ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਮੰਗੈ ਦਾਨੁ ਇਕੁ ਦੇਹੁ ਦਰਸੁ ਮਨਿ ਪਿਆਰੁ ॥੨॥
जनु नानकु मंगै दानु इकु देहु दरसु मनि पिआरु ॥२॥
नानक तो परमात्मा से एक यही दान माँगता है कि मुझे अपने दर्शन दीजिए एवं मन में सदैव प्रेम बना रहे। २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਜਿਸੁ ਤੂ ਆਵਹਿ ਚਿਤਿ ਤਿਸ ਨੋ ਸਦਾ ਸੁਖ ॥
जिसु तू आवहि चिति तिस नो सदा सुख ॥
हे परमेश्वर ! जिसे तू याद आता है, उसे सदा ही सुख मिलता रहता है।
ਜਿਸੁ ਤੂ ਆਵਹਿ ਚਿਤਿ ਤਿਸੁ ਜਮ ਨਾਹਿ ਦੁਖ ॥
जिसु तू आवहि चिति तिसु जम नाहि दुख ॥
जिसे तू स्मरण होता है, उसका मृत्यु का दुख समाप्त हो जाता है।
ਜਿਸੁ ਤੂ ਆਵਹਿ ਚਿਤਿ ਤਿਸੁ ਕਿ ਕਾੜਿਆ ॥
जिसु तू आवहि चिति तिसु कि काड़िआ ॥
जिसे तू याद आता है, उसे किस प्रकार की चिंता हो सकती है।
ਜਿਸ ਦਾ ਕਰਤਾ ਮਿਤ੍ਰੁ ਸਭਿ ਕਾਜ ਸਵਾਰਿਆ ॥
जिस दा करता मित्रु सभि काज सवारिआ ॥
कर्ता परमेश्वर जिसका मित्र बन जाता है, उसका प्रत्येक कार्य साकार हो जाता है।
ਜਿਸੁ ਤੂ ਆਵਹਿ ਚਿਤਿ ਸੋ ਪਰਵਾਣੁ ਜਨੁ ॥
जिसु तू आवहि चिति सो परवाणु जनु ॥
जिसे तू याद आता है, उसका जन्म सफल हो जाता है।
ਜਿਸੁ ਤੂ ਆਵਹਿ ਚਿਤਿ ਬਹੁਤਾ ਤਿਸੁ ਧਨੁ ॥
जिसु तू आवहि चिति बहुता तिसु धनु ॥
जिसे तू स्मरण आता है, वह धन-ऐश्वर्य से सम्पन्न हो जाता है।
ਜਿਸੁ ਤੂ ਆਵਹਿ ਚਿਤਿ ਸੋ ਵਡ ਪਰਵਾਰਿਆ ॥
जिसु तू आवहि चिति सो वड परवारिआ ॥
जिसे तेरी याद आती है, वह बड़े परिवार वाला हो जाता है।
ਜਿਸੁ ਤੂ ਆਵਹਿ ਚਿਤਿ ਤਿਨਿ ਕੁਲ ਉਧਾਰਿਆ ॥੬॥
जिसु तू आवहि चिति तिनि कुल उधारिआ ॥६॥
हे परमात्मा ! जिसे तू याद आता है, उसकी वंशावलि का भी कल्याण हो जाता है॥ ६॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੫ ॥
सलोक मः ५ ॥
श्लोक महला ५।
ਅੰਦਰਹੁ ਅੰਨਾ ਬਾਹਰਹੁ ਅੰਨਾ ਕੂੜੀ ਕੂੜੀ ਗਾਵੈ ॥
अंदरहु अंना बाहरहु अंना कूड़ी कूड़ी गावै ॥
ढोंगी पण्डित अपने मन से भी अन्धा है और अपनी बाहरी करतूतों से भी अन्धा अर्थात् ज्ञानहीन है, पर झूठमूठ ही विष्णु के भजन गाता रहता है।
ਦੇਹੀ ਧੋਵੈ ਚਕ੍ਰ ਬਣਾਏ ਮਾਇਆ ਨੋ ਬਹੁ ਧਾਵੈ ॥
देही धोवै चक्र बणाए माइआ नो बहु धावै ॥
