ਛੋਡਹੁ ਕਪਟੁ ਹੋਇ ਨਿਰਵੈਰਾ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਸੰਗਿ ਨਿਹਾਰੇ ॥
छोडहु कपटु होइ निरवैरा सो प्रभु संगि निहारे ॥
जो छल-कपट छोड़कर निर्वेर सज्जन बनकर रहता है, वह प्रभु को आसपास ही देखता है।
ਸਚੁ ਧਨੁ ਵਣਜਹੁ ਸਚੁ ਧਨੁ ਸੰਚਹੁ ਕਬਹੂ ਨ ਆਵਹੁ ਹਾਰੇ ॥੧॥
सचु धनु वणजहु सचु धनु संचहु कबहू न आवहु हारे ॥१॥
वह सच्चे नाम धन का व्यापार करता है, सच्चा धन ही संचित करता, इस तरह कभी हार का मुँह नहीं देखता ॥१॥
ਖਾਤ ਖਰਚਤ ਕਿਛੁ ਨਿਖੁਟਤ ਨਾਹੀ ਅਗਨਤ ਭਰੇ ਭੰਡਾਰੇ ॥
खात खरचत किछु निखुटत नाही अगनत भरे भंडारे ॥
हरिनाम के असंख्य ही भण्डार भरे हुए हैं, इसे खाने अथवा खर्च करने से कभी कमी नहीं आती।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸੋਭਾ ਸੰਗਿ ਜਾਵਹੁ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਕੈ ਦੁਆਰੇ ॥੨॥੫੭॥੮੦॥
कहु नानक सोभा संगि जावहु पारब्रहम कै दुआरे ॥२॥५७॥८०॥
हे नानक ! इस तरह शोभापूर्वक परब्रह्म के द्वार पर जाओ ॥२॥ ५७ ॥ ८० ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਪ੍ਰਭ ਜੀ ਮੋਹਿ ਕਵਨੁ ਅਨਾਥੁ ਬਿਚਾਰਾ ॥
प्रभ जी मोहि कवनु अनाथु बिचारा ॥
हे प्रभु ! मुझ अनाथ, बेचारे, नाचीज को
ਕਵਨ ਮੂਲ ਤੇ ਮਾਨੁਖੁ ਕਰਿਆ ਇਹੁ ਪਰਤਾਪੁ ਤੁਹਾਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
कवन मूल ते मानुखु करिआ इहु परतापु तुहारा ॥१॥ रहाउ ॥
किस आधार पर तूने मनुष्य बना दिया, यह सब तुम्हारा प्रताप है॥१॥रहाउ॥।
ਜੀਅ ਪ੍ਰਾਣ ਸਰਬ ਕੇ ਦਾਤੇ ਗੁਣ ਕਹੇ ਨ ਜਾਹਿ ਅਪਾਰਾ ॥
जीअ प्राण सरब के दाते गुण कहे न जाहि अपारा ॥
तुम जीवन, प्राण इत्यादि सब देने वाले हो, तुम्हारे अपार गुण अकथनीय हैं।
ਸਭ ਕੇ ਪ੍ਰੀਤਮ ਸ੍ਰਬ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਕ ਸਰਬ ਘਟਾਂ ਆਧਾਰਾ ॥੧॥
सभ के प्रीतम स्रब प्रतिपालक सरब घटां आधारा ॥१॥
तू सबका प्रियतम है, समूचे संसार का प्रतिपालक है, सबके हृदय का आसरा है॥१॥
ਕੋਇ ਨ ਜਾਣੈ ਤੁਮਰੀ ਗਤਿ ਮਿਤਿ ਆਪਹਿ ਏਕ ਪਸਾਰਾ ॥
कोइ न जाणै तुमरी गति मिति आपहि एक पसारा ॥
तुम्हारी महिमा व शक्ति को कोई नहीं जानता और संसार का प्रसार तेरा ही है।
ਸਾਧ ਨਾਵ ਬੈਠਾਵਹੁ ਨਾਨਕ ਭਵ ਸਾਗਰੁ ਪਾਰਿ ਉਤਾਰਾ ॥੨॥੫੮॥੮੧॥
साध नाव बैठावहु नानक भव सागरु पारि उतारा ॥२॥५८॥८१॥
नानक का कथन है कि साधु पुरुषों की नाव में बैठने से संसार-सागर से पार उतारा हो जाता है॥२॥ ५८ ॥ ८१ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਆਵੈ ਰਾਮ ਸਰਣਿ ਵਡਭਾਗੀ ॥
