ਦੇਹ ਨ ਗੇਹ ਨ ਨੇਹ ਨ ਨੀਤਾ ਮਾਇਆ ਮਤ ਕਹਾ ਲਉ ਗਾਰਹੁ ॥
देह न गेह न नेह न नीता माइआ मत कहा लउ गारहु ॥
यह शरीर, घर, प्रेम इत्यादि कोई सदा रहने वाले नहीं। हे जीव ! माया में मरत होकर कब तक अभिमान कर सकते हो।
ਛਤ੍ਰ ਨ ਪਤ੍ਰ ਨ ਚਉਰ ਨ ਚਾਵਰ ਬਹਤੀ ਜਾਤ ਰਿਦੈ ਨ ਬਿਚਾਰਹੁ ॥
छत्र न पत्र न चउर न चावर बहती जात रिदै न बिचारहु ॥
शाही छत्र, हुक्मनामे, चॅवर या चॅवर करने वाले नाश हो जाएँगे, नदिया के बहाव की तरह तेरी उम्र गुजरती जा रही है, इस सच्चाई को हृदय में तुम सोच नहीं रहे।
ਰਥ ਨ ਅਸ੍ਵ ਨ ਗਜ ਸਿੰਘਾਸਨ ਛਿਨ ਮਹਿ ਤਿਆਗਤ ਨਾਂਗ ਸਿਧਾਰਹੁ ॥
रथ न अस्व न गज सिंघासन छिन महि तिआगत नांग सिधारहु ॥
सुन्दर रथ, हाथी-घोड़े, सिंहासन इनको पल में छोड़कर खाली हाथ चले जाना है।
ਸੂਰ ਨ ਬੀਰ ਨ ਮੀਰ ਨ ਖਾਨਮ ਸੰਗਿ ਨ ਕੋਊ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਨਿਹਾਰਹੁ ॥
सूर न बीर न मीर न खानम संगि न कोऊ द्रिसटि निहारहु ॥
बेशक आँखों से देख लो, कोई शूरवीर, योद्धा, सेनापति एवं उच्चाधिकारी कोई साथ नहीं चलता।
ਕੋਟ ਨ ਓਟ ਨ ਕੋਸ ਨ ਛੋਟਾ ਕਰਤ ਬਿਕਾਰ ਦੋਊ ਕਰ ਝਾਰਹੁ ॥
कोट न ओट न कोस न छोटा करत बिकार दोऊ कर झारहु ॥
किलों का आसरा एवं धन-दौलत से छुटकारा नहीं होगा, आखिरकार पाप करते दोनों हाथ झाड़कर ही जाना पड़ेगा।
ਮਿਤ੍ਰ ਨ ਪੁਤ੍ਰ ਕਲਤ੍ਰ ਸਾਜਨ ਸਖ ਉਲਟਤ ਜਾਤ ਬਿਰਖ ਕੀ ਛਾਂਰਹੁ ॥
मित्र न पुत्र कलत्र साजन सख उलटत जात बिरख की छांरहु ॥
मित्र, पुत्र, पत्नी, सज्जन-सखा पेड़ की छांव की तरह साथ छोड़ देंगे।
ਦੀਨ ਦਯਾਲ ਪੁਰਖ ਪ੍ਰਭ ਪੂਰਨ ਛਿਨ ਛਿਨ ਸਿਮਰਹੁ ਅਗਮ ਅਪਾਰਹੁ ॥
दीन दयाल पुरख प्रभ पूरन छिन छिन सिमरहु अगम अपारहु ॥
उचित यही है कि दीनदयालु, परम पुरुष, अगम अपार प्रभु का हर पल सिमरन करो।
ਸ੍ਰੀਪਤਿ ਨਾਥ ਸਰਣਿ ਨਾਨਕ ਜਨ ਹੇ ਭਗਵੰਤ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਿ ਤਾਰਹੁ ॥੫॥
