ਅਟਲ ਅਖਇਓ ਦੇਵਾ ਮੋਹਨ ਅਲਖ ਅਪਾਰਾ ॥
अटल अखइओ देवा मोहन अलख अपारा ॥
हे मोहन, हे देव ! तू अलक्ष्य, अपरंपार, अटल एवं अनश्वर है।
ਦਾਨੁ ਪਾਵਉ ਸੰਤਾ ਸੰਗੁ ਨਾਨਕ ਰੇਨੁ ਦਾਸਾਰਾ ॥੪॥੬॥੨੨॥
दानु पावउ संता संगु नानक रेनु दासारा ॥४॥६॥२२॥
नानक वंदना करते हैं कि मुझे संतों की संगत एवं भक्तजनों की चरण-धूल का दान उपलब्ध हो॥ ४॥ ६॥ २२॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मारू महला ५ ॥
मारू महला ५॥
ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਆਘਾਏ ਸੰਤਾ ॥ ਗੁਰ ਜਾਨੇ ਜਿਨ ਮੰਤਾ ॥
त्रिपति आघाए संता ॥ गुर जाने जिन मंता ॥
वे संतजन तृप्त एवं संतुष्ट हो गए हैं, जिन्होंने गुरु का मंत्र जान लिया है।
ਤਾ ਕੀ ਕਿਛੁ ਕਹਨੁ ਨ ਜਾਈ ॥ ਜਾ ਕਉ ਨਾਮ ਬਡਾਈ ॥੧॥
ता की किछु कहनु न जाई ॥ जा कउ नाम बडाई ॥१॥
उसकी महिमा व्यक्त नहीं की जा सकती जिसे नाम की वड़ाई मिली है॥ १॥
ਲਾਲੁ ਅਮੋਲਾ ਲਾਲੋ ॥ ਅਗਹ ਅਤੋਲਾ ਨਾਮੋ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
लालु अमोला लालो ॥ अगह अतोला नामो ॥१॥ रहाउ ॥
मेरा प्यारा प्रभु अमूल्य रत्न है, जिसका नाम अतुल्य एवं गंभीर है॥ १॥ रहाउ॥
ਅਵਿਗਤ ਸਿਉ ਮਾਨਿਆ ਮਾਨੋ ॥
अविगत सिउ मानिआ मानो ॥
जिसका मन ईश्वर के साथ लीन हो गया है,
ਗੁਰਮੁਖਿ ਤਤੁ ਗਿਆਨੋ ॥
गुरमुखि ततु गिआनो ॥
उस गुरुमुख को परमतत्व का ज्ञान प्राप्त हो गया है।
ਪੇਖਤ ਸਗਲ ਧਿਆਨੋ ॥
पेखत सगल धिआनो ॥
उसने अपने मन का अभिमान त्याग दिया है,
ਤਜਿਓ ਮਨ ਤੇ ਅਭਿਮਾਨੋ ॥੨॥
तजिओ मन ते अभिमानो ॥२॥
सबको देखते हुए भी उसका भगवान में ध्यान लगा रहता है॥ २॥
ਨਿਹਚਲੁ ਤਿਨ ਕਾ ਠਾਣਾ ॥
निहचलु तिन का ठाणा ॥
उनका निश्चल ठिकाना बन गया है
ਗੁਰ ਤੇ ਮਹਲੁ ਪਛਾਣਾ ॥
गुर ते महलु पछाणा ॥
जिन्होंने गुरु द्वारा अपने सच्चे घर को पहचान लिया है ।
ਅਨਦਿਨੁ ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਜਾਗੇ ॥ ਹਰਿ ਕੀ ਸੇਵਾ ਲਾਗੇ ॥੩॥
अनदिनु गुर मिलि जागे ॥ हरि की सेवा लागे ॥३॥
वे गुरु से मिलकर रात-दिन जाग्रत रहते हैं और भगवान् की भक्ति में तल्लीन रहते हैं।॥ ३॥
ਪੂਰਨ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਅਘਾਏ ॥ ਸਹਜ ਸਮਾਧਿ ਸੁਭਾਏ ॥
पूरन त्रिपति अघाए ॥ सहज समाधि सुभाए ॥
वे पूर्ण तृप्त एवं संतुष्ट रहते हैं और सहज स्वभाव ही समाधिस्थ होकर सत्य में लीन रहते हैं।
ਹਰਿ ਭੰਡਾਰੁ ਹਾਥਿ ਆਇਆ ॥ ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਤੇ ਪਾਇਆ ॥੪॥੭॥੨੩॥
हरि भंडारु हाथि आइआ ॥ नानक गुर ते पाइआ ॥४॥७॥२३॥
