ਆਖਣਿ ਅਉਖਾ ਨਾਨਕਾ ਆਖਿ ਨ ਜਾਪੈ ਆਖਿ ॥੨॥
आखणि अउखा नानका आखि न जापै आखि ॥२॥
गुरु नानक कथन करते हैं कि ईश्वर की महिमा का बखान बहुत मुश्किल है, उसके रहस्य की मात्र बखान से अनुभूति नहीं हो सकती ॥२॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥
ਨਾਇ ਸੁਣਿਐ ਮਨੁ ਰਹਸੀਐ ਨਾਮੇ ਸਾਂਤਿ ਆਈ ॥
नाइ सुणिऐ मनु रहसीऐ नामे सांति आई ॥
हरि-नाम का संकीर्तन सुनने से मन प्रसन्न हो जाता है, इससे मन को शान्ति प्राप्त होती है।
ਨਾਇ ਸੁਣਿਐ ਮਨੁ ਤ੍ਰਿਪਤੀਐ ਸਭ ਦੁਖ ਗਵਾਈ ॥
नाइ सुणिऐ मनु त्रिपतीऐ सभ दुख गवाई ॥
हरि-नाम की कीर्ति सुनने से मन तृप्त हो जाता है और सब दुख दूर होते हैं।
ਨਾਇ ਸੁਣਿਐ ਨਾਉ ਊਪਜੈ ਨਾਮੇ ਵਡਿਆਈ ॥
नाइ सुणिऐ नाउ ऊपजै नामे वडिआई ॥
हरि-नाम की महिमा सुनने से जगत में ख्याति होती है, समूची सृष्टि में हरिनाम का गौरवगान है।
ਨਾਮੇ ਹੀ ਸਭ ਜਾਤਿ ਪਤਿ ਨਾਮੇ ਗਤਿ ਪਾਈ ॥
नामे ही सभ जाति पति नामे गति पाई ॥
हरि-नाम ही जाति-प्रतिष्ठा है और इसी से मुक्ति होती है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈਐ ਨਾਨਕ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥੬॥
गुरमुखि नामु धिआईऐ नानक लिव लाई ॥६॥
गुरु नानक का मत है कि गुरुमुख बनकर हरि-नाम का ध्यान करो, नाम में ही लगन लगाओ ॥६॥
ਸਲੋਕ ਮਹਲਾ ੧ ॥
सलोक महला १ ॥
श्लोक महला १॥
ਜੂਠਿ ਨ ਰਾਗੀਂ ਜੂਠਿ ਨ ਵੇਦੀਂ ॥
जूठि न रागीं जूठि न वेदीं ॥
गीत-संगीत में कोई जूठन नहीं और न ही वेदों के सस्वर पाठ-पठन में कोई जूठन है।
ਜੂਠਿ ਨ ਚੰਦ ਸੂਰਜ ਕੀ ਭੇਦੀ ॥
जूठि न चंद सूरज की भेदी ॥
सूर्य एवं चाँद की वजह से होने वाले मौसम परिवर्तन (अमावस्या, पूर्णिमा इत्यादि माह-त्यौहार) में कोई जूठन नहीं।
ਜੂਠਿ ਨ ਅੰਨੀ ਜੂਠਿ ਨ ਨਾਈ ॥
जूठि न अंनी जूठि न नाई ॥
अनाज एवं तीर्थ स्नान में भी कोई अपवित्रता नहीं।
ਜੂਠਿ ਨ ਮੀਹੁ ਵਰ੍ਹਿਐ ਸਭ ਥਾਈ ॥
जूठि न मीहु वर्हिऐ सभ थाई ॥
सब स्थानों में बारिश होती है, इसमें भी कोई जूठन नहीं।
ਜੂਠਿ ਨ ਧਰਤੀ ਜੂਠਿ ਨ ਪਾਣੀ ॥
जूठि न धरती जूठि न पाणी ॥
