ਅੰਧੀ ਰਯਤਿ ਗਿਆਨ ਵਿਹੂਣੀ ਭਾਹਿ ਭਰੇ ਮੁਰਦਾਰੁ ॥
अंधी रयति गिआन विहूणी भाहि भरे मुरदारु ॥
अन्धी प्रजा ज्ञान से विहीन है और मृतक की भाँति चुपचाप अन्याय सहती है।
ਗਿਆਨੀ ਨਚਹਿ ਵਾਜੇ ਵਾਵਹਿ ਰੂਪ ਕਰਹਿ ਸੀਗਾਰੁ ॥
गिआनी नचहि वाजे वावहि रूप करहि सीगारु ॥
ज्ञानी नृत्य करते हैं, बाजे बजाते और अनेक प्रकार के रूप धारण करके श्रृंगार करते हैं।
ਊਚੇ ਕੂਕਹਿ ਵਾਦਾ ਗਾਵਹਿ ਜੋਧਾ ਕਾ ਵੀਚਾਰੁ ॥
ऊचे कूकहि वादा गावहि जोधा का वीचारु ॥
वे ऊँची आवाज़ में पुकारते हैं एवं युद्ध काव्य एवं शूरवीरों की शूरवीरता की कहानियाँ गाते हैं।
ਮੂਰਖ ਪੰਡਿਤ ਹਿਕਮਤਿ ਹੁਜਤਿ ਸੰਜੈ ਕਰਹਿ ਪਿਆਰੁ ॥
मूरख पंडित हिकमति हुजति संजै करहि पिआरु ॥
मूर्ख पण्डित अपनी चतुराई एवं हुज्जत द्वारा धन-संग्रह करता है, उसका केवल धन से ही प्रेम है।
ਧਰਮੀ ਧਰਮੁ ਕਰਹਿ ਗਾਵਾਵਹਿ ਮੰਗਹਿ ਮੋਖ ਦੁਆਰੁ ॥
धरमी धरमु करहि गावावहि मंगहि मोख दुआरु ॥
धर्मी लोग धर्म का कर्म करते हैं और मोक्ष की माँग करते हैं।
ਜਤੀ ਸਦਾਵਹਿ ਜੁਗਤਿ ਨ ਜਾਣਹਿ ਛਡਿ ਬਹਹਿ ਘਰ ਬਾਰੁ ॥
जती सदावहि जुगति न जाणहि छडि बहहि घर बारु ॥
परन्तु उसके प्रभाव से वंचित हो जाते हैं क्योंकि स्वार्थवश वो यती कहलवाने वाले जीवन की युक्ति को नहीं समझते और व्यर्थ ही घर-बार छोड़ देते है।
ਸਭੁ ਕੋ ਪੂਰਾ ਆਪੇ ਹੋਵੈ ਘਟਿ ਨ ਕੋਈ ਆਖੈ ॥
सभु को पूरा आपे होवै घटि न कोई आखै ॥
सभी अपने आप को पूर्ण भक्त साबित करते है कोई स्वयं को कम नहीं समझता
ਪਤਿ ਪਰਵਾਣਾ ਪਿਛੈ ਪਾਈਐ ਤਾ ਨਾਨਕ ਤੋਲਿਆ ਜਾਪੈ ॥੨॥
पति परवाणा पिछै पाईऐ ता नानक तोलिआ जापै ॥२॥
हे नानक ! यदि इज्जत का तराजू पिछले पलड़े में डाल दिया जाए तो ही मनुष्य भली भांति तुला हुआ मालूम होता है॥ २॥
ਮਃ ੧ ॥
मः १ ॥
महला १॥
ਵਦੀ ਸੁ ਵਜਗਿ ਨਾਨਕਾ ਸਚਾ ਵੇਖੈ ਸੋਇ ॥
वदी सु वजगि नानका सचा वेखै सोइ ॥
हे नानक ! बुराई भली प्रकार उजागर हो जाती है क्योंकि वह सत्य-परमशेवर सब कुछ देखता है।
ਸਭਨੀ ਛਾਲਾ ਮਾਰੀਆ ਕਰਤਾ ਕਰੇ ਸੁ ਹੋਇ ॥
सभनी छाला मारीआ करता करे सु होइ ॥
हरेक ने जगत में आगे बढ़ने हेतु छलांग लगाई है परन्तु जो कुछ जगत का रचयिता करता है, वही होता है।
