ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਮੇਰੈ ਗੁਰਿ ਮੋਰੋ ਸਹਸਾ ਉਤਾਰਿਆ ॥
मेरै गुरि मोरो सहसा उतारिआ ॥
मेरे गुरु ने मेरा संशय-भय दूर कर दिया है।
ਤਿਸੁ ਗੁਰ ਕੈ ਜਾਈਐ ਬਲਿਹਾਰੀ ਸਦਾ ਸਦਾ ਹਉ ਵਾਰਿਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तिसु गुर कै जाईऐ बलिहारी सदा सदा हउ वारिआ ॥१॥ रहाउ ॥
सो ऐसे गुरु पर कुर्बान जाता हूँ, सदैव उस पर न्यौछावर हूँ॥१॥रहाउ॥।
ਗੁਰ ਕਾ ਨਾਮੁ ਜਪਿਓ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਗੁਰ ਕੇ ਚਰਨ ਮਨਿ ਧਾਰਿਆ ॥
गुर का नामु जपिओ दिनु राती गुर के चरन मनि धारिआ ॥
मैं दिन-रात गुरु का नाम जपता रहता हूँ और गुरु-चरणों को मन में बसा लिया हैं।
ਗੁਰ ਕੀ ਧੂਰਿ ਕਰਉ ਨਿਤ ਮਜਨੁ ਕਿਲਵਿਖ ਮੈਲੁ ਉਤਾਰਿਆ ॥੧॥
गुर की धूरि करउ नित मजनु किलविख मैलु उतारिआ ॥१॥
मैं प्रतिदिन गुरु की चरण-धूल में स्नान करता हूँ, इस प्रकार पापों की मैल उतार ली है॥१॥
ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਕੀ ਕਰਉ ਨਿਤ ਸੇਵਾ ਗੁਰੁ ਅਪਨਾ ਨਮਸਕਾਰਿਆ ॥
गुर पूरे की करउ नित सेवा गुरु अपना नमसकारिआ ॥
मैं नित्य पूरे गुरु की सेवा करता हूँ और अपने गुरु की ही वन्दना करता हूँ।
ਸਰਬ ਫਲਾ ਦੀਨੑੇ ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਨਾਨਕ ਗੁਰਿ ਨਿਸਤਾਰਿਆ ॥੨॥੪੭॥੭੦॥
सरब फला दीन्हे गुरि पूरै नानक गुरि निसतारिआ ॥२॥४७॥७०॥
नानक फुरमाते हैं कि पूरे गुरु ने मुझे सभी मनवांछित फल प्रदान कर दिए हैं और उसने मेरी संसार के बन्धनों से मुक्ति कर दी है॥२॥४७॥ ७०॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਸਿਮਰਤ ਨਾਮੁ ਪ੍ਰਾਨ ਗਤਿ ਪਾਵੈ ॥
सिमरत नामु प्रान गति पावै ॥
ईश्वर का नाम सिमरन करने से प्राणों को मुक्ति मिलती है।
ਮਿਟਹਿ ਕਲੇਸ ਤ੍ਰਾਸ ਸਭ ਨਾਸੈ ਸਾਧਸੰਗਿ ਹਿਤੁ ਲਾਵੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मिटहि कलेस त्रास सभ नासै साधसंगि हितु लावै ॥१॥ रहाउ ॥
यदि साधु पुरुषों के साथ प्रेम लगाया जाए तो सभी कलह-कलेश एवं पीड़ाएँ मिट जाती हैं ॥१॥रहाउ॥।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਮਨਿ ਆਰਾਧੇ ਰਸਨਾ ਹਰਿ ਜਸੁ ਗਾਵੈ ॥
हरि हरि हरि हरि मनि आराधे रसना हरि जसु गावै ॥
मेरा मन परमात्मा की आराधना करता है और जिह्म उसी का यशोगान करती है।
ਤਜਿ ਅਭਿਮਾਨੁ ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧੁ ਨਿੰਦਾ ਬਾਸੁਦੇਵ ਰੰਗੁ ਲਾਵੈ ॥੧॥
