥
मन तन अंतरि बसे गुर चरना ॥
जिसके मन तन में गुरु के चरण बस जाते हैं,

ਨਿਰਭੈ ਸਾਧ ਪਰੇ ਹਰਿ ਸਰਨਾ ॥੨॥
निरभै साध परे हरि सरना ॥२॥
वह निर्भय भावना से प्रभु की शरण में पड़ता है।॥ २॥

ਅਨਦ ਸਹਜ ਰਸ ਸੂਖ ਘਨੇਰੇ ॥
अनद सहज रस सूख घनेरे ॥
वह सहज आनंद एवं अनेक सुख प्राप्त करता है,

ਦੁਸਮਨੁ ਦੂਖੁ ਨ ਆਵੈ ਨੇਰੇ ॥
दुसमनु दूखु न आवै नेरे ॥
कोई दुश्मन अथवा दुख भी उसके पास नहीं फटकता।

ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਅਪੁਨੇ ਕਰਿ ਰਾਖੇ ॥
गुरि पूरै अपुने करि राखे ॥
पूर्ण गुरु अपना बनाकर उसकी रक्षा करता है और

ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਕਿਲਬਿਖ ਸਭਿ ਲਾਥੇ ॥੩॥
हरि नामु जपत किलबिख सभि लाथे ॥३॥
परमात्मा का जाप करते हुए उसके सब पाप-दोष निवृत्त हो जाते हैं।॥ ३॥

ਸੰਤ ਸਾਜਨ ਸਿਖ ਭਏ ਸੁਹੇਲੇ ॥
संत साजन सिख भए सुहेले ॥
असल में संत, सज्जन एवं शिष्य ही सुखी रहते हैं,

ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਪ੍ਰਭ ਸਿਉ ਲੈ ਮੇਲੇ ॥
गुरि पूरै प्रभ सिउ लै मेले ॥
पूर्ण गुरु उनको प्रभु से मिला देता है।

ਜਨਮ ਮਰਨ ਦੁਖ ਫਾਹਾ ਕਾਟਿਆ ॥
जनम मरन दुख फाहा काटिआ ॥
हे नानक ! उनके जन्म-मरण के दुखों का फंदा कट जाता है और

ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਗੁਰਿ ਪੜਦਾ ਢਾਕਿਆ ॥੪॥੮॥
कहु नानक गुरि पड़दा ढाकिआ ॥४॥८॥
गुरु उनका पर्दा ढकता है॥ ४॥ ८॥

ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
प्रभाती महला ५ ॥
प्रभाती महला ५ ॥

ਸਤਿਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਨਾਮੁ ਦੀਆ ॥
सतिगुरि पूरै नामु दीआ ॥
पूर्ण सतगुरु ने हरिनाम ही दिया है,

ਅਨਦ ਮੰਗਲ ਕਲਿਆਣ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਕਾਰਜੁ ਸਗਲਾ ਰਾਸਿ ਥੀਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अनद मंगल कलिआण सदा सुखु कारजु सगला रासि थीआ ॥१॥ रहाउ ॥
जिससे आनंद-खुशियाँ, कल्याण एवं सदैव सुख प्राप्त हुआ है और हमारे सभी कार्य सम्पन्न हो गए हैं।॥ १॥रहाउ॥

ਚਰਨ ਕਮਲ ਗੁਰ ਕੇ ਮਨਿ ਵੂਠੇ ॥
चरन कमल गुर के मनि वूठे ॥
गुरु के चरण कमल मेरे मन में बस गए हैं,

ਦੂਖ ਦਰਦ ਭ੍ਰਮ ਬਿਨਸੇ ਝੂਠੇ ॥੧॥
दूख दरद भ्रम बिनसे झूठे ॥१॥
जिससे दुख-दर्द, झूठा भ्रम नाश हो गया है॥ १॥

ਨਿਤ ਉਠਿ ਗਾਵਹੁ ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਬਾਣੀ ॥
नित उठि गावहु प्रभ की बाणी ॥
नित्य उठकर प्रभु की वाणी गाओ।