ਅਗੈ ਜਾਤਿ ਨ ਜੋਰੁ ਹੈ ਅਗੈ ਜੀਉ ਨਵੇ ॥
अगै जाति न जोरु है अगै जीउ नवे ॥
परलोक में जाति एवं बाहुबल का कोई मूल्य नहीं क्योंकि वहाँ तो जीव नवीन होते हैं।
ਜਿਨ ਕੀ ਲੇਖੈ ਪਤਿ ਪਵੈ ਚੰਗੇ ਸੇਈ ਕੇਇ ॥੩॥
जिन की लेखै पति पवै चंगे सेई केइ ॥३॥
जिन्हें कर्मो का लेखा-जोखा होने पर सम्मान प्राप्त होता है, वही भले कहे जा सकते हैं। ३ ॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਧੁਰਿ ਕਰਮੁ ਜਿਨਾ ਕਉ ਤੁਧੁ ਪਾਇਆ ਤਾ ਤਿਨੀ ਖਸਮੁ ਧਿਆਇਆ ॥
धुरि करमु जिना कउ तुधु पाइआ ता तिनी खसमु धिआइआ ॥
हे विधाता ! तूने आरम्भ से ही जिन जीवों का अच्छा भाग्य लिख दिया है तो ही उन्होंने अपने मालिक-प्रभु को याद किया है।
ਏਨਾ ਜੰਤਾ ਕੈ ਵਸਿ ਕਿਛੁ ਨਾਹੀ ਤੁਧੁ ਵੇਕੀ ਜਗਤੁ ਉਪਾਇਆ ॥
एना जंता कै वसि किछु नाही तुधु वेकी जगतु उपाइआ ॥
इन जीवों के वश में कुछ भी नहीं, यह विभिन्न प्रकार का जगत तूने ही उत्पन्न किया है।
ਇਕਨਾ ਨੋ ਤੂੰ ਮੇਲਿ ਲੈਹਿ ਇਕਿ ਆਪਹੁ ਤੁਧੁ ਖੁਆਇਆ ॥
इकना नो तूं मेलि लैहि इकि आपहु तुधु खुआइआ ॥
हे प्रभु ! कुछ जीवों को तू अपने साथ मिला लेता है और कुछ जीवों को स्वयं ही दूर करके ख्वार करता रहता है।
ਗੁਰ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਜਾਣਿਆ ਜਿਥੈ ਤੁਧੁ ਆਪੁ ਬੁਝਾਇਆ ॥
गुर किरपा ते जाणिआ जिथै तुधु आपु बुझाइआ ॥
जहाँ तूने खुद ही किसी को अपनी सूझ प्रदान की है, गुरु की कृपा से उसने ही तुझे जाना है
ਸਹਜੇ ਹੀ ਸਚਿ ਸਮਾਇਆ ॥੧੧॥
सहजे ही सचि समाइआ ॥११॥
और वह सहज ही सत्य में समा गया है॥ ११॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੧ ॥
सलोकु मः १ ॥
श्लोक महला १॥
ਦੁਖੁ ਦਾਰੂ ਸੁਖੁ ਰੋਗੁ ਭਇਆ ਜਾ ਸੁਖੁ ਤਾਮਿ ਨ ਹੋਈ ॥
दुखु दारू सुखु रोगु भइआ जा सुखु तामि न होई ॥
दुःख औषधि है और सुख रोग है, क्योंकि जब सुख मिल जाता है तो जीव को प्रभु-स्मरण ही नहीं होता।
ਤੂੰ ਕਰਤਾ ਕਰਣਾ ਮੈ ਨਾਹੀ ਜਾ ਹਉ ਕਰੀ ਨ ਹੋਈ ॥੧॥
तूं करता करणा मै नाही जा हउ करी न होई ॥१॥
हे प्रभु ! तू सृष्टि रचयिता है, मैं कुछ भी नहीं कर सकता। यदि मैं कुछ करने का प्रयास भी करूं तो भी कुछ नहीं होता।॥ १॥