वह अपने शरीर को स्नान करवाता है और माथे पर धार्मिक चक्र बनाता है, वह धन-दौलत के लिए बहुत भागदौड़ करता है।
ਅੰਦਰਿ ਮੈਲੁ ਨ ਉਤਰੈ ਹਉਮੈ ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਆਵੈ ਜਾਵੈ ॥
अंदरि मैलु न उतरै हउमै फिरि फिरि आवै जावै ॥
उसके मन की मैल दूर नहीं होती और अहम् में पुनः पुनः जन्म मरण के चक्र में पड़ा रहता है।
ਨੀਂਦ ਵਿਆਪਿਆ ਕਾਮਿ ਸੰਤਾਪਿਆ ਮੁਖਹੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਕਹਾਵੈ ॥
नींद विआपिआ कामि संतापिआ मुखहु हरि हरि कहावै ॥
वह निद्रा में ग्रस्त एवं कामवासना का दुखी किया हुआ मुँह से हरि-हरि कहता रहता है।
ਬੈਸਨੋ ਨਾਮੁ ਕਰਮ ਹਉ ਜੁਗਤਾ ਤੁਹ ਕੁਟੇ ਕਿਆ ਫਲੁ ਪਾਵੈ ॥
बैसनो नामु करम हउ जुगता तुह कुटे किआ फलु पावै ॥
उसका नाम तो वैष्णो है किन्तु अपने कर्मों द्वारा वह अभिमान से जुड़ा हुआ है, छिलकों को कूट कर क्या फल प्राप्त हो सकता है ?”
ਹੰਸਾ ਵਿਚਿ ਬੈਠਾ ਬਗੁ ਨ ਬਣਈ ਨਿਤ ਬੈਠਾ ਮਛੀ ਨੋ ਤਾਰ ਲਾਵੈ ॥
हंसा विचि बैठा बगु न बणई नित बैठा मछी नो तार लावै ॥
हंसों में बैठा हुआ बगुला हंस नहीं बनता और यह हंसों में बैठा हुआ भी नित्य मछली पकड़ने के लिए ध्यान लगाकर रखता है
ਜਾ ਹੰਸ ਸਭਾ ਵੀਚਾਰੁ ਕਰਿ ਦੇਖਨਿ ਤਾ ਬਗਾ ਨਾਲਿ ਜੋੜੁ ਕਦੇ ਨ ਆਵੈ ॥
जा हंस सभा वीचारु करि देखनि ता बगा नालि जोड़ु कदे न आवै ॥
जब हंस अपनी सभा में सोच विचार कर देखते हैं तो उनका बगुले से गठजोड़ कभी बनता ही नहीं।
ਹੰਸਾ ਹੀਰਾ ਮੋਤੀ ਚੁਗਣਾ ਬਗੁ ਡਡਾ ਭਾਲਣ ਜਾਵੈ ॥
हंसा हीरा मोती चुगणा बगु डडा भालण जावै ॥
हंस तो हीरे-मोती चुगते हैं किन्तु बगुला मेंढकों को ढूँढने जाता है।
ਉਡਰਿਆ ਵੇਚਾਰਾ ਬਗੁਲਾ ਮਤੁ ਹੋਵੈ ਮੰਞੁ ਲਖਾਵੈ ॥
उडरिआ वेचारा बगुला मतु होवै मंञु लखावै ॥
बेचारा बगुला हंसों की डार में से उड़ गया है कि शायद मुझे कोई पहचान न ले।
ਜਿਤੁ ਕੋ ਲਾਇਆ ਤਿਤ ਹੀ ਲਾਗਾ ਕਿਸੁ ਦੋਸੁ ਦਿਚੈ ਜਾ ਹਰਿ ਏਵੈ ਭਾਵੈ ॥
जितु को लाइआ तित ही लागा किसु दोसु दिचै जा हरि एवै भावै ॥
जिस किसी को जिस ओर परमात्मा ने लगाया है, वह उस ओर लगा हुआ है, जब परमेश्वर को यूँ ही भाता है फिर किसो को क्या दोष दिया जाये?
