ਜਗਤ ਉਧਾਰਨ ਸਾਧ ਪ੍ਰਭ ਤਿਨੑ ਲਾਗਹੁ ਪਾਲ ॥
जगत उधारन साध प्रभ तिन्ह लागहु पाल ॥
प्रभु के साधु महात्मा जगत् का उद्धार करने में सक्षम हैं, अत: उनकी शरण में लग जाओ।
ਮੋ ਕਉ ਦੀਜੈ ਦਾਨੁ ਪ੍ਰਭ ਸੰਤਨ ਪਗ ਰਾਲ ॥੨॥
मो कउ दीजै दानु प्रभ संतन पग राल ॥२॥
हे प्रभु ! मुझे संतों की चरण-धूलि का दान दीजिए ॥२॥
ਉਕਤਿ ਸਿਆਨਪ ਕਛੁ ਨਹੀ ਨਾਹੀ ਕਛੁ ਘਾਲ ॥
उकति सिआनप कछु नही नाही कछु घाल ॥
मेरे पास कोई उक्ति एवं अकलमंदी नहीं है और न ही कोई साधना की है।
ਭ੍ਰਮ ਭੈ ਰਾਖਹੁ ਮੋਹ ਤੇ ਕਾਟਹੁ ਜਮ ਜਾਲ ॥੩॥
भ्रम भै राखहु मोह ते काटहु जम जाल ॥३॥
इसलिए भ्रम, भय एवं मोह से मेरी रक्षा करो और यम का जाल काट दो॥ ३॥
ਬਿਨਉ ਕਰਉ ਕਰੁਣਾਪਤੇ ਪਿਤਾ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲ ॥
बिनउ करउ करुणापते पिता प्रतिपाल ॥
हे करुणापति, हे परमपिता! तू समूचे जगत् का प्रतिपालक है।
ਗੁਣ ਗਾਵਉ ਤੇਰੇ ਸਾਧਸੰਗਿ ਨਾਨਕ ਸੁਖ ਸਾਲ ॥੪॥੧੧॥੪੧॥
गुण गावउ तेरे साधसंगि नानक सुख साल ॥४॥११॥४१॥
मैं तुझसे यही विनती करता हूँ कि मैं साधु की संगति में शामिल होकर तेरा गुणगान करता रहूँ। हे नानक ! यही सुखों का घर है॥ ४॥ ११॥ ४१॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
ਕੀਤਾ ਲੋੜਹਿ ਸੋ ਕਰਹਿ ਤੁਝ ਬਿਨੁ ਕਛੁ ਨਾਹਿ ॥
कीता लोड़हि सो करहि तुझ बिनु कछु नाहि ॥
हे ईश्वर ! जो तू चाहता है, वही करता है। सच तो यही है कि तेरे बिना कुछ भी सृष्टि में संभव नहीं है।
ਪਰਤਾਪੁ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰਾ ਦੇਖਿ ਕੈ ਜਮਦੂਤ ਛਡਿ ਜਾਹਿ ॥੧॥
परतापु तुम्हारा देखि कै जमदूत छडि जाहि ॥१॥
तेरा प्रताप देख कर यमदूत भी जीव को छोड़ जाते हैं।॥ १॥
ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਰੀ ਕ੍ਰਿਪਾ ਤੇ ਛੂਟੀਐ ਬਿਨਸੈ ਅਹੰਮੇਵ ॥
तुम्हरी क्रिपा ते छूटीऐ बिनसै अहमेव ॥
तेरी कृपा से ही जीव बन्धनों से छूटता है और उसका अहंत्व नाश हो जाता है।
ਸਰਬ ਕਲਾ ਸਮਰਥ ਪ੍ਰਭ ਪੂਰੇ ਗੁਰਦੇਵ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सरब कला समरथ प्रभ पूरे गुरदेव ॥१॥ रहाउ ॥
हे पूर्ण गुरुदेव प्रभु! तू सर्वकला समर्थ है॥ १॥ रहाउ॥
ਖੋਜਤ ਖੋਜਤ ਖੋਜਿਆ ਨਾਮੈ ਬਿਨੁ ਕੂਰੁ ॥
खोजत खोजत खोजिआ नामै बिनु कूरु ॥
खोजते-खोजते मैंने यही खोज की है कि नाम के अलावा अन्य सबकुछ झूठ है।
ਜੀਵਨ ਸੁਖੁ ਸਭੁ ਸਾਧਸੰਗਿ ਪ੍ਰਭ ਮਨਸਾ ਪੂਰੁ ॥੨॥
जीवन सुखु सभु साधसंगि प्रभ मनसा पूरु ॥२॥
जीवन में सच्चा सुख संतों की संगति में ही मिलता है और प्रभु हमारी हर कामना पूरी करने वाला है॥ २॥
ਜਿਤੁ ਜਿਤੁ ਲਾਵਹੁ ਤਿਤੁ ਤਿਤੁ ਲਗਹਿ ਸਿਆਨਪ ਸਭ ਜਾਲੀ ॥
