Hindi Page 199

ਸੰਤਸੰਗਿ ਤਹ ਗੋਸਟਿ ਹੋਇ ॥
संतसंगि तह गोसटि होइ ॥
वहाँ सत्संग में प्रभु की कथा वार्ता होती है

ਕੋਟਿ ਜਨਮ ਕੇ ਕਿਲਵਿਖ ਖੋਇ ॥੨॥
कोटि जनम के किलविख खोइ ॥२॥
और करोड़ों जन्मों के पाप मिट जाते हैं।॥ २॥

ਸਿਮਰਹਿ ਸਾਧ ਕਰਹਿ ਆਨੰਦੁ ॥
सिमरहि साध करहि आनंदु ॥
संतजन प्रभु को स्मरण करके बड़ा आनंद प्राप्त करते हैं।

ਮਨਿ ਤਨਿ ਰਵਿਆ ਪਰਮਾਨੰਦੁ ॥੩॥
मनि तनि रविआ परमानंदु ॥३॥
उनका मन एवं तन परमानंद में लीन रहता है॥ ३॥

ਜਿਸਹਿ ਪਰਾਪਤਿ ਹਰਿ ਚਰਣ ਨਿਧਾਨ ॥  
जिसहि परापति हरि चरण निधान ॥
जिसने ईश्वर के चरणों का भण्डार प्राप्त कर लिया है

ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਤਿਸਹਿ ਕੁਰਬਾਨ ॥੪॥੯੫॥੧੬੪॥
नानक दास तिसहि कुरबान ॥४॥९५॥१६४॥
दास नानक उस पर कुर्बान जाता है, ॥ ४ ॥ ९५ ॥ १६४॥

ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
गउड़ी महला ५ ॥

ਸੋ ਕਿਛੁ ਕਰਿ ਜਿਤੁ ਮੈਲੁ ਨ ਲਾਗੈ ॥
सो किछु करि जितु मैलु न लागै ॥
हे मानव ! वही कर्म कर, जिससे तेरे मन को मोह-माया की मैल न लग सके

ਹਰਿ ਕੀਰਤਨ ਮਹਿ ਏਹੁ ਮਨੁ ਜਾਗੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि कीरतन महि एहु मनु जागै ॥१॥ रहाउ ॥
और तेरा यह मन प्रभु के भजन में जाग्रत रहे॥ १॥ रहाउ॥

ਏਕੋ ਸਿਮਰਿ ਨ ਦੂਜਾ ਭਾਉ ॥
एको सिमरि न दूजा भाउ ॥
हे मानव ! एक ईश्वर का नाम सिमरन कर और अहंत्व की ओर ध्यान मत दे।

ਸੰਤਸੰਗਿ ਜਪਿ ਕੇਵਲ ਨਾਉ ॥੧॥
संतसंगि जपि केवल नाउ ॥१॥
महापुरुषों की संगति में केवल नाम का जाप कर॥ १॥

ਕਰਮ ਧਰਮ ਨੇਮ ਬ੍ਰਤ ਪੂਜਾ ॥ 
करम धरम नेम ब्रत पूजा ॥
हे मानव ! कर्म-धर्म, व्रत एवं पूजा-अर्चना इत्यादि

ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਬਿਨੁ ਜਾਨੁ ਨ ਦੂਜਾ ॥੨॥
पारब्रहम बिनु जानु न दूजा ॥२॥
सब प्रभु के बिना किसी दूसरे की पहचान न करने में आ जाते हैं।॥ २॥

ਤਾ ਕੀ ਪੂਰਨ ਹੋਈ ਘਾਲ ॥ 
ता की पूरन होई घाल ॥
उस व्यक्ति की साधना सफल हो जाती है,

ਜਾ ਕੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਅਪੁਨੇ ਪ੍ਰਭ ਨਾਲਿ ॥੩॥
जा की प्रीति अपुने प्रभ नालि ॥३॥
जिसका प्रेम अपने ईश्वर के साथ होता है॥ ३॥

ਸੋ ਬੈਸਨੋ ਹੈ ਅਪਰ ਅਪਾਰੁ ॥ 
सो बैसनो है अपर अपारु ॥
हे नानक ! कर्म-धर्म, व्रत-पूजा करने वाला वैष्णव नहीं अपितु वही वैष्णव सर्वश्रेष्ठ है

ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜਿਨਿ ਤਜੇ ਬਿਕਾਰ ॥੪॥੯੬॥੧੬੫॥
कहु नानक जिनि तजे बिकार ॥४॥९६॥१६५॥
जिसने समस्त पाप (विकार) त्याग दिए हैं। ४॥ ९६ ॥ १६५॥

ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
गउड़ी महला ५ ॥

ਜੀਵਤ ਛਾਡਿ ਜਾਹਿ ਦੇਵਾਨੇ ॥
जीवत छाडि जाहि देवाने ॥
हे पागल प्राणी ! तेरे जीवन में भौतिक पदार्थ एवं संबंधी तुझे त्याग जाते हैं।

