ਦੁਰਮਤਿ ਭਾਗਹੀਨ ਮਤਿ ਫੀਕੇ ਨਾਮੁ ਸੁਨਤ ਆਵੈ ਮਨਿ ਰੋਹੈ ॥
दुरमति भागहीन मति फीके नामु सुनत आवै मनि रोहै ॥
दुर्मति, भाग्यहीन एवं तुच्छ बुद्धि वाले लोगों को प्रभु का नाम सुनकर ही मन में क्रोध आ जाता है।
ਕਊਆ ਕਾਗ ਕਉ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਰਸੁ ਪਾਈਐ ਤ੍ਰਿਪਤੈ ਵਿਸਟਾ ਖਾਇ ਮੁਖਿ ਗੋਹੈ ॥੩॥
कऊआ काग कउ अम्रित रसु पाईऐ त्रिपतै विसटा खाइ मुखि गोहै ॥३॥
कौए के समक्ष चाहे स्वादिष्ट भोजन रखा जाए तो भी वह अपने मुँह से विष्ठा एवं गोबर खा कर ही तृप्त होता है॥ ३॥
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਸਰੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸਤਿਵਾਦੀ ਜਿਤੁ ਨਾਤੈ ਕਊਆ ਹੰਸੁ ਹੋਹੈ ॥
अम्रित सरु सतिगुरु सतिवादी जितु नातै कऊआ हंसु होहै ॥
सत्यवादी सतगुरु जी अमृत का सरोवर हैं, जिसमें स्नान करने से कौआ भी हंस बन जाता है।
ਨਾਨਕ ਧਨੁ ਧੰਨੁ ਵਡੇ ਵਡਭਾਗੀ ਜਿਨੑ ਗੁਰਮਤਿ ਨਾਮੁ ਰਿਦੈ ਮਲੁ ਧੋਹੈ ॥੪॥੨॥
नानक धनु धंनु वडे वडभागी जिन्ह गुरमति नामु रिदै मलु धोहै ॥४॥२॥
हे नानक ! वे इन्सान धन्य-धन्य एवं बड़े भाग्यवान हैं, जो अपने मन की मैल को गुरु उपदेशानुसार प्रभु-नाम से धो देते हैं। ४॥ २ ॥
ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
गूजरी महला ४ ॥
गूजरी महला ४ ॥
ਹਰਿ ਜਨ ਊਤਮ ਊਤਮ ਬਾਣੀ ਮੁਖਿ ਬੋਲਹਿ ਪਰਉਪਕਾਰੇ ॥
हरि जन ऊतम ऊतम बाणी मुखि बोलहि परउपकारे ॥
हरि के भक्त उत्तम हैं, उनकी वाणी बड़ी उत्तम होती है तथा वे अपने सुख से परोपकार के लिए ही वाणी बोलते हैं।
ਜੋ ਜਨੁ ਸੁਣੈ ਸਰਧਾ ਭਗਤਿ ਸੇਤੀ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਹਰਿ ਨਿਸਤਾਰੇ ॥੧॥
जो जनु सुणै सरधा भगति सेती करि किरपा हरि निसतारे ॥१॥
जो लोग श्रद्धा एवं भक्ति-भाव से उनकी वाणी सुनते हैं, हरि कृपा करके उनकी मुक्ति कर देता है॥ १॥
ਰਾਮ ਮੋ ਕਉ ਹਰਿ ਜਨ ਮੇਲਿ ਪਿਆਰੇ ॥
राम मो कउ हरि जन मेलि पिआरे ॥
हे राम ! मुझे प्यारे भक्तों की संगति से मिला दे।
ਮੇਰੇ ਪ੍ਰੀਤਮ ਪ੍ਰਾਨ ਸਤਿਗੁਰੁ ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਹਮ ਪਾਪੀ ਗੁਰਿ ਨਿਸਤਾਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मेरे प्रीतम प्रान सतिगुरु गुरु पूरा हम पापी गुरि निसतारे ॥१॥ रहाउ ॥
पूर्ण गुरु सतिगुरु मुझे अपने प्राणों से भी प्रिय है। गुरुदेव ने मुझ पापी को भी मोक्ष प्रदान किया है॥ १॥ रहाउ ॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਵਡਭਾਗੀ ਵਡਭਾਗੇ ਜਿਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰੇ ॥
गुरमुखि वडभागी वडभागे जिन हरि हरि नामु अधारे ॥
गुरुमुख बड़े भाग्यशाली हैं, और बे भी बड़े भाग्यवान हैं, हरि नाम ही जिनके जीवन का आधार बन गया है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਹਰਿ ਰਸੁ ਪਾਵਹਿ ਗੁਰਮਤਿ ਭਗਤਿ ਭੰਡਾਰੇ ॥੨॥
हरि हरि अम्रितु हरि रसु पावहि गुरमति भगति भंडारे ॥२॥
वे हरिनामामृत एवं हरि रस का पान करते हैं तथा गुरु उपदेश द्वारा उनकी भक्ति के भण्डार भरे रहते हैं।॥ २॥