आवै राम सरणि वडभागी ॥
कोई खुशकिस्मत ही परमात्मा की शरण में आता है।
ਏਕਸ ਬਿਨੁ ਕਿਛੁ ਹੋਰੁ ਨ ਜਾਣੈ ਅਵਰਿ ਉਪਾਵ ਤਿਆਗੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
एकस बिनु किछु होरु न जाणै अवरि उपाव तिआगी ॥१॥ रहाउ ॥
वह प्रभु के अतिरिक्त किसी अन्य को नहीं मानता और अन्य सब उपाय त्याग देता है।॥ १॥ रहाउ ॥
ਮਨ ਬਚ ਕ੍ਰਮ ਆਰਾਧੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਸਾਧਸੰਗਿ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥
मन बच क्रम आराधै हरि हरि साधसंगि सुखु पाइआ ॥
वह मन, वचन एवं कर्म से ईश्वर की आराधना करता है और साधु पुरुषों की संगत में सुख पाता है।
ਅਨਦ ਬਿਨੋਦ ਅਕਥ ਕਥਾ ਰਸੁ ਸਾਚੈ ਸਹਜਿ ਸਮਾਇਆ ॥੧॥
अनद बिनोद अकथ कथा रसु साचै सहजि समाइआ ॥१॥
वह अकथनीय कथा के रस में आनंद विनोद करता है और सहज स्वाभाविक परम सत्य में लीन रहता है।॥१॥
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਜੋ ਅਪੁਨਾ ਕੀਨੋ ਤਾ ਕੀ ਊਤਮ ਬਾਣੀ ॥
करि किरपा जो अपुना कीनो ता की ऊतम बाणी ॥
कृपा करके भगवान ने जिसे अपना बना लिया है, उसकी वाणी उत्तम है।
ਸਾਧਸੰਗਿ ਨਾਨਕ ਨਿਸਤਰੀਐ ਜੋ ਰਾਤੇ ਪ੍ਰਭ ਨਿਰਬਾਣੀ ॥੨॥੫੯॥੮੨॥
साधसंगि नानक निसतरीऐ जो राते प्रभ निरबाणी ॥२॥५९॥८२॥
नानक फुरमाते हैं कि जो लोग प्रभु की भक्ति में रत रहते हैं, साधुसंगत में वे जगत-सागर से मुक्त हो जाते हैं।॥२॥ ५६ ॥ ८२ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਜਾ ਤੇ ਸਾਧੂ ਸਰਣਿ ਗਹੀ ॥
जा ते साधू सरणि गही ॥
जबसे साधु महापुरुष की शरण ली है,
ਸਾਂਤਿ ਸਹਜੁ ਮਨਿ ਭਇਓ ਪ੍ਰਗਾਸਾ ਬਿਰਥਾ ਕਛੁ ਨ ਰਹੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सांति सहजु मनि भइओ प्रगासा बिरथा कछु न रही ॥१॥ रहाउ ॥
मन में परम सुख व शान्ति का आलोक हो गया है और कोई दुख-दर्द नहीं रहा ॥१॥रहाउ॥।
ਹੋਹੁ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਨਾਮੁ ਦੇਹੁ ਅਪੁਨਾ ਬਿਨਤੀ ਏਹ ਕਹੀ ॥
होहु क्रिपाल नामु देहु अपुना बिनती एह कही ॥
हे प्रभु ! हमने यही विनती की है कि कृपालु होकर अपना नाम प्रदान करो।
ਆਨ ਬਿਉਹਾਰ ਬਿਸਰੇ ਪ੍ਰਭ ਸਿਮਰਤ ਪਾਇਓ ਲਾਭੁ ਸਹੀ ॥੧॥
आन बिउहार बिसरे प्रभ सिमरत पाइओ लाभु सही ॥१॥
प्रभु-स्मरण से अन्य सभी व्यवहार भूल गए हैं और यही सच्चा लाभ पाया है॥१॥
ਜਹ ਤੇ ਉਪਜਿਓ ਤਹੀ ਸਮਾਨੋ ਸਾਈ ਬਸਤੁ ਅਹੀ ॥
जह ते उपजिओ तही समानो साई बसतु अही ॥