धरती एवं पानी में भी जूठन नहीं।
ਜੂਠਿ ਨ ਪਉਣੈ ਮਾਹਿ ਸਮਾਣੀ ॥
जूठि न पउणै माहि समाणी ॥
हर तरफ फैली हुई वायु में भी अपवित्रता नहीं।
ਨਾਨਕ ਨਿਗੁਰਿਆ ਗੁਣੁ ਨਾਹੀ ਕੋਇ ॥
नानक निगुरिआ गुणु नाही कोइ ॥
गुरु नानक का कथन है कि निगुरे जीव के पास कोई गुण नहीं होता,
ਮੁਹਿ ਫੇਰਿਐ ਮੁਹੁ ਜੂਠਾ ਹੋਇ ॥੧॥
मुहि फेरिऐ मुहु जूठा होइ ॥१॥
गुरु से विमुख होने के कारण मुँह जूठा ही होता है।॥१॥
ਮਹਲਾ ੧ ॥
महला १ ॥
महला १ ॥
ਨਾਨਕ ਚੁਲੀਆ ਸੁਚੀਆ ਜੇ ਭਰਿ ਜਾਣੈ ਕੋਇ ॥
नानक चुलीआ सुचीआ जे भरि जाणै कोइ ॥
गुरु नानक उपदेश देते हैं कि यदि कोई अंजुलि भरना जानता हो तो ही शुद्ध एवं उपयोगी है (अर्थात् अपने कर्तव्य एवं संकल्प को पूरा निभाना जानता हो)
ਸੁਰਤੇ ਚੁਲੀ ਗਿਆਨ ਕੀ ਜੋਗੀ ਕਾ ਜਤੁ ਹੋਇ ॥
सुरते चुली गिआन की जोगी का जतु होइ ॥
विद्वान की अंजुलि (संकल्प) ज्ञान देना है और योगी की अंजुलि (कर्तव्य) ब्रह्मचार्य है।
ਬ੍ਰਹਮਣ ਚੁਲੀ ਸੰਤੋਖ ਕੀ ਗਿਰਹੀ ਕਾ ਸਤੁ ਦਾਨੁ ॥
ब्रहमण चुली संतोख की गिरही का सतु दानु ॥
ब्राह्मण का कर्त्तव्य संतोष है और गृहस्थी का (कर्त्तव्य) सत्याचरण एवं दान-पुण्य है।
ਰਾਜੇ ਚੁਲੀ ਨਿਆਵ ਕੀ ਪੜਿਆ ਸਚੁ ਧਿਆਨੁ ॥
राजे चुली निआव की पड़िआ सचु धिआनु ॥
राजा की अंजुलि (कर्त्तव्य) सच्चा न्याय करना है और शिक्षित का सत्य एवं ध्यान लगाना है।
ਪਾਣੀ ਚਿਤੁ ਨ ਧੋਪਈ ਮੁਖਿ ਪੀਤੈ ਤਿਖ ਜਾਇ ॥
पाणी चितु न धोपई मुखि पीतै तिख जाइ ॥
पानी से मन साफ नहीं होता, पानी पीने से प्यास ही बुझती है।
ਪਾਣੀ ਪਿਤਾ ਜਗਤ ਕਾ ਫਿਰਿ ਪਾਣੀ ਸਭੁ ਖਾਇ ॥੨॥
पाणी पिता जगत का फिरि पाणी सभु खाइ ॥२॥
पानी को जगत का पिता माना जाता है और पानी ही मौत का कारण भी बन जाता है। ॥२॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥
ਨਾਇ ਸੁਣਿਐ ਸਭ ਸਿਧਿ ਹੈ ਰਿਧਿ ਪਿਛੈ ਆਵੈ ॥
नाइ सुणिऐ सभ सिधि है रिधि पिछै आवै ॥
परमात्मा का नाम सुनने से सब ऋद्धियाँ-सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं।
ਨਾਇ ਸੁਣਿਐ ਨਉ ਨਿਧਿ ਮਿਲੈ ਮਨ ਚਿੰਦਿਆ ਪਾਵੈ ॥
नाइ सुणिऐ नउ निधि मिलै मन चिंदिआ पावै ॥
