Hindi Page 816

ਧੰਨੁ ਸੁ ਥਾਨੁ ਬਸੰਤ ਧੰਨੁ ਜਹ ਜਪੀਐ ਨਾਮੁ ॥
धंनु सु थानु बसंत धंनु जह जपीऐ नामु ॥
जहाँ परमात्मा का नाम जपा जाता है, वह स्थान धन्य है और वहाँ रहने वाले भी धन्य हैं।

ਕਥਾ ਕੀਰਤਨੁ ਹਰਿ ਅਤਿ ਘਨਾ ਸੁਖ ਸਹਜ ਬਿਸ੍ਰਾਮੁ ॥੩॥
कथा कीरतनु हरि अति घना सुख सहज बिस्रामु ॥३॥
वहाँ हरि की कथा एवं कीर्तन अत्याधिक होता रहता है और वह स्थान सुख एवं शान्ति का ठिकाना बन गया है॥ ३॥

ਮਨ ਤੇ ਕਦੇ ਨ ਵੀਸਰੈ ਅਨਾਥ ਕੋ ਨਾਥ ॥
मन ते कदे न वीसरै अनाथ को नाथ ॥
अनाथों का नाथ परमेश्वर कभी भी मन से विस्मृत नहीं होता।

ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਸਰਣਾਗਤੀ ਜਾ ਕੈ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਹਾਥ ॥੪॥੨੯॥੫੯॥
नानक प्रभ सरणागती जा कै सभु किछु हाथ ॥४॥२९॥५९॥
नानक तो उस प्रभु की शरण में है, जिसके हाथ में सबकुछ है॥ ४॥ २६ ॥ ५६॥

ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥

ਜਿਨਿ ਤੂ ਬੰਧਿ ਕਰਿ ਛੋਡਿਆ ਫੁਨਿ ਸੁਖ ਮਹਿ ਪਾਇਆ ॥
जिनि तू बंधि करि छोडिआ फुनि सुख महि पाइआ ॥
हे जीव ! जिसने तुझे गर्भ के बन्धन से मुक्त करके पुनः जीवन के सुखों में डाल दिया है,

ਸਦਾ ਸਿਮਰਿ ਚਰਣਾਰਬਿੰਦ ਸੀਤਲ ਹੋਤਾਇਆ ॥੧॥
सदा सिमरि चरणारबिंद सीतल होताइआ ॥१॥
सदैव उसके चरणों का सिमरन कर, इस तरह तू सुखी एवं शीतल हो जाएगा ॥ १॥

ਜੀਵਤਿਆ ਅਥਵਾ ਮੁਇਆ ਕਿਛੁ ਕਾਮਿ ਨ ਆਵੈ ॥
जीवतिआ अथवा मुइआ किछु कामि न आवै ॥
जिंदा रहते अथवा मरणोपरांत कुछ भी काम नहीं आता।

ਜਿਨਿ ਏਹੁ ਰਚਨੁ ਰਚਾਇਆ ਕੋਊ ਤਿਸ ਸਿਉ ਰੰਗੁ ਲਾਵੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जिनि एहु रचनु रचाइआ कोऊ तिस सिउ रंगु लावै ॥१॥ रहाउ ॥
जिसने यह रचना रची है, उसकी स्तुति में लीन रहना ही उचित है॥ १॥ रहाउ॥

ਰੇ ਪ੍ਰਾਣੀ ਉਸਨ ਸੀਤ ਕਰਤਾ ਕਰੈ ਘਾਮ ਤੇ ਕਾਢੈ ॥
रे प्राणी उसन सीत करता करै घाम ते काढै ॥
हे प्राणी ! कर्ता परमेश्वर ही ग्रीष्म एवं शीत बनाता है और स्वयं ही दुखों से निजात दिलवाता है।

ਕੀਰੀ ਤੇ ਹਸਤੀ ਕਰੈ ਟੂਟਾ ਲੇ ਗਾਢੈ ॥੨॥
कीरी ते हसती करै टूटा ले गाढै ॥२॥
वह मामूली चींटी से बलवान हाथी बना देता है और टूटे हुए को भी जोड़ देता है॥ २॥

ਅੰਡਜ ਜੇਰਜ ਸੇਤਜ ਉਤਭੁਜਾ ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਇਹ ਕਿਰਤਿ ॥
अंडज जेरज सेतज उतभुजा प्रभ की इह किरति ॥
अण्डज, जेरज, स्वेदज तथा उद्भिज-यह चारों स्रोत परमात्मा की रचना है।

ਕਿਰਤ ਕਮਾਵਨ ਸਰਬ ਫਲ ਰਵੀਐ ਹਰਿ ਨਿਰਤਿ ॥੩॥
किरत कमावन सरब फल रवीऐ हरि निरति ॥३॥
हरि-नाम स्मरण का शुभ कर्म करने से सब फल प्राप्त हो जाते हैं।३॥