हरि-नाम रूपी भण्डार हाथ में आ गया है, हे नानक ! जो की गुरु की कृपा से उपलब्ध हुआ है॥ ४॥ ७॥ २३॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੬ ਦੁਪਦੇ
मारू महला ५ घरु ६ दुपदे
मारू महला ५ घरु ६ दुपदे
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि॥
ਛੋਡਿ ਸਗਲ ਸਿਆਣਪਾ ਮਿਲਿ ਸਾਧ ਤਿਆਗਿ ਗੁਮਾਨੁ ॥
छोडि सगल सिआणपा मिलि साध तिआगि गुमानु ॥
सब चतुराईयाँ छोड़ दो, साधु महात्मा पुरुषों के साथ मिल कर घमण्ड त्याग दो।
ਅਵਰੁ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਮਿਥਿਆ ਰਸਨਾ ਰਾਮ ਰਾਮ ਵਖਾਨੁ ॥੧॥
अवरु सभु किछु मिथिआ रसना राम राम वखानु ॥१॥
अन्य सबकुछ झूठा है, इसलिए जीभ से राम-नाम जपो॥ १॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਕਰਨ ਸੁਣਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ॥
मेरे मन करन सुणि हरि नामु ॥
हे मन ! कानों से हरि-नाम की स्तुति सुनो;
ਮਿਟਹਿ ਅਘ ਤੇਰੇ ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੇ ਕਵਨੁ ਬਪੁਰੋ ਜਾਮੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मिटहि अघ तेरे जनम जनम के कवनु बपुरो जामु ॥१॥ रहाउ ॥
इससे तेरे जन्म-जन्मांतर के पाप मिट जाएँगे, फिर बेचारा यम क्या बिगाड़ सकता है॥ १॥ रहाउ॥
ਦੂਖ ਦੀਨ ਨ ਭਉ ਬਿਆਪੈ ਮਿਲੈ ਸੁਖ ਬਿਸ੍ਰਾਮੁ ॥
दूख दीन न भउ बिआपै मिलै सुख बिस्रामु ॥
दुख, निर्धनता व भय प्रभावित नहीं करते और सुख शान्ति प्राप्त होती है।
ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਨਾਨਕੁ ਬਖਾਨੈ ਹਰਿ ਭਜਨੁ ਤਤੁ ਗਿਆਨੁ ॥੨॥੧॥੨੪॥
गुर प्रसादि नानकु बखानै हरि भजनु ततु गिआनु ॥२॥१॥२४॥
नानक कहते हैं कि गुरु-कृपा से हरि-भजन करने से ही परमतत्व का ज्ञान होता है।२॥ १॥ २४॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मारू महला ५ ॥
मारू महला ५॥
ਜਿਨੀ ਨਾਮੁ ਵਿਸਾਰਿਆ ਸੇ ਹੋਤ ਦੇਖੇ ਖੇਹ ॥
जिनी नामु विसारिआ से होत देखे खेह ॥
जिन्होंने हरि-नाम को भुला दिया, उन्हें मिट्टी होते देखा है।
ਪੁਤ੍ਰ ਮਿਤ੍ਰ ਬਿਲਾਸ ਬਨਿਤਾ ਤੂਟਤੇ ਏ ਨੇਹ ॥੧॥
पुत्र मित्र बिलास बनिता तूटते ए नेह ॥१॥
पुत्र, मित्र एवं पत्नी जिनके साथ मनुष्य विलास करता है, ये सभी स्नेह टूट जाते हैं।॥ १॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਨਾਮੁ ਨਿਤ ਨਿਤ ਲੇਹ ॥
मेरे मन नामु नित नित लेह ॥
हे मेरे मन ! नित्य नाम स्मरण करो;
ਜਲਤ ਨਾਹੀ ਅਗਨਿ ਸਾਗਰ ਸੂਖੁ ਮਨਿ ਤਨਿ ਦੇਹ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जलत नाही अगनि सागर सूखु मनि तनि देह ॥१॥ रहाउ ॥
इससे तृष्णा रूपी अग्नि सागर में नहीं जलना पड़ता और मन-तन को सुख उपलब्ध होता है॥ १॥ रहाउ॥
