ਸੇਜ ਸਧਾ ਸਹਜੁ ਛਾਵਾਣੁ ਸੰਤੋਖੁ ਸਰਾਇਚਉ ਸਦਾ ਸੀਲ ਸੰਨਾਹੁ ਸੋਹੈ ॥
सेज सधा सहजु छावाणु संतोखु सराइचउ सदा सील संनाहु सोहै ॥
हे गुरु रामदास ! तूने श्रद्धा की सेज को बिछाया, सहज स्वभाव का शामियाना स्थित किया, संतोष को कनातों के रूप में स्थापित किया और शील-सादगी का सदैव कवच धारण किया, जो बहुत सुन्दर लग रहा है।
ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਸਮਾਚਰਿਓ ਨਾਮੁ ਟੇਕ ਸੰਗਾਦਿ ਬੋਹੈ ॥
गुर सबदि समाचरिओ नामु टेक संगादि बोहै ॥
आप ने गुरु के उपदेशानुसार जीवन-आचरण अपनाया (हरिनाम में रत रहे) और हरिनाम का आसरा आपके शिष्य-संगियों को खुशबू पहुँचा रहा है अर्थात् वे भी हरिभक्ति में लीन हो रहे हैं।
ਅਜੋਨੀਉ ਭਲੵੁ ਅਮਲੁ ਸਤਿਗੁਰ ਸੰਗਿ ਨਿਵਾਸੁ ॥
अजोनीउ भल्यु अमलु सतिगुर संगि निवासु ॥
तुम जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त, महान्, पुण्यात्मा हो और सतिगुरु अमरदास की संगत में सेवा-सिमरन में ही मग्न रहे।
ਗੁਰ ਰਾਮਦਾਸ ਕਲੵੁਚਰੈ ਤੁਅ ਸਹਜ ਸਰੋਵਰਿ ਬਾਸੁ ॥੧੦॥
गुर रामदास कल्युचरै तुअ सहज सरोवरि बासु ॥१०॥
कवि कलसहार का कथन है कि हे गुरु रामदास ! तुम शान्ति के सरोवर में रहते हो ॥ १० ॥
ਗੁਰੁ ਜਿਨੑ ਕਉ ਸੁਪ੍ਰਸੰਨੁ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਰਿਦੈ ਨਿਵਾਸੈ ॥
गुरु जिन्ह कउ सुप्रसंनु नामु हरि रिदै निवासै ॥
जिन पर गुरु (रामदास) प्रसन्न होता है, उनके मन में हरिनाम को बसा देता है।
ਜਿਨੑ ਕਉ ਗੁਰੁ ਸੁਪ੍ਰਸੰਨੁ ਦੁਰਤੁ ਦੂਰੰਤਰਿ ਨਾਸੈ ॥
जिन्ह कउ गुरु सुप्रसंनु दुरतु दूरंतरि नासै ॥
जिन लोगों पर गुरु (रामदास) की प्रसन्नता होती है, उनके पाप दूर से ही भाग जाते हैं।
ਗੁਰੁ ਜਿਨੑ ਕਉ ਸੁਪ੍ਰਸੰਨੁ ਮਾਨੁ ਅਭਿਮਾਨੁ ਨਿਵਾਰੈ ॥
गुरु जिन्ह कउ सुप्रसंनु मानु अभिमानु निवारै ॥
जिन पर गुरु सुप्रसन्न हो जाता है, उनका मान-अभिमान दूर हो जाता है।
ਜਿਨੑ ਕਉ ਗੁਰੁ ਸੁਪ੍ਰਸੰਨੁ ਸਬਦਿ ਲਗਿ ਭਵਜਲੁ ਤਾਰੈ ॥
जिन्ह कउ गुरु सुप्रसंनु सबदि लगि भवजलु तारै ॥
जिन पर गुरु की अपार खुशी हो जाती है, वे प्रभु-शब्द में लीन होकर संसार-सागर से पार उतर जाते हैं।