ਹਮ ਤੇ ਕਛੂ ਨ ਹੋਵਨਾ ਸਰਣਿ ਪ੍ਰਭ ਸਾਧ ॥
हम ते कछू न होवना सरणि प्रभ साध ॥
हे प्रभु ! हम से कुछ भी नहीं हो सकता, अतः साधु की शरण ली है।

ਮੋਹ ਮਗਨ ਕੂਪ ਅੰਧ ਤੇ ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਕਾਢ ॥੪॥੩੦॥੬੦॥
मोह मगन कूप अंध ते नानक गुर काढ ॥४॥३०॥६०॥
हे नानक ! मैं माया के मोह में मग्न रहता था लेकिन गुरु ने मुझे इस संसार रूपी अंधे कुएँ से बाहर निकाल दिया है॥ ४॥ ३०॥ ६०॥

ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥

ਖੋਜਤ ਖੋਜਤ ਮੈ ਫਿਰਾ ਖੋਜਉ ਬਨ ਥਾਨ ॥
खोजत खोजत मै फिरा खोजउ बन थान ॥
अनेक जंगलों एवं स्थानों पर खोज-खोजकर प्रभु को खोजता रहता हूँ।

ਅਛਲ ਅਛੇਦ ਅਭੇਦ ਪ੍ਰਭ ਐਸੇ ਭਗਵਾਨ ॥੧॥
अछल अछेद अभेद प्रभ ऐसे भगवान ॥१॥
हमारा भगवान ऐसा है जो छलरहित, अनश्वर एवं रहस्यमय है॥ १॥

ਕਬ ਦੇਖਉ ਪ੍ਰਭੁ ਆਪਨਾ ਆਤਮ ਕੈ ਰੰਗਿ ॥
कब देखउ प्रभु आपना आतम कै रंगि ॥
पता नहीं मैं अपनी आत्मा के रंग में प्रभु को कब देखूँगा ?

ਜਾਗਨ ਤੇ ਸੁਪਨਾ ਭਲਾ ਬਸੀਐ ਪ੍ਰਭ ਸੰਗਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जागन ते सुपना भला बसीऐ प्रभ संगि ॥१॥ रहाउ ॥
जागते रहने से तो सपना ही भला है, जिसमें प्रभु के साथ बस रहा था॥ १॥ रहाउ॥

ਬਰਨ ਆਸ੍ਰਮ ਸਾਸਤ੍ਰ ਸੁਨਉ ਦਰਸਨ ਕੀ ਪਿਆਸ ॥
बरन आस्रम सासत्र सुनउ दरसन की पिआस ॥
भगवान के दर्शनों की प्यास में, मैं चारों वर्ण, चारों आश्रम एवं शास्त्रों के उपदेश सुनता रहता हूँ।

ਰੂਪੁ ਨ ਰੇਖ ਨ ਪੰਚ ਤਤ ਠਾਕੁਰ ਅਬਿਨਾਸ ॥੨॥
रूपु न रेख न पंच तत ठाकुर अबिनास ॥२॥
हमारा ठाकुर अविनाशी है, उसका न कोई रूप है, न कोई आकार है और न ही वह पाँच तत्वों से बना है॥ २॥

ਓਹੁ ਸਰੂਪੁ ਸੰਤਨ ਕਹਹਿ ਵਿਰਲੇ ਜੋਗੀਸੁਰ ॥
ओहु सरूपु संतन कहहि विरले जोगीसुर ॥
विरले योगीश्वर एवं संतजन उसके स्वरूप का वर्णन करते हैं।

ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਜਾ ਕਉ ਮਿਲੇ ਧਨਿ ਧਨਿ ਤੇ ਈਸੁਰ ॥੩॥
करि किरपा जा कउ मिले धनि धनि ते ईसुर ॥३॥
अपनी कृपा करके ईश्वर जिन्हें मिल जाता है, वे धन्य हैं।॥ ३॥

ਸੋ ਅੰਤਰਿ ਸੋ ਬਾਹਰੇ ਬਿਨਸੇ ਤਹ ਭਰਮਾ ॥
सो अंतरि सो बाहरे बिनसे तह भरमा ॥
वे प्रभु को अन्दर एवं बाहर सब जगह देखते हैं और उनका भ्रम नाश हो गया है।

ਨਾਨਕ ਤਿਸੁ ਪ੍ਰਭੁ ਭੇਟਿਆ ਜਾ ਕੇ ਪੂਰਨ ਕਰਮਾ ॥੪॥੩੧॥੬੧॥
नानक तिसु प्रभु भेटिआ जा के पूरन करमा ॥४॥३१॥६१॥
हे नानक ! प्रभु उसे ही मिलता है, जिसका भाग्य पूर्ण है॥ ४॥ ३१॥ ६१॥

ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥

ਜੀਅ ਜੰਤ ਸੁਪ੍ਰਸੰਨ ਭਏ ਦੇਖਿ ਪ੍ਰਭ ਪਰਤਾਪ ॥
जीअ जंत सुप्रसंन भए देखि प्रभ परताप ॥
प्रभु का प्रताप देखकर सारे जीव सुप्रसन्न हो गए हैं।

ਕਰਜੁ ਉਤਾਰਿਆ ਸਤਿਗੁਰੂ ਕਰਿ ਆਹਰੁ ਆਪ ॥੧॥
करजु उतारिआ सतिगुरू करि आहरु आप ॥१॥
सतगुरु ने स्वयं प्रयास करके मेरा कर्ज उतार दिया है॥ १॥

ਖਾਤ ਖਰਚਤ ਨਿਬਹਤ ਰਹੈ ਗੁਰ ਸਬਦੁ ਅਖੂਟ ॥
खात खरचत निबहत रहै गुर सबदु अखूट ॥
गुरु का शब्द अक्षय है, इसे खाने-खर्च करने अर्थात् उपयोग करने से यह समाप्त नहीं होता।

ਪੂਰਨ ਭਈ ਸਮਗਰੀ ਕਬਹੂ ਨਹੀ ਤੂਟ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
पूरन भई समगरी कबहू नही तूट ॥१॥ रहाउ ॥
हमारी नाम रूपी सामग्री पूरी इकट्ठी हो गई है और कभी भी इसमें कमी नहीं आती॥ १॥ रहाउ॥

ਸਾਧਸੰਗਿ ਆਰਾਧਨਾ ਹਰਿ ਨਿਧਿ ਆਪਾਰ ॥
साधसंगि आराधना हरि निधि आपार ॥
साधुओं की संगति में हरि की आराधना करने से अपार निधियाँ मिल जाती हैं।

ਧਰਮ ਅਰਥ ਅਰੁ ਕਾਮ ਮੋਖ ਦੇਤੇ ਨਹੀ ਬਾਰ ॥੨॥
धरम अरथ अरु काम मोख देते नही बार ॥२॥
धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष देने में प्रभु कोई देरी नहीं करता॥ २॥

ਭਗਤ ਅਰਾਧਹਿ ਏਕ ਰੰਗਿ ਗੋਬਿੰਦ ਗੁਪਾਲ ॥
भगत अराधहि एक रंगि गोबिंद गुपाल ॥
भक्त सदैव एकाग्रचित होकर गोविंद की आराधना में ही मग्न रहते हैं।

ਰਾਮ ਨਾਮ ਧਨੁ ਸੰਚਿਆ ਜਾ ਕਾ ਨਹੀ ਸੁਮਾਰੁ ॥੩॥
राम नाम धनु संचिआ जा का नही सुमारु ॥३॥
उन्होंने राम नाम रूपी धन संचित कर लिया है, जो बेशुमार है॥ ३॥

ਸਰਨਿ ਪਰੇ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰੀਆ ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ॥
सरनि परे प्रभ तेरीआ प्रभ की वडिआई ॥
हे प्रभु ! भक्त तेरी शरण में ही पड़े रहते हैं और यह तेरी ही बड़ाई है।

ਨਾਨਕ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਈਐ ਬੇਅੰਤ ਗੁਸਾਈ ॥੪॥੩੨॥੬੨॥
नानक अंतु न पाईऐ बेअंत गुसाई ॥४॥३२॥६२॥
हे नानक ! उस अनन्त मालिक का अन्त नहीं पाया जा सकता ॥ ४ ॥ ३२ ॥ ६२ ॥

ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥

ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਪੂਰਨ ਪ੍ਰਭੂ ਕਾਰਜ ਭਏ ਰਾਸਿ ॥
सिमरि सिमरि पूरन प्रभू कारज भए रासि ॥
पूर्ण प्रभु का सिमरन करने से सभी कार्य सम्पन्न हो गए हैं।

ਕਰਤਾਰ ਪੁਰਿ ਕਰਤਾ ਵਸੈ ਸੰਤਨ ਕੈ ਪਾਸਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
करतार पुरि करता वसै संतन कै पासि ॥१॥ रहाउ ॥
कर्ता परमेश्वर संतों के पास करतारपुर (अर्थात् सत्संग में) निवास करता है॥ १॥

ਬਿਘਨੁ ਨ ਕੋਊ ਲਾਗਤਾ ਗੁਰ ਪਹਿ ਅਰਦਾਸਿ ॥
बिघनु न कोऊ लागता गुर पहि अरदासि ॥
गुरु के पास प्रार्थना करने से कोई विघ्न नहीं आता।

ਰਖਵਾਲਾ ਗੋਬਿੰਦ ਰਾਇ ਭਗਤਨ ਕੀ ਰਾਸਿ ॥੧॥
रखवाला गोबिंद राइ भगतन की रासि ॥१॥
गोविंद अपने भक्तों का रखवाला है और उसका नाम ही उनकी जीवन पूंजी है॥ १॥

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