ਬਿਰਖ ਛਾਇਆ ਜੈਸੇ ਬਿਨਸਤ ਪਵਨ ਝੂਲਤ ਮੇਹ ॥
बिरख छाइआ जैसे बिनसत पवन झूलत मेह ॥
जैसे पेड़ की छाया नाश हो जाती है, वायु बादलो को उड़ा ले जाती है, वैसे ही दुनिया की रंगरलियाँ हैं।
ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਦ੍ਰਿੜੁ ਮਿਲੁ ਸਾਧ ਨਾਨਕ ਤੇਰੈ ਕਾਮਿ ਆਵਤ ਏਹ ॥੨॥੨॥੨੫॥
हरि भगति द्रिड़ु मिलु साध नानक तेरै कामि आवत एह ॥२॥२॥२५॥
हे नानक ! साधुओं के संग मिलकर भगवान् की भक्ति दृढ़ कर लो, यही तुम्हारे काम आने वाली है॥ २॥ २॥ २५॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मारू महला ५ ॥
मारू महला ५॥
ਪੁਰਖੁ ਪੂਰਨ ਸੁਖਹ ਦਾਤਾ ਸੰਗਿ ਬਸਤੋ ਨੀਤ ॥
पुरखु पूरन सुखह दाता संगि बसतो नीत ॥
सुख देने वाला पूर्ण परमेश्वर निरंतर भक्तों के अंग-संग रहता है।
ਮਰੈ ਨ ਆਵੈ ਨ ਜਾਇ ਬਿਨਸੈ ਬਿਆਪਤ ਉਸਨ ਨ ਸੀਤ ॥੧॥
मरै न आवै न जाइ बिनसै बिआपत उसन न सीत ॥१॥
वह जन्म-मरण से रहित है, अनश्वर है और उस पर गर्मी एवं सर्दी का प्रभाव नहीं पड़ता॥ १॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਨਾਮ ਸਿਉ ਕਰਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ॥
मेरे मन नाम सिउ करि प्रीति ॥
हे मेरे मन ! प्रभु-नाम से प्रीति करो:
ਚੇਤਿ ਮਨ ਮਹਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਿਧਾਨਾ ਏਹ ਨਿਰਮਲ ਰੀਤਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
चेति मन महि हरि हरि निधाना एह निरमल रीति ॥१॥ रहाउ ॥
मन में हरि-नाम रूपी निधि को याद करो, यही निर्मल जीवन आचरण है। १॥ रहाउ॥
ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਦਇਆਲ ਗੋਪਾਲ ਗੋਬਿਦ ਜੋ ਜਪੈ ਤਿਸੁ ਸੀਧਿ ॥
क्रिपाल दइआल गोपाल गोबिद जो जपै तिसु सीधि ॥
जो दयालु, कृपालु ईश्वर का नाम जपता है, उसे सर्व सिद्धियाँ उपलब्ध हो जाती हैं।
ਨਵਲ ਨਵਤਨ ਚਤੁਰ ਸੁੰਦਰ ਮਨੁ ਨਾਨਕ ਤਿਸੁ ਸੰਗਿ ਬੀਧਿ ॥੨॥੩॥੨੬॥
नवल नवतन चतुर सुंदर मनु नानक तिसु संगि बीधि ॥२॥३॥२६॥
हे नानक ! यह मन नवल, नवनूतन, चतुर एवं सुन्दर प्रभु के संग ही बिंध गया है॥ २॥ ३॥ २६॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मारू महला ५ ॥
मारू महला ५॥
ਚਲਤ ਬੈਸਤ ਸੋਵਤ ਜਾਗਤ ਗੁਰ ਮੰਤ੍ਰੁ ਰਿਦੈ ਚਿਤਾਰਿ ॥
चलत बैसत सोवत जागत गुर मंत्रु रिदै चितारि ॥
हे मानव ! चलते-बैठते, सोते-जागते हरदम हृदय में गुरु-मंत्र को याद करो।
ਚਰਣ ਸਰਣ ਭਜੁ ਸੰਗਿ ਸਾਧੂ ਭਵ ਸਾਗਰ ਉਤਰਹਿ ਪਾਰਿ ॥੧॥
चरण सरण भजु संगि साधू भव सागर उतरहि पारि ॥१॥
संतों के संग प्रभु-चरणों का भजन करो, भवसागर से मुक्ति संभव है॥ १॥