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸਰਵਰੁ ਰਤਨੀ ਭਰਪੂਰੇ ਜਿਸੁ ਪ੍ਰਾਪਤਿ ਸੋ ਪਾਵੈ ॥
सतिगुरु सरवरु रतनी भरपूरे जिसु प्रापति सो पावै ॥
सतगुरु मन रूपी रत्नो से भरा हुआ सरोवर है, जिसे गुरु प्राप्त हो जाता है, उसे गुण रूपी रत्न हासिल हो जाते हैं।
ਸਿਖ ਹੰਸ ਸਰਵਰਿ ਇਕਠੇ ਹੋਏ ਸਤਿਗੁਰ ਕੈ ਹੁਕਮਾਵੈ ॥
सिख हंस सरवरि इकठे होए सतिगुर कै हुकमावै ॥
सतगुरु के हुक्म से शिष्य रूपी हंस उस सरोवर में इकट्ठे हो जाते हैं।
ਰਤਨ ਪਦਾਰਥ ਮਾਣਕ ਸਰਵਰਿ ਭਰਪੂਰੇ ਖਾਇ ਖਰਚਿ ਰਹੇ ਤੋਟਿ ਨ ਆਵੈ ॥
रतन पदारथ माणक सरवरि भरपूरे खाइ खरचि रहे तोटि न आवै ॥
गुरु रूपी सरोवर में गुण रूपी रत्न एवं माणिक्य पदार्थ भरे हुए हैं और शिष्य रूपी हंस उन्हें सेवन करते एवं अन्यों को भी करवाते हैं परन्तु वे कभी समाप्त नहीं होते।
ਸਰਵਰ ਹੰਸੁ ਦੂਰਿ ਨ ਹੋਈ ਕਰਤੇ ਏਵੈ ਭਾਵੈ ॥
सरवर हंसु दूरि न होई करते एवै भावै ॥
परमेश्वर को यही मंजूर होता है कि शिष्य रूपी हंस गुरु रूपी सरोवर से कभी दूर न हों।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਜਿਸ ਦੈ ਮਸਤਕਿ ਭਾਗੁ ਧੁਰਿ ਲਿਖਿਆ ਸੋ ਸਿਖੁ ਗੁਰੂ ਪਹਿ ਆਵੈ ॥
जन नानक जिस दै मसतकि भागु धुरि लिखिआ सो सिखु गुरू पहि आवै ॥
हे नानक ! वही शिष्य गुरु के पास आता है, जिसके माथे पर जन्म से ऐसा भाग्य लिखा होता है।
ਆਪਿ ਤਰਿਆ ਕੁਟੰਬ ਸਭਿ ਤਾਰੇ ਸਭਾ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਛਡਾਵੈ ॥੧॥
आपि तरिआ कुट्मब सभि तारे सभा स्रिसटि छडावै ॥१॥
ऐसा शिष्य स्वयं तो भवसागर से तैर जाता है, अपने समूचे परिवार का उद्धार करवा देता है और सारी दुनिया का भी कल्याण करवाता है।१॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਪੰਡਿਤੁ ਆਖਾਏ ਬਹੁਤੀ ਰਾਹੀ ਕੋਰੜ ਮੋਠ ਜਿਨੇਹਾ ॥
पंडितु आखाए बहुती राही कोरड़ मोठ जिनेहा ॥
अनेक मार्गों (शास्त्रों) का ज्ञाता होने के कारण जीव पण्डित तो कहलाता है किन्तु कठोर मोठ जैसा बन जाता है जो पकने से पकता नहीं।
ਅੰਦਰਿ ਮੋਹੁ ਨਿਤ ਭਰਮਿ ਵਿਆਪਿਆ ਤਿਸਟਸਿ ਨਾਹੀ ਦੇਹਾ ॥
अंदरि मोहु नित भरमि विआपिआ तिसटसि नाही देहा ॥
मन में मोह के कारन वह नित्य भ्र्म में फँसा रहता और उसका शरीर कहीं भी स्थिर नहीं होता।
ਕੂੜੀ ਆਵੈ ਕੂੜੀ ਜਾਵੈ ਮਾਇਆ ਕੀ ਨਿਤ ਜੋਹਾ ॥