ਪਰਚਉ ਪ੍ਰਮਾਣੁ ਗੁਰ ਪਾਇਅਉ ਤਿਨ ਸਕਯਥਉ ਜਨਮੁ ਜਗਿ ॥
परचउ प्रमाणु गुर पाइअउ तिन सकयथउ जनमु जगि ॥
जिन लोगों ने गुरु (रामदास) से सच्चा उपदेश पाया है, उनका जगत में जन्म सफल हो गया है।
ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਸਰਣਿ ਭਜੁ ਕਲੵ ਕਬਿ ਭੁਗਤਿ ਮੁਕਤਿ ਸਭ ਗੁਰੂ ਲਗਿ ॥੧੧॥
स्री गुरू सरणि भजु कल्य कबि भुगति मुकति सभ गुरू लगि ॥११॥
कवि कलसहार का कथन है कि महामहिम श्री गुरु रामदास की शरण लो, गुरु की शरण में मुक्ति भुक्ति सब प्राप्त हो जाते हैं॥११ ॥
ਸਤਿਗੁਰਿ ਖੇਮਾ ਤਾਣਿਆ ਜੁਗ ਜੂਥ ਸਮਾਣੇ ॥
सतिगुरि खेमा ताणिआ जुग जूथ समाणे ॥
सतिगुरु रामदास ने भक्ति रूपी खेमा ताना है, संसार के जीव इसी के नीचे आ गए हैं।
ਅਨਭਉ ਨੇਜਾ ਨਾਮੁ ਟੇਕ ਜਿਤੁ ਭਗਤ ਅਘਾਣੇ ॥
अनभउ नेजा नामु टेक जितु भगत अघाणे ॥
गुरु के हाथ में ज्ञान का नेजा है, हरिनाम का अवलम्ब है, जिससे भक्त संतुष्ट हो रहे हैं।
ਗੁਰੁ ਨਾਨਕੁ ਅੰਗਦੁ ਅਮਰੁ ਭਗਤ ਹਰਿ ਸੰਗਿ ਸਮਾਣੇ ॥
गुरु नानकु अंगदु अमरु भगत हरि संगि समाणे ॥
“(हरिनाम का सिमरन करके) गुरु नानक देव जी, गुरु अंगद देव, गुरु अमरदास एवं अन्य भक्त जन ईश्वर में समाहित हो गए हैं।
ਇਹੁ ਰਾਜ ਜੋਗ ਗੁਰ ਰਾਮਦਾਸ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਹੂ ਰਸੁ ਜਾਣੇ ॥੧੨॥
इहु राज जोग गुर रामदास तुम्ह हू रसु जाणे ॥१२॥
हे गुरु रामदास ! इस राज योग का आनंद तुमने ही जाना है॥१२॥
ਜਨਕੁ ਸੋਇ ਜਿਨਿ ਜਾਣਿਆ ਉਨਮਨਿ ਰਥੁ ਧਰਿਆ ॥
जनकु सोइ जिनि जाणिआ उनमनि रथु धरिआ ॥
जनक वही है, जिसने परम सत्य को जाना और वृति को तुरीय पद में स्थापित किया।
ਸਤੁ ਸੰਤੋਖੁ ਸਮਾਚਰੇ ਅਭਰਾ ਸਰੁ ਭਰਿਆ ॥
सतु संतोखु समाचरे अभरा सरु भरिआ ॥
सत्य-संतोष को अपनाया और खाली मन को नाम से भर दिया।
ਅਕਥ ਕਥਾ ਅਮਰਾ ਪੁਰੀ ਜਿਸੁ ਦੇਇ ਸੁ ਪਾਵੈ ॥
अकथ कथा अमरा पुरी जिसु देइ सु पावै ॥
अकथनीय कथा उसे प्राप्त होती है, जिसे ईश्वर देता है, वही पाता है।
ਇਹੁ ਜਨਕ ਰਾਜੁ ਗੁਰ ਰਾਮਦਾਸ ਤੁਝ ਹੀ ਬਣਿ ਆਵੈ ॥੧੩॥
इहु जनक राजु गुर रामदास तुझ ही बणि आवै ॥१३॥
यह जनक सरीखा राज हे गुरु रामदास ! तुझे ही शोभा देता है॥१३॥ (भाट कलसहार के १३ सवैये सम्पूर्ण)