स्रीपति नाथ सरणि नानक जन हे भगवंत क्रिपा करि तारहु ॥५॥
नानक विनती करते हैं कि हे श्रीपति, हे नाथ ! तेरी शरण में आया हूँ। हे भगवंत ! कृपा करके मुझे संसार-सागर से मुक्त कर दो ॥५॥
ਪ੍ਰਾਨ ਮਾਨ ਦਾਨ ਮਗ ਜੋਹਨ ਹੀਤੁ ਚੀਤੁ ਦੇ ਲੇ ਲੇ ਪਾਰੀ ॥
प्रान मान दान मग जोहन हीतु चीतु दे ले ले पारी ॥
जीवन की बाजी लगाकर, इज्जत को दांव पर लगाकर, दान लेकर, लूटकर तथा अनेक तरीकों से दिल लगाकर धन-दौलत को जमा किया।
ਸਾਜਨ ਸੈਨ ਮੀਤ ਸੁਤ ਭਾਈ ਤਾਹੂ ਤੇ ਲੇ ਰਖੀ ਨਿਰਾਰੀ ॥
साजन सैन मीत सुत भाई ताहू ते ले रखी निरारी ॥
अपने सज्जनों-दोस्तों, मित्र, पुत्र एवं भाई इत्यादि से छिपाकर रखा।
ਧਾਵਨ ਪਾਵਨ ਕੂਰ ਕਮਾਵਨ ਇਹ ਬਿਧਿ ਕਰਤ ਅਉਧ ਤਨ ਜਾਰੀ ॥
धावन पावन कूर कमावन इह बिधि करत अउध तन जारी ॥
दौड़-धूप करके, झूठ की कमाई करते हुए पूरी जिंदगी इसी तरह गुजार दी।
ਕਰਮ ਧਰਮ ਸੰਜਮ ਸੁਚ ਨੇਮਾ ਚੰਚਲ ਸੰਗਿ ਸਗਲ ਬਿਧਿ ਹਾਰੀ ॥
करम धरम संजम सुच नेमा चंचल संगि सगल बिधि हारी ॥
धर्म-कर्म, संयम, पवित्रता, नियम इत्यादि को अनेक तरीकों से चंचल माया के संग लगाकर खो दिया।
ਪਸੁ ਪੰਖੀ ਬਿਰਖ ਅਸਥਾਵਰ ਬਹੁ ਬਿਧਿ ਜੋਨਿ ਭ੍ਰਮਿਓ ਅਤਿ ਭਾਰੀ ॥
पसु पंखी बिरख असथावर बहु बिधि जोनि भ्रमिओ अति भारी ॥
जिसके फलस्वरूप पशु-पक्षी, पेड़ों, स्थावर पहाड़ों की योनियों में पड़े रहे।
ਖਿਨੁ ਪਲੁ ਚਸਾ ਨਾਮੁ ਨਹੀ ਸਿਮਰਿਓ ਦੀਨਾ ਨਾਥ ਪ੍ਰਾਨਪਤਿ ਸਾਰੀ ॥
खिनु पलु चसा नामु नही सिमरिओ दीना नाथ प्रानपति सारी ॥
पर प्राणपति, दीनानाथ हरिनाम का क्षण-पल भर भी भजन नहीं किया।
ਖਾਨ ਪਾਨ ਮੀਠ ਰਸ ਭੋਜਨ ਅੰਤ ਕੀ ਬਾਰ ਹੋਤ ਕਤ ਖਾਰੀ ॥
खान पान मीठ रस भोजन अंत की बार होत कत खारी ॥
यह खान-पान, मीठे पदार्थ, भोजन इत्यादि अन्तिम समय सब कड़वे हो जाते हैं।
ਨਾਨਕ ਸੰਤ ਚਰਨ ਸੰਗਿ ਉਧਰੇ ਹੋਰਿ ਮਾਇਆ ਮਗਨ ਚਲੇ ਸਭਿ ਡਾਰੀ ॥੬॥
नानक संत चरन संगि उधरे होरि माइआ मगन चले सभि डारी ॥६॥