ਮੁਇਆ ਉਨ ਤੇ ਕੋ ਵਰਸਾਂਨੇ ॥੧॥
मुइआ उन ते को वरसांने ॥१॥
मरणोपरांत क्या कोई उनसे लाभ प्राप्त कर सकता है॥ १॥

ਸਿਮਰਿ ਗੋਵਿੰਦੁ ਮਨਿ ਤਨਿ ਧੁਰਿ ਲਿਖਿਆ ॥
सिमरि गोविंदु मनि तनि धुरि लिखिआ ॥
जिसके लिए विधाता ने ऐसा कर्म लिखा हुआ है, वह अपने मन एवं तन से गोविन्द को स्मरण करता है।

ਕਾਹੂ ਕਾਜ ਨ ਆਵਤ ਬਿਖਿਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
काहू काज न आवत बिखिआ ॥१॥ रहाउ ॥
माया (जिसके लिए मनुष्य भागदौड़ करता है) किसी काम नहीं आती॥ १॥ रहाउ॥

ਬਿਖੈ ਠਗਉਰੀ ਜਿਨਿ ਜਿਨਿ ਖਾਈ ॥
बिखै ठगउरी जिनि जिनि खाई ॥
जिस किसी ने छल-कपट रूपी विष सेवन किया है,

ਤਾ ਕੀ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਕਬਹੂੰ ਨ ਜਾਈ ॥੨॥
ता की त्रिसना कबहूं न जाई ॥२॥
उसकी तृष्णा कभी निवृत्त नहीं होती॥ २॥

ਦਾਰਨ ਦੁਖ ਦੁਤਰ ਸੰਸਾਰੁ ॥
दारन दुख दुतर संसारु ॥
हे प्राणी ! यह कठिन जगत् सागर भयानक दु:खों से भरा हुआ है।

ਰਾਮ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਕੈਸੇ ਉਤਰਸਿ ਪਾਰਿ ॥੩॥
राम नाम बिनु कैसे उतरसि पारि ॥३॥
राम के नाम बिना प्राणी इससे किस तरह पार होगा ? ॥ ३॥

ਸਾਧਸੰਗਿ ਮਿਲਿ ਦੁਇ ਕੁਲ ਸਾਧਿ ॥
साधसंगि मिलि दुइ कुल साधि ॥
सत्संग में मिलकर अपने लोक-परलोक दोनों ही संवार ले,

ਰਾਮ ਨਾਮ ਨਾਨਕ ਆਰਾਧਿ ॥੪॥੯੭॥੧੬੬॥
राम नाम नानक आराधि ॥४॥९७॥१६६॥
हे नानक ! राम के नाम का भजन कर॥ ४ ॥ ९७ ॥ १६६ ॥

ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
गउड़ी महला ५ ॥                                                                                                

ਗਰੀਬਾ ਉਪਰਿ ਜਿ ਖਿੰਜੈ ਦਾੜੀ ॥
गरीबा उपरि जि खिंजै दाड़ी ॥
हे प्राणी ! जो दाढ़ी निर्धनों पर खिझती रहती है,

ਪਾਰਬ੍ਰਹਮਿ ਸਾ ਅਗਨਿ ਮਹਿ ਸਾੜੀ ॥੧॥
पारब्रहमि सा अगनि महि साड़ी ॥१॥
उस दाढ़ी को पारब्रह्म-प्रभु ने अग्नि में जला दिया है (अर्थात् जो मनुष्य गुस्से में आकर अहंकारवश दूसरों को तंग करता है, वह स्वयं भी क्रोधाग्नि में जलता रहता है) ॥ १॥|                                                                    

ਪੂਰਾ ਨਿਆਉ ਕਰੇ ਕਰਤਾਰੁ ॥
पूरा निआउ करे करतारु ॥
सृष्टि का निर्माता प्रभु पूर्ण न्याय करता है।                                                                                                   

ਅਪੁਨੇ ਦਾਸ ਕਉ ਰਾਖਨਹਾਰੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अपुने दास कउ राखनहारु ॥१॥ रहाउ ॥
वह अपने सेवकों का रखवाला है॥ १॥ रहाउ॥

ਆਦਿ ਜੁਗਾਦਿ ਪ੍ਰਗਟਿ ਪਰਤਾਪੁ ॥
आदि जुगादि प्रगटि परतापु ॥
हे प्राणी ! सृष्टि के प्रारम्भ से, युगों के आदिकाल से ही प्रभु का प्रताप उजागर है।

ਨਿੰਦਕੁ ਮੁਆ ਉਪਜਿ ਵਡ ਤਾਪੁ ॥੨॥
निंदकु मुआ उपजि वड तापु ॥२॥
निंदक मनुष्य भारी ताप से प्राण त्याग देता है॥ २॥

ਤਿਨਿ ਮਾਰਿਆ ਜਿ ਰਖੈ ਨ ਕੋਇ ॥
तिनि मारिआ जि रखै न कोइ ॥
उसको उस प्रभु ने मार दिया है, जिसे कोई बचा नहीं सकता। 