ਸਤਿਗੁਰ ਨਾਮੁ ਏਕ ਲਿਵ ਮਨਿ ਜਪੈ ਦ੍ਰਿੜ੍ਹ੍ਹੁ ਤਿਨੑ ਜਨ ਦੁਖ ਪਾਪੁ ਕਹੁ ਕਤ ਹੋਵੈ ਜੀਉ ॥
सतिगुर नामु एक लिव मनि जपै द्रिड़्हु तिन्ह जन दुख पापु कहु कत होवै जीउ ॥
जो एकाग्रचित होकर पूर्ण लगन से मन में सतिगुरु के नाम का जाप करता है, ऐसे व्यक्ति को दुख पाप कैसे घेर सकते हैं।
ਤਾਰਣ ਤਰਣ ਖਿਨ ਮਾਤ੍ਰ ਜਾ ਕਉ ਦ੍ਰਿਸ੍ਟਿ ਧਾਰੈ ਸਬਦੁ ਰਿਦ ਬੀਚਾਰੈ ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਖੋਵੈ ਜੀਉ ॥
तारण तरण खिन मात्र जा कउ द्रिस्टि धारै सबदु रिद बीचारै कामु क्रोधु खोवै जीउ ॥
गुरु संसार-सागर से पार उतारने वाला ऐसा जहाज है, जिस पर क्षण मात्र अपनी कृपा-दृष्टि धारण करता है, वह जिज्ञासु शब्द का हृदय में चिंतन करता है और उसके काम, क्रोध नष्ट हो जाते हैं।
ਜੀਅਨ ਸਭਨ ਦਾਤਾ ਅਗਮ ਗੵਾਨ ਬਿਖੵਾਤਾ ਅਹਿਨਿਸਿ ਧੵਾਨ ਧਾਵੈ ਪਲਕ ਨ ਸੋਵੈ ਜੀਉ ॥
जीअन सभन दाता अगम ग्यान बिख्याता अहिनिसि ध्यान धावै पलक न सोवै जीउ ॥
गुरु रामदास सब जीवों के दाता हैं, हरिनाम ज्ञान के व्याख्याता वही हैं, वे दिन-रात ईश्वर के ध्यान में निमग्न रहते हैं और थोड़ी देर भी अचेत नहीं होते।
ਜਾ ਕਉ ਦੇਖਤ ਦਰਿਦ੍ਰੁ ਜਾਵੈ ਨਾਮੁ ਸੋ ਨਿਧਾਨੁ ਪਾਵੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਗੵਾਨਿ ਦੁਰਮਤਿ ਮੈਲੁ ਧੋਵੈ ਜੀਉ ॥
जा कउ देखत दरिद्रु जावै नामु सो निधानु पावै गुरमुखि ग्यानि दुरमति मैलु धोवै जीउ ॥
उनके दर्शनों से दरिद्रता दूर हो जाती है, हरिनाम रूपी सुखों का भण्डार जिज्ञासुओं को प्राप्त होता है। गुरु अपने मुख से ज्ञान प्रदान करता है और दुर्मति की मैल को साफ कर देता है।
ਸਤਿਗੁਰ ਨਾਮੁ ਏਕ ਲਿਵ ਮਨਿ ਜਪੈ ਦ੍ਰਿੜੁ ਤਿਨ ਜਨ ਦੁਖ ਪਾਪ ਕਹੁ ਕਤ ਹੋਵੈ ਜੀਉ ॥੧॥
सतिगुर नामु एक लिव मनि जपै द्रिड़ु तिन जन दुख पाप कहु कत होवै जीउ ॥१॥
जो एकाग्रचित होकर मन में सतिगुरु का नाम जपता है, उसे दुख पाप कैसे स्पर्श कर सकते हैं॥१॥
ਧਰਮ ਕਰਮ ਪੂਰੈ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪਾਈ ਹੈ ॥
धरम करम पूरै सतिगुरु पाई है ॥