गुरु नानक फुरमान करते हैं कि संतों के चरणों में ही मुक्ति होती है, अन्य माया में मग्न रहने वाले सब छोड़कर चले जाते हैं।॥६॥
ਬ੍ਰਹਮਾਦਿਕ ਸਿਵ ਛੰਦ ਮੁਨੀਸੁਰ ਰਸਕਿ ਰਸਕਿ ਠਾਕੁਰ ਗੁਨ ਗਾਵਤ ॥
ब्रहमादिक सिव छंद मुनीसुर रसकि रसकि ठाकुर गुन गावत ॥
ब्रह्मा, शिव, वेद एवं मुनीश्वर इत्यादि आनंदपूर्वक ईश्वर के गुणों का गान करते हैं।
ਇੰਦ੍ਰ ਮੁਨਿੰਦ੍ਰ ਖੋਜਤੇ ਗੋਰਖ ਧਰਣਿ ਗਗਨ ਆਵਤ ਫੁਨਿ ਧਾਵਤ ॥
इंद्र मुनिंद्र खोजते गोरख धरणि गगन आवत फुनि धावत ॥
इन्द्र, मुनिन्द्र, विष्णु उसी को खोजते हैं, वे कभी धरती में आते हैं और पुनः गगन में चले जाते हैं।
ਸਿਧ ਮਨੁਖੵ ਦੇਵ ਅਰੁ ਦਾਨਵ ਇਕੁ ਤਿਲੁ ਤਾ ਕੋ ਮਰਮੁ ਨ ਪਾਵਤ ॥
सिध मनुख्य देव अरु दानव इकु तिलु ता को मरमु न पावत ॥
बड़े-बड़े सिद्ध, मनुष्य, देव और दानव तिल मात्र भी परब्रह्म का रहस्य नहीं पाते।
ਪ੍ਰਿਅ ਪ੍ਰਭ ਪ੍ਰੀਤਿ ਪ੍ਰੇਮ ਰਸ ਭਗਤੀ ਹਰਿ ਜਨ ਤਾ ਕੈ ਦਰਸਿ ਸਮਾਵਤ ॥
प्रिअ प्रभ प्रीति प्रेम रस भगती हरि जन ता कै दरसि समावत ॥
प्रियतम प्रभु की प्रीति, प्रेम भक्ति में निमग्न रहने वाले, हरि-भक्त उसके दर्शन में लीन रहते हैं।
ਤਿਸਹਿ ਤਿਆਗਿ ਆਨ ਕਉ ਜਾਚਹਿ ਮੁਖ ਦੰਤ ਰਸਨ ਸਗਲ ਘਸਿ ਜਾਵਤ ॥
तिसहि तिआगि आन कउ जाचहि मुख दंत रसन सगल घसि जावत ॥
उसे छोड़कर तुम अन्य को चाहते हो, तुम्हारा मुँह, दाँत, जीभ सब घिस जाते हैं।
ਰੇ ਮਨ ਮੂੜ ਸਿਮਰਿ ਸੁਖਦਾਤਾ ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਤੁਝਹਿ ਸਮਝਾਵਤ ॥੭॥
रे मन मूड़ सिमरि सुखदाता नानक दास तुझहि समझावत ॥७॥
हे मूर्ख मन ! दास नानक तुझे यही समझाते हैं कि सुख देने वाले परमेश्वर की वंदना करो ॥७ ॥
ਮਾਇਆ ਰੰਗ ਬਿਰੰਗ ਕਰਤ ਭ੍ਰਮ ਮੋਹ ਕੈ ਕੂਪਿ ਗੁਬਾਰਿ ਪਰਿਓ ਹੈ ॥
माइआ रंग बिरंग करत भ्रम मोह कै कूपि गुबारि परिओ है ॥
माया के रंग समाप्त हो जाते हैं, भ्रमवश जीव मोह के कुएं में पड़ा हुआ है।
ਏਤਾ ਗਬੁ ਅਕਾਸਿ ਨ ਮਾਵਤ ਬਿਸਟਾ ਅਸ੍ਤ ਕ੍ਰਿਮਿ ਉਦਰੁ ਭਰਿਓ ਹੈ ॥