तजि अभिमानु काम क्रोधु निंदा बासुदेव रंगु लावै ॥१॥
अभिमान, काम, क्रोध व निंदा को तजकर मैंने ईश्वर से ही प्रेम लगाया हुआ है।॥१॥
ਦਾਮੋਦਰ ਦਇਆਲ ਆਰਾਧਹੁ ਗੋਬਿੰਦ ਕਰਤ ਸੋੁਹਾਵੈ ॥
दामोदर दइआल आराधहु गोबिंद करत सोहावै ॥
दयालु परमेश्वर की आराधना व संकीर्तन करते हुए ही जीव सुन्दर लगता है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸਭ ਕੀ ਹੋਇ ਰੇਨਾ ਹਰਿ ਹਰਿ ਦਰਸਿ ਸਮਾਵੈ ॥੨॥੪੮॥੭੧॥
कहु नानक सभ की होइ रेना हरि हरि दरसि समावै ॥२॥४८॥७१॥
नानक का मत है कि जो सबकी चरण-धूलि बन जाता है, वह ईश्वर के दर्शनों में ही लीन रहता है॥२॥ ४८ ॥ ७१ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਅਪੁਨੇ ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਬਲਿਹਾਰੈ ॥
अपुने गुर पूरे बलिहारै ॥
मैं अपने पूर्ण गुरु पर बलिहारी जाता हूँ।
ਪ੍ਰਗਟ ਪ੍ਰਤਾਪੁ ਕੀਓ ਨਾਮ ਕੋ ਰਾਖੇ ਰਾਖਨਹਾਰੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
प्रगट प्रतापु कीओ नाम को राखे राखनहारै ॥१॥ रहाउ ॥
उसने हरिनाम की कीर्ति पूरे संसार में फैला दी है, उस बचाने वाले ने मुझे बचा लिया है॥१॥रहाउ॥।
ਨਿਰਭਉ ਕੀਏ ਸੇਵਕ ਦਾਸ ਅਪਨੇ ਸਗਲੇ ਦੂਖ ਬਿਦਾਰੈ ॥
निरभउ कीए सेवक दास अपने सगले दूख बिदारै ॥
उसने अपने सेवक-दासों के सभी दुख निवृत करके निर्भय कर दिया है।
ਆਨ ਉਪਾਵ ਤਿਆਗਿ ਜਨ ਸਗਲੇ ਚਰਨ ਕਮਲ ਰਿਦ ਧਾਰੈ ॥੧॥
आन उपाव तिआगि जन सगले चरन कमल रिद धारै ॥१॥
सेवक ने अन्य उपाय त्याग कर हृदय में उसके चरण-कमल को ही धारण किया है॥१॥
ਪ੍ਰਾਨ ਅਧਾਰ ਮੀਤ ਸਾਜਨ ਪ੍ਰਭ ਏਕੈ ਏਕੰਕਾਰੈ ॥
प्रान अधार मीत साजन प्रभ एकै एकंकारै ॥
केवल एक अद्वितीय परमात्मा ही प्राणों का आसरा है, वही हमारा मित्र एवं साजन है।
ਸਭ ਤੇ ਊਚ ਠਾਕੁਰੁ ਨਾਨਕ ਕਾ ਬਾਰ ਬਾਰ ਨਮਸਕਾਰੈ ॥੨॥੪੯॥੭੨॥
सभ ते ऊच ठाकुरु नानक का बार बार नमसकारै ॥२॥४९॥७२॥
नानक का मालिक सबसे बड़ा है और उसे हमारी बार-बार वन्दना है॥२॥४९॥७२॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਹੈ ਕੋ ਕਹਾ ਬਤਾਵਹੁ ॥
बिनु हरि है को कहा बतावहु ॥
जरा बताओ ! ईश्वर के अतिरिक्त क्या कोई अन्य (विधाता) है।
ਸੁਖ ਸਮੂਹ ਕਰੁਣਾ ਮੈ ਕਰਤਾ ਤਿਸੁ ਪ੍ਰਭ ਸਦਾ ਧਿਆਵਹੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सुख समूह करुणा मै करता तिसु प्रभ सदा धिआवहु ॥१॥ रहाउ ॥
जो सुखों का भण्डार, करुणामय एवं स्रष्टा है, अतः ऐसे प्रभु का हरदम ध्यान करो ॥१॥रहाउ॥।
