ਇਸੁ ਗਰਬ ਤੇ ਚਲਹਿ ਬਹੁਤੁ ਵਿਕਾਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
इसु गरब ते चलहि बहुतु विकारा ॥१॥ रहाउ ॥
इस गर्व के कारण अनेक विकारों में वृद्धि होती है॥१॥ रहाउ॥
ਚਾਰੇ ਵਰਨ ਆਖੈ ਸਭੁ ਕੋਈ ॥
चारे वरन आखै सभु कोई ॥
हर कोई कहता है कि (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र) चार वर्ण हैं,
ਬ੍ਰਹਮੁ ਬਿੰਦ ਤੇ ਸਭ ਓਪਤਿ ਹੋਈ ॥੨॥
ब्रहमु बिंद ते सभ ओपति होई ॥२॥
मगर समूचे संसार की उत्पति एक ब्रह्म बिंदु से हुई है (अर्थात् सब एक पिता परमेश्वर की औलाद हैं)॥२॥
ਮਾਟੀ ਏਕ ਸਗਲ ਸੰਸਾਰਾ ॥ ਬਹੁ ਬਿਧਿ ਭਾਂਡੇ ਘੜੈ ਕੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰਾ ॥੩॥
माटी एक सगल संसारा ॥ बहु बिधि भांडे घड़ै कुम्हारा ॥३॥
समूचे संसार की रचना में एक ही मिट्टी का प्रयोग हुआ है, इसी से ईश्वर रूपी कुम्हार ने अनेक प्रकार के जीव रूपी बर्तन बनाए हैं॥३॥
ਪੰਚ ਤਤੁ ਮਿਲਿ ਦੇਹੀ ਕਾ ਆਕਾਰਾ ॥
पंच ततु मिलि देही का आकारा ॥
पंचतत्व मिलाकर शरीर का आकार बना है,
ਘਟਿ ਵਧਿ ਕੋ ਕਰੈ ਬੀਚਾਰਾ ॥੪॥
घटि वधि को करै बीचारा ॥४॥
फिर किसी में कम या अधिक तत्व कैसे कोई कह सकता है॥४॥
ਕਹਤੁ ਨਾਨਕ ਇਹੁ ਜੀਉ ਕਰਮ ਬੰਧੁ ਹੋਈ ॥
कहतु नानक इहु जीउ करम बंधु होई ॥
नानक कहते हैं कि यह जीव कर्मों के बन्धन में बंधा हुआ है और
ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਭੇਟੇ ਮੁਕਤਿ ਨ ਹੋਈ ॥੫॥੧॥
बिनु सतिगुर भेटे मुकति न होई ॥५॥१॥
सतगुरु से साक्षात्कार किए बिना इसकी मुक्ति नहीं होती॥५॥१॥
ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੩ ॥
भैरउ महला ३ ॥
भैरउ महला ३॥
ਜੋਗੀ ਗ੍ਰਿਹੀ ਪੰਡਿਤ ਭੇਖਧਾਰੀ ॥ ਏ ਸੂਤੇ ਅਪਣੈ ਅਹੰਕਾਰੀ ॥੧॥
जोगी ग्रिही पंडित भेखधारी ॥ ए सूते अपणै अहंकारी ॥१॥
योगी, गृहस्थी, पण्डित, वेषाडम्बरी सब अपने अहंकार के कारण अज्ञान की निद्रा में सो रहे हैं।॥१॥
ਮਾਇਆ ਮਦਿ ਮਾਤਾ ਰਹਿਆ ਸੋਇ ॥
माइआ मदि माता रहिआ सोइ ॥
जीव माया के मद में मस्त रहता है,
ਜਾਗਤੁ ਰਹੈ ਨ ਮੂਸੈ ਕੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जागतु रहै न मूसै कोइ ॥१॥ रहाउ ॥
पर जो जागृत रहता है, उसे कोई नहीं लूटता॥१॥रहाउ॥
ਸੋ ਜਾਗੈ ਜਿਸੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ॥
सो जागै जिसु सतिगुरु मिलै ॥
वही जागृत रहता है, जिसका सतगुरु से साक्षात्कार हो जाता है,
ਪੰਚ ਦੂਤ ਓਹੁ ਵਸਗਤਿ ਕਰੈ ॥੨॥
पंच दूत ओहु वसगति करै ॥२॥
वह कामादिक पाँच दूतों को वशीभूत कर लेता है॥२॥
ਸੋ ਜਾਗੈ ਜੋ ਤਤੁ ਬੀਚਾਰੈ ॥
सो जागै जो ततु बीचारै ॥
