ਐਸਾ ਗੁਰਮਤਿ ਰਮਤੁ ਸਰੀਰਾ ॥ ਹਰਿ ਭਜੁ ਮੇਰੇ ਮਨ ਗਹਿਰ ਗੰਭੀਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
ऐसा गुरमति रमतु सरीरा ॥ हरि भजु मेरे मन गहिर ग्मभीरा ॥१॥ रहाउ ॥
हे मेरे मन ! सतिगुरु के उपदेश से ऐसे हरि का भजन कर,”जो समस्त शरीरों में समाया हुआ और बहुत ही गहरा एवं गंभीर है॥ १॥ रहाउ॥
ਅਨਤ ਤਰੰਗ ਭਗਤਿ ਹਰਿ ਰੰਗਾ ॥
अनत तरंग भगति हरि रंगा ॥
जिनके मन में प्रभु-भक्ति की अनंत लहरें उठती रहती हैं और हरि के प्रेम में मग्न रहते हैं।
ਅਨਦਿਨੁ ਸੂਚੇ ਹਰਿ ਗੁਣ ਸੰਗਾ ॥
अनदिनु सूचे हरि गुण संगा ॥
जिसे प्रभु की प्रशंसा की संगति प्राप्त है, वह दिन-रात ही पवित्र है।
ਮਿਥਿਆ ਜਨਮੁ ਸਾਕਤ ਸੰਸਾਰਾ ॥
मिथिआ जनमु साकत संसारा ॥
इस संसार में शाक्त मनुष्य का जन्म निरर्थक है।
ਰਾਮ ਭਗਤਿ ਜਨੁ ਰਹੈ ਨਿਰਾਰਾ ॥੨॥
राम भगति जनु रहै निरारा ॥२॥
राम की भक्ति करने वाला मनुष्य मोह-मांया से निर्लिप्त रहता है॥ २॥
ਸੂਚੀ ਕਾਇਆ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਇਆ ॥
सूची काइआ हरि गुण गाइआ ॥
वही शरीर शुद्ध है-जो हरि के गुण गाता रहता है।
ਆਤਮੁ ਚੀਨਿ ਰਹੈ ਲਿਵ ਲਾਇਆ ॥
आतमु चीनि रहै लिव लाइआ ॥
अपने चित्त में ईश्वर को स्मरण करके यह (शरीर) उसकी प्रीति में लीन रहता है।
ਆਦਿ ਅਪਾਰੁ ਅਪਰੰਪਰੁ ਹੀਰਾ ॥
आदि अपारु अपर्मपरु हीरा ॥
प्रभु आदि, अनन्त, अपरम्पार एवं हीरा है।
ਲਾਲਿ ਰਤਾ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਧੀਰਾ ॥੩॥
लालि रता मेरा मनु धीरा ॥३॥
उस प्रियतम प्रभु से मेरा मन अनुरक्त एवं संतुष्ट हुआ है॥ ३॥
ਕਥਨੀ ਕਹਹਿ ਕਹਹਿ ਸੇ ਮੂਏ ॥
कथनी कहहि कहहि से मूए ॥
जो केवल मौखिक बातें ही कहते हैं, वह वास्तव में मृत हैं।
ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਦੂਰਿ ਨਾਹੀ ਪ੍ਰਭੁ ਤੂੰ ਹੈ ॥
सो प्रभु दूरि नाही प्रभु तूं है ॥
वह प्रभु दूर नहीं। हे प्रभु ! तुम निकट ही हो।
ਸਭੁ ਜਗੁ ਦੇਖਿਆ ਮਾਇਆ ਛਾਇਆ ॥
सभु जगु देखिआ माइआ छाइआ ॥
मैंने समूचा जगत देखा है, यह माया तो प्रभु की छाया है।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮਤਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ॥੪॥੧੭॥
नानक गुरमति नामु धिआइआ ॥४॥१७॥
