ਸਤਿਗੁਰਿ ਸੇਵਿਐ ਸਹਜ ਅਨੰਦਾ ॥
सतिगुरि सेविऐ सहज अनंदा ॥
सतिगुरु की सेवा करने से सहज ही आनंद मिलता है और
ਹਿਰਦੈ ਆਇ ਵੁਠਾ ਗੋਵਿੰਦਾ ॥
हिरदै आइ वुठा गोविंदा ॥
हृदय में प्रभु आकर बस जाता है।
ਸਹਜੇ ਭਗਤਿ ਕਰੇ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਆਪੇ ਭਗਤਿ ਕਰਾਇਦਾ ॥੪॥
सहजे भगति करे दिनु राती आपे भगति कराइदा ॥४॥
तब जीव सहज ही दिन-रात भक्ति करता रहता है और प्रभु स्वयं ही भक्ति करवाता है॥ ४॥
ਸਤਿਗੁਰ ਤੇ ਵਿਛੁੜੇ ਤਿਨੀ ਦੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥
सतिगुर ते विछुड़े तिनी दुखु पाइआ ॥
जो सतिगुरु से बिछुड़ गए हैं, उन्होंने दुख ही पाया है।
ਅਨਦਿਨੁ ਮਾਰੀਅਹਿ ਦੁਖੁ ਸਬਾਇਆ ॥
अनदिनु मारीअहि दुखु सबाइआ ॥
उन्हें प्रतिदिन मार पड़ती है और सब दुख उन्हें घेर लेते हैं।
ਮਥੇ ਕਾਲੇ ਮਹਲੁ ਨ ਪਾਵਹਿ ਦੁਖ ਹੀ ਵਿਚਿ ਦੁਖੁ ਪਾਇਦਾ ॥੫॥
मथे काले महलु न पावहि दुख ही विचि दुखु पाइदा ॥५॥
उनका तिरस्कार होता है, उन्हें सच्चा स्थान नहीं मिलता और ऐसे व्यक्ति दुखों में और दुखी होते हैं।॥ ५॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਹਿ ਸੇ ਵਡਭਾਗੀ ॥
सतिगुरु सेवहि से वडभागी ॥
सतगुरु की सेवा में तल्लीन रहने वाले भाग्यवान् हैं।
ਸਹਜ ਭਾਇ ਸਚੀ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ॥
सहज भाइ सची लिव लागी ॥
सहज-स्वभाव पूर्ण निष्ठा से उनकी परमात्मा में लगन लगी रहती है।
ਸਚੋ ਸਚੁ ਕਮਾਵਹਿ ਸਦ ਹੀ ਸਚੈ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਇਦਾ ॥੬॥
सचो सचु कमावहि सद ही सचै मेलि मिलाइदा ॥६॥
वे सदा सत्य का आचरण अपनाते हैं और उन्हें परमात्मा से मिला देता है॥ ६॥
ਜਿਸ ਨੋ ਸਚਾ ਦੇਇ ਸੁ ਪਾਏ ॥
जिस नो सचा देइ सु पाए ॥
सच्चा प्रभु जिसे सच्चा-नाम देता है, वही इसे प्राप्त करता है।
ਅੰਤਰਿ ਸਾਚੁ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਏ ॥
अंतरि साचु भरमु चुकाए ॥
जिसके मन में सत्य बस जाता है, उसका भ्रम दूर हो जाता है।
ਸਚੁ ਸਚੈ ਕਾ ਆਪੇ ਦਾਤਾ ਜਿਸੁ ਦੇਵੈ ਸੋ ਸਚੁ ਪਾਇਦਾ ॥੭॥
सचु सचै का आपे दाता जिसु देवै सो सचु पाइदा ॥७॥
परमात्मा स्वयं ही सत्य-नाम का प्रदाता है, जिसे वह देता है, वही सत्य प्राप्त करता है॥ ७॥
ਆਪੇ ਕਰਤਾ ਸਭਨਾ ਕਾ ਸੋਈ ॥
आपे करता सभना का सोई ॥
वह कर्ता-प्रभु स्वयं ही सबका (स्वामी) है,”
ਜਿਸ ਨੋ ਆਪਿ ਬੁਝਾਏ ਬੂਝੈ ਕੋਈ ॥
जिस नो आपि बुझाए बूझै कोई ॥
जिसे वह स्वयं सूझ प्रदान करता है, ऐसा कोई विरला पुरुष ही तथ्य को बूझता है।
ਆਪੇ ਬਖਸੇ ਦੇ ਵਡਿਆਈ ਆਪੇ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਇਦਾ ॥੮॥
आपे बखसे दे वडिआई आपे मेलि मिलाइदा ॥८॥
वह स्वयं ही कृपा करके बड़ाई प्रदान करता है और अपने साथ मिला लेता है॥ ८॥
ਹਉਮੈ ਕਰਦਿਆ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇਆ ॥
