ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਹਰਿ ਕੇ ਨਾਮ ਕੀ ਗਤਿ ਠਾਂਢੀ ॥
हरि के नाम की गति ठांढी ॥
हरि-नाम का संकीर्तन सदैव मन को शान्ति प्रदान करने वाला है।
ਬੇਦ ਪੁਰਾਨ ਸਿਮ੍ਰਿਤਿ ਸਾਧੂ ਜਨ ਖੋਜਤ ਖੋਜਤ ਕਾਢੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
बेद पुरान सिम्रिति साधू जन खोजत खोजत काढी ॥१॥ रहाउ ॥
वेदों, पुराणों एवं स्मृतियों इत्यादि का विश्लेषण करके साधु पुरुषों ने यही निष्कर्ष निकाला है॥१॥रहाउ॥।
ਸਿਵ ਬਿਰੰਚ ਅਰੁ ਇੰਦ੍ਰ ਲੋਕ ਤਾ ਮਹਿ ਜਲਤੌ ਫਿਰਿਆ ॥
सिव बिरंच अरु इंद्र लोक ता महि जलतौ फिरिआ ॥
शिव, ब्रह्मा और इंद्रलोक तमोगुण में जलते रहे।
ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਸੁਆਮੀ ਭਏ ਸੀਤਲ ਦੂਖੁ ਦਰਦੁ ਭ੍ਰਮੁ ਹਿਰਿਆ ॥੧॥
सिमरि सिमरि सुआमी भए सीतल दूखु दरदु भ्रमु हिरिआ ॥१॥
पर ईश्वर का स्मरण करके शीतल हो गए और उनका दुख-दर्द एवं भ्रम दूर हो गया ॥१॥
ਜੋ ਜੋ ਤਰਿਓ ਪੁਰਾਤਨੁ ਨਵਤਨੁ ਭਗਤਿ ਭਾਇ ਹਰਿ ਦੇਵਾ ॥
जो जो तरिओ पुरातनु नवतनु भगति भाइ हरि देवा ॥
प्राचीन युग अथवा आधुनिक युग जो-जो संसार-सागर से पार हुआ है, वह परमात्मा की भक्ति से ही हुआ है।
ਨਾਨਕ ਕੀ ਬੇਨੰਤੀ ਪ੍ਰਭ ਜੀਉ ਮਿਲੈ ਸੰਤ ਜਨ ਸੇਵਾ ॥੨॥੫੨॥੭੫॥
नानक की बेनंती प्रभ जीउ मिलै संत जन सेवा ॥२॥५२॥७५॥
नानक की विनती है कि संतजनों की सेवा से ही प्रभु मिलता है ॥२॥५२॥७५॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਜਿਹਵੇ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਗੁਣ ਹਰਿ ਗਾਉ ॥
जिहवे अम्रित गुण हरि गाउ ॥
जिव्हा से अमृतमय हरि के गुण गाओ।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਬੋਲਿ ਕਥਾ ਸੁਨਿ ਹਰਿ ਕੀ ਉਚਰਹੁ ਪ੍ਰਭ ਕੋ ਨਾਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि हरि बोलि कथा सुनि हरि की उचरहु प्रभ को नाउ ॥१॥ रहाउ ॥
हरि ‘हरि’ बोलो, हरि की कथा सुनो, हरिनाम का उच्चारण करो ॥१॥रहाउ॥।
ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਰਤਨ ਧਨੁ ਸੰਚਹੁ ਮਨਿ ਤਨਿ ਲਾਵਹੁ ਭਾਉ ॥
राम नामु रतन धनु संचहु मनि तनि लावहु भाउ ॥
राम नाम अमूल्य रत्न है, यही धन इकठ्ठा करो और मन तन से प्रेम लगाओ।
ਆਨ ਬਿਭੂਤ ਮਿਥਿਆ ਕਰਿ ਮਾਨਹੁ ਸਾਚਾ ਇਹੈ ਸੁਆਉ ॥੧॥
आन बिभूत मिथिआ करि मानहु साचा इहै सुआउ ॥१॥
अन्य सब विभूतियों को झूठा मानो, राम नाम ही सच्चा लाभ है॥१॥
ਜੀਅ ਪ੍ਰਾਨ ਮੁਕਤਿ ਕੋ ਦਾਤਾ ਏਕਸ ਸਿਉ ਲਿਵ ਲਾਉ ॥
जीअ प्रान मुकति को दाता एकस सिउ लिव लाउ ॥