ਆਗੈ ਪਾਛੈ ਮੰਦੀ ਸੋਇ ॥੩॥
आगै पाछै मंदी सोइ ॥३॥
ऐसे मनुष्य की लोक-परलोक में बदनामी ही होती है॥ ३॥

ਅਪੁਨੇ ਦਾਸ ਰਾਖੈ ਕੰਠਿ ਲਾਇ
अपुने दास राखै कंठि लाइ ॥
हे नानक ! अपने सेवकों को प्रभु अपने गले से लगाकर रखता है।

ਸਰਣਿ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ॥੪॥੯੮॥੧੬੭॥
सरणि नानक हरि नामु धिआइ ॥४॥९८॥१६७॥
हमें प्रभु की ही शरण लेनी चाहिए और भगवान के नाम का ध्यान करना चाहिए ॥ ४ ॥ ९८ ॥ १६७ ॥

ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
गउड़ी महला ५ ॥

ਮਹਜਰੁ ਝੂਠਾ ਕੀਤੋਨੁ ਆਪਿ ॥
महजरु झूठा कीतोनु आपि ॥
ईश्वर ने स्वयं दावा झूठा सिद्ध कर दिया है।

ਪਾਪੀ ਕਉ ਲਾਗਾ ਸੰਤਾਪੁ ॥੧॥
पापी कउ लागा संतापु ॥१॥
अपराधी को विपदा पड़ गई है॥ १॥

ਜਿਸਹਿ ਸਹਾਈ ਗੋਬਿਦੁ ਮੇਰਾ ॥
जिसहि सहाई गोबिदु मेरा ॥
जिसका सहायक मेरा गोविन्द है।

ਤਿਸੁ ਕਉ ਜਮੁ ਨਹੀ ਆਵੈ ਨੇਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
 तिसु कउ जमु नही आवै नेरा ॥१॥ रहाउ ॥
मृत्यु उसके निकट भी नहीं आती॥ १॥ रहाउ॥   

ਸਾਚੀ ਦਰਗਹ ਬੋਲੈ ਕੂੜੁ ॥
साची दरगह बोलै कूड़ु ॥
ज्ञानहीन मूर्ख मनुष्य ईश्वर के सच्चे दरबार में झूठ बोलता है

ਸਿਰੁ ਹਾਥ ਪਛੋੜੈ ਅੰਧਾ ਮੂੜੁ ॥੨॥
सिरु हाथ पछोड़ै अंधा मूड़ु ॥२॥
और अपने हाथों से अपना सिर पीटता है॥ २॥

ਰੋਗ ਬਿਆਪੇ ਕਰਦੇ ਪਾਪ ॥
रोग बिआपे करदे पाप ॥
जो व्यक्ति पाप करते रहते हैं, उन्हें अनेक रोग लग जाते हैं।

ਅਦਲੀ ਹੋਇ ਬੈਠਾ ਪ੍ਰਭੁ ਆਪਿ ॥੩॥
अदली होइ बैठा प्रभु आपि ॥३॥
ईश्वर स्वयं ही न्यायकर्ता बनकर बैठा हुआ है॥ ३॥

ਅਪਨ ਕਮਾਇਐ ਆਪੇ ਬਾਧੇ ॥
अपन कमाइऐ आपे बाधे ॥
मनुष्य अपने कर्मों के कारण स्वयं ही बंध गए हैं।

ਦਰਬੁ ਗਇਆ ਸਭੁ ਜੀਅ ਕੈ ਸਾਥੈ ॥੪॥
दरबु गइआ सभु जीअ कै साथै ॥४॥
सारा धन-पदार्थ जीवन (प्राणों) के साथ ही चला जाता है॥ ४॥

ਨਾਨਕ ਸਰਨਿ ਪਰੇ ਦਰਬਾਰਿ ॥
नानक सरनि परे दरबारि ॥
हे नानक ! जिन्होंने प्रभु के दरबार में शरण ली है।

ਰਾਖੀ ਪੈਜ ਮੇਰੈ ਕਰਤਾਰਿ ॥੫॥੯੯॥੧੬੮॥
राखी पैज मेरै करतारि ॥५॥९९॥१६८॥
मेरे करतार ने उनकी प्रतिष्ठा रख ली है ॥५॥९९॥१६८॥

ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
गउड़ी महला ५ ॥

ਜਨ ਕੀ ਧੂਰਿ ਮਨ ਮੀਠ ਖਟਾਨੀ ॥
जन की धूरि मन मीठ खटानी ॥
उस प्राणी के मन को भगवान के सेवक की चरण-धूलि ही मीठी लगती है,”

ਪੂਰਬਿ ਕਰਮਿ ਲਿਖਿਆ ਧੁਰਿ ਪ੍ਰਾਨੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
पूरबि करमि लिखिआ धुरि प्रानी ॥१॥ रहाउ ॥
जिसके ललाट पर पूर्व जन्म में किए कर्मों अनुसार आदि से लेख लिखा होता है ॥ १॥ रहाउ॥

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