ਨਿਜ ਕਰਿ ਦੇਖਿਓ ਜਗਤੁ ਮੈ ਕੋ ਕਾਹੂ ਕੋ ਨਾਹਿ ॥
निज करि देखिओ जगतु मै को काहू को नाहि ॥
दुनिया को मैंने अपना बनाकर भी देख लिया है, परन्तु कोई किसी का (हमदद) नहीं।
ਨਾਨਕ ਥਿਰੁ ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਹੈ ਤਿਹ ਰਾਖੋ ਮਨ ਮਾਹਿ ॥੪੮॥
नानक थिरु हरि भगति है तिह राखो मन माहि ॥४८॥
नानक का कथन है कि केवल प्रभु-भक्ति ही स्थिर है, इसे ही दिल में बसाए रखो ॥ ४८॥
ਜਗ ਰਚਨਾ ਸਭ ਝੂਠ ਹੈ ਜਾਨਿ ਲੇਹੁ ਰੇ ਮੀਤ ॥
जग रचना सभ झूठ है जानि लेहु रे मीत ॥
हे मित्र ! यह सच्चाई मान लो, कि यह जगत-रचना सब झूठ है।
ਕਹਿ ਨਾਨਕ ਥਿਰੁ ਨਾ ਰਹੈ ਜਿਉ ਬਾਲੂ ਕੀ ਭੀਤਿ ॥੪੯॥
कहि नानक थिरु ना रहै जिउ बालू की भीति ॥४९॥
नानक का कथन है कि रेत की दीवार की तरह कुछ भी स्थिर नहीं रहता ॥ ४६ ॥
ਰਾਮੁ ਗਇਓ ਰਾਵਨੁ ਗਇਓ ਜਾ ਕਉ ਬਹੁ ਪਰਵਾਰੁ ॥
रामु गइओ रावनु गइओ जा कउ बहु परवारु ॥
दशरथ-सुत राम भी संसार को छोड़ गए, लंकापति रावण भी मौत की आगोश में चला गया, जिसका बहुत बड़ा परिवार था।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਥਿਰੁ ਕਛੁ ਨਹੀ ਸੁਪਨੇ ਜਿਉ ਸੰਸਾਰੁ ॥੫੦॥
कहु नानक थिरु कछु नही सुपने जिउ संसारु ॥५०॥
नानक का कथन है कि यह संसार सपने की तरह है और कोई स्थाई नहीं है ॥ ५०॥
ਚਿੰਤਾ ਤਾ ਕੀ ਕੀਜੀਐ ਜੋ ਅਨਹੋਨੀ ਹੋਇ ॥
चिंता ता की कीजीऐ जो अनहोनी होइ ॥
चिंता तो उसकी करनी चाहिए, जो अनहोनी हो।
ਇਹੁ ਮਾਰਗੁ ਸੰਸਾਰ ਕੋ ਨਾਨਕ ਥਿਰੁ ਨਹੀ ਕੋਇ ॥੫੧॥
इहु मारगु संसार को नानक थिरु नही कोइ ॥५१॥
हे नानक ! इस संसार मार्ग पर कोई स्थिर नहीं ॥ ५१॥
ਜੋ ਉਪਜਿਓ ਸੋ ਬਿਨਸਿ ਹੈ ਪਰੋ ਆਜੁ ਕੈ ਕਾਲਿ ॥
जो उपजिओ सो बिनसि है परो आजु कै कालि ॥
जो भी जन्म लेता है, वह मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। आज अथवा कल हर कोई जाने वाला है।
ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਗੁਨ ਗਾਇ ਲੇ ਛਾਡਿ ਸਗਲ ਜੰਜਾਲ ॥੫੨॥
नानक हरि गुन गाइ ले छाडि सगल जंजाल ॥५२॥
अतः नानक का मत है कि सब जंजाल छोड़कर भगवान का गुणगान कर लो ॥ ५२ ॥
ਦੋਹਰਾ ॥
दोहरा ॥
दोहा ॥
ਬਲੁ ਛੁਟਕਿਓ ਬੰਧਨ ਪਰੇ ਕਛੂ ਨ ਹੋਤ ਉਪਾਇ ॥
बलु छुटकिओ बंधन परे कछू न होत उपाइ ॥
हमारा बल खत्म हो गया है, बन्धनों में पड़े हुए हैं और कोई उपाय भी सिद्ध नहीं हो रहा।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਅਬ ਓਟ ਹਰਿ ਗਜ ਜਿਉ ਹੋਹੁ ਸਹਾਇ ॥੫੩॥
कहु नानक अब ओट हरि गज जिउ होहु सहाइ ॥५३॥