ਬਲਿਹਾਰੀ ਕੁਦਰਤਿ ਵਸਿਆ ॥
बलिहारी कुदरति वसिआ ॥
हे जगत-रचयिता ! मैं तुझ पर बलिहारी जाता हूँ, तू अपनी कुदरत में निवास कर रहा है,
ਤੇਰਾ ਅੰਤੁ ਨ ਜਾਈ ਲਖਿਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तेरा अंतु न जाई लखिआ ॥१॥ रहाउ ॥
और तेरा अन्त नहीं पाया जा सकता ॥ १॥ रहाउ॥
ਜਾਤਿ ਮਹਿ ਜੋਤਿ ਜੋਤਿ ਮਹਿ ਜਾਤਾ ਅਕਲ ਕਲਾ ਭਰਪੂਰਿ ਰਹਿਆ ॥
जाति महि जोति जोति महि जाता अकल कला भरपूरि रहिआ ॥
हे प्रभु ! जीवों में ही तेरी ज्योति विद्यमान है और जीव तेरी ज्योति में विद्यमान हैं। हे सर्वकला सम्पूर्ण ! तू सर्वव्यापक है। तू सच्चा मालिक हैं।
ਤੂੰ ਸਚਾ ਸਾਹਿਬੁ ਸਿਫਤਿ ਸੁਆਲ੍ਹ੍ਹਿਉ ਜਿਨਿ ਕੀਤੀ ਸੋ ਪਾਰਿ ਪਇਆ ॥
तूं सचा साहिबु सिफति सुआल्हिउ जिनि कीती सो पारि पइआ ॥
तेरी महिमा अत्यंत सुन्दर है, जो तेरी स्तुति करता है, वह संसार सागर से पार हो जाता है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਕਰਤੇ ਕੀਆ ਬਾਤਾ ਜੋ ਕਿਛੁ ਕਰਣਾ ਸੁ ਕਰਿ ਰਹਿਆ ॥੨॥
कहु नानक करते कीआ बाता जो किछु करणा सु करि रहिआ ॥२॥
हे नानक ! यह तो जगत-रचयिता की ही सब लीला है, जो कुछ प्रभु ने करना है, उसे वह किए जा रहा है॥ २॥
ਮਃ ੨ ॥
मः २ ॥
महला २ ॥
ਜੋਗ ਸਬਦੰ ਗਿਆਨ ਸਬਦੰ ਬੇਦ ਸਬਦੰ ਬ੍ਰਾਹਮਣਹ ॥
जोग सबदं गिआन सबदं बेद सबदं ब्राहमणह ॥
योगियों का धर्म ज्ञान प्राप्त करना है और ब्राह्मण का धर्म वेदों का अध्ययन करना है।
ਖਤ੍ਰੀ ਸਬਦੰ ਸੂਰ ਸਬਦੰ ਸੂਦ੍ਰ ਸਬਦੰ ਪਰਾ ਕ੍ਰਿਤਹ ॥
खत्री सबदं सूर सबदं सूद्र सबदं परा क्रितह ॥
क्षत्रियों का धर्म शूरवीरता के कार्य करना है और शूद्रों का धर्म दूसरों की सेवा करना है।
ਸਰਬ ਸਬਦੰ ਏਕ ਸਬਦੰ ਜੇ ਕੋ ਜਾਣੈ ਭੇਉ ॥ ਨਾਨਕੁ ਤਾ ਕਾ ਦਾਸੁ ਹੈ ਸੋਈ ਨਿਰੰਜਨ ਦੇਉ ॥੩॥
सरब सबदं एक सबदं जे को जाणै भेउ ॥ नानकु ता का दासु है सोई निरंजन देउ ॥३॥
परन्तु सभी का धर्म एक ईश्वर का सुमिरन करना है।यदि कोई इस रहस्य को जानता है तो नानक उसका दास है और वह पुरुष स्वयं ही निरंजन प्रभु है॥ ३॥
ਮਃ ੨ ॥
मः २ ॥
महला २॥