हउमै करदिआ जनमु गवाइआ ॥
समूचा जीवन तो अभिमान करते हुए जीव ने गंवा लिया और
ਆਗੈ ਮੋਹੁ ਨ ਚੂਕੈ ਮਾਇਆ ॥
आगै मोहु न चूकै माइआ ॥
आगे भी उसका माया का मोह दूर नहीं होता।
ਅਗੈ ਜਮਕਾਲੁ ਲੇਖਾ ਲੇਵੈ ਜਿਉ ਤਿਲ ਘਾਣੀ ਪੀੜਾਇਦਾ ॥੯॥
अगै जमकालु लेखा लेवै जिउ तिल घाणी पीड़ाइदा ॥९॥
आगे परलोक में जब यमराज किए कर्मों का हिसाब लेता है तो दण्ड के रूप में कोल्हू में यूं पीसता है जैसे तेली तिलों को पीसता है॥ ९॥
ਪੂਰੈ ਭਾਗਿ ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਹੋਈ ॥
पूरै भागि गुर सेवा होई ॥
पूर्ण भाग्य से ही गुरु की सेवा होती है।
ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਤਾ ਸੇਵੇ ਕੋਈ ॥
नदरि करे ता सेवे कोई ॥
जब प्रभु अपनी कृपा करता है तब ही कोई सेवा करता है।
ਜਮਕਾਲੁ ਤਿਸੁ ਨੇੜਿ ਨ ਆਵੈ ਮਹਲਿ ਸਚੈ ਸੁਖੁ ਪਾਇਦਾ ॥੧੦॥
जमकालु तिसु नेड़ि न आवै महलि सचै सुखु पाइदा ॥१०॥
यमराज भी उसके निकट नहीं आता और वह सच्चे घर में सुख प्राप्त करता है॥ १०॥
ਤਿਨ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਜੋ ਤੁਧੁ ਭਾਏ ॥
तिन सुखु पाइआ जो तुधु भाए ॥
हे निरंकार ! उन्होंने ही सुख पाया है, जो तुझे प्रिय हैं।
ਪੂਰੈ ਭਾਗਿ ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਲਾਏ ॥
पूरै भागि गुर सेवा लाए ॥
पूर्ण भाग्य से ही तूने उनको गुरु की सेवा में लगाया है।
ਤੇਰੈ ਹਥਿ ਹੈ ਸਭ ਵਡਿਆਈ ਜਿਸੁ ਦੇਵਹਿ ਸੋ ਪਾਇਦਾ ॥੧੧॥
तेरै हथि है सभ वडिआई जिसु देवहि सो पाइदा ॥११॥
सब बड़ाई तेरे हाथ में है, जिसे तू देता है, वही इसे पाता है॥ ११॥
ਅੰਦਰਿ ਪਰਗਾਸੁ ਗੁਰੂ ਤੇ ਪਾਏ ॥
अंदरि परगासु गुरू ते पाए ॥
मन में ज्ञान का प्रकाश गुरु से ही प्राप्त होता है और
ਨਾਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਮੰਨਿ ਵਸਾਏ ॥
नामु पदारथु मंनि वसाए ॥
वह मन में नाम पदार्थ बसा देता है।
ਗਿਆਨ ਰਤਨੁ ਸਦਾ ਘਟਿ ਚਾਨਣੁ ਅਗਿਆਨ ਅੰਧੇਰੁ ਗਵਾਇਦਾ ॥੧੨॥
गिआन रतनु सदा घटि चानणु अगिआन अंधेरु गवाइदा ॥१२॥
ज्ञान-रत्न से हृदय में सदा प्रकाश होता है और अज्ञानता का अंधेरा मिट जाता है॥ १२॥
ਅਗਿਆਨੀ ਅੰਧੇ ਦੂਜੈ ਲਾਗੇ ॥
अगिआनी अंधे दूजै लागे ॥
अज्ञानी अंधे द्वैतभाव में लिप्त रहते हैं,”
ਬਿਨੁ ਪਾਣੀ ਡੁਬਿ ਮੂਏ ਅਭਾਗੇ ॥
बिनु पाणी डुबि मूए अभागे ॥
ऐसे अभागे तो पानी के बिना ही डूबकर मर जाते हैं।
ਚਲਦਿਆ ਘਰੁ ਦਰੁ ਨਦਰਿ ਨ ਆਵੈ ਜਮ ਦਰਿ ਬਾਧਾ ਦੁਖੁ ਪਾਇਦਾ ॥੧੩॥
चलदिआ घरु दरु नदरि न आवै जम दरि बाधा दुखु पाइदा ॥१३॥
जगत से चलते वक्त उन्हें अपना सच्चा घर द्वार नजर नहीं आता और वे यम के द्वार पर बंधे हुए दुख ही भोगते हैं।॥ १३॥
ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਸੇਵੇ ਮੁਕਤਿ ਨ ਹੋਈ ॥
बिनु सतिगुर सेवे मुकति न होई ॥