हे नानक ! गुरु के उपदेश से मैंनें प्रभु नाम का ध्यान किया॥ ४॥ १७॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ਤਿਤੁਕਾ ॥
आसा महला १ तितुका ॥
आसा महला १ तितुका ॥
ਕੋਈ ਭੀਖਕੁ ਭੀਖਿਆ ਖਾਇ ॥
कोई भीखकु भीखिआ खाइ ॥
कोई भिखारी है, जो भिक्षा लेकर खाता है
ਕੋਈ ਰਾਜਾ ਰਹਿਆ ਸਮਾਇ ॥
कोई राजा रहिआ समाइ ॥
और कोई राजा है, जो राज के सुखों में लीन रहता है।
ਕਿਸ ਹੀ ਮਾਨੁ ਕਿਸੈ ਅਪਮਾਨੁ ॥
किस ही मानु किसै अपमानु ॥
किसी मनुष्य को मान मिलता है और किसी को अपमान।
ਢਾਹਿ ਉਸਾਰੇ ਧਰੇ ਧਿਆਨੁ ॥
ढाहि उसारे धरे धिआनु ॥
प्रभु ही दुनिया का नाश करता है, रचना करता है और सबको अपने ध्यान में रखता है।
ਤੁਝ ਤੇ ਵਡਾ ਨਾਹੀ ਕੋਇ ॥
तुझ ते वडा नाही कोइ ॥
हे प्रभु ! तुझ से बड़ा कोई नहीं।
ਕਿਸੁ ਵੇਖਾਲੀ ਚੰਗਾ ਹੋਇ ॥੧॥
किसु वेखाली चंगा होइ ॥१॥
मैं किसे तेरे समक्ष उपस्थित करूँ, जो तुझसे अच्छा है?॥ १॥
ਮੈ ਤਾਂ ਨਾਮੁ ਤੇਰਾ ਆਧਾਰੁ ॥
मै तां नामु तेरा आधारु ॥
हे प्रभु ! केवल तेरा नाम मेरे जीवन का आधार है।
ਤੂੰ ਦਾਤਾ ਕਰਣਹਾਰੁ ਕਰਤਾਰੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तूं दाता करणहारु करतारु ॥१॥ रहाउ ॥
तू ही दाता, सबकुछ करने वाला जगत का करतार है॥ १॥ रहाउ॥
ਵਾਟ ਨ ਪਾਵਉ ਵੀਗਾ ਜਾਉ ॥
वाट न पावउ वीगा जाउ ॥
हे स्वामी ! मैं तेरे मार्ग नहीं चलता अपितु टेढ़े (पेचदार) मार्ग जाता हूँ।
ਦਰਗਹ ਬੈਸਣ ਨਾਹੀ ਥਾਉ ॥
दरगह बैसण नाही थाउ ॥
प्रभु के दरबार में मुझे बैठने के लिए कोई स्थान नहीं मिलता।
ਮਨ ਕਾ ਅੰਧੁਲਾ ਮਾਇਆ ਕਾ ਬੰਧੁ ॥
मन का अंधुला माइआ का बंधु ॥
मैं मन का अन्धा हूँ और माया में फँसा हुआ हूँ
ਖੀਨ ਖਰਾਬੁ ਹੋਵੈ ਨਿਤ ਕੰਧੁ ॥
खीन खराबु होवै नित कंधु ॥
और मेरे शरीर की दीवार नित्य ही क्षीण एवं कमजोर हो रही है।
ਖਾਣ ਜੀਵਣ ਕੀ ਬਹੁਤੀ ਆਸ ॥
खाण जीवण की बहुती आस ॥
तूने खाने और अधिक जीने की भारी आशा रखी हुई है
ਲੇਖੈ ਤੇਰੈ ਸਾਸ ਗਿਰਾਸ ॥੨॥
लेखै तेरै सास गिरास ॥२॥
परन्तु तुम जानते नहीं कि तुम्हारी सांस एवं ग्रास आगे गिने हुए हैं।॥ २॥
ਅਹਿਨਿਸਿ ਅੰਧੁਲੇ ਦੀਪਕੁ ਦੇਇ ॥
अहिनिसि अंधुले दीपकु देइ ॥
हे प्रभु ! (ज्ञान से) अन्धे मनुष्य को सदैव ही ज्ञान का दीपक प्रदान कर
ਭਉਜਲ ਡੂਬਤ ਚਿੰਤ ਕਰੇਇ ॥
भउजल डूबत चिंत करेइ ॥
और उसकी चिन्ता कर जो भयानक संसार-सागर में डूब रहा है।