आत्मा व प्राणों को मुक्ति देने वाला केवल परमेश्वर ही है, अतः उसी से लगन लगाओ।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਤਾ ਕੀ ਸਰਣਾਈ ਦੇਤ ਸਗਲ ਅਪਿਆਉ ॥੨॥੫੩॥੭੬॥
कहु नानक ता की सरणाई देत सगल अपिआउ ॥२॥५३॥७६॥
हे नानक ! उसी की शरण में आओ, जो सबको रोजी रोटी देता है॥२॥ ५३ ॥ ७६ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਹੋਤੀ ਨਹੀ ਕਵਨ ਕਛੁ ਕਰਣੀ ॥
होती नही कवन कछु करणी ॥
मुझसे कोई (अच्छा) कार्य नहीं होता।
ਇਹੈ ਓਟ ਪਾਈ ਮਿਲਿ ਸੰਤਹ ਗੋਪਾਲ ਏਕ ਕੀ ਸਰਣੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
इहै ओट पाई मिलि संतह गोपाल एक की सरणी ॥१॥ रहाउ ॥
संत पुरुषों से मिलकर भगवान की शरण में आने का संरक्षण पा लिया है॥१॥रहाउ॥।
ਪੰਚ ਦੋਖ ਛਿਦ੍ਰ ਇਆ ਤਨ ਮਹਿ ਬਿਖੈ ਬਿਆਧਿ ਕੀ ਕਰਣੀ ॥
पंच दोख छिद्र इआ तन महि बिखै बिआधि की करणी ॥
इस तन में कामादिक पाँच दोषों के ऐब हैं और विषय-विकारों के कार्य तन में रोग पैदा करते हैं।
ਆਸ ਅਪਾਰ ਦਿਨਸ ਗਣਿ ਰਾਖੇ ਗ੍ਰਸਤ ਜਾਤ ਬਲੁ ਜਰਣੀ ॥੧॥
आस अपार दिनस गणि राखे ग्रसत जात बलु जरणी ॥१॥
आशाएँ बे-अन्त हैं, जिन्दगी के दिन थोड़े ही हैं और बुढ़ापा शारीरिक बल को खाता जा रहा है॥१॥
ਅਨਾਥਹ ਨਾਥ ਦਇਆਲ ਸੁਖ ਸਾਗਰ ਸਰਬ ਦੋਖ ਭੈ ਹਰਣੀ ॥
अनाथह नाथ दइआल सुख सागर सरब दोख भै हरणी ॥
अनाथों का नाथ, सुखों का सागर, दयालु परमेश्वर सब पाप एवं भय हरण करने वाला है।
ਮਨਿ ਬਾਂਛਤ ਚਿਤਵਤ ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਪੇਖਿ ਜੀਵਾ ਪ੍ਰਭ ਚਰਣੀ ॥੨॥੫੪॥੭੭॥
मनि बांछत चितवत नानक दास पेखि जीवा प्रभ चरणी ॥२॥५४॥७७॥
हे प्रभु ! दास नानक की यही मनोकामना है कि तुम्हारे चरणों को देखकर जीता रहूँ॥२॥ ५४ ॥ ७७ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਫੀਕੇ ਹਰਿ ਕੇ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਸਾਦ ॥
फीके हरि के नाम बिनु साद ॥
हरि के नाम बिना सब स्वाद फीके हैं।
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਰਸੁ ਕੀਰਤਨੁ ਹਰਿ ਗਾਈਐ ਅਹਿਨਿਸਿ ਪੂਰਨ ਨਾਦ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अम्रित रसु कीरतनु हरि गाईऐ अहिनिसि पूरन नाद ॥१॥ रहाउ ॥
हरि-कीर्तन अमृतमय रस है, हरि का कीर्तिगान करने से दिन-रात खुशियाँ बनी रहती हैं।॥१॥रहाउ॥।
ਸਿਮਰਤ ਸਾਂਤਿ ਮਹਾ ਸੁਖੁ ਪਾਈਐ ਮਿਟਿ ਜਾਹਿ ਸਗਲ ਬਿਖਾਦ ॥
सिमरत सांति महा सुखु पाईऐ मिटि जाहि सगल बिखाद ॥
परमात्मा के स्मरण से महासुख व शान्ति प्राप्त होती है और सब दुख-शोक मिट जाते हैं।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਲਾਭੁ ਸਾਧਸੰਗਿ ਪਾਈਐ ਘਰਿ ਲੈ ਆਵਹੁ ਲਾਦਿ ॥੧॥