नानक फुरमाते हैं कि अब तो ईश्वर का ही हमें आसरा है, जैसे हाथी को घड़ियाल से बचाने के लिए सहायता की थी ॥५३ ॥
ਬਲੁ ਹੋਆ ਬੰਧਨ ਛੁਟੇ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਹੋਤ ਉਪਾਇ ॥
बलु होआ बंधन छुटे सभु किछु होत उपाइ ॥
ईश्वर में निष्ठा रखते हुए उत्तर हैआध्यात्मिक बल भी पुनः मिल जाता है, बन्धनों से छुटकारा हो जाता है, सब उपाय साकार हो जाते हैं।
ਨਾਨਕ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਤੁਮਰੈ ਹਾਥ ਮੈ ਤੁਮ ਹੀ ਹੋਤ ਸਹਾਇ ॥੫੪॥
नानक सभु किछु तुमरै हाथ मै तुम ही होत सहाइ ॥५४॥
हे नानक ! सब कुछ आपके हाथ में हैं, आप स्वयं ही सहायता कर सकते हो ॥५४॥
ਸੰਗ ਸਖਾ ਸਭਿ ਤਜਿ ਗਏ ਕੋਊ ਨ ਨਿਬਹਿਓ ਸਾਥਿ ॥
संग सखा सभि तजि गए कोऊ न निबहिओ साथि ॥
हमारे संगी-साथी सब छोड़ गए हैं। कोई आखिर तक साथ नहीं निभा सका।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਇਹ ਬਿਪਤਿ ਮੈ ਟੇਕ ਏਕ ਰਘੁਨਾਥ ॥੫੫॥
कहु नानक इह बिपति मै टेक एक रघुनाथ ॥५५॥
नानक विनती करते हैं कि हे परमेश्वर ! इस विपत्ति के समय एकमात्र तुम्हारा ही आसरा है॥ ५५ ॥
ਨਾਮੁ ਰਹਿਓ ਸਾਧੂ ਰਹਿਓ ਰਹਿਓ ਗੁਰੁ ਗੋਬਿੰਦੁ ॥
नामु रहिओ साधू रहिओ रहिओ गुरु गोबिंदु ॥
हरिनाम एवं साधु स्थाई हैं, गुंरु परमेश्वर सदैव स्थिर है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਇਹ ਜਗਤ ਮੈ ਕਿਨ ਜਪਿਓ ਗੁਰ ਮੰਤੁ ॥੫੬॥
कहु नानक इह जगत मै किन जपिओ गुर मंतु ॥५६॥
हे नानक ! इस जगत में किसी विरले ने ही गुरुमंत्र का जाप किया है॥५६॥
ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਉਰ ਮੈ ਗਹਿਓ ਜਾ ਕੈ ਸਮ ਨਹੀ ਕੋਇ ॥
राम नामु उर मै गहिओ जा कै सम नही कोइ ॥
राम नाम दिल में बसा लिया है, जिसके बराबर कोई नहीं।
ਜਿਹ ਸਿਮਰਤ ਸੰਕਟ ਮਿਟੈ ਦਰਸੁ ਤੁਹਾਰੋ ਹੋਇ ॥੫੭॥੧॥
जिह सिमरत संकट मिटै दरसु तुहारो होइ ॥५७॥१॥
जिसका स्मरण करने से संकट दूर जाते हैं और हरि के दर्शन हो जाते हैं ॥ ५७ ॥१॥
ਮੁੰਦਾਵਣੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मुंदावणी महला ५ ॥
मुंदावणी महला ५ ॥
ਥਾਲ ਵਿਚਿ ਤਿੰਨਿ ਵਸਤੂ ਪਈਓ ਸਤੁ ਸੰਤੋਖੁ ਵੀਚਾਰੋ ॥
थाल विचि तिंनि वसतू पईओ सतु संतोखु वीचारो ॥
थाल में तीन वस्तुएँ परोसी हुई हैं- सत्य, संतोष एवं विचार।
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਠਾਕੁਰ ਕਾ ਪਇਓ ਜਿਸ ਕਾ ਸਭਸੁ ਅਧਾਰੋ ॥