ਕਹਹਿ ਸੁਣਹਿ ਜੋ ਮਾਨਹਿ ਨਾਉ ॥ ਹਉ ਬਲਿਹਾਰੈ ਤਾ ਕੈ ਜਾਉ ॥
कहहि सुणहि जो मानहि नाउ ॥ हउ बलिहारै ता कै जाउ ॥
जो मनुष्य नाम का जाप करता है, सुनता एवं आस्था रखता है,”मैं उस पर कुर्बान जाता हूँ।
ਨਾਨਕੁ ਏਕ ਕਹੈ ਅਰਦਾਸਿ ॥
नानकु एक कहै अरदासि ॥
हे प्रभु ! नानक एक प्रार्थना करता है कि
ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਸਭੁ ਤੇਰੈ ਪਾਸਿ ॥੩॥
जीउ पिंडु सभु तेरै पासि ॥३॥
उसकी आत्मा एवं शरीर तुझ पर अर्पित हैं॥ ३॥
ਜਾਂ ਤੂੰ ਦੇਹਿ ਜਪੀ ਤੇਰਾ ਨਾਉ ॥
जां तूं देहि जपी तेरा नाउ ॥
यदि तू प्रदान करे तो मैं तेरे नाम का जाप करूँगा।
ਦਰਗਹ ਬੈਸਣ ਹੋਵੈ ਥਾਉ ॥
दरगह बैसण होवै थाउ ॥
इस तरह मैं सत्य के दरबार में बैठने के लिए स्थान प्राप्त कर लूंगा।
ਜਾਂ ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਤਾ ਦੁਰਮਤਿ ਜਾਇ ॥
जां तुधु भावै ता दुरमति जाइ ॥
जब तुझे अच्छा लगता है तो दुर्बुद्धि दूर हो जाती है और
ਗਿਆਨ ਰਤਨੁ ਮਨਿ ਵਸੈ ਆਇ ॥
गिआन रतनु मनि वसै आइ ॥
ज्ञान रूपी रत्न आकर चित्त में बस जाता है।
ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਤਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ॥
नदरि करे ता सतिगुरु मिलै ॥
यदि प्रभु अपनी कृपादृष्टि धारण करे तो सतिगुरु मिल जाता है
ਪ੍ਰਣਵਤਿ ਨਾਨਕੁ ਭਵਜਲੁ ਤਰੈ ॥੪॥੧੮॥
प्रणवति नानकु भवजलु तरै ॥४॥१८॥
नानक प्रार्थना करते हैं और भवसागर से पार हो जाता है। ४॥ १८॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ਪੰਚਪਦੇ ॥
आसा महला १ पंचपदे ॥
आसा महला १ पंचपदे ॥
ਦੁਧ ਬਿਨੁ ਧੇਨੁ ਪੰਖ ਬਿਨੁ ਪੰਖੀ ਜਲ ਬਿਨੁ ਉਤਭੁਜ ਕਾਮਿ ਨਾਹੀ ॥
दुध बिनु धेनु पंख बिनु पंखी जल बिनु उतभुज कामि नाही ॥
हे प्रभु ! दूध के बिना गाय, पंखों के बिना पक्षी एवं जल के बिना वनस्पति किसी काम की नहीं।
ਕਿਆ ਸੁਲਤਾਨੁ ਸਲਾਮ ਵਿਹੂਣਾ ਅੰਧੀ ਕੋਠੀ ਤੇਰਾ ਨਾਮੁ ਨਾਹੀ ॥੧॥
किआ सुलतानु सलाम विहूणा अंधी कोठी तेरा नामु नाही ॥१॥
वह कैसा सुल्तान है, जिसे कोई सलाम ही न करे ? इसी तरह तेरे नाम के बिना आत्मा की कोठी में भयानक अन्धेरा है॥ १॥
ਕੀ ਵਿਸਰਹਿ ਦੁਖੁ ਬਹੁਤਾ ਲਾਗੈ ॥
की विसरहि दुखु बहुता लागै ॥
हे प्रभु ! मैं तुझे क्यों विस्मृत करूँ, तुझे भुलाने से मुझे बहुत दुःख लगता है