हरि-नाम सुनने से नवनिधियाँ प्राप्त होती हैं और मन की समस्त कामनाएँ पूरी होती हैं।
ਨਾਇ ਸੁਣਿਐ ਸੰਤੋਖੁ ਹੋਇ ਕਵਲਾ ਚਰਨ ਧਿਆਵੈ ॥
नाइ सुणिऐ संतोखु होइ कवला चरन धिआवै ॥
प्रभु-नाम श्रवण से संतोष होता है और धन-दौलत के ढेर लग जाते हैं।
ਨਾਇ ਸੁਣਿਐ ਸਹਜੁ ਊਪਜੈ ਸਹਜੇ ਸੁਖੁ ਪਾਵੈ ॥
नाइ सुणिऐ सहजु ऊपजै सहजे सुखु पावै ॥
हरि-नाम श्रवण से स्वाभाविक शान्ति उत्पन्न होती है और सुखों की प्राप्ति होती है।
ਗੁਰਮਤੀ ਨਾਉ ਪਾਈਐ ਨਾਨਕ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ॥੭॥
गुरमती नाउ पाईऐ नानक गुण गावै ॥७॥
गुरु की शिक्षा से ही हरि-नाम पाया जाता है, नानक तो हरि-नाम के गुण गा रहा है॥ ७ li
ਸਲੋਕ ਮਹਲਾ ੧ ॥
सलोक महला १ ॥
श्लोक महला १॥
ਦੁਖ ਵਿਚਿ ਜੰਮਣੁ ਦੁਖਿ ਮਰਣੁ ਦੁਖਿ ਵਰਤਣੁ ਸੰਸਾਰਿ ॥
दुख विचि जमणु दुखि मरणु दुखि वरतणु संसारि ॥
दुख में जन्म होता है और दुख में ही मृत्यु होती है।
ਦੁਖੁ ਦੁਖੁ ਅਗੈ ਆਖੀਐ ਪੜ੍ਹ੍ਹਿ ਪੜ੍ਹ੍ਹਿ ਕਰਹਿ ਪੁਕਾਰ ॥
दुखु दुखु अगै आखीऐ पड़्हि पड़्हि करहि पुकार ॥
जन्म-मरण दुख ही दुख है, इस तरह संसार का व्यवहार दुखमय है।
ਦੁਖ ਕੀਆ ਪੰਡਾ ਖੁਲ੍ਹ੍ਹੀਆ ਸੁਖੁ ਨ ਨਿਕਲਿਓ ਕੋਇ ॥
दुख कीआ पंडा खुल्हीआ सुखु न निकलिओ कोइ ॥
हर कोई अपने दुख ही दुख बता रहा है, पढ़-पढ़कर फरियाद करता है।
ਦੁਖ ਵਿਚਿ ਜੀਉ ਜਲਾਇਆ ਦੁਖੀਆ ਚਲਿਆ ਰੋਇ ॥
दुख विचि जीउ जलाइआ दुखीआ चलिआ रोइ ॥
सब ओर दुखों की गठरियां खुली हुई हैं और कोई सुख नहीं दिखाई देता।
ਨਾਨਕ ਸਿਫਤੀ ਰਤਿਆ ਮਨੁ ਤਨੁ ਹਰਿਆ ਹੋਇ ॥
नानक सिफती रतिआ मनु तनु हरिआ होइ ॥
जीव दुख में दिल जला रहा है और दुखी की मृत्यु पर रो रहा है।
ਦੁਖ ਕੀਆ ਅਗੀ ਮਾਰੀਅਹਿ ਭੀ ਦੁਖੁ ਦਾਰੂ ਹੋਇ ॥੧॥
दुख कीआ अगी मारीअहि भी दुखु दारू होइ ॥१॥
गुरु नानक फुरमान करते हैं कि परमात्मा की स्तुति में लीन रहने से मन तन खिलता है और दुख की अग्नि में जल रहे मनुष्यों की दवा भी दुख ही है॥१॥
ਮਹਲਾ ੧ ॥
महला १ ॥
महला १॥
ਨਾਨਕ ਦੁਨੀਆ ਭਸੁ ਰੰਗੁ ਭਸੂ ਹੂ ਭਸੁ ਖੇਹ ॥
नानक दुनीआ भसु रंगु भसू हू भसु खेह ॥