पूर्ण गुरु रामदास से धर्म-कर्म का फल प्राप्त हो जाता है।
ਜਾ ਕੀ ਸੇਵਾ ਸਿਧ ਸਾਧ ਮੁਨਿ ਜਨ ਸੁਰਿ ਨਰ ਜਾਚਹਿ ਸਬਦ ਸਾਰੁ ਏਕ ਲਿਵ ਲਾਈ ਹੈ ॥
जा की सेवा सिध साध मुनि जन सुरि नर जाचहि सबद सारु एक लिव लाई है ॥
उनकी सेवा तो सिद्ध, साधक, मुनिजन, देवता एवं मनुष्य भी चाहते हैं और जिस सतिगुरु रामदास ने दत्तचित होकर एक ब्रह्म में लगन लगाई हुई है।
ਫੁਨਿ ਜਾਨੈ ਕੋ ਤੇਰਾ ਅਪਾਰੁ ਨਿਰਭਉ ਨਿਰੰਕਾਰੁ ਅਕਥ ਕਥਨਹਾਰੁ ਤੁਝਹਿ ਬੁਝਾਈ ਹੈ ॥
फुनि जानै को तेरा अपारु निरभउ निरंकारु अकथ कथनहारु तुझहि बुझाई है ॥
हे गुरु रामदास ! तेरा भेद कौन जान सकता है, तू अपार, निर्भय, निराकार का रूप है और तुझे अकथनीय प्रभु का बोध हो गया है।
ਭਰਮ ਭੂਲੇ ਸੰਸਾਰ ਛੁਟਹੁ ਜੂਨੀ ਸੰਘਾਰ ਜਮ ਕੋ ਨ ਡੰਡ ਕਾਲ ਗੁਰਮਤਿ ਧੵਾਈ ਹੈ ॥
भरम भूले संसार छुटहु जूनी संघार जम को न डंड काल गुरमति ध्याई है ॥
हे संसार के भूले लोगो ! गुरु का उपदेश धारण करो, योनि चक्र से मुक्त हो जाओगे और काल का दण्ड प्राप्त नहीं होगा।
ਮਨ ਪ੍ਰਾਣੀ ਮੁਗਧ ਬੀਚਾਰੁ ਅਹਿਨਿਸਿ ਜਪੁ ਧਰਮ ਕਰਮ ਪੂਰੈ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪਾਈ ਹੈ ॥੨॥
मन प्राणी मुगध बीचारु अहिनिसि जपु धरम करम पूरै सतिगुरु पाई है ॥२॥
हे मूर्ख प्राणी! जरा चिंतन कर, दिन-रात हरिनाम का जाप कर, धर्म-कर्म का फल सतिगुरु से प्राप्त हो सकता है॥२ ॥
ਹਉ ਬਲਿ ਬਲਿ ਜਾਉ ਸਤਿਗੁਰ ਸਾਚੇ ਨਾਮ ਪਰ ॥
हउ बलि बलि जाउ सतिगुर साचे नाम पर ॥
मैं सतिगुरु रामदास के सच्चे नाम पर सर्वदा बलिहारी जाता हूँ।
ਕਵਨ ਉਪਮਾ ਦੇਉ ਕਵਨ ਸੇਵਾ ਸਰੇਉ ਏਕ ਮੁਖ ਰਸਨਾ ਰਸਹੁ ਜੁਗ ਜੋਰਿ ਕਰ ॥
कवन उपमा देउ कवन सेवा सरेउ एक मुख रसना रसहु जुग जोरि कर ॥
मैं किससे उपमा दूँ, कौन-सी सेवा करूँ, केवल हाथ जोड़कर मुँह रसना से स्तुतिगान कर सकता हूँ।
ਫੁਨਿ ਮਨ ਬਚ ਕ੍ਰਮ ਜਾਨੁ ਅਨਤ ਦੂਜਾ ਨ ਮਾਨੁ ਨਾਮੁ ਸੋ ਅਪਾਰੁ ਸਾਰੁ ਦੀਨੋ ਗੁਰਿ ਰਿਦ ਧਰ ॥
फुनि मन बच क्रम जानु अनत दूजा न मानु नामु सो अपारु सारु दीनो गुरि रिद धर ॥
मैं मन, वचन, कर्म से गुरु रामदास को ही मानता हूँ, किसी अन्य को नहीं मानता। गुरु ने वह अपार हरिनाम दिया है, जिसे मन में धारण किया हुआ है।