वही जागता है, जो तत्व का चिंतन करता है,
ਆਪਿ ਮਰੈ ਅਵਰਾ ਨਹ ਮਾਰੈ ॥੩॥
आपि मरै अवरा नह मारै ॥३॥
वह अन्यों को नहीं मारता अपितु अपने अहम् को मारता है॥३॥
ਸੋ ਜਾਗੈ ਜੋ ਏਕੋ ਜਾਣੈ ॥ ਪਰਕਿਰਤਿ ਛੋਡੈ ਤਤੁ ਪਛਾਣੈ ॥੪॥
सो जागै जो एको जाणै ॥ परकिरति छोडै ततु पछाणै ॥४॥
वही जागता है, जो ईश्वर को जानता है। वह मनोवृति छोड़कर सार तत्व को पहचान लेता है॥४॥
ਚਹੁ ਵਰਨਾ ਵਿਚਿ ਜਾਗੈ ਕੋਇ ॥
चहु वरना विचि जागै कोइ ॥
चारों वर्णो में जो कोई जागता है,
ਜਮੈ ਕਾਲੈ ਤੇ ਛੂਟੈ ਸੋਇ ॥੫॥
जमै कालै ते छूटै सोइ ॥५॥
वही यमकाल से छूट जाता है॥५॥
ਕਹਤ ਨਾਨਕ ਜਨੁ ਜਾਗੈ ਸੋਇ ॥ ਗਿਆਨ ਅੰਜਨੁ ਜਾ ਕੀ ਨੇਤ੍ਰੀ ਹੋਇ ॥੬॥੨॥
कहत नानक जनु जागै सोइ ॥ गिआन अंजनु जा की नेत्री होइ ॥६॥२॥
नानक कहते हैं कि वही व्यक्ति जागृत है, जिसकी आँखों में ज्ञान-अंजन होता है॥६॥२॥
ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੩ ॥
भैरउ महला ३ ॥
भैरउ महला ३॥
ਜਾ ਕਉ ਰਾਖੈ ਅਪਣੀ ਸਰਣਾਈ ॥
जा कउ राखै अपणी सरणाई ॥
जिसे परमेश्वर अपनी शरण में रखता है,
ਸਾਚੇ ਲਾਗੈ ਸਾਚਾ ਫਲੁ ਪਾਈ ॥੧॥
साचे लागै साचा फलु पाई ॥१॥
वह सत्य में प्रवृत्त होकर सच्चा फल हो पाता है॥१॥
ਰੇ ਜਨ ਕੈ ਸਿਉ ਕਰਹੁ ਪੁਕਾਰਾ ॥
रे जन कै सिउ करहु पुकारा ॥
हे मनुष्य ! किस के आगे पुकार कर रहे हो,
ਹੁਕਮੇ ਹੋਆ ਹੁਕਮੇ ਵਰਤਾਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हुकमे होआ हुकमे वरतारा ॥१॥ रहाउ ॥
सब उसके हुक्म से पैदा हुआ है और हुक्म से चल रहा है॥१॥रहाउ॥
ਏਹੁ ਆਕਾਰੁ ਤੇਰਾ ਹੈ ਧਾਰਾ ॥
एहु आकारु तेरा है धारा ॥
हे ईश्वर ! यह संसार तेरा धारण किया हुआ है और
ਖਿਨ ਮਹਿ ਬਿਨਸੈ ਕਰਤ ਨ ਲਾਗੈ ਬਾਰਾ ॥੨॥
खिन महि बिनसै करत न लागै बारा ॥२॥
इसे तुम क्षण में नष्ट कर देते हो और कोई समय नहीं लगता॥२॥
ਕਰਿ ਪ੍ਰਸਾਦੁ ਇਕੁ ਖੇਲੁ ਦਿਖਾਇਆ ॥
करि प्रसादु इकु खेलु दिखाइआ ॥
ईश्वर ने कृपा कर एक विचित्र खेल दिखाया है,
ਗੁਰ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਪਰਮ ਪਦੁ ਪਾਇਆ ॥੩॥
गुर किरपा ते परम पदु पाइआ ॥३॥
गुरु की कृपा हो जाए तो मोक्ष पाया जा सकता है।॥३॥
ਕਹਤ ਨਾਨਕੁ ਮਾਰਿ ਜੀਵਾਲੇ ਸੋਇ ॥
कहत नानकु मारि जीवाले सोइ ॥
नानक कहते हैं कि दरअसल मारने-जिंदा करने वाला ईश्वर ही है,
ਐਸਾ ਬੂਝਹੁ ਭਰਮਿ ਨ ਭੂਲਹੁ ਕੋਇ ॥੪॥੩॥
ऐसा बूझहु भरमि न भूलहु कोइ ॥४॥३॥
इस सच्चाई को समझ लो, भ्रम में पड़कर मत भूलो॥४॥३॥
ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੩ ॥
भैरउ महला ३ ॥
भैरउ महला ३॥
ਮੈ ਕਾਮਣਿ ਮੇਰਾ ਕੰਤੁ ਕਰਤਾਰੁ ॥
मै कामणि मेरा कंतु करतारु ॥