अम्रित नामु ठाकुर का पइओ जिस का सभसु अधारो ॥
इस में ठाकुर जी का अमृतमय नाम भी डाला हुआ है, जिसका सब लोगों को आसरा है।
ਜੇ ਕੋ ਖਾਵੈ ਜੇ ਕੋ ਭੁੰਚੈ ਤਿਸ ਕਾ ਹੋਇ ਉਧਾਰੋ ॥
जे को खावै जे को भुंचै तिस का होइ उधारो ॥
जो इस भोजन का सेवन करता, इसका भोग करता है, उसका उद्धार हो जाता है।
ਏਹ ਵਸਤੁ ਤਜੀ ਨਹ ਜਾਈ ਨਿਤ ਨਿਤ ਰਖੁ ਉਰਿ ਧਾਰੋ ॥
एह वसतु तजी नह जाई नित नित रखु उरि धारो ॥
इस अमृतमय नाम वस्तु को छोड़ा नहीं जा सकता, नित्य इसे दिल में धारण करो।
ਤਮ ਸੰਸਾਰੁ ਚਰਨ ਲਗਿ ਤਰੀਐ ਸਭੁ ਨਾਨਕ ਬ੍ਰਹਮ ਪਸਾਰੋ ॥੧॥
तम संसारु चरन लगि तरीऐ सभु नानक ब्रहम पसारो ॥१॥
इस अंधकार भरे संसार को हरि-चरणों में लगकर पार किया जा सकता है, गुरु नानक फुरमान करते हैं कि सब ओर ब्रह्म का ही प्रसार है॥१॥
ਸਲੋਕ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सलोक महला ५ ॥
श्लोक महला ५॥
ਤੇਰਾ ਕੀਤਾ ਜਾਤੋ ਨਾਹੀ ਮੈਨੋ ਜੋਗੁ ਕੀਤੋਈ ॥
तेरा कीता जातो नाही मैनो जोगु कीतोई ॥
हे परमपिता ! तेरे एहसानों को मैं समझ नहीं पाया, तुमने ही मुझे प्रतिभाशाली बनाया है।
ਮੈ ਨਿਰਗੁਣਿਆਰੇ ਕੋ ਗੁਣੁ ਨਾਹੀ ਆਪੇ ਤਰਸੁ ਪਇਓਈ ॥
मै निरगुणिआरे को गुणु नाही आपे तरसु पइओई ॥
क्योंकि मुझ गुणविहीन में कोई गुण नहीं था, तुमने स्वयं ही मुझ पर तरस किया है।
ਤਰਸੁ ਪਇਆ ਮਿਹਰਾਮਤਿ ਹੋਈ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸਜਣੁ ਮਿਲਿਆ ॥
तरसु पइआ मिहरामति होई सतिगुरु सजणु मिलिआ ॥
तुमने तरस किया, तेरी मेहरबानी हुई तो मुझे सज्जन सतिगुरु मिल गया।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਮਿਲੈ ਤਾਂ ਜੀਵਾਂ ਤਨੁ ਮਨੁ ਥੀਵੈ ਹਰਿਆ ॥੧॥
नानक नामु मिलै तां जीवां तनु मनु थीवै हरिआ ॥१॥
गुरु नानक का कथन है कि प्रभु-नाम पर ही मेरा जीवन निर्भर है, अतः नाम मिलने पर ही जीता हूँ, जिससे मेरा तन मन खिल उठता है॥१॥
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
वह अद्वितीय परब्रहा जिसका वाचक ओम् है, केवल एक (ऑकार-स्वरूप) है, गुरु की कृपा से प्राप्त होता है।
ਰਾਗ ਮਾਲਾ ॥
राग माला ॥
राग माला ॥
ਰਾਗ ਏਕ ਸੰਗਿ ਪੰਚ ਬਰੰਗਨ ॥
राग एक संगि पंच बरंगन ॥
एक राग के संग उसकी पाँच रागिनियाँ हैं,
ਸੰਗਿ ਅਲਾਪਹਿ ਆਠਉ ਨੰਦਨ ॥
संगि अलापहि आठउ नंदन ॥
राग के आठ पुत्र भी साथ ही गाते हैं।
ਪ੍ਰਥਮ ਰਾਗ ਭੈਰਉ ਵੈ ਕਰਹੀ ॥
प्रथम राग भैरउ वै करही ॥
रागी संगीतकार प्रथम राग भैरब को मानते हैं,