हरि हरि लाभु साधसंगि पाईऐ घरि लै आवहु लादि ॥१॥
हरि-भजन का लाभ साधु-पुरुषों की संगत में ही प्राप्त होता है, इसे लादकर घर ले आओ ॥१॥
ਸਭ ਤੇ ਊਚ ਊਚ ਤੇ ਊਚੋ ਅੰਤੁ ਨਹੀ ਮਰਜਾਦ ॥
सभ ते ऊच ऊच ते ऊचो अंतु नही मरजाद ॥
ईश्वर महान् है, ऊँचे से भी ऊँचा है, उसकी गरिमा का रहस्य नहीं पाया जा सकता।
ਬਰਨਿ ਨ ਸਾਕਉ ਨਾਨਕ ਮਹਿਮਾ ਪੇਖਿ ਰਹੇ ਬਿਸਮਾਦ ॥੨॥੫੫॥੭੮॥
बरनि न साकउ नानक महिमा पेखि रहे बिसमाद ॥२॥५५॥७८॥
नानक कथन करते हैं कि ईश्वर की महिमा का वर्णन नहीं किया जा सकता, देखकर बड़ा विस्मय हो रहा है॥ २॥ ५५ ॥७८ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਆਇਓ ਸੁਨਨ ਪੜਨ ਕਉ ਬਾਣੀ ॥
आइओ सुनन पड़न कउ बाणी ॥
मनुष्य इस दुनिया में हरि-वाणी सुनने और पढ़ने के लिए आया है।
ਨਾਮੁ ਵਿਸਾਰਿ ਲਗਹਿ ਅਨ ਲਾਲਚਿ ਬਿਰਥਾ ਜਨਮੁ ਪਰਾਣੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
नामु विसारि लगहि अन लालचि बिरथा जनमु पराणी ॥१॥ रहाउ ॥
परन्तु हरि-नाम को भुलाकर अन्य लालचों में लगकर अपना जन्म व्यर्थ गंवा रहा है।॥१॥रहाउ॥।
ਸਮਝੁ ਅਚੇਤ ਚੇਤਿ ਮਨ ਮੇਰੇ ਕਥੀ ਸੰਤਨ ਅਕਥ ਕਹਾਣੀ ॥
समझु अचेत चेति मन मेरे कथी संतन अकथ कहाणी ॥
हे मेरे मन ! जाग और सावधान हो जा, संत-महात्मा पुरुषों ने जो अकथ कहानी कथन की है, उसे समझ।
ਲਾਭੁ ਲੈਹੁ ਹਰਿ ਰਿਦੈ ਅਰਾਧਹੁ ਛੁਟਕੈ ਆਵਣ ਜਾਣੀ ॥੧॥
लाभु लैहु हरि रिदै अराधहु छुटकै आवण जाणी ॥१॥
हृदय में ईश्वर की आराधना का लाभ प्राप्त कर, आवागमन से छुटकारा हो जाएगा ॥१॥
ਉਦਮੁ ਸਕਤਿ ਸਿਆਣਪ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਰੀ ਦੇਹਿ ਤ ਨਾਮੁ ਵਖਾਣੀ ॥
उदमु सकति सिआणप तुम्हरी देहि त नामु वखाणी ॥
हे हरि ! अगर तुम मुझे उद्यम शक्ति एवं बुद्धिमानी प्रदान करो तो तेरे नाम की चर्चा करता रहूँ।
ਸੇਈ ਭਗਤ ਭਗਤਿ ਸੇ ਲਾਗੇ ਨਾਨਕ ਜੋ ਪ੍ਰਭ ਭਾਣੀ ॥੨॥੫੬॥੭੯॥
सेई भगत भगति से लागे नानक जो प्रभ भाणी ॥२॥५६॥७९॥
नानक कथन करते हैं कि जो प्रभु को अच्छे लगते हैं, वही भक्त भक्ति में निमग्न होते हैं।॥२॥५६॥ ७९ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਧਨਵੰਤ ਨਾਮ ਕੇ ਵਣਜਾਰੇ ॥
धनवंत नाम के वणजारे ॥
असल में हरिनाम के व्यापारी ही धनवान हैं।
ਸਾਂਝੀ ਕਰਹੁ ਨਾਮ ਧਨੁ ਖਾਟਹੁ ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਵੀਚਾਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सांझी करहु नाम धनु खाटहु गुर का सबदु वीचारे ॥१॥ रहाउ ॥
इनके साथ मेल-मिलाप बनाकर हिस्सेदारी करो; और गुरु के उपदेश का चिन्तन करते हुए हरिनाम धन की कमाई करो।॥१॥रहाउ॥।