ਤੈ ਸਾਚਾ ਮਾਨਿਆ ਕਿਹ ਬਿਚਾਰਿ ॥੧॥
तै साचा मानिआ किह बिचारि ॥१॥
तू क्या सोचकर इसे सच मान बैठा है॥१॥
ਧਨੁ ਦਾਰਾ ਸੰਪਤਿ ਗ੍ਰੇਹ ॥
धनु दारा स्मपति ग्रेह ॥
यह भलीभांति समझ ले कि धन-दौलत, प्यारी पत्नी, संपति तथा सुन्दर घर
ਕਛੁ ਸੰਗਿ ਨ ਚਾਲੈ ਸਮਝ ਲੇਹ ॥੨॥
कछु संगि न चालै समझ लेह ॥२॥
में से कुछ भी साथ नहीं जाता॥२॥
ਇਕ ਭਗਤਿ ਨਾਰਾਇਨ ਹੋਇ ਸੰਗਿ ॥
इक भगति नाराइन होइ संगि ॥
एकमात्र ईश्वर की भक्ति ही साथ निभाती है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਭਜੁ ਤਿਹ ਏਕ ਰੰਗਿ ॥੩॥੪॥
कहु नानक भजु तिह एक रंगि ॥३॥४॥
अत: नानक का कथन है कि निमग्न होकर उसका भजन करते रहो॥ ३॥ ४॥
ਬਸੰਤੁ ਮਹਲਾ ੯ ॥
बसंतु महला ९ ॥
बसंतु महला ९॥
ਕਹਾ ਭੂਲਿਓ ਰੇ ਝੂਠੇ ਲੋਭ ਲਾਗ ॥
कहा भूलिओ रे झूठे लोभ लाग ॥
हे मनुष्य ! संसार के झूठे लोभ में फँसकर क्यों भूल रहे हो,
ਕਛੁ ਬਿਗਰਿਓ ਨਾਹਿਨ ਅਜਹੁ ਜਾਗ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
कछु बिगरिओ नाहिन अजहु जाग ॥१॥ रहाउ ॥
अब भी कुछ बिगड़ा नहीं, सावधान हो जा॥ १॥ रहाउ॥
ਸਮ ਸੁਪਨੈ ਕੈ ਇਹੁ ਜਗੁ ਜਾਨੁ ॥
सम सुपनै कै इहु जगु जानु ॥
इस संसार को सपने के समान जान और
ਬਿਨਸੈ ਛਿਨ ਮੈ ਸਾਚੀ ਮਾਨੁ ॥੧॥
बिनसै छिन मै साची मानु ॥१॥
इस सच्चाई को भी मान ले कि यह पल में ही समाप्त हो जाता है।॥१॥
ਸੰਗਿ ਤੇਰੈ ਹਰਿ ਬਸਤ ਨੀਤ ॥
संगि तेरै हरि बसत नीत ॥
ईश्वर सदैव तेरे साथ रहता है,
ਨਿਸ ਬਾਸੁਰ ਭਜੁ ਤਾਹਿ ਮੀਤ ॥੨॥
निस बासुर भजु ताहि मीत ॥२॥
हे मित्र ! दिन-रात उसके भजन में निमग्न रहो॥२॥
ਬਾਰ ਅੰਤ ਕੀ ਹੋਇ ਸਹਾਇ ॥
बार अंत की होइ सहाइ ॥
नानक का कथन है कि अन्तिम समय ईश्वर ही सहायता करता है,
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਗੁਨ ਤਾ ਕੇ ਗਾਇ ॥੩॥੫॥
कहु नानक गुन ता के गाइ ॥३॥५॥
अतः उसके गुण गाते रहो॥३॥५॥
ਬਸੰਤੁ ਮਹਲਾ ੧ ਅਸਟਪਦੀਆ ਘਰੁ ੧ ਦੁਤੁਕੀਆ
बसंतु महला १ असटपदीआ घरु १ दुतुकीआ
बसंतु महला १ असटपदीआ घरु १ दुतुकीआ
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि॥
