ਜਾ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਭਾਵੈ ਤਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਮੇਲੇ ਜਿਨੑ ਵਚਨ ਗੁਰੂ ਸਤਿਗੁਰ ਮਨਿ ਭਾਇਆ ॥
जा हरि प्रभ भावै ता गुरमुखि मेले जिन्ह वचन गुरू सतिगुर मनि भाइआ ॥
जब हरि-प्रभु को अच्छा लगता है तो वह गुरुमुखों से मिला देता है, जिनके मन को गुरु-सतगुरु की वाणी बड़ी मधुर लगती है।
ਵਡਭਾਗੀ ਗੁਰ ਕੇ ਸਿਖ ਪਿਆਰੇ ਹਰਿ ਨਿਰਬਾਣੀ ਨਿਰਬਾਣ ਪਦੁ ਪਾਇਆ ॥੨॥
वडभागी गुर के सिख पिआरे हरि निरबाणी निरबाण पदु पाइआ ॥२॥
गुरु के प्यारे सिक्ख भाग्यवान हैं, जो निर्वाणी प्रभु के द्वारा निर्वाण-पद प्राप्त कर लेते हैं।॥ २॥
ਸਤਸੰਗਤਿ ਗੁਰ ਕੀ ਹਰਿ ਪਿਆਰੀ ਜਿਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਮੀਠਾ ਮਨਿ ਭਾਇਆ ॥
सतसंगति गुर की हरि पिआरी जिन हरि हरि नामु मीठा मनि भाइआ ॥
गुरु की सत्संगति हरि की प्यारी है, जिन्हें हरि-प्रभु का नाम मीठा एवं मधुर लगता है।
ਜਿਨ ਸਤਿਗੁਰ ਸੰਗਤਿ ਸੰਗੁ ਨ ਪਾਇਆ ਸੇ ਭਾਗਹੀਣ ਪਾਪੀ ਜਮਿ ਖਾਇਆ ॥੩॥
जिन सतिगुर संगति संगु न पाइआ से भागहीण पापी जमि खाइआ ॥३॥
जिन्हें सतिगुरु की संगति एवं साथ प्राप्त नहीं हुआ, उन भाग्यहीन पापियों को यमदूत निगल जाता है॥ ३॥
ਆਪਿ ਕ੍ਰਿਪਾਲੁ ਕ੍ਰਿਪਾ ਪ੍ਰਭੁ ਧਾਰੇ ਹਰਿ ਆਪੇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਿਲੈ ਮਿਲਾਇਆ ॥
आपि क्रिपालु क्रिपा प्रभु धारे हरि आपे गुरमुखि मिलै मिलाइआ ॥
यदि कृपालु प्रभु स्वयं कृपा धारण करे तो गुरुमुखों के मिलाने से प्राणी ईश्वर से मिल पाता है।
ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਬੋਲੇ ਗੁਣ ਬਾਣੀ ਗੁਰਬਾਣੀ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਇਆ ॥੪॥੫॥
जनु नानकु बोले गुण बाणी गुरबाणी हरि नामि समाइआ ॥४॥५॥
नानक भी गुणों वाली वाणी (गुरुवाणी) ही बोलता है। गुरुवाणी के माध्यम से जीव हरि के नाम में समा जाता है॥ ४॥ ५॥
ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
गूजरी महला ४ ॥
गूजरी महला ४ ॥
ਜਿਨ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੁਰਖੁ ਜਿਨਿ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਪਾਇਆ ਮੋ ਕਉ ਕਰਿ ਉਪਦੇਸੁ ਹਰਿ ਮੀਠ ਲਗਾਵੈ ॥
जिन सतिगुरु पुरखु जिनि हरि प्रभु पाइआ मो कउ करि उपदेसु हरि मीठ लगावै ॥
मेरी कामना है कि जिसने महापुरुष सतगुरु, हरि-प्रभु को पा लिया है, वह मुझे भी उपदेश देकर हरि से मेरा प्रेम लगा दे।
ਮਨੁ ਤਨੁ ਸੀਤਲੁ ਸਭ ਹਰਿਆ ਹੋਆ ਵਡਭਾਗੀ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਵੈ ॥੧॥