जितु जितु लावहु तितु तितु लगहि सिआनप सभ जाली ॥
जिस-जिस कार्य में तू जीवों को लगाता है, वे उधर ही लग जाते हैं, शेष उनकी अपनी सब चतुराईयां बेकार हैं।
ਜਤ ਕਤ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਭਰਪੂਰ ਹਹੁ ਮੇਰੇ ਦੀਨ ਦਇਆਲੀ ॥੩॥
जत कत तुम्ह भरपूर हहु मेरे दीन दइआली ॥३॥
हे मेरे दीनदयाल ! तू हर जगह समाया हुआ है।॥ ३॥
ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਤੁਮ ਤੇ ਮਾਗਨਾ ਵਡਭਾਗੀ ਪਾਏ ॥
सभु किछु तुम ते मागना वडभागी पाए ॥
जीवों ने सबकुछ तुझसे ही मांगना है, लेकिन खुशकिस्मत ही तुझसे प्राप्त करते हैं।
ਨਾਨਕ ਕੀ ਅਰਦਾਸਿ ਪ੍ਰਭ ਜੀਵਾ ਗੁਨ ਗਾਏ ॥੪॥੧੨॥੪੨॥
नानक की अरदासि प्रभ जीवा गुन गाए ॥४॥१२॥४२॥
हे प्रभु ! नानक की एक यही प्रार्थना है कि मैं तेरे गुण गा कर जीता रहूँ॥ ४॥ १२ ॥ ४२ ॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਕੈ ਬਾਸਬੈ ਕਲਮਲ ਸਭਿ ਨਸਨਾ ॥
साधसंगति कै बासबै कलमल सभि नसना ॥
संतों की संगति में से सारे पाप नाश हो जाते हैं।
ਪ੍ਰਭ ਸੇਤੀ ਰੰਗਿ ਰਾਤਿਆ ਤਾ ਤੇ ਗਰਭਿ ਨ ਗ੍ਰਸਨਾ ॥੧॥
प्रभ सेती रंगि रातिआ ता ते गरभि न ग्रसना ॥१॥
प्रभु के रंग में रंगने से गर्भ में प्रवेश नहीं होता ॥ १॥
ਨਾਮੁ ਕਹਤ ਗੋਵਿੰਦ ਕਾ ਸੂਚੀ ਭਈ ਰਸਨਾ ॥
नामु कहत गोविंद का सूची भई रसना ॥
गोविंद का नाम जपने से जिह्वा शुद्ध हो गई है,
ਮਨ ਤਨ ਨਿਰਮਲ ਹੋਈ ਹੈ ਗੁਰ ਕਾ ਜਪੁ ਜਪਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मन तन निरमल होई है गुर का जपु जपना ॥१॥ रहाउ ॥
गुरु का बताया जाप जपने से मन-तन निर्मल हो गया है। १॥ रहाउ ॥
ਹਰਿ ਰਸੁ ਚਾਖਤ ਧ੍ਰਾਪਿਆ ਮਨਿ ਰਸੁ ਲੈ ਹਸਨਾ ॥
हरि रसु चाखत ध्रापिआ मनि रसु लै हसना ॥
हरि-रस चखकर मन बड़ा तृप्त हो गया है और इसका स्वाद लेकर मन बहुत खुश रहता है।
ਬੁਧਿ ਪ੍ਰਗਾਸ ਪ੍ਰਗਟ ਭਈ ਉਲਟਿ ਕਮਲੁ ਬਿਗਸਨਾ ॥੨॥
बुधि प्रगास प्रगट भई उलटि कमलु बिगसना ॥२॥
उलटा पड़ा हृदय खिल गया है और बुद्धि में ज्ञान का प्रकाश हो गया है॥ २॥
ਸੀਤਲ ਸਾਂਤਿ ਸੰਤੋਖੁ ਹੋਇ ਸਭ ਬੂਝੀ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ॥
सीतल सांति संतोखु होइ सभ बूझी त्रिसना ॥
मन में शीतल, शान्ति एवं सन्तोष उत्पन्न हो गया है, जिससे सारी तृष्णा बुझ गई है।
ਦਹ ਦਿਸ ਧਾਵਤ ਮਿਟਿ ਗਏ ਨਿਰਮਲ ਥਾਨਿ ਬਸਨਾ ॥੩॥
दह दिस धावत मिटि गए निरमल थानि बसना ॥३॥
मेरे मन की दसों दिशाओं वाली भटकन मिट गई है और अब यह निर्मल स्थान में बसने लग गया है॥ ३॥
ਰਾਖਨਹਾਰੈ ਰਾਖਿਆ ਭਏ ਭ੍ਰਮ ਭਸਨਾ ॥
राखनहारै राखिआ भए भ्रम भसना ॥
सर्वरक्षक परमात्मा ने मुझे बचा लिया है और मेरे मन के भ्रम जलकर राख हो गए हैं।
ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨ ਨਾਨਕ ਸੁਖੀ ਪੇਖਿ ਸਾਧ ਦਰਸਨਾ ॥੪॥੧੩॥੪੩॥
नामु निधान नानक सुखी पेखि साध दरसना ॥४॥१३॥४३॥
हे नानक ! नाम निधि को पाकर तथा साधुओं के दर्शन करके सुखी हो गया हूँ॥ ४॥ १३॥ ४३॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
ਪਾਣੀ ਪਖਾ ਪੀਸੁ ਦਾਸ ਕੈ ਤਬ ਹੋਹਿ ਨਿਹਾਲੁ ॥
पाणी पखा पीसु दास कै तब होहि निहालु ॥
हे जीव ! ईश्वर के दास (संत-महात्मा) के घर पानी ढोने, पंखा करने तथा आटा पीसने से सच्चा आनंद मिल सकता है।
ਰਾਜ ਮਿਲਖ ਸਿਕਦਾਰੀਆ ਅਗਨੀ ਮਹਿ ਜਾਲੁ ॥੧॥
राज मिलख सिकदारीआ अगनी महि जालु ॥१॥
राज्य, धन-संपत्ति एवं उच्चाधिकारों की चाह को अग्नि में जला दो॥ १ ॥
ਸੰਤ ਜਨਾ ਕਾ ਛੋਹਰਾ ਤਿਸੁ ਚਰਣੀ ਲਾਗਿ ॥
संत जना का छोहरा तिसु चरणी लागि ॥
जो संतजनों का सेवक है, उसके चरणों में लग।
ਮਾਇਆਧਾਰੀ ਛਤ੍ਰਪਤਿ ਤਿਨੑ ਛੋਡਉ ਤਿਆਗਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
माइआधारी छत्रपति तिन्ह छोडउ तिआगि ॥१॥ रहाउ ॥
धनवान एवं छत्रपति राजा का साथ छोड़कर उन्हें त्याग दो॥ १॥ रहाउ ॥
ਸੰਤਨ ਕਾ ਦਾਨਾ ਰੂਖਾ ਸੋ ਸਰਬ ਨਿਧਾਨ ॥
संतन का दाना रूखा सो सरब निधान ॥
संतजनों के घर की रूखी-सूखी रोटी सर्व सुखों के भण्डार समान है,
ਗ੍ਰਿਹਿ ਸਾਕਤ ਛਤੀਹ ਪ੍ਰਕਾਰ ਤੇ ਬਿਖੂ ਸਮਾਨ ॥੨॥
ग्रिहि साकत छतीह प्रकार ते बिखू समान ॥२॥
किन्तु किसी शाक्त के घर के छत्तीस प्रकार के व्यंजन भी विष के समान है ॥२॥
ਭਗਤ ਜਨਾ ਕਾ ਲੂਗਰਾ ਓਢਿ ਨਗਨ ਨ ਹੋਈ ॥
भगत जना का लूगरा ओढि नगन न होई ॥
भक्तजनों से मिला मामूली वस्त्र पहनकर आदमी नग्न नहीं होता।
ਸਾਕਤ ਸਿਰਪਾਉ ਰੇਸਮੀ ਪਹਿਰਤ ਪਤਿ ਖੋਈ ॥੩॥
साकत सिरपाउ रेसमी पहिरत पति खोई ॥३॥
लेकिन शाक्त से मिला रेशमी सिरोपा पहनकर वह अपनी इज्जत गंवा देता है॥ ३॥
ਸਾਕਤ ਸਿਉ ਮੁਖਿ ਜੋਰਿਐ ਅਧ ਵੀਚਹੁ ਟੂਟੈ ॥
साकत सिउ मुखि जोरिऐ अध वीचहु टूटै ॥
शाक्त के साथ मित्रता करने एवं संपर्क बढ़ाने से बीच में ही टूट जाती है।
ਹਰਿ ਜਨ ਕੀ ਸੇਵਾ ਜੋ ਕਰੇ ਇਤ ਊਤਹਿ ਛੂਟੈ ॥੪॥
हरि जन की सेवा जो करे इत ऊतहि छूटै ॥४॥
लेकिन जो भगवान् के भक्तों की सेवा करता है, उसका जन्म-मरण ही छूट जाता है। ४॥
ਸਭ ਕਿਛੁ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਹੀ ਤੇ ਹੋਆ ਆਪਿ ਬਣਤ ਬਣਾਈ ॥
सभ किछु तुम्ह ही ते होआ आपि बणत बणाई ॥
हे प्रभु ! सबकुछ तेरे हुक्म से ही उत्पन्न हुआ है और तूने स्वयं ही यह रचना की है।
ਦਰਸਨੁ ਭੇਟਤ ਸਾਧ ਕਾ ਨਾਨਕ ਗੁਣ ਗਾਈ ॥੫॥੧੪॥੪੪॥
दरसनु भेटत साध का नानक गुण गाई ॥५॥१४॥४४॥
हे नानक ! मैं साधु के दर्शन व भेंटवार्ता कर ईश्वर के ही गुण गाता हँ ॥ ५ ॥ १४॥ ४४॥