जहाँ से उत्पन्न हुए, वहीं समा गए, वहीं बस रहे हैं।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਭਰਮੁ ਗੁਰਿ ਖੋਇਓ ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਸਮਹੀ ॥੨॥੬੦॥੮੩॥
कहु नानक भरमु गुरि खोइओ जोती जोति समही ॥२॥६०॥८३॥
नानक फुरमाते हैं कि गुरु ने मेरा भ्रम दूर कर दिया है और आत्म-ज्योति परम-ज्योति में विलीन हो गई है॥२॥ ६० ॥ ८३ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਰਸਨਾ ਰਾਮ ਕੋ ਜਸੁ ਗਾਉ ॥
रसना राम को जसु गाउ ॥
हे सज्जनो ! जिव्हा से राम का यशोगान करो।
ਆਨ ਸੁਆਦ ਬਿਸਾਰਿ ਸਗਲੇ ਭਲੋ ਨਾਮ ਸੁਆਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
आन सुआद बिसारि सगले भलो नाम सुआउ ॥१॥ रहाउ ॥
अन्य संसारिक स्वाद भुला दो, क्योंकि हरिनाम भजन का स्वाद सबसे उत्तम है॥ १॥ रहाउ ॥
ਚਰਨ ਕਮਲ ਬਸਾਇ ਹਿਰਦੈ ਏਕ ਸਿਉ ਲਿਵ ਲਾਉ ॥
चरन कमल बसाइ हिरदै एक सिउ लिव लाउ ॥
हरि के चरण-कमल हृदय में बसाकर केवल उसी में लगन लगाओ।
ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਹੋਹਿ ਨਿਰਮਲੁ ਬਹੁੜਿ ਜੋਨਿ ਨ ਆਉ ॥੧॥
साधसंगति होहि निरमलु बहुड़ि जोनि न आउ ॥१॥
साधु पुरुषों की संगत में मन निर्मल हो जाता है और पुनः योनि चक्र में नहीं आना पड़ता ॥१॥
ਜੀਉ ਪ੍ਰਾਨ ਅਧਾਰੁ ਤੇਰਾ ਤੂ ਨਿਥਾਵੇ ਥਾਉ ॥
जीउ प्रान अधारु तेरा तू निथावे थाउ ॥
हे प्रभु ! आत्मा एवं प्राणों को तेरा ही आसरा है, तू आश्रयहीनों का आश्रय है।
ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਲਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਨਕ ਸਦ ਬਲਿ ਜਾਉ ॥੨॥੬੧॥੮੪॥
सासि सासि सम्हालि हरि हरि नानक सद बलि जाउ ॥२॥६१॥८४॥
नानक का कथन है कि मैं श्वास-श्वास से प्रभु का चिंतन करता हूँ और उस पर सदैव कुर्बान जाता हूँ॥२॥ ६१॥ ८४ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਬੈਕੁੰਠ ਗੋਬਿੰਦ ਚਰਨ ਨਿਤ ਧਿਆਉ ॥
बैकुंठ गोबिंद चरन नित धिआउ ॥
भगवान के चरणों का नित्य ध्यान ही वैकुण्ठ है।
ਮੁਕਤਿ ਪਦਾਰਥੁ ਸਾਧੂ ਸੰਗਤਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मुकति पदारथु साधू संगति अम्रितु हरि का नाउ ॥१॥ रहाउ ॥
साधु-संगत में मोक्षदायक अमृत हरिनाम मिलता है।॥१॥रहाउ॥।
ਊਤਮ ਕਥਾ ਸੁਣੀਜੈ ਸ੍ਰਵਣੀ ਮਇਆ ਕਰਹੁ ਭਗਵਾਨ ॥
ऊतम कथा सुणीजै स्रवणी मइआ करहु भगवान ॥
हे भगवान ! कृपा करो, ताकि कानों से उत्तम कथा सुनता रहूँ।
ਆਵਤ ਜਾਤ ਦੋਊ ਪਖ ਪੂਰਨ ਪਾਈਐ ਸੁਖ ਬਿਸ੍ਰਾਮ ॥੧॥
आवत जात दोऊ पख पूरन पाईऐ सुख बिस्राम ॥१॥
इससे जीवन-मृत्यु दोनों ही पक्ष पूर्ण होते हैं और सुख-शान्ति मिलती है॥१॥