ਜਾ ਕੈ ਸੂਤਿ ਪਰੋਏ ਜੰਤਾ ਤਿਸੁ ਪ੍ਰਭ ਕਾ ਜਸੁ ਗਾਵਹੁ ॥
जा कै सूति परोए जंता तिसु प्रभ का जसु गावहु ॥
तमाम जीव उसके सूत्र में पिरोए हुए हैं, सो ऐसे प्रभु का यश गाओ।
ਸਿਮਰਿ ਠਾਕੁਰੁ ਜਿਨਿ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਦੀਨਾ ਆਨ ਕਹਾ ਪਹਿ ਜਾਵਹੁ ॥੧॥
सिमरि ठाकुरु जिनि सभु किछु दीना आन कहा पहि जावहु ॥१॥
जिसने सबकुछ दिया है, उस मालिक का स्मरण करो, कहीं अन्य पूजा के लिए क्यों जाते हो॥१॥
ਸਫਲ ਸੇਵਾ ਸੁਆਮੀ ਮੇਰੇ ਕੀ ਮਨ ਬਾਂਛਤ ਫਲ ਪਾਵਹੁ ॥
सफल सेवा सुआमी मेरे की मन बांछत फल पावहु ॥
एकमात्र मेरे स्वामी की सेवा ही सफल है, मन में जैसी कामना होगी, वैसा ही फल पाओगे।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਲਾਭੁ ਲਾਹਾ ਲੈ ਚਾਲਹੁ ਸੁਖ ਸੇਤੀ ਘਰਿ ਜਾਵਹੁ ॥੨॥੫੦॥੭੩॥
कहु नानक लाभु लाहा लै चालहु सुख सेती घरि जावहु ॥२॥५०॥७३॥
हे नानक ! प्रभु-सेवा का लाभ साथ ले चलो और सुखपूर्वक घर जाओ ॥२॥ ५० ॥ ७३ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਠਾਕੁਰ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਸਰਣਾਈ ਆਇਆ ॥
ठाकुर तुम्ह सरणाई आइआ ॥
हे ठाकुर ! मैं तुम्हारी शरण में आया हूँ।
ਉਤਰਿ ਗਇਓ ਮੇਰੇ ਮਨ ਕਾ ਸੰਸਾ ਜਬ ਤੇ ਦਰਸਨੁ ਪਾਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
उतरि गइओ मेरे मन का संसा जब ते दरसनु पाइआ ॥१॥ रहाउ ॥
जबसे तेरा दर्शन पाया है, मेरे मन का संशय दूर हो गया है॥१॥रहाउ॥।
ਅਨਬੋਲਤ ਮੇਰੀ ਬਿਰਥਾ ਜਾਨੀ ਅਪਨਾ ਨਾਮੁ ਜਪਾਇਆ ॥
अनबोलत मेरी बिरथा जानी अपना नामु जपाइआ ॥
बिना कुछ बोले ही तूने मेरी मन की व्यथा जान ली और अपने नाम का जाप करवाया।
ਦੁਖ ਨਾਠੇ ਸੁਖ ਸਹਜਿ ਸਮਾਏ ਅਨਦ ਅਨਦ ਗੁਣ ਗਾਇਆ ॥੧॥
दुख नाठे सुख सहजि समाए अनद अनद गुण गाइआ ॥१॥
मेरे सब दुख दूर हो गए, परम सुख में लीन हूँ और आनंदपूर्वक तेरा ही गुणगान किया है॥.१ ॥
ਬਾਹ ਪਕਰਿ ਕਢਿ ਲੀਨੇ ਅਪੁਨੇ ਗ੍ਰਿਹ ਅੰਧ ਕੂਪ ਤੇ ਮਾਇਆ ॥
बाह पकरि कढि लीने अपुने ग्रिह अंध कूप ते माइआ ॥
तूने बांह पकड़कर माया के अंधे कुएँ से निकाल लिया और अपने घर पहुँचाया है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਗੁਰਿ ਬੰਧਨ ਕਾਟੇ ਬਿਛੁਰਤ ਆਨਿ ਮਿਲਾਇਆ ॥੨॥੫੧॥੭੪॥
कहु नानक गुरि बंधन काटे बिछुरत आनि मिलाइआ ॥२॥५१॥७४॥
नानक का कथन है कि गुरु ने संसार के सब बन्धन काट दिए हैं और विछुड़े हुए को मिला दिया है ॥२॥५१॥ ७४॥