ਆਠ ਪਹਰ ਹਰਿ ਸਿਮਰਹੁ ਪ੍ਰਾਣੀ ॥੨॥
आठ पहर हरि सिमरहु प्राणी ॥२॥
हे प्राणी ! आठ प्रहर परमात्मा का स्मरण करो॥ २॥

ਘਰਿ ਬਾਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਸਭਨੀ ਥਾਈ ॥
घरि बाहरि प्रभु सभनी थाई ॥
घर बाहर हर स्थान पर प्रभु ही विद्यमान है,

ਸੰਗਿ ਸਹਾਈ ਜਹ ਹਉ ਜਾਈ ॥੩॥
संगि सहाई जह हउ जाई ॥३॥
जहाँ भी हम जाते हैं, वहाँ साथ देकर सहायता करता है॥ ३॥

ਦੁਇ ਕਰ ਜੋੜਿ ਕਰੀ ਅਰਦਾਸਿ ॥
दुइ कर जोड़ि करी अरदासि ॥
नानक दोनों हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हैं कि

ਸਦਾ ਜਪੇ ਨਾਨਕੁ ਗੁਣਤਾਸੁ ॥੪॥੯॥
सदा जपे नानकु गुणतासु ॥४॥९॥
सदैव गुणों के घर ईश्वर का जाप करो॥ ४॥ ६॥

ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
प्रभाती महला ५ ॥
प्रभाती महला ५ ॥

ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਪ੍ਰਭੁ ਸੁਘੜ ਸੁਜਾਣੁ ॥
पारब्रहमु प्रभु सुघड़ सुजाणु ॥
परब्रह्म प्रभु सर्वगुणसम्पन्न एवं बुद्धिमान है।

ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਪਾਈਐ ਵਡਭਾਗੀ ਦਰਸਨ ਕਉ ਜਾਈਐ ਕੁਰਬਾਣੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरु पूरा पाईऐ वडभागी दरसन कउ जाईऐ कुरबाणु ॥१॥ रहाउ ॥
पूर्णगुरु बड़े भाग्य से ही प्राप्त होता है, मैं उसके दर्शनों पर कुर्बान जाता हूँ॥ १॥रहाउ॥

ਕਿਲਬਿਖ ਮੇਟੇ ਸਬਦਿ ਸੰਤੋਖੁ ॥
किलबिख मेटे सबदि संतोखु ॥
गुरु के शब्द से सब पाप मिट गए हैं और मन को संतोष मिला है।

ਨਾਮੁ ਅਰਾਧਨ ਹੋਆ ਜੋਗੁ ॥
नामु अराधन होआ जोगु ॥
परमात्मा का नाम आराधना के योग्य है।

ਸਾਧਸੰਗਿ ਹੋਆ ਪਰਗਾਸੁ ॥
साधसंगि होआ परगासु ॥
साधुओं की संगत में ज्ञान का प्रकाश होता है और

ਚਰਨ ਕਮਲ ਮਨ ਮਾਹਿ ਨਿਵਾਸੁ ॥੧॥
चरन कमल मन माहि निवासु ॥१॥
प्रभु के चरण कमल मन में बस जाते हैं।॥ १॥

ਜਿਨਿ ਕੀਆ ਤਿਨਿ ਲੀਆ ਰਾਖਿ ॥
जिनि कीआ तिनि लीआ राखि ॥
जिस मालिक ने हमें उत्पन्न किया, उसी ने बचा लिया है।

ਪ੍ਰਭੁ ਪੂਰਾ ਅਨਾਥ ਕਾ ਨਾਥੁ ॥
प्रभु पूरा अनाथ का नाथु ॥
पूर्ण प्रभु अनाथों का नाथ है।

ਜਿਸਹਿ ਨਿਵਾਜੇ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰਿ ॥
जिसहि निवाजे किरपा धारि ॥
जिस पर वह कृपा-दृष्टि करता है,