ਜਗੁ ਕਊਆ ਨਾਮੁ ਨਹੀ ਚੀਤਿ ॥
जगु कऊआ नामु नही चीति ॥
यह संसार कौआ है, परमात्मा को याद नहीं करता।
ਨਾਮੁ ਬਿਸਾਰਿ ਗਿਰੈ ਦੇਖੁ ਭੀਤਿ ॥
नामु बिसारि गिरै देखु भीति ॥
यह प्रभु का नाम भुलाकर बुराई की रोटियाँ चुगता है।
ਮਨੂਆ ਡੋਲੈ ਚੀਤਿ ਅਨੀਤਿ ॥
मनूआ डोलै चीति अनीति ॥
दिल में दुष्टता व बुरा आचरण भरा रहने की वजह से इसका मन डोलता रहता है,
ਜਗ ਸਿਉ ਤੂਟੀ ਝੂਠ ਪਰੀਤਿ ॥੧॥
जग सिउ तूटी झूठ परीति ॥१॥
ऐसा देखकर जगत से हमारी झूठी प्रीति टूट गई है॥१॥
ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਬਿਖੁ ਬਜਰੁ ਭਾਰੁ ॥
कामु क्रोधु बिखु बजरु भारु ॥
काम, क्रोध का विष भारी बोझ है,
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਕੈਸੇ ਗੁਨ ਚਾਰੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
नाम बिना कैसे गुन चारु ॥१॥ रहाउ ॥
फिर भला प्रभु नाम का भजन किए बिना कैसे सदव्यवहार बन सकता है।॥१॥रहाउ॥
ਘਰੁ ਬਾਲੂ ਕਾ ਘੂਮਨ ਘੇਰਿ ॥
घरु बालू का घूमन घेरि ॥
यह तन रेत का घर है,
ਬਰਖਸਿ ਬਾਣੀ ਬੁਦਬੁਦਾ ਹੇਰਿ ॥
बरखसि बाणी बुदबुदा हेरि ॥
जो संसारिक भंवर में फंसा हुआ है और जिंदगी बारिश में बुलबुले की मानिंद है।
ਮਾਤ੍ਰ ਬੂੰਦ ਤੇ ਧਰਿ ਚਕੁ ਫੇਰਿ ॥
मात्र बूंद ते धरि चकु फेरि ॥
रचनहार ने प्रकृति का चक्र घुमाकर बूंद मात्र से तन की रचना की है,
ਸਰਬ ਜੋਤਿ ਨਾਮੈ ਕੀ ਚੇਰਿ ॥੨॥
सरब जोति नामै की चेरि ॥२॥
सबमें उसकी ज्योति विद्यमान है और आत्मा उसके नाम की सेविका है॥२॥
ਸਰਬ ਉਪਾਇ ਗੁਰੂ ਸਿਰਿ ਮੋਰੁ ॥
सरब उपाइ गुरू सिरि मोरु ॥
पूरे संसार को उत्पन्न करने वाला परमेश्वर ही मेरा गुरु है।
ਭਗਤਿ ਕਰਉ ਪਗ ਲਾਗਉ ਤੋਰ ॥
भगति करउ पग लागउ तोर ॥
मेरी यही तमन्ना है कि तेरे चरणों में लीन रहकर तेरी भक्ति में रत रहूँ।
ਨਾਮਿ ਰਤੋ ਚਾਹਉ ਤੁਝ ਓਰੁ ॥
नामि रतो चाहउ तुझ ओरु ॥
तेरे नाम-स्मरण में लीन रहूँ और तुझे ही चाहता रहूँ।
ਨਾਮੁ ਦੁਰਾਇ ਚਲੈ ਸੋ ਚੋਰੁ ॥੩॥
नामु दुराइ चलै सो चोरु ॥३॥