ईश्वर मेरा पति है, मैं उसकी पत्नी हूँ।
ਜੇਹਾ ਕਰਾਏ ਤੇਹਾ ਕਰੀ ਸੀਗਾਰੁ ॥੧॥
जेहा कराए तेहा करी सीगारु ॥१॥
जैसा वह चाहता है, वैसा ही मैं श्रृंगार करती हूँ॥१॥
ਜਾਂ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਤਾਂ ਕਰੇ ਭੋਗੁ ॥
जां तिसु भावै तां करे भोगु ॥
जब उसकी रज़ा होती है तो मुझसे रमण करता है।
ਤਨੁ ਮਨੁ ਸਾਚੇ ਸਾਹਿਬ ਜੋਗੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तनु मनु साचे साहिब जोगु ॥१॥ रहाउ ॥
यह तन मन उस सच्चे मालिक योग्य है॥१॥ रहाउ॥
ਉਸਤਤਿ ਨਿੰਦਾ ਕਰੇ ਕਿਆ ਕੋਈ ॥ ਜਾਂ ਆਪੇ ਵਰਤੈ ਏਕੋ ਸੋਈ ॥੨॥
उसतति निंदा करे किआ कोई ॥ जां आपे वरतै एको सोई ॥२॥
कोई उसकी प्रशंसा एवं निंदा क्या करे, जब वह स्वयं ही सबमें व्याप्त है॥२॥
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਪਿਰਮ ਕਸਾਈ ॥
गुर परसादी पिरम कसाई ॥
गुरु की कृपा से प्रियतम की ओर आकर्षित हुई हूँ और
ਮਿਲਉਗੀ ਦਇਆਲ ਪੰਚ ਸਬਦ ਵਜਾਈ ॥੩॥
मिलउगी दइआल पंच सबद वजाई ॥३॥
खुशियों के नाद बजाकर दयालु प्रभु से मिल जाऊँगी।॥३॥
ਭਨਤਿ ਨਾਨਕੁ ਕਰੇ ਕਿਆ ਕੋਇ ॥ ਜਿਸ ਨੋ ਆਪਿ ਮਿਲਾਵੈ ਸੋਇ ॥੪॥੪॥
भनति नानकु करे किआ कोइ ॥ जिस नो आपि मिलावै सोइ ॥४॥४॥
गुरु नानक कहते हैं कि कोई क्या कर सकता है, जिसे वह स्वयं ही मिला लेता है॥४॥ ४॥
ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੩ ॥
भैरउ महला ३ ॥
भैरउ महला ३॥
ਸੋ ਮੁਨਿ ਜਿ ਮਨ ਕੀ ਦੁਬਿਧਾ ਮਾਰੇ ॥
सो मुनि जि मन की दुबिधा मारे ॥
मुनि वही है, जो मन की दुविधा को मारता है और
ਦੁਬਿਧਾ ਮਾਰਿ ਬ੍ਰਹਮੁ ਬੀਚਾਰੇ ॥੧॥
दुबिधा मारि ब्रहमु बीचारे ॥१॥
दुविधा को मारकर ब्रह्म का चिंतन करता है॥१॥
ਇਸੁ ਮਨ ਕਉ ਕੋਈ ਖੋਜਹੁ ਭਾਈ ॥
इसु मन कउ कोई खोजहु भाई ॥
हे भाई ! इस मन को कोई खोज लो,
ਮਨੁ ਖੋਜਤ ਨਾਮੁ ਨਉ ਨਿਧਿ ਪਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मनु खोजत नामु नउ निधि पाई ॥१॥ रहाउ ॥
मन को खोजने से नाम रूपी नवनिधि प्राप्त होती है॥ १॥ रहाउ॥
ਮੂਲੁ ਮੋਹੁ ਕਰਿ ਕਰਤੈ ਜਗਤੁ ਉਪਾਇਆ ॥
मूलु मोहु करि करतै जगतु उपाइआ ॥
मोह का तत्व डालकर परमपिता ने जगत को उत्पन्न किया और
ਮਮਤਾ ਲਾਇ ਭਰਮਿ ਭੋੁਲਾਇਆ ॥੨॥
ममता लाइ भरमि भोलाइआ ॥२॥
ममत्व की भावना में लगाकर उसे भ्रम में भुला दिया है॥२॥
ਇਸੁ ਮਨ ਤੇ ਸਭ ਪਿੰਡ ਪਰਾਣਾ ॥
इसु मन ते सभ पिंड पराणा ॥
इस मन से सब शरीर एवं प्राण हैं और
ਮਨ ਕੈ ਵੀਚਾਰਿ ਹੁਕਮੁ ਬੁਝਿ ਸਮਾਣਾ ॥੩॥
मन कै वीचारि हुकमु बुझि समाणा ॥३॥
मन के चिंतन द्वारा ईश्वर के हुक्म को बूझकर उसमें समाया जा सकता है॥३॥