गुरु नानक फुरमान करते हैं कि यह दुनिया धूल ही धूल है, इसके खेल-तमाशे, खुशियां धूल मात्र ही हैं।
ਭਸੋ ਭਸੁ ਕਮਾਵਣੀ ਭੀ ਭਸੁ ਭਰੀਐ ਦੇਹ ॥
भसो भसु कमावणी भी भसु भरीऐ देह ॥
दुनियावी कमाई भी धूल समान है, यह शरीर भी अन्त में धूल हो जाता है।
ਜਾ ਜੀਉ ਵਿਚਹੁ ਕਢੀਐ ਭਸੂ ਭਰਿਆ ਜਾਇ ॥
जा जीउ विचहु कढीऐ भसू भरिआ जाइ ॥
अगर शरीर में से प्राण निकाल दिए जाएँ तो धूल मिट्टी ही भूर जाता है।
ਅਗੈ ਲੇਖੈ ਮੰਗਿਐ ਹੋਰ ਦਸੂਣੀ ਪਾਇ ॥੨॥
अगै लेखै मंगिऐ होर दसूणी पाइ ॥२॥
जब कर्मों का हिसाब-किताब मांगा जाता है तो दस गुणा और धूल प्राप्त होती है॥२॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥
ਨਾਇ ਸੁਣਿਐ ਸੁਚਿ ਸੰਜਮੋ ਜਮੁ ਨੇੜਿ ਨ ਆਵੈ ॥
नाइ सुणिऐ सुचि संजमो जमु नेड़ि न आवै ॥
हरि-नाम सुनने से शुद्धता एवं संयम प्राप्त होता है और यम भी पास नहीं फटकते।
ਨਾਇ ਸੁਣਿਐ ਘਟਿ ਚਾਨਣਾ ਆਨੑੇਰੁ ਗਵਾਵੈ ॥
नाइ सुणिऐ घटि चानणा आन्हेरु गवावै ॥
प्रभु का नाम सुनने से हृदय में ज्ञान का आलोक होता है और अज्ञान का अंधेरा दूर हो जाता है।
ਨਾਇ ਸੁਣਿਐ ਆਪੁ ਬੁਝੀਐ ਲਾਹਾ ਨਾਉ ਪਾਵੈ ॥
नाइ सुणिऐ आपु बुझीऐ लाहा नाउ पावै ॥
परमात्मा का नाम श्रवण करने से आत्म-ज्ञान की प्राप्ति होती है और नाम से ही लाभ मिलता है।
ਨਾਇ ਸੁਣਿਐ ਪਾਪ ਕਟੀਅਹਿ ਨਿਰਮਲ ਸਚੁ ਪਾਵੈ ॥
नाइ सुणिऐ पाप कटीअहि निरमल सचु पावै ॥
ईश्वर का नाम सुनने से सब पाप कट जाते हैं और निर्मल जीवन-आचरण प्राप्त होता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਇ ਸੁਣਿਐ ਮੁਖ ਉਜਲੇ ਨਾਉ ਗੁਰਮੁਖਿ ਧਿਆਵੈ ॥੮॥
नानक नाइ सुणिऐ मुख उजले नाउ गुरमुखि धिआवै ॥८॥
गुरु नानक का कथन है कि प्रभु का नाम सुनने से मान-प्रतिष्ठा मिलती है, गुरु-मतानुसार चलने वाला प्रभु-नाम का ध्यान करता है॥८॥
ਸਲੋਕ ਮਹਲਾ ੧ ॥
सलोक महला १ ॥
श्लोक महला १ ॥
ਘਰਿ ਨਾਰਾਇਣੁ ਸਭਾ ਨਾਲਿ ॥
घरि नाराइणु सभा नालि ॥
पुजारी अपने घर अथवा मन्दिर में अन्य देवी-देवताओं सहित नारायण की मूर्ति रख लेता है।
ਪੂਜ ਕਰੇ ਰਖੈ ਨਾਵਾਲਿ ॥
पूज करे रखै नावालि ॥
वह नित्य इनकी पूजा-अर्चना करता है और स्नान भी करवाता है।