जो व्यक्ति परमात्मा के नाम भजन से दूर रहकर चलता है, वह चोर समान है॥३॥
ਪਤਿ ਖੋਈ ਬਿਖੁ ਅੰਚਲਿ ਪਾਇ ॥
पति खोई बिखु अंचलि पाइ ॥
वह विषय-विकारों में लीन रहकर अपनी प्रतिष्ठा खो देता है।
ਸਾਚ ਨਾਮਿ ਰਤੋ ਪਤਿ ਸਿਉ ਘਰਿ ਜਾਇ ॥
साच नामि रतो पति सिउ घरि जाइ ॥
पर जो परमात्मा के सच्चे नाम में लीन रहता है, वह सम्मानपूर्वक अपने सच्चे घर जाता है।
ਜੋ ਕਿਛੁ ਕੀਨੑਸਿ ਪ੍ਰਭੁ ਰਜਾਇ ॥
जो किछु कीन्हसि प्रभु रजाइ ॥
जो कुछ परमात्मा करता है, अपनी मर्जी से करता है।
ਭੈ ਮਾਨੈ ਨਿਰਭਉ ਮੇਰੀ ਮਾਇ ॥੪॥
भै मानै निरभउ मेरी माइ ॥४॥
हे मेरी माता ! जो उसका भय मानता है, वही निर्भय है॥४॥
ਕਾਮਨਿ ਚਾਹੈ ਸੁੰਦਰਿ ਭੋਗੁ ॥
कामनि चाहै सुंदरि भोगु ॥
जीव रूपी कामिनी सुन्दर पदार्थों का भोग चाहती है,
ਪਾਨ ਫੂਲ ਮੀਠੇ ਰਸ ਰੋਗ ॥
पान फूल मीठे रस रोग ॥
परन्तु पान-फूल मीठे रस सब रोग ही पैदा करते हैं।
ਖੀਲੈ ਬਿਗਸੈ ਤੇਤੋ ਸੋਗ ॥
खीलै बिगसै तेतो सोग ॥
जितना वह संसार के पदार्थों में रत रहकर खुश होती है, उतना ही दुखी होती है।
ਪ੍ਰਭ ਸਰਣਾਗਤਿ ਕੀਨੑਸਿ ਹੋਗ ॥੫॥
प्रभ सरणागति कीन्हसि होग ॥५॥
प्रभु की शरण में रहना चाहिए, वह जो करता है, वही होता है॥५॥
ਕਾਪੜੁ ਪਹਿਰਸਿ ਅਧਿਕੁ ਸੀਗਾਰੁ ॥
कापड़ु पहिरसि अधिकु सीगारु ॥
जीव रूपी कामिनी सुन्दर वस्त्र धारण करती है और बहुत सारे श्रृंगार करती है।
ਮਾਟੀ ਫੂਲੀ ਰੂਪੁ ਬਿਕਾਰੁ ॥
माटी फूली रूपु बिकारु ॥
अपना सुन्दर शरीर देखकर वह बहुत प्रसन्न होती है और उसका रूप विकारों की ओर प्रोत्साहित करता है।
ਆਸਾ ਮਨਸਾ ਬਾਂਧੋ ਬਾਰੁ ॥
आसा मनसा बांधो बारु ॥
वह जीवन की लालसाओं एवं कामनाओं के कारण अपने घर को ज्ञान के बिना बंद कर लेती है,
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਸੂਨਾ ਘਰੁ ਬਾਰੁ ॥੬॥
नाम बिना सूना घरु बारु ॥६॥
परन्तु प्रभु नाम के बिना उसका घर बार बिल्कुल सूना है॥६॥
ਗਾਛਹੁ ਪੁਤ੍ਰੀ ਰਾਜ ਕੁਆਰਿ ॥
गाछहु पुत्री राज कुआरि ॥
हे राजकुमारी, राजपुत्रियो ! उठो,
ਨਾਮੁ ਭਣਹੁ ਸਚੁ ਦੋਤੁ ਸਵਾਰਿ ॥
नामु भणहु सचु दोतु सवारि ॥