मनु तनु सीतलु सभ हरिआ होआ वडभागी हरि नामु धिआवै ॥१॥
जो भाग्यवान इन्सान हरि के नाम का ध्यान करता है, उसका मन एवं तन शीतल हो जाता है और उसका मुरझाया हुआ सारा शरीर ही प्रसन्न हो जाता है॥ १॥
ਭਾਈ ਰੇ ਮੋ ਕਉ ਕੋਈ ਆਇ ਮਿਲੈ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਵੈ ॥
भाई रे मो कउ कोई आइ मिलै हरि नामु द्रिड़ावै ॥
हे मेरे भाई ! मेरी कामना है कि कोई ऐसा संत आकर मुझे मिले, जो मेरे अन्तर्मन में हरि का नाम बसा दे।
ਮੇਰੇ ਪ੍ਰੀਤਮ ਪ੍ਰਾਨ ਮਨੁ ਤਨੁ ਸਭੁ ਦੇਵਾ ਮੇਰੇ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਹਰਿ ਕਥਾ ਸੁਨਾਵੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मेरे प्रीतम प्रान मनु तनु सभु देवा मेरे हरि प्रभ की हरि कथा सुनावै ॥१॥ रहाउ ॥
जो मुझे मेरे प्रभु की हरि कथा सुनाएगा, मैं अपने प्राण, मन एवं तन उस प्रीतम को अर्पित कर दूंगा ॥ १॥ रहाउ॥
ਧੀਰਜੁ ਧਰਮੁ ਗੁਰਮਤਿ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ਨਿਤ ਹਰਿ ਨਾਮੈ ਹਰਿ ਸਿਉ ਚਿਤੁ ਲਾਵੈ ॥
धीरजु धरमु गुरमति हरि पाइआ नित हरि नामै हरि सिउ चितु लावै ॥
गुरु के उपदेश द्वारा मुझे धैर्य, धर्म एवं हरि-प्रभु प्राप्त हुए हैं। हरि-नाम द्वारा मैं अपना चित्त हरि से लगाए रखता हूँ।
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਚਨ ਸਤਿਗੁਰ ਕੀ ਬਾਣੀ ਜੋ ਬੋਲੈ ਸੋ ਮੁਖਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪਾਵੈ ॥੨॥
अम्रित बचन सतिगुर की बाणी जो बोलै सो मुखि अम्रितु पावै ॥२॥
सतिगुरु की वाणी अमृत वचन हैं, जो मनुष्य वाणी उच्चरित करता है, उसके मुँह में अमृत टपकता है॥ २॥
ਨਿਰਮਲੁ ਨਾਮੁ ਜਿਤੁ ਮੈਲੁ ਨ ਲਾਗੈ ਗੁਰਮਤਿ ਨਾਮੁ ਜਪੈ ਲਿਵ ਲਾਵੈ ॥
निरमलु नामु जितु मैलु न लागै गुरमति नामु जपै लिव लावै ॥
हरि का नाम बड़ा पावन है, जिसका सिमरन करने से मन को अहंत्व की मैल नहीं लगती। जो व्यक्ति गुरु के उपदेश से प्रभु-नाम का जाप करता है, उसकी वृति प्रभु-चरणों में लगी रहती है।
ਨਾਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਜਿਨ ਨਰ ਨਹੀ ਪਾਇਆ ਸੇ ਭਾਗਹੀਣ ਮੁਏ ਮਰਿ ਜਾਵੈ ॥੩॥
नामु पदारथु जिन नर नही पाइआ से भागहीण मुए मरि जावै ॥३॥
जिस मनुष्यको प्रभु के नाम का पदार्थ प्राप्त नहीं हुआ, वह भाग्यहीन है और बार-बार मरता रहता है॥ ३॥
ਆਨਦ ਮੂਲੁ ਜਗਜੀਵਨ ਦਾਤਾ ਸਭ ਜਨ ਕਉ ਅਨਦੁ ਕਰਹੁ ਹਰਿ ਧਿਆਵੈ ॥
आनद मूलु जगजीवन दाता सभ जन कउ अनदु करहु हरि धिआवै ॥
हे जगजीवन दाता ! तू आनंद का स्रोत है। जो हरि का नाम-सुमिरन करते हैं, वह अपने सभी सेवकों को आनंदित कर देता है।