सतिगुरु की सेवा किए बिना किसी को मुक्ति प्राप्त नहीं होती,”
ਗਿਆਨੀ ਧਿਆਨੀ ਪੂਛਹੁ ਕੋਈ ॥
गिआनी धिआनी पूछहु कोई ॥
चाहे इस संदर्भ में किसी ज्ञानी-ध्यानी से जाकर पूछ लो।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵੇ ਤਿਸੁ ਮਿਲੈ ਵਡਿਆਈ ਦਰਿ ਸਚੈ ਸੋਭਾ ਪਾਇਦਾ ॥੧੪॥
सतिगुरु सेवे तिसु मिलै वडिआई दरि सचै सोभा पाइदा ॥१४॥
जो सतिगुरु की सेवा करता है, उसे ही कीर्ति प्राप्त होती है और सच्चे दर पर शोभा का पात्र बनता है॥ १४॥
ਸਤਿਗੁਰ ਨੋ ਸੇਵੇ ਤਿਸੁ ਆਪਿ ਮਿਲਾਏ ॥
सतिगुर नो सेवे तिसु आपि मिलाए ॥
जो सतिगुरु की सेवा करता है, ईश्वर स्वयं ही उसे मिला लेता है।
ਮਮਤਾ ਕਾਟਿ ਸਚਿ ਲਿਵ ਲਾਏ ॥
ममता काटि सचि लिव लाए ॥
ऐसा व्यक्ति ममता को नाश करके सत्य में ही लगन लगाता है।
ਸਦਾ ਸਚੁ ਵਣਜਹਿ ਵਾਪਾਰੀ ਨਾਮੋ ਲਾਹਾ ਪਾਇਦਾ ॥੧੫॥
सदा सचु वणजहि वापारी नामो लाहा पाइदा ॥१५॥
वह व्यापारी सदा सत्य का व्यापार करता रहता है और नाम रूपी लाभ हासिल करता है॥ १५॥
ਆਪੇ ਕਰੇ ਕਰਾਏ ਕਰਤਾ ॥
आपे करे कराए करता ॥
कर्ता-प्रभु स्वयं ही करता और करवाता है।
ਸਬਦਿ ਮਰੈ ਸੋਈ ਜਨੁ ਮੁਕਤਾ ॥
सबदि मरै सोई जनु मुकता ॥
जो शब्द द्वारा मोह-माया की ओर से मर जाता है, वही मुक्त होता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਵਸੈ ਮਨ ਅੰਤਰਿ ਨਾਮੋ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਦਾ ॥੧੬॥੫॥੧੯॥
नानक नामु वसै मन अंतरि नामो नामु धिआइदा ॥१६॥५॥१९॥
हे नानक ! जिसके मन में परमात्मा का नाम बस जाता है, वह नाम द्वारा नाम का ही मनन करता रहता है।॥१६॥५॥१९॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੩ ॥
मारू महला ३ ॥
मारू महला ३॥
ਜੋ ਤੁਧੁ ਕਰਣਾ ਸੋ ਕਰਿ ਪਾਇਆ ॥
जो तुधु करणा सो करि पाइआ ॥
जो तूने करना है, वही भाग्य में पाया है।
ਭਾਣੇ ਵਿਚਿ ਕੋ ਵਿਰਲਾ ਆਇਆ ॥
भाणे विचि को विरला आइआ ॥
हे ईश्वर ! कोई विरला पुरुष ही तेरी रज़ा में चला है।
ਭਾਣਾ ਮੰਨੇ ਸੋ ਸੁਖੁ ਪਾਏ ਭਾਣੇ ਵਿਚਿ ਸੁਖੁ ਪਾਇਦਾ ॥੧॥
भाणा मंने सो सुखु पाए भाणे विचि सुखु पाइदा ॥१॥
जो तेरी रज़ा को मानता है, वही सुख पाता है। सत्य तो यही है कि प्रभु-रज़ा में ही सुख मिलता है॥ १॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਤੇਰਾ ਭਾਣਾ ਭਾਵੈ ॥
गुरमुखि तेरा भाणा भावै ॥
गुरुमुख को तेरी रज़ा ही भाती है।
ਸਹਜੇ ਹੀ ਸੁਖੁ ਸਚੁ ਕਮਾਵੈ ॥
सहजे ही सुखु सचु कमावै ॥
वह सच्चा आचरण अपनाकर सुख ही सुख पाता है।
ਭਾਣੇ ਨੋ ਲੋਚੈ ਬਹੁਤੇਰੀ ਆਪਣਾ ਭਾਣਾ ਆਪਿ ਮਨਾਇਦਾ ॥੨॥
भाणे नो लोचै बहुतेरी आपणा भाणा आपि मनाइदा ॥२॥
बहुत सारे जिज्ञासु तेरी रज़ा को मानना चाहते हैं परन्तु तू स्वयं ही अपनी रज़ा मनवाता है॥ २॥
ਤੇਰਾ ਭਾਣਾ ਮੰਨੇ ਸੁ ਮਿਲੈ ਤੁਧੁ ਆਏ ॥
तेरा भाणा मंने सु मिलै तुधु आए ॥
जो तेरी रज़ा को सहर्ष मानते हैं, वे तुझ में ही आकर मिल जाते हैं।