जाओ ब्रह्ममुहूर्त के वक्त परमात्मा के नाम की स्तुति करो।
ਪ੍ਰਿਉ ਸੇਵਹੁ ਪ੍ਰਭ ਪ੍ਰੇਮ ਅਧਾਰਿ ॥
प्रिउ सेवहु प्रभ प्रेम अधारि ॥
प्रभु के प्रेम को आसरा बनाकर उस प्रियतम की उंपासना करो।
ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਬਿਖੁ ਤਿਆਸ ਨਿਵਾਰਿ ॥੭॥
गुर सबदी बिखु तिआस निवारि ॥७॥
गुरु के उपदेश द्वारा विकारों की प्यास का निवारण करो॥७॥
ਮੋਹਨਿ ਮੋਹਿ ਲੀਆ ਮਨੁ ਮੋਹਿ ॥
मोहनि मोहि लीआ मनु मोहि ॥
हे प्यारे प्रभु ! तूने यह मन मोह लिया है और
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਪਛਾਨਾ ਤੋਹਿ ॥
गुर कै सबदि पछाना तोहि ॥
गुरु के उपदेश द्वारा उसे पहचान लिया है।
ਨਾਨਕ ਠਾਢੇ ਚਾਹਹਿ ਪ੍ਰਭੂ ਦੁਆਰਿ ॥
नानक ठाढे चाहहि प्रभू दुआरि ॥
गुरु नानक विनती करते हैं कैि हे प्रभु ! हम तेरे द्वार पर खड़े हैं, चाहते हैं कि
ਤੇਰੇ ਨਾਮਿ ਸੰਤੋਖੇ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰਿ ॥੮॥੧॥
तेरे नामि संतोखे किरपा धारि ॥८॥१॥
कृपा करो ताकि तेरे नाम से संतोष प्राप्त हो सके॥८॥१॥
ਬਸੰਤੁ ਮਹਲਾ ੧ ॥
बसंतु महला १ ॥
बसंतु महला १॥
ਮਨੁ ਭੂਲਉ ਭਰਮਸਿ ਆਇ ਜਾਇ ॥
मनु भूलउ भरमसि आइ जाइ ॥
भूला हुआ मन भटकता एवं आता जाता रहता है,
ਅਤਿ ਲੁਬਧ ਲੁਭਾਨਉ ਬਿਖਮ ਮਾਇ ॥
अति लुबध लुभानउ बिखम माइ ॥
वह इतना लोभी बन जाता है कि विषय-विकारों के लोभ में ही व्याप्त रहता है।
ਨਹ ਅਸਥਿਰੁ ਦੀਸੈ ਏਕ ਭਾਇ ॥
नह असथिरु दीसै एक भाइ ॥
न ही ईश्वर की भक्ति में स्थिर दिखाई देता है।
ਜਿਉ ਮੀਨ ਕੁੰਡਲੀਆ ਕੰਠਿ ਪਾਇ ॥੧॥
जिउ मीन कुंडलीआ कंठि पाइ ॥१॥
इसकी दशा तो इस प्रकार है ज्यों मछली गले में कॉटा फंसा लेती है॥१॥
ਮਨੁ ਭੂਲਉ ਸਮਝਸਿ ਸਾਚ ਨਾਇ ॥
मनु भूलउ समझसि साच नाइ ॥
भूला हुआ मन सच्चे नाम के सुमिरन से ही सही रास्ते को समझता है और
ਗੁਰ ਸਬਦੁ ਬੀਚਾਰੇ ਸਹਜ ਭਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुर सबदु बीचारे सहज भाइ ॥१॥ रहाउ ॥
सहज-स्वभाव गुरु शब्द का चिंतन करता है॥१॥रहाउ॥।