कूड़ी आवै कूड़ी जावै माइआ की नित जोहा ॥
उसे नित्य धन की लालसा लगी रहती है, इसलिए वह मिथ्या माया के मोह में फंसकर आवागमन में पड़ा रहता है।
ਸਚੁ ਕਹੈ ਤਾ ਛੋਹੋ ਆਵੈ ਅੰਤਰਿ ਬਹੁਤਾ ਰੋਹਾ ॥
सचु कहै ता छोहो आवै अंतरि बहुता रोहा ॥
यदि कोई उसे सत्य कहता है तो उसे खीझ आती है, चूंकि उसके मन में बड़ा क्रोध भरा हुआ है।
ਵਿਆਪਿਆ ਦੁਰਮਤਿ ਕੁਬੁਧਿ ਕੁਮੂੜਾ ਮਨਿ ਲਾਗਾ ਤਿਸੁ ਮੋਹਾ ॥
विआपिआ दुरमति कुबुधि कुमूड़ा मनि लागा तिसु मोहा ॥
दुर्मति एवं खोटी बुद्धि में फंसा हुआ वह महांमूर्ख है और उसके मन में माया का मोह लगा हुआ है।
ਠਗੈ ਸੇਤੀ ਠਗੁ ਰਲਿ ਆਇਆ ਸਾਥੁ ਭਿ ਇਕੋ ਜੇਹਾ ॥
ठगै सेती ठगु रलि आइआ साथु भि इको जेहा ॥
अन्य ठगों के साथ ही यह एक पण्डित ठग भी मिल आया है और इन सब की संगत भी एक जैसी है।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸਰਾਫੁ ਨਦਰੀ ਵਿਚਦੋ ਕਢੈ ਤਾਂ ਉਘੜਿ ਆਇਆ ਲੋਹਾ ॥
सतिगुरु सराफु नदरी विचदो कढै तां उघड़ि आइआ लोहा ॥
जब गुरु रूपी सराफ उस ठग पण्डित को अपनी नजर में से निकालता है अर्थात् उसकी परख करता है तो पण्डित रूपी लोहा निकल आया है।
ਬਹੁਤੇਰੀ ਥਾਈ ਰਲਾਇ ਰਲਾਇ ਦਿਤਾ ਉਘੜਿਆ ਪੜਦਾ ਅਗੈ ਆਇ ਖਲੋਹਾ ॥
बहुतेरी थाई रलाइ रलाइ दिता उघड़िआ पड़दा अगै आइ खलोहा ॥
वह पण्डित रूपी लोहा अन्य शुद्ध सोने में मिला मिलाकर बहुत स्थानों पर दिया गया किन्तु उसका पदा खुलता रहा और वह अपने लोहे के रूप में सबके सामने खड़ा होता रहा।
ਸਤਿਗੁਰ ਕੀ ਜੇ ਸਰਣੀ ਆਵੈ ਫਿਰਿ ਮਨੂਰਹੁ ਕੰਚਨੁ ਹੋਹਾ ॥
सतिगुर की जे सरणी आवै फिरि मनूरहु कंचनु होहा ॥
यदि वह पण्डित गुरु की शरण में आ जाए तो वह जले हुए लोहे से पुनः सोना बन जाए।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਨਿਰਵੈਰੁ ਪੁਤ੍ਰ ਸਤ੍ਰ ਸਮਾਨੇ ਅਉਗਣ ਕਟੇ ਕਰੇ ਸੁਧੁ ਦੇਹਾ ॥
सतिगुरु निरवैरु पुत्र सत्र समाने अउगण कटे करे सुधु देहा ॥
सतगुरु निर्वेर है, उसके लिए पुत्र एवं शत्रु सब एक समान हैं। वह उन सभी के अवगुणों को काटकर उनके शरीर को शुद्ध कर देता है।
ਨਾਨਕ ਜਿਸੁ ਧੁਰਿ ਮਸਤਕਿ ਹੋਵੈ ਲਿਖਿਆ ਤਿਸੁ ਸਤਿਗੁਰ ਨਾਲਿ ਸਨੇਹਾ ॥
नानक जिसु धुरि मसतकि होवै लिखिआ तिसु सतिगुर नालि सनेहा ॥
हे नानक ! जिसके भाग्य में जन्म से ही लिखा होता है, उसका ही सतगुरु से स्नेह होता है।