ਦੁਖੁ ਲਾਗੈ ਤੂੰ ਵਿਸਰੁ ਨਾਹੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
दुखु लागै तूं विसरु नाही ॥१॥ रहाउ ॥
बहुत दुःख लगता है प्रभु तो विस्मृत न हो ॥ १॥ रहाउ ॥
ਅਖੀ ਅੰਧੁ ਜੀਭ ਰਸੁ ਨਾਹੀ ਕੰਨੀ ਪਵਣੁ ਨ ਵਾਜੈ ॥
अखी अंधु जीभ रसु नाही कंनी पवणु न वाजै ॥
बुढ़ापा आने पर मनुष्य के नेत्रों की रोशनी कम हो जाती है, जिब का स्वाद खत्म हो जाता है और उसके कान आवाज़ नहीं सुनते।
ਚਰਣੀ ਚਲੈ ਪਜੂਤਾ ਆਗੈ ਵਿਣੁ ਸੇਵਾ ਫਲ ਲਾਗੇ ॥੨॥
चरणी चलै पजूता आगै विणु सेवा फल लागे ॥२॥
किसी के आगे सहारा दिए हुए ही वह पैर से चलता है। बिना सेवा के ऐसे फल-जीवन को लगते हैं ॥ २॥
ਅਖਰ ਬਿਰਖ ਬਾਗ ਭੁਇ ਚੋਖੀ ਸਿੰਚਿਤ ਭਾਉ ਕਰੇਹੀ ॥
अखर बिरख बाग भुइ चोखी सिंचित भाउ करेही ॥
अपने हृदय के बाग के खुले खेत में सतिगुरु के उपदेश का वृक्ष पैदा कर और इसे प्रभु के प्रेम से सीच।
ਸਭਨਾ ਫਲੁ ਲਾਗੈ ਨਾਮੁ ਏਕੋ ਬਿਨੁ ਕਰਮਾ ਕੈਸੇ ਲੇਹੀ ॥੩॥
सभना फलु लागै नामु एको बिनु करमा कैसे लेही ॥३॥
सभी वृक्षों को एक प्रभु के नाम का फल लगा हुआ है। उसकी दया बिना मनुष्य इसे किस तरह पा सकता है ?॥ ३॥
ਜੇਤੇ ਜੀਅ ਤੇਤੇ ਸਭਿ ਤੇਰੇ ਵਿਣੁ ਸੇਵਾ ਫਲੁ ਕਿਸੈ ਨਾਹੀ ॥
जेते जीअ तेते सभि तेरे विणु सेवा फलु किसै नाही ॥
जितने भी जीव-जन्तु हैं, सब तेरे ही हैं। सेवा के बिना किसी को भी फल प्राप्त नहीं होता।
ਦੁਖੁ ਸੁਖੁ ਭਾਣਾ ਤੇਰਾ ਹੋਵੈ ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਜੀਉ ਰਹੈ ਨਾਹੀ ॥੪॥
दुखु सुखु भाणा तेरा होवै विणु नावै जीउ रहै नाही ॥४॥
दुख एवं सुख तेरी इच्छा में है। नाम के बिना जीवन नहीं रहता ॥ ४॥
ਮਤਿ ਵਿਚਿ ਮਰਣੁ ਜੀਵਣੁ ਹੋਰੁ ਕੈਸਾ ਜਾ ਜੀਵਾ ਤਾਂ ਜੁਗਤਿ ਨਾਹੀ ॥
मति विचि मरणु जीवणु होरु कैसा जा जीवा तां जुगति नाही ॥
गुरु के उपदेश द्वारा मरना ही सत्य जीवन है। दूसरी प्रकार किस तरह जीवन हो सकता है ? यदि मैं दूसरी तरह जीता हूँ तो वह उपयुक्त युक्ति नहीं।
ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਜੀਵਾਲੇ ਜੀਆ ਜਹ ਭਾਵੈ ਤਹ ਰਾਖੁ ਤੁਹੀ ॥੫॥੧੯॥
कहै नानकु जीवाले जीआ जह भावै तह राखु तुही ॥५॥१९॥
हे नानक ! प्रभु जीवों को अपनी इच्छानुसार जीवन प्रदान करता है। हे प्रभु ! मुझे वहाँ रख, जहाँ तुझे अच्छा लगता है। ॥५॥१९॥