ਤੂੰ ਦਾਤਾ ਜੀਅ ਸਭਿ ਤੇਰੇ ਜਨ ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਬਖਸਿ ਮਿਲਾਵੈ ॥੪॥੬॥
तूं दाता जीअ सभि तेरे जन नानक गुरमुखि बखसि मिलावै ॥४॥६॥
नानक का कथन है कि हे प्रभु ! तू सब जीवों का दाता है और सब जीव तेरे पैदा किए हुए हैं। तू अपने जीवों को गुरु के माध्यम से क्षमा करके अपने साथ मिला लेता है॥ ४ ॥ ६ ॥
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ਘਰੁ ੩ ॥
गूजरी महला ४ घरु ३ ॥
गूजरी महला ४ घरु ३ ॥
ਮਾਈ ਬਾਪ ਪੁਤ੍ਰ ਸਭਿ ਹਰਿ ਕੇ ਕੀਏ ॥
माई बाप पुत्र सभि हरि के कीए ॥
माता, पिता एवं पुत्र इत्यादि सभी हरि ने बनाए हुए हैं।
ਸਭਨਾ ਕਉ ਸਨਬੰਧੁ ਹਰਿ ਕਰਿ ਦੀਏ ॥੧॥
सभना कउ सनबंधु हरि करि दीए ॥१॥
हरि ने स्वयं सभी के परस्पर संबंध कायम किए हैं॥ १॥
ਹਮਰਾ ਜੋਰੁ ਸਭੁ ਰਹਿਓ ਮੇਰੇ ਬੀਰ ॥
हमरा जोरु सभु रहिओ मेरे बीर ॥
हे मेरे भाई ! ईश्वर के समक्ष हमारा कोई भी जोर नहीं चल सकता।
ਹਰਿ ਕਾ ਤਨੁ ਮਨੁ ਸਭੁ ਹਰਿ ਕੈ ਵਸਿ ਹੈ ਸਰੀਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि का तनु मनु सभु हरि कै वसि है सरीर ॥१॥ रहाउ ॥
हमारे यह तन-मन सभी हरि के हैं और यह समूचा शरीर उसके वश में है॥ १॥ रहाउ॥
ਭਗਤ ਜਨਾ ਕਉ ਸਰਧਾ ਆਪਿ ਹਰਿ ਲਾਈ ॥
भगत जना कउ सरधा आपि हरि लाई ॥
हरि आप ही भक्तजनों में अपनी श्रद्धा लगाता है और
ਵਿਚੇ ਗ੍ਰਿਸਤ ਉਦਾਸ ਰਹਾਈ ॥੨॥
विचे ग्रिसत उदास रहाई ॥२॥
भक्तजन गृहस्थ जीवन में निर्लेप बने रहते हैं।॥ २ ॥
ਜਬ ਅੰਤਰਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਹਰਿ ਸਿਉ ਬਨਿ ਆਈ ॥
जब अंतरि प्रीति हरि सिउ बनि आई ॥
जब हरि के साथ हृदय में प्रेम बन जाता है तो
ਤਬ ਜੋ ਕਿਛੁ ਕਰੇ ਸੁ ਮੇਰੇ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਭਾਈ ॥੩॥
तब जो किछु करे सु मेरे हरि प्रभ भाई ॥३॥
जो कुछ भी जीव करता है वह मेरे हरि-प्रभु को भला लगता है॥ ३॥
ਜਿਤੁ ਕਾਰੈ ਕੰਮਿ ਹਮ ਹਰਿ ਲਾਏ ॥
जितु कारै कमि हम हरि लाए ॥
जिस कार्य एवं काम में हरि ने हमें लगाया है,
ਸੋ ਹਮ ਕਰਹ ਜੁ ਆਪਿ ਕਰਾਏ ॥੪॥
सो हम करह जु आपि कराए ॥४॥
हम वही कार्य करते हैं जो वह हमसे करवाता है॥ ४॥
ਜਿਨ ਕੀ ਭਗਤਿ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰਭ ਭਾਈ ॥
जिन की भगति मेरे प्रभ भाई ॥
हे नानक ! जिनकी भक्ति मेरे प्रभु को लुभाती है,
ਤੇ ਜਨ ਨਾਨਕ ਰਾਮ ਨਾਮ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥੫॥੧॥੭॥੧੬॥
ते जन नानक राम नाम लिव लाई ॥५॥१॥७॥१६॥
वे पुरुष अपना ध्यान राम नाम के साथ लगाकर रखते हैं॥ ५ ॥ १॥ ७ ॥ १६ ॥