एता गबु अकासि न मावत बिसटा अस्त क्रिमि उदरु भरिओ है ॥
इतना अहंकार करता है कि आकाश में भी समा नहीं पाता, पेट विष्ठा, हड़ियों एवं कीड़ों से भरा हुआ है।
ਦਹ ਦਿਸ ਧਾਇ ਮਹਾ ਬਿਖਿਆ ਕਉ ਪਰ ਧਨ ਛੀਨਿ ਅਗਿਆਨ ਹਰਿਓ ਹੈ ॥
दह दिस धाइ महा बिखिआ कउ पर धन छीनि अगिआन हरिओ है ॥
वह दसों दिशाओं में दौड़ता है, विषय-विकारों में तल्लीन होकर पराया धन छीनने के कार्य करता है, अज्ञान ने इसी प्रकार ठगा हुआ है।
ਜੋਬਨ ਬੀਤਿ ਜਰਾ ਰੋਗਿ ਗ੍ਰਸਿਓ ਜਮਦੂਤਨ ਡੰਨੁ ਮਿਰਤੁ ਮਰਿਓ ਹੈ ॥
जोबन बीति जरा रोगि ग्रसिओ जमदूतन डंनु मिरतु मरिओ है ॥
यौवन बीत जाता है, बुढ़ापा आने के कारण मनुष्य रोगग्रस्त हो जाता है, यमदूत दण्ड प्रदान करते हैं और इस तरह मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।
ਅਨਿਕ ਜੋਨਿ ਸੰਕਟ ਨਰਕ ਭੁੰਚਤ ਸਾਸਨ ਦੂਖ ਗਰਤਿ ਗਰਿਓ ਹੈ ॥
अनिक जोनि संकट नरक भुंचत सासन दूख गरति गरिओ है ॥
जीव अनेक योनियों के संकट में नरक भोगता है और दुखों में पड़ा रहता है।
ਪ੍ਰੇਮ ਭਗਤਿ ਉਧਰਹਿ ਸੇ ਨਾਨਕ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਸੰਤੁ ਆਪਿ ਕਰਿਓ ਹੈ ॥੮॥
प्रेम भगति उधरहि से नानक करि किरपा संतु आपि करिओ है ॥८॥
गुरु नानक फुरमान करते हैं कि जिन्हें प्रभु ने अपनी कृपा करके संत बनाया है, वे प्रभु की प्रेम-भक्ति करके संसार के बन्धनों से मुक्त हो गए हैंil८ ॥
ਗੁਣ ਸਮੂਹ ਫਲ ਸਗਲ ਮਨੋਰਥ ਪੂਰਨ ਹੋਈ ਆਸ ਹਮਾਰੀ ॥
गुण समूह फल सगल मनोरथ पूरन होई आस हमारी ॥
हरिनामोच्चारण से सर्व गुण एवं फल प्राप्त हुआ है, हमारी हर आशा एवं सब मनोरथ पूर्ण हुए हैं।
ਅਉਖਧ ਮੰਤ੍ਰ ਤੰਤ੍ਰ ਪਰ ਦੁਖ ਹਰ ਸਰਬ ਰੋਗ ਖੰਡਣ ਗੁਣਕਾਰੀ ॥
अउखध मंत्र तंत्र पर दुख हर सरब रोग खंडण गुणकारी ॥
हरिनाम रूपी औषधि ही मंत्र तंत्र है, जो दुखों का नाश करने, सर्व रोगों का निवारण करने के लिए उपयोगी है।