ਪੂਰਨ ਕਰਮ ਤਾ ਕੇ ਆਚਾਰ ॥੨॥
पूरन करम ता के आचार ॥२॥
उसके सब आचरण एवं कर्म पूरे हो जाते हैं।॥ २॥

ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਨਿਤ ਨਿਤ ਨਿਤ ਨਵੇ ॥
गुण गावै नित नित नित नवे ॥
वह हर रोज़ ईश्वर के गुण गाता है और

ਲਖ ਚਉਰਾਸੀਹ ਜੋਨਿ ਨ ਭਵੇ ॥
लख चउरासीह जोनि न भवे ॥
चौरासी लाख योनियों के चक्र से मुक्त हो जाता है।

ਈਹਾਂ ਊਹਾਂ ਚਰਣ ਪੂਜਾਰੇ ॥
ईहां ऊहां चरण पूजारे ॥
लोक-परलोक में उसके चरणों की पूजा होती है और

ਮੁਖੁ ਊਜਲੁ ਸਾਚੇ ਦਰਬਾਰੇ ॥੩॥
मुखु ऊजलु साचे दरबारे ॥३॥
सच्चे दरबार में उसी का मुख उज्ज्वल होता है।॥ २॥

ਜਿਸੁ ਮਸਤਕਿ ਗੁਰਿ ਧਰਿਆ ਹਾਥੁ ॥
जिसु मसतकि गुरि धरिआ हाथु ॥
जिसके मस्तक पर गुरु हाथ रखता है,

ਕੋਟਿ ਮਧੇ ਕੋ ਵਿਰਲਾ ਦਾਸੁ ॥
कोटि मधे को विरला दासु ॥
करोड़ों में ऐसा कोई विरला ही दास होता है।

ਜਲਿ ਥਲਿ ਮਹੀਅਲਿ ਪੇਖੈ ਭਰਪੂਰਿ ॥
जलि थलि महीअलि पेखै भरपूरि ॥
वह समुद्र, धरती, आकाश सब में ईश्वर को ही व्यापक देखता है।

ਨਾਨਕ ਉਧਰਸਿ ਤਿਸੁ ਜਨ ਕੀ ਧੂਰਿ ॥੪॥੧੦॥
नानक उधरसि तिसु जन की धूरि ॥४॥१०॥
नानक फुरमान करते हैं कि उस भक्त की चरण-धूल से उद्धार हो जाता है।॥ ४॥ १०॥

ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
प्रभाती महला ५ ॥
प्रभाती महला ५ ॥

ਕੁਰਬਾਣੁ ਜਾਈ ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਅਪਨੇ ॥
कुरबाणु जाई गुर पूरे अपने ॥
मैं अपने पूर्णगुरु पर कुर्बान जाता हूँ,

ਜਿਸੁ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਪੁ ਜਪਨੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जिसु प्रसादि हरि हरि जपु जपने ॥१॥ रहाउ ॥
जिसकी कृपा से परमात्मा का जाप किया है॥ १॥रहाउ॥

ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਾਣੀ ਸੁਣਤ ਨਿਹਾਲ ॥
अम्रित बाणी सुणत निहाल ॥
उसकी अमृतवाणी सुनने से मन निहाल हो गया है और

ਬਿਨਸਿ ਗਏ ਬਿਖਿਆ ਜੰਜਾਲ ॥੧॥
बिनसि गए बिखिआ जंजाल ॥१॥
विकारों के जंजाल नष्ट हो गए हैं।॥ १॥

ਸਾਚ ਸਬਦ ਸਿਉ ਲਾਗੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ॥
साच सबद सिउ लागी प्रीति ॥
सच्चे शब्द से प्रीति लगाई तो

ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਅਪੁਨਾ ਆਇਆ ਚੀਤਿ ॥੨॥
हरि प्रभु अपुना आइआ चीति ॥२॥
अपना प्रभु ही याद आया॥ २॥

ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਹੋਆ ਪਰਗਾਸੁ ॥
नामु जपत होआ परगासु ॥
हरिनाम का जाप करने से ज्ञान का प्रकाश हुआ है और

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