ਏਕ ਕ੍ਰਿਸਨੰ ਸਰਬ ਦੇਵਾ ਦੇਵ ਦੇਵਾ ਤ ਆਤਮਾ ॥
एक क्रिसनं सरब देवा देव देवा त आतमा ॥
एक कृष्ण ही सभी देवताओं का देव है। वह उन देवताओं ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव सब की भी आत्मा है।
ਆਤਮਾ ਬਾਸੁਦੇਵਸੵਿ ਜੇ ਕੋ ਜਾਣੈ ਭੇਉ ॥ ਨਾਨਕੁ ਤਾ ਕਾ ਦਾਸੁ ਹੈ ਸੋਈ ਨਿਰੰਜਨ ਦੇਉ ॥੪॥
आतमा बासुदेवस्यि जे को जाणै भेउ ॥ नानकु ता का दासु है सोई निरंजन देउ ॥४॥
सब जीवों में बसने वाला वासुदेव स्वयं ही इनकी आत्मा है, यदि कोई इस रहस्य को समझता हो,नानक उसका दास है, वह स्वयं ही निरंजन प्रभु है॥ ४॥
ਮਃ ੧ ॥
मः १ ॥
महला १॥
ਕੁੰਭੇ ਬਧਾ ਜਲੁ ਰਹੈ ਜਲ ਬਿਨੁ ਕੁੰਭੁ ਨ ਹੋਇ ॥
कु्मभे बधा जलु रहै जल बिनु कु्मभु न होइ ॥
जैसे घड़े में बंधा हुआ जल टिका रहता है वैसे ही जल के बिना घड़ा भी नहीं बन सकता।
ਗਿਆਨ ਕਾ ਬਧਾ ਮਨੁ ਰਹੈ ਗੁਰ ਬਿਨੁ ਗਿਆਨੁ ਨ ਹੋਇ ॥੫॥
गिआन का बधा मनु रहै गुर बिनु गिआनु न होइ ॥५॥
इसी तरह (गुरु के) ज्ञान का वश में किया हुआ मन टिका रहता है परन्तु गुरु के बिना ज्ञान नर्हीं होता॥ ५॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਪੜਿਆ ਹੋਵੈ ਗੁਨਹਗਾਰੁ ਤਾ ਓਮੀ ਸਾਧੁ ਨ ਮਾਰੀਐ ॥
पड़िआ होवै गुनहगारु ता ओमी साधु न मारीऐ ॥
यदि पढ़ा-लिखा विद्वान व्यक्ति गुनहगार हो तो अनपढ़ इन्सान को डरना नहीं चाहिए क्योंकि नेक होने के कारण उस अनपढ़ को दण्ड नहीं मिलता।
ਜੇਹਾ ਘਾਲੇ ਘਾਲਣਾ ਤੇਵੇਹੋ ਨਾਉ ਪਚਾਰੀਐ ॥
जेहा घाले घालणा तेवेहो नाउ पचारीऐ ॥
मनुष्य जैसे कर्म करता है, वैसा ही उसका नाम दुनिया में गूंजता है।
ਐਸੀ ਕਲਾ ਨ ਖੇਡੀਐ ਜਿਤੁ ਦਰਗਹ ਗਇਆ ਹਾਰੀਐ ॥
ऐसी कला न खेडीऐ जितु दरगह गइआ हारीऐ ॥
हमें ऐसी जीवन की खेल नहीं खेलनी चाहिए, जिसके फलस्वरूप प्रभु के दरबार में पहुँचने पर हारना पड़े।
ਪੜਿਆ ਅਤੈ ਓਮੀਆ ਵੀਚਾਰੁ ਅਗੈ ਵੀਚਾਰੀਐ ॥
पड़िआ अतै ओमीआ वीचारु अगै वीचारीऐ ॥
विद्वान एवं अनपढ़ के कर्मों का लेखा-जोखा परलोक में होगा,
ਮੁਹਿ ਚਲੈ ਸੁ ਅਗੈ ਮਾਰੀਐ ॥੧੨॥
मुहि चलै सु अगै मारीऐ ॥१२॥
स्वेच्छाचारी मनुष्य को परलोक में कर्मों का दण्ड अवश्य मिलता है॥ १२॥