ਜਿਨ ਦਰਸਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਸਤ ਪੁਰਖ ਨ ਪਾਇਆ ਤੇ ਭਾਗਹੀਣ ਜਮਿ ਮਾਰੇ ॥
जिन दरसनु सतिगुर सत पुरख न पाइआ ते भागहीण जमि मारे ॥
परन्तु जिन्होंने सद्पुरुष सतिगुरु के दर्शन प्राप्त नहीं किए. वे भाग्यहीन हैं तथा उनको यमदूत नष्ट कर देता है।
ਸੇ ਕੂਕਰ ਸੂਕਰ ਗਰਧਭ ਪਵਹਿ ਗਰਭ ਜੋਨੀ ਦਯਿ ਮਾਰੇ ਮਹਾ ਹਤਿਆਰੇ ॥੩॥
से कूकर सूकर गरधभ पवहि गरभ जोनी दयि मारे महा हतिआरे ॥३॥
ऐसे मनुष्य कुत्ते, सूअर अथवा गधे जैसी गर्भ-योनियों के (जन्म-मरण के) चक्र में पीड़ित होते हैं तथा उन महा हत्यारों को भगवान मार देता है॥ ३॥
ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਹੋਹੁ ਜਨ ਊਪਰਿ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਲੇਹੁ ਉਬਾਰੇ ॥
दीन दइआल होहु जन ऊपरि करि किरपा लेहु उबारे ॥
हे दीन दयालु ! अपने सेवकों पर दया करो और अपनी कृपा-दृष्टि करके उनका उद्धार करो।
ਨਾਨਕ ਜਨ ਹਰਿ ਕੀ ਸਰਣਾਈ ਹਰਿ ਭਾਵੈ ਹਰਿ ਨਿਸਤਾਰੇ ॥੪॥੩॥
नानक जन हरि की सरणाई हरि भावै हरि निसतारे ॥४॥३॥
नानक ने हरि की शरण ली है, जब हरि को उपयुक्त लगेगा तो वह उसका उद्धार कर देगा ॥ ४ ॥ ३ ॥
ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
गूजरी महला ४ ॥
गूजरी महला ४ ॥
ਹੋਹੁ ਦਇਆਲ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਲਾਵਹੁ ਹਉ ਅਨਦਿਨੁ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਨਿਤ ਧਿਆਈ ॥
होहु दइआल मेरा मनु लावहु हउ अनदिनु राम नामु नित धिआई ॥
हे मेरे राम ! मुझ पर दयालु हो जाओ और मेरा मन भक्ति में लगा दो चूंकि मैं सर्वदा ही तेरे नाम का ध्यान करता रहूँ।
ਸਭਿ ਸੁਖ ਸਭਿ ਗੁਣ ਸਭਿ ਨਿਧਾਨ ਹਰਿ ਜਿਤੁ ਜਪਿਐ ਦੁਖ ਭੁਖ ਸਭ ਲਹਿ ਜਾਈ ॥੧॥
सभि सुख सभि गुण सभि निधान हरि जितु जपिऐ दुख भुख सभ लहि जाई ॥१॥
परमात्मा सभी सुखों, सभी गुणों एवं समस्त निधियों का भण्डार है, जिसका नाम जपने से ही सभी दुख एवं भूख मिट जाते हैं।॥ १॥
ਮਨ ਮੇਰੇ ਮੇਰਾ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਸਖਾ ਹਰਿ ਭਾਈ ॥
मन मेरे मेरा राम नामु सखा हरि भाई ॥
हे मेरे मन ! राम का नाम मेरा सखा एवं भाई है।
ਗੁਰਮਤਿ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਜਸੁ ਗਾਵਾ ਅੰਤਿ ਬੇਲੀ ਦਰਗਹ ਲਏ ਛਡਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरमति राम नामु जसु गावा अंति बेली दरगह लए छडाई ॥१॥ रहाउ ॥
गुरु की मति द्वारा मैं राम-नाम का यश गाता रहता हूँ। अन्तिम समय यह मेरा साथी होगा और प्रभु-दरगाह में मुझे छुड़ा लेगा ॥ १॥ रहाउ॥
ਤੂੰ ਆਪੇ ਦਾਤਾ ਪ੍ਰਭੁ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਲੋਚ ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਲਾਈ ॥
तूं आपे दाता प्रभु अंतरजामी करि किरपा लोच मेरै मनि लाई ॥
हे प्रभु ! तू स्वयं ही दाता एवं अन्तर्यामी है, स्वयं ही कृपा करके मेरे मन में मिलन की तीव्र लालसा लगाई है।
ਮੈ ਮਨਿ ਤਨਿ ਲੋਚ ਲਗੀ ਹਰਿ ਸੇਤੀ ਪ੍ਰਭਿ ਲੋਚ ਪੂਰੀ ਸਤਿਗੁਰ ਸਰਣਾਈ ॥੨॥
मै मनि तनि लोच लगी हरि सेती प्रभि लोच पूरी सतिगुर सरणाई ॥२॥
अब मेरे मन एवं तन में हरि के लिए तीव्र लालसा लगी है। प्रभु ने मुझे सतगुरु की शरण में डालकर मेरी लालसा पूरी कर दी है॥ २॥
ਮਾਣਸ ਜਨਮੁ ਪੁੰਨਿ ਕਰਿ ਪਾਇਆ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਧ੍ਰਿਗੁ ਧ੍ਰਿਗੁ ਬਿਰਥਾ ਜਾਈ ॥
माणस जनमु पुंनि करि पाइआ बिनु नावै ध्रिगु ध्रिगु बिरथा जाई ॥
अमूल्य मानव-जन्म पुण्य करने से ही प्राप्त होता है। प्रभु-नाम के बिना यह धिक्कार योग्य है तथा व्यर्थ ही जाता है।
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਰਸ ਕਸ ਦੁਖੁ ਖਾਵੈ ਮੁਖੁ ਫੀਕਾ ਥੁਕ ਥੂਕ ਮੁਖਿ ਪਾਈ ॥੩॥
नाम बिना रस कस दुखु खावै मुखु फीका थुक थूक मुखि पाई ॥३॥
प्रभु-नाम के बिना विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट पदार्थ भी दु:ख रूप हैं। उसका मुँह फीका ही रहता है और उसके चेहरे पर थूक ही पड़ता है। ३॥
ਜੋ ਜਨ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਹਰਿ ਹਰਿ ਸਰਣਾ ਤਿਨ ਦਰਗਹ ਹਰਿ ਹਰਿ ਦੇ ਵਡਿਆਈ ॥
जो जन हरि प्रभ हरि हरि सरणा तिन दरगह हरि हरि दे वडिआई ॥
जो लोग हरि-प्रभु की शरण लेते हैं, उन्हें हरि अपनी दरगाह में मान-सम्मान प्रदान करता है।
ਧੰਨੁ ਧੰਨੁ ਸਾਬਾਸਿ ਕਹੈ ਪ੍ਰਭੁ ਜਨ ਕਉ ਜਨ ਨਾਨਕ ਮੇਲਿ ਲਏ ਗਲਿ ਲਾਈ ॥੪॥੪॥
धंनु धंनु साबासि कहै प्रभु जन कउ जन नानक मेलि लए गलि लाई ॥४॥४॥
हे नानक ! अपने सेवक को प्रभु धन्य-धन्य एवं शाबाश कहता है। वह उसे गले लगा लेता है और अपने साथ मिला लेता है॥ ४॥ ४॥
ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
गूजरी महला ४ ॥
गूजरी महला ४ ॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਖੀ ਸਹੇਲੀ ਮੇਰੀ ਮੋ ਕਉ ਦੇਵਹੁ ਦਾਨੁ ਹਰਿ ਪ੍ਰਾਨ ਜੀਵਾਇਆ ॥
गुरमुखि सखी सहेली मेरी मो कउ देवहु दानु हरि प्रान जीवाइआ ॥
हे मेरी गुरुमुख सखी-सहेलियो ! मुझे हरेि नाम का दान दीजिए, जो मेरे प्राणों का जीवन है।
ਹਮ ਹੋਵਹ ਲਾਲੇ ਗੋਲੇ ਗੁਰਸਿਖਾ ਕੇ ਜਿਨੑਾ ਅਨਦਿਨੁ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਪੁਰਖੁ ਧਿਆਇਆ ॥੧॥
हम होवह लाले गोले गुरसिखा के जिन्हा अनदिनु हरि प्रभु पुरखु धिआइआ ॥१॥
मैं उन गुरुसिक्खों का सेवक एवं दास हूँ जो रात-दिन हरि-प्रभु का ही ध्यान करते रहते हैं।॥ १॥
ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਤਨਿ ਬਿਰਹੁ ਗੁਰਸਿਖ ਪਗ ਲਾਇਆ ॥
मेरै मनि तनि बिरहु गुरसिख पग लाइआ ॥
भगवान ने मेरे मन एवं तन में गुरु सिक्खों के चरणों के लिए प्रेम पैदा कर दिया है।
ਮੇਰੇ ਪ੍ਰਾਨ ਸਖਾ ਗੁਰ ਕੇ ਸਿਖ ਭਾਈ ਮੋ ਕਉ ਕਰਹੁ ਉਪਦੇਸੁ ਹਰਿ ਮਿਲੈ ਮਿਲਾਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मेरे प्रान सखा गुर के सिख भाई मो कउ करहु उपदेसु हरि मिलै मिलाइआ ॥१॥ रहाउ ॥
हे गुरु के सिक्खो ! तुम मेरे प्राण, मेरे मित्र एवं मेरे भाई हो। मुझे उपदेश करो चूंकि आपका मिलाया हुआ मैं प्रभु से मिल सकता हूँ॥ १॥ रहाउ॥