ਇਕ ਓਟ ਕੀਜੈ ਜੀਉ ਦੀਜੈ ਆਸ ਇਕ ਧਰਣੀਧਰੈ ॥
इक ओट कीजै जीउ दीजै आस इक धरणीधरै ॥
केवल परमेश्वर का आसरा ग्रहण करो, अपना जीवन भी उस पर न्योछावर कर दो और उस पर ही आशा रखो।
ਸਾਧਸੰਗੇ ਹਰਿ ਨਾਮ ਰੰਗੇ ਸੰਸਾਰੁ ਸਾਗਰੁ ਸਭੁ ਤਰੈ ॥
साधसंगे हरि नाम रंगे संसारु सागरु सभु तरै ॥
जो साधुओं की संगति में प्रभु-नाम में लीन रहते हैं, वे सभी संसार-सागर से तैर जाते हैं।
ਜਨਮ ਮਰਣ ਬਿਕਾਰ ਛੂਟੇ ਫਿਰਿ ਨ ਲਾਗੈ ਦਾਗੁ ਜੀਉ ॥
जनम मरण बिकार छूटे फिरि न लागै दागु जीउ ॥
इस प्रकार उनका जन्म-मरण एवं सारे विकार छूट जाते हैं और पुनः कोई कलंक नहीं लगता।
ਬਲਿ ਜਾਇ ਨਾਨਕੁ ਪੁਰਖ ਪੂਰਨ ਥਿਰੁ ਜਾ ਕਾ ਸੋਹਾਗੁ ਜੀਉ ॥੩॥
बलि जाइ नानकु पुरख पूरन थिरु जा का सोहागु जीउ ॥३॥
नानक पूर्ण परमेश्वर पर कुर्बान जाता है, जिसका सुहाग सदा अटल है॥ ३॥
ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक॥
ਧਰਮ ਅਰਥ ਅਰੁ ਕਾਮ ਮੋਖ ਮੁਕਤਿ ਪਦਾਰਥ ਨਾਥ ॥
धरम अरथ अरु काम मोख मुकति पदारथ नाथ ॥
धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष रूपी मुक्ति पदार्थ ईश्वर देने वाला है।
ਸਗਲ ਮਨੋਰਥ ਪੂਰਿਆ ਨਾਨਕ ਲਿਖਿਆ ਮਾਥ ॥੧॥
सगल मनोरथ पूरिआ नानक लिखिआ माथ ॥१॥
हे नानक ! जिसके माथे पर कर्म लेख लिखा होता है, उसके सब मनोरथ पूरे हो जाते हैं।॥ १॥
ਛੰਤੁ ॥
छंतु ॥
छंद ॥
ਸਗਲ ਇਛ ਮੇਰੀ ਪੁੰਨੀਆ ਮਿਲਿਆ ਨਿਰੰਜਨ ਰਾਇ ਜੀਉ ॥
सगल इछ मेरी पुंनीआ मिलिआ निरंजन राइ जीउ ॥
जब से निरंजन प्रभु मिला है, तब से सब कामनाएँ पूरी हो गई हैं।
ਅਨਦੁ ਭਇਆ ਵਡਭਾਗੀਹੋ ਗ੍ਰਿਹਿ ਪ੍ਰਗਟੇ ਪ੍ਰਭ ਆਇ ਜੀਉ ॥
अनदु भइआ वडभागीहो ग्रिहि प्रगटे प्रभ आइ जीउ ॥
अहोभाग्य से प्रभु हृदय-घर में प्रगट हो गया है, जिससे मन में आनंद ही आनंद हो गया है।
ਗ੍ਰਿਹਿ ਲਾਲ ਆਏ ਪੁਰਬਿ ਕਮਾਏ ਤਾ ਕੀ ਉਪਮਾ ਕਿਆ ਗਣਾ ॥
ग्रिहि लाल आए पुरबि कमाए ता की उपमा किआ गणा ॥
पूर्व जन्म में किए शुभ कर्मो के कारण हृदय-घर में प्रभु आए हैं, जिसकी उपमा व्यक्त नहीं की जा सकती।
ਬੇਅੰਤ ਪੂਰਨ ਸੁਖ ਸਹਜ ਦਾਤਾ ਕਵਨ ਰਸਨਾ ਗੁਣ ਭਣਾ ॥
बेअंत पूरन सुख सहज दाता कवन रसना गुण भणा ॥
वह सहज सुख प्रदान करने वाला दाता बेअंत एवं पूर्ण है, मैं कौन-सी जिव्हा से उसकी महिमा बयान करूं ?”
ਆਪੇ ਮਿਲਾਏ ਗਹਿ ਕੰਠਿ ਲਾਏ ਤਿਸੁ ਬਿਨਾ ਨਹੀ ਜਾਇ ਜੀਉ ॥
आपे मिलाए गहि कंठि लाए तिसु बिना नही जाइ जीउ ॥
उसने स्वयं ही साथ मिलाकर गले से लगा लिया है, उसके अलावा अन्य कोई अवलम्ब नहीं।
ਬਲਿ ਜਾਇ ਨਾਨਕੁ ਸਦਾ ਕਰਤੇ ਸਭ ਮਹਿ ਰਹਿਆ ਸਮਾਇ ਜੀਉ ॥੪॥੪॥
बलि जाइ नानकु सदा करते सभ महि रहिआ समाइ जीउ ॥४॥४॥
नानक सदा ही सृजनहार पर बलिहारी जाता है, जो सब जीवों में समा रहा है।४॥ ४॥
ਰਾਗੁ ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रागु रामकली महला ५ ॥
रागु रामकली महला ५ ॥
ਰਣ ਝੁੰਝਨੜਾ ਗਾਉ ਸਖੀ ਹਰਿ ਏਕੁ ਧਿਆਵਹੁ ॥
रण झुंझनड़ा गाउ सखी हरि एकु धिआवहु ॥
हे सखी ! मधुर-सुरीले स्वर में यशगान करो और केवल परमेश्वर का ही ध्यान करो।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਤੁਮ ਸੇਵਿ ਸਖੀ ਮਨਿ ਚਿੰਦਿਅੜਾ ਫਲੁ ਪਾਵਹੁ ॥
सतिगुरु तुम सेवि सखी मनि चिंदिअड़ा फलु पावहु ॥
हे मेरी सखी ! तुम सतगुरु की सेवा करो और मनोवांछित फल पा लो।
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ਰੁਤੀ ਸਲੋਕੁ
रामकली महला ५ रुती सलोकु
रामकली महला ५ रुती सलोकु
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਕਰਿ ਬੰਦਨ ਪ੍ਰਭ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਬਾਛਉ ਸਾਧਹ ਧੂਰਿ ॥
करि बंदन प्रभ पारब्रहम बाछउ साधह धूरि ॥
परब्रह्म-प्रभु की वन्दना करो और साधुओं की चरण-धूल की ही आकांक्षा करो।
ਆਪੁ ਨਿਵਾਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਭਜਉ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਭਰਪੂਰਿ ॥੧॥
आपु निवारि हरि हरि भजउ नानक प्रभ भरपूरि ॥१॥
अपना अहम् छोड़कर भगवान का भजन करो, हे नानक ! वह प्रभु विश्वव्यापक है॥ १॥
ਕਿਲਵਿਖ ਕਾਟਣ ਭੈ ਹਰਣ ਸੁਖ ਸਾਗਰ ਹਰਿ ਰਾਇ ॥
किलविख काटण भै हरण सुख सागर हरि राइ ॥
सर्व पाप काटने वाला, भयनाशक प्रभु ही सुखों का सागर है।
ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਦੁਖ ਭੰਜਨੋ ਨਾਨਕ ਨੀਤ ਧਿਆਇ ॥੨॥
दीन दइआल दुख भंजनो नानक नीत धिआइ ॥२॥
हे नानक ! नित्य दीनदयाल एवं दुखनाशक ईश्वर का ध्यान करना चाहिए।२॥
ਛੰਤੁ ॥
छंतु ॥
छंद ॥
ਜਸੁ ਗਾਵਹੁ ਵਡਭਾਗੀਹੋ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਭਗਵੰਤ ਜੀਉ ॥
जसु गावहु वडभागीहो करि किरपा भगवंत जीउ ॥
हे भाग्यशालियो ! परमात्मा का यशोगान करो। हे भगवंत ! अपने भक्तजनों पर कृपा करो।
ਰੁਤੀ ਮਾਹ ਮੂਰਤ ਘੜੀ ਗੁਣ ਉਚਰਤ ਸੋਭਾਵੰਤ ਜੀਉ ॥
रुती माह मूरत घड़ी गुण उचरत सोभावंत जीउ ॥
हर ऋतु, महीने, मुहूर्त एवं घड़ी शोभावान ईश्वर के गुणों का उच्चारण करें।
ਗੁਣ ਰੰਗਿ ਰਾਤੇ ਧੰਨਿ ਤੇ ਜਨ ਜਿਨੀ ਇਕ ਮਨਿ ਧਿਆਇਆ ॥
गुण रंगि राते धंनि ते जन जिनी इक मनि धिआइआ ॥
जो एकाग्रचित होकर परमात्मा का ध्यान करते हैं, उसके गुणों के रंग में लीन रहते हैं, वही व्यक्ति भाग्यवान् हैं।
ਸਫਲ ਜਨਮੁ ਭਇਆ ਤਿਨ ਕਾ ਜਿਨੀ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਪਾਇਆ ॥
सफल जनमु भइआ तिन का जिनी सो प्रभु पाइआ ॥
उनका जन्म सफल हो गया है, जिन्होंने प्रभु को पा लिया है।
ਪੁੰਨ ਦਾਨ ਨ ਤੁਲਿ ਕਿਰਿਆ ਹਰਿ ਸਰਬ ਪਾਪਾ ਹੰਤ ਜੀਉ ॥
पुंन दान न तुलि किरिआ हरि सरब पापा हंत जीउ ॥
कोई दान पुण्य एवं कोई भी धर्म-कर्म हरि-नाम के तुल्य नहीं है, वह सर्व पापों को नाश करने वाला है।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਸਿਮਰਿ ਜੀਵਾ ਜਨਮ ਮਰਣ ਰਹੰਤ ਜੀਉ ॥੧॥
बिनवंति नानक सिमरि जीवा जनम मरण रहंत जीउ ॥१॥
नानक विनती करते हैं कि हे प्रभु ! तेरा सिमरन करके अपना जीवन बिता दूँ और जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाऊँ॥ १॥
ਸਲੋਕ ॥
सलोक ॥
श्लोक॥
ਉਦਮੁ ਅਗਮੁ ਅਗੋਚਰੋ ਚਰਨ ਕਮਲ ਨਮਸਕਾਰ ॥
उदमु अगमु अगोचरो चरन कमल नमसकार ॥
उस अगम्य-अगोचर को पाने का ही उद्यम कर रहा हूँ और प्रभु के चरण-कमल को प्रणाम है।
ਕਥਨੀ ਸਾ ਤੁਧੁ ਭਾਵਸੀ ਨਾਨਕ ਨਾਮ ਅਧਾਰ ॥੧॥
कथनी सा तुधु भावसी नानक नाम अधार ॥१॥
नानक कहते हैं कि हे ईश्वर ! मैं वही बात कहता हूँ जो तुझे अच्छी लगती है और तेरा नाम ही मेरा जीवनाधार है॥ १॥
ਸੰਤ ਸਰਣਿ ਸਾਜਨ ਪਰਹੁ ਸੁਆਮੀ ਸਿਮਰਿ ਅਨੰਤ ॥
संत सरणि साजन परहु सुआमी सिमरि अनंत ॥
हे सज्जनो, संतों की शरण ग्रहण करो और अनंत स्वामी का चिंतन करो।
ਸੂਕੇ ਤੇ ਹਰਿਆ ਥੀਆ ਨਾਨਕ ਜਪਿ ਭਗਵੰਤ ॥੨॥
सूके ते हरिआ थीआ नानक जपि भगवंत ॥२॥
हे नानक ! भगवंत का जाप करने से नीरस जीवन खुशहाल हो जाता है॥ २॥
ਛੰਤੁ ॥
छंतु ॥
छंद॥
ਰੁਤਿ ਸਰਸ ਬਸੰਤ ਮਾਹ ਚੇਤੁ ਵੈਸਾਖ ਸੁਖ ਮਾਸੁ ਜੀਉ ॥
रुति सरस बसंत माह चेतु वैसाख सुख मासु जीउ ॥
वसंत ऋतु आनंदमयी बन गई है और चैत्र-वैशाख का महीना सुखदायक बन गया है।
ਹਰਿ ਜੀਉ ਨਾਹੁ ਮਿਲਿਆ ਮਉਲਿਆ ਮਨੁ ਤਨੁ ਸਾਸੁ ਜੀਉ ॥
हरि जीउ नाहु मिलिआ मउलिआ मनु तनु सासु जीउ ॥
प्रभु को मिलकर मन-तन एवं जीवन सॉसें प्रसन्न हो गई हैं।
ਘਰਿ ਨਾਹੁ ਨਿਹਚਲੁ ਅਨਦੁ ਸਖੀਏ ਚਰਨ ਕਮਲ ਪ੍ਰਫੁਲਿਆ ॥
घरि नाहु निहचलु अनदु सखीए चरन कमल प्रफुलिआ ॥
हे सखी! अविनाशी पति-प्रभु हृदय-घर में आ बसा है, जिससे आनंद उत्पन्न हो गया है और उसके चरण-कमल के स्पर्श से